शिकायत वापस लेने, कार्यवाही रोकने और समन-प्रकरण को वारंट-प्रकरण में बदलने की शक्ति : धारा 280 - धारा 282 BNSS 2023
Himanshu Mishra
27 Nov 2024 8:30 PM IST
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) समन-प्रकरण (Summons-Cases) के संचालन के लिए स्पष्ट नियम प्रदान करती है। इसमें न्याय प्रक्रिया को प्रभावी और न्यायपूर्ण बनाए रखने के लिए कई लचीले प्रावधान हैं। विशेष रूप से धारा 280, धारा 281, और धारा 282 शिकायत वापस लेने, कार्यवाही रोकने, और समन-प्रकरण को वारंट-प्रकरण (Warrant-Case) में बदलने की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती हैं।
शिकायत वापस लेने का अधिकार: धारा 280
धारा 280 के तहत, शिकायतकर्ता (Complainant) अंतिम आदेश पारित होने से पहले किसी भी समय अपनी शिकायत वापस ले सकता है। यह वापसी सभी अभियुक्तों (Accused) या केवल कुछ के खिलाफ हो सकती है। शिकायतकर्ता को मजिस्ट्रेट (Magistrate) को यह संतुष्ट करना होगा कि शिकायत वापस लेने के पर्याप्त आधार हैं। यदि मजिस्ट्रेट सहमत होते हैं, तो अभियुक्त को इस शिकायत से बरी (Acquitted) कर दिया जाएगा।
उदाहरण:
मान लीजिए, एक व्यक्ति संपत्ति विवाद (Property Dispute) में शिकायत करता है, लेकिन बाद में मामला आपसी समझौते (Settlement) से हल हो जाता है। शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट के सामने समझौता प्रस्तुत करके शिकायत वापस लेने की अनुमति मांग सकता है। यदि मजिस्ट्रेट सहमत हों, तो अभियुक्त को बरी कर दिया जाएगा।
यह प्रावधान विवादों के मैत्रीपूर्ण समाधान (Amicable Resolution) को बढ़ावा देता है और न्यायालय की अनावश्यक प्रक्रिया से बचाता है।
कार्यवाही रोकने की शक्ति: धारा 281
धारा 281 के अनुसार, मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वे समन-प्रकरण में कार्यवाही किसी भी समय रोक सकते हैं, बशर्ते कि मामला शिकायत पर आधारित न हो।
• यदि मुख्य गवाहों (Principal Witnesses) के बयान दर्ज हो चुके हैं, तो मजिस्ट्रेट आरोप मुक्त करने (Acquittal) का आदेश पारित कर सकते हैं।
• अन्य मामलों में, अभियुक्त को रिहा (Discharged) किया जाएगा, जिसका अर्थ है कि उस मामले में अभियुक्त के खिलाफ कोई और कार्यवाही नहीं होगी।
उदाहरण:
मान लीजिए, किसी मुकदमे में मजिस्ट्रेट को लगता है कि कार्यवाही जारी रखना न्याय के लिए अनुचित होगा क्योंकि सबूत पर्याप्त नहीं हैं। यदि मुख्य गवाहों के बयान पहले ही दर्ज हो चुके हैं, तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त को बरी कर सकते हैं। अन्यथा, अभियुक्त को रिहा कर दिया जाएगा।
यह प्रावधान न्याय प्रक्रिया को अनावश्यक रूप से लंबा होने से बचाता है और समय और संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करता है।
समन-प्रकरण को वारंट-प्रकरण में बदलने की शक्ति: धारा 282
धारा 282 मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वे समन-प्रकरण को वारंट-प्रकरण में बदल दें, यदि अपराध के लिए छह महीने से अधिक की सजा का प्रावधान हो। ऐसा तब किया जा सकता है जब मजिस्ट्रेट को लगता है कि न्याय के हित में सख्त प्रक्रिया की आवश्यकता है।
मजिस्ट्रेट समन-प्रकरण की सुनवाई में दिए गए गवाहों (Witnesses) के बयान को वारंट-प्रकरण की प्रक्रिया के तहत फिर से रिकॉर्ड कर सकते हैं।
उदाहरण:
मान लीजिए, एक मारपीट के मामले (Assault Case) में शुरू में अपराध को हल्का माना गया, लेकिन बाद में सबूत सामने आने पर अपराध गंभीर निकला। इस स्थिति में, मजिस्ट्रेट मामला वारंट-प्रकरण में बदल सकते हैं ताकि सुनवाई सख्त प्रक्रिया के तहत हो सके।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि गंभीर अपराधों की सुनवाई उचित और कठोर प्रक्रिया के अनुसार हो।
प्रावधानों का आपसी संबंध
इन धाराओं के माध्यम से न्याय प्रणाली को लचीलापन और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान किया गया है:
• धारा 280 विवादों के मैत्रीपूर्ण समाधान को प्रोत्साहन देती है।
• धारा 281 न्यायालय को ऐसे मामलों में कार्यवाही रोकने की शक्ति देती है जहां सबूत पर्याप्त नहीं हैं।
• धारा 282 यह सुनिश्चित करती है कि गंभीर अपराध समुचित प्रक्रिया से निपटाए जाएं।
ये प्रावधान न्यायालय की प्रक्रिया को त्वरित और न्यायपूर्ण बनाते हैं और न्यायिक संसाधनों (Judicial Resources) का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करते हैं।
धारा 280, धारा 281, और धारा 282 भारतीय न्याय प्रणाली की दक्षता और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। ये प्रावधान समन-प्रकरण में परिस्थितियों के अनुसार न्याय प्रक्रिया में लचीलापन लाते हैं। शिकायत वापस लेने, कार्यवाही रोकने, और मामले को बदलने की शक्तियों से न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि मामलों को निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से हल किया जाए।