क्या मीडिया की स्वतंत्रता और न्यायिक उत्तरदायित्व साथ-साथ चल सकती है

Himanshu Mishra

27 Nov 2024 8:33 PM IST

  • क्या मीडिया की स्वतंत्रता और न्यायिक उत्तरदायित्व साथ-साथ चल सकती है

    मुख्य चुनाव आयुक्त बनाम एम.आर. विजयभास्कर एवं अन्य के महत्वपूर्ण मामले ने भारतीय संवैधानिक कानून में एक अहम सवाल खड़ा किया। यह सवाल था कि क्या मीडिया को अदालत की कार्यवाही की रिपोर्टिंग का असीम अधिकार होना चाहिए और न्यायपालिका के मौखिक (oral) टिप्पणियों की सीमा क्या होनी चाहिए।

    इस लेख में सुप्रीम कोर्ट के तर्क को समझाया गया है, जिसमें खुले न्यायालय (Open Courts), मीडिया की स्वतंत्रता (Media Freedom), और न्यायिक उत्तरदायित्व (Judicial Accountability) के मूल सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। साथ ही, न्यायिक और संवैधानिक मर्यादा (Propriety) के महत्व को भी विश्लेषित किया गया है।

    खुले न्यायालय और पारदर्शिता (Open Courts and Transparency in Judicial Proceedings)

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि खुले न्यायालय भारतीय न्याय प्रणाली (Judicial System) की नींव हैं। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक कार्यवाहियों में पारदर्शिता (Transparency) सार्वजनिक विश्वास (Public Trust) को बढ़ावा देती है, जवाबदेही सुनिश्चित करती है, और यह सुनिश्चित करती है कि न्याय केवल किया ही नहीं जाए बल्कि होते हुए दिखे।

    जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने स्वप्निल त्रिपाठी बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (2018) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट की कार्यवाहियों की लाइव-स्ट्रीमिंग (Live-Streaming) के महत्व को रेखांकित किया गया था। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक चर्चा (Public Discourse) और पारदर्शिता न्यायपालिका के आचरण को भरोसेमंद बनाती हैं।

    हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि खुले न्यायालयों के सिद्धांत में कुछ अपवाद (Exceptions) हैं, जैसे यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) या वैवाहिक गोपनीयता (Marital Privacy) से जुड़े मामलों में। इन अपवादों का उद्देश्य व्यक्तिगत अधिकारों (Individual Rights) की रक्षा करना है।

    मीडिया की स्वतंत्रता: लोकतंत्र का स्तंभ (Media Freedom as a Pillar of Democracy)

    मीडिया की स्वतंत्रता (Freedom of Media), जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत दी गई है, अदालत की कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग का अधिकार भी शामिल करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीडिया की स्वतंत्रता सार्वजनिक संस्थानों (Public Institutions) को जवाबदेह बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

    कोर्ट ने एक्सप्रेस न्यूज़पेपर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1958) का हवाला दिया, जिसमें बताया गया था कि प्रेस का अधिकार (Right of Press) सूचना प्रसारित करने और सार्वजनिक संवाद (Public Dialogue) को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    फैसले में यह भी स्वीकार किया गया कि मीडिया प्लेटफ़ॉर्म (Media Platforms) अब केवल प्रिंट से आगे बढ़कर सोशल मीडिया (Social Media) और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (Electronic Media) तक पहुँच चुके हैं। इस डिजिटल युग में, मीडिया स्वतंत्रता को प्रासंगिक बनाए रखना आवश्यक है।

    न्यायिक उत्तरदायित्व और मौखिक टिप्पणियाँ (Judicial Accountability and Oral Remarks)

    इस मामले में एक बड़ा मुद्दा न्यायाधीशों की मौखिक टिप्पणियों (Oral Remarks) का भी था। मुख्य चुनाव आयोग (Election Commission of India) ने आरोप लगाया कि मद्रास हाईकोर्ट ने अपने मौखिक टिप्पणी में कोविड-19 की दूसरी लहर (Second Wave of COVID-19) के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराया।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में कहा कि न्यायाधीशों को अपनी भाषा (Language) में संयम (Restraint) रखना चाहिए, ताकि किसी भी टिप्पणी का गलत अर्थ न निकाला जाए। कोर्ट ने ए.एम. माथुर बनाम प्रमोद कुमार गुप्ता (1990) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें न्यायिक गरिमा (Judicial Dignity) और सार्वजनिक सम्मान (Public Respect) के बीच संबंध की बात कही गई थी।

    हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मौखिक टिप्पणियाँ न्यायिक आदेशों (Judicial Orders) का हिस्सा नहीं होतीं और इन पर अधिक विवाद करना उचित नहीं है।

    मीडिया की स्वतंत्रता और न्यायिक मर्यादा का संतुलन (Balancing Media Freedom with Judicial Propriety)

    सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया की स्वतंत्रता और न्यायिक मर्यादा के बीच संतुलन स्थापित किया। अदालत ने चुनाव आयोग की यह मांग खारिज कर दी कि मीडिया को मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग से रोका जाए।

    कोर्ट ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता (Freedom of Press) लोकतांत्रिक जवाबदेही (Democratic Accountability) का अभिन्न हिस्सा है।

    सुप्रीम कोर्ट ने नरेश श्रीधर मिराजकर बनाम महाराष्ट्र राज्य (1966) जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि न्यायपालिका की पारदर्शिता और मीडिया की स्वतंत्रता साथ-साथ चल सकती है, बशर्ते दोनों पक्ष जिम्मेदारी (Responsibility) से काम करें।

    मुख्य चुनाव आयुक्त बनाम एम.आर. विजयभास्कर का फैसला लोकतंत्र में मीडिया की स्वतंत्रता और न्यायपालिका की मर्यादा के बीच सामंजस्य (Harmony) की जरूरत को रेखांकित करता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने खुले न्यायालय, मीडिया की स्वतंत्रता, और न्यायिक उत्तरदायित्व के सिद्धांतों को मजबूती प्रदान की। यह मामला दर्शाता है कि मीडिया और न्यायपालिका का तालमेल भारतीय लोकतंत्र (Indian Democracy) की मजबूती के लिए आवश्यक है।

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