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हिन्दू विधि भाग 13: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएं और इस अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ( Hindu Succession Act) 1956 किसी निर्वसीयती हिंदू की मृत्यु के बाद उसकी अर्जित संपत्ति उत्तराधिकार से संबंधित एक संहिताबद्ध अधिनियम है। इस अधिनियम के अंतर्गत कुछ विशेष शब्दों की परिभाषाएं दी गई हैं तथा यह अधिनियम कहां-कहां और किन-किन विधियों को अध्यारोही कर सकता है, उस संबंध में भी उल्लेख किया गया है।इस लेख के माध्यम से लेखक हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 से संबंधित धारा 3 एवं धारा 4 के प्रावधानों पर चर्चा कर रहा है।अधिनियम के अंतर्गत कुछ विशेष शब्दों की...
हिन्दू विधि भाग 12 : हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 और उससे संबंधित महत्वपूर्ण बातें
लेखक द्वारा लाइव लॉ पर हिंदू विधि के अंतर्गत हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के समस्त महत्वपूर्ण प्रावधानों पर सारगर्भित टीका टिप्पणी के साथ आलेख लिखे गए हैं। इसके आगे भाग 12 से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के महत्वपूर्ण प्रावधान पर टीका टिप्पणी सहित आलेख लिखे जाएंगे।इस लेख भाग -12 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 से संबंधित महत्वपूर्ण बातों का समावेश किया जा रहा है तथा इस अधिनियम की प्रस्तावना को प्रस्तुत किया जा रहा है।हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956हिंदू पर्सनल लॉ (Hindu Personal Law) के अंतर्गत...
हिंदू विधि भाग 11 : जानिए पति पत्नी के बीच मुकदमेबाज़ी के दौरान बच्चों की अभिरक्षा (Child Custody) कैसे निर्धारित की जाती है
वैवाहिक बंधन आपसी सूझबूझ पर निर्भर करता है। जब किसी वैवाहिक बंधन में ऐसी आपसी सूझबूझ का अभाव होता है तथा वैचारिक मत मिल नहीं पाते हैं तब मतभेद का जन्म होता है। ऐसे मतभेद से पति पत्नी के बीच अलगाव का भी जन्म हो जाता है। इस अलगाव के परिणामस्वरूप पति-पत्नी न्यायालय की शरण लेते हैं तथा दांपत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापन, न्यायिक पृथक्करण और तलाक के मुकदमों का जन्म होता है।जब इस प्रकार की कार्यवाही अदालतों में चलती रहती है, उस समय विवाह से उत्पन्न होने वाली संतानों पर संकट आ जाता है। किसी भी बच्चे के...
हिन्दू विधि भाग 10 : विवाह विच्छेद (Divorce) के बाद पुनः विवाह कब किया जा सकता है? हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत क्या दाण्डिक प्रावधान है
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 तलाक की संपूर्ण व्यवस्था करता है। धारा 13 के अंतर्गत उन आधारों का उल्लेख किया गया है, जिनके आधार पर तलाक की डिक्री पारित की जाती है और धारा 13b के अंतर्गत पारस्परिक तलाक का उल्लेख किया गया है। अब प्रश्न आता है कि न्यायालय से किसी विवाह विच्छेद की डिक्री पारित हो जाने के बाद विवाह कब किया जा सकता है?लेखक इस लेख के माध्यम से पुनर्विवाह के संबंध में और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत जो दाण्डिक प्रावधान है उनका उल्लेख कर रहा है।पुनर्विवाहविवाह एक पवित्र संस्था है। विवाह...
हिन्दू विधि भाग 9 : जानिए हिन्दू मैरिज एक्ट के अधीन पत्नी को तलाक के क्या विशेषाधिकार प्राप्त हैं और पारस्परिक सम्मति से विवाह-विच्छेद क्या होता है
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 ( (The Hindu Marriage Act, 1955) की धारा 13 के अंतर्गत तलाक की व्यवस्था की गई है। लेखक द्वारा इससे पूर्व का लेख धारा 13 के अंतर्गत विवाह के पक्षकार पत्नी और पत्नी दोनों को समान रूप से प्राप्त विवाह के आधारों पर विस्तारपूर्वक लिखा गया था।यह लेख केवल पत्नी को प्राप्त तलाक के कुछ विशेषाधिकार और पारस्परिक विवाह विच्छेद के संबंध में लिखा जा रहा है।हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 की उपधारा (2) के अनुसार पत्नी को तलाक के कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इन विशेषाधिकारों की संख्या...
हिन्दू विधि भाग 8 : जानिए हिंदू मैरिज एक्ट के अधीन विवाह विच्छेद (Divorce) कैसे होता है
प्राचीन शास्त्री हिंदू विधि के अधीन हिंदू विवाह एक संस्कार है। विवाह हिंदुओं का एक धार्मिक संस्कार है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक पुरुष को तब ही पूर्ण माना गया है, जब उसकी पत्नी और उसकी संतान हो। प्राचीन शास्त्रीय हिंदू विधि के अधीन हिंदू विवाह में संबंध विच्छेद जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी, तलाक शब्द मुस्लिम विधि में प्राप्त होता है तथा रोमन विधि में डायवोर्स शब्द प्राप्त होता है परंतु शास्त्रीय हिंदू विधि के अधीन विवाह विच्छेद जैसी कोई उपधारणा नहीं रही है, क्योंकि हिंदुओं में विवाह एक पवित्र संस्कार...
हिन्दू विधि भाग 7 : जानिए हिंदू मैरिज एक्ट के अधीन विवाह कब शून्यकरणीय (Voidable marriage) होता है, शून्य विवाह और शून्यकरणीय विवाह में क्या अंतर है
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (The Hindu Marriage Act, 1955) के अधीन हिंदू विवाह के संविदा के स्वरूप को ध्यान में रखते हुए संविदा की भांति ही इस विवाह में शून्य और शून्यकरणीय विवाह (Voidable marriage) जैसी व्याख्या की गई है।अधिनियम की धारा 12 हिंदू विवाह शून्यकरणीय के संबंध में उल्लेख करती। इसके पूर्व के लेख में किसी हिंदू विवाह के शून्य (Void) होने के संदर्भ में उल्लेख किया गया था।इस लेख में हिंदू विवाह के शून्यकरणीय होने के संदर्भ में उल्लेख किया जाएगा तथा शून्य विवाह और शून्यकरणीय विवाह के मध्य...
हिन्दू विधि भाग 6 : जानिए हिंदू मैरिज एक्ट के अधीन विवाह कब शून्य (Void marriage) होता है
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत विवाह को संस्कार तथा संविदा दोनों का मिश्रित रूप दिया गया है। प्राचीन शास्त्रीय विधि के अधीन हिंदू विवाह संस्कार है और उसमे तलाक जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। इस हेतु कुछ प्रावधान आधुनिक हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में भी सम्मिलित किए गए हैं, यदि हिंदू विवाह को एक संविदा के स्वरूप में देखा जाए तो एक संविदा के भांति ही इस विवाह में शून्य विवाह (Void marriage) और शून्यकरणीय विवाह (Voidable marriage) का समावेश किया गया है।इस आलेख के माध्यम से शून्य विवाह के संदर्भ में...
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 5: आदेश 2 नियम 1 के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 2 वादों की विरचना से संबंधित है। इस आदेश में एक वाद किस प्रकार से रचित किया जाएगा। यह आदेश सिविल प्रक्रिया का आधारभूत आदेश है जो उन कानूनों की उत्पत्ति करता है एक वाद किस प्रकार से होना चाहिए। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 2 के नियम 1 पर विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है।यह आदेश 2 के नियम 1 के संहिता में दिए गए शब्द हैं1-वाद की विरचना हर वाद की विरचना यावत्साध्य ऐसे की जाएगी कि विवादग्रस्त विषयों पर अंतिम विनिश्चय करने के लिए आधार...
हिन्दू विधि भाग 5 : जानिए हिंदू मैरिज एक्ट के अधीन न्यायिक पृथक्करण ( Judicial Separation) क्या होता है
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9 के अधीन जिस प्रकार विवाह के पक्षकारों के आपसी मतभेद होने पर पुनर्मिलन के प्रयास किए गए हैं| इसी प्रकार धारा 10 के अधीन विवाह को बचाए रखते हुए विवाह के पक्षकारों को अलग अलग रहने के उपचार प्रदान किए गए हैं।प्राचीन शास्त्री हिंदू विधि के अधीन हिंदू विवाह एक संस्कार है तथा यह जन्म जन्मांतरों का संबंध है। ऐसे प्रयास होने चाहिए कि कोई भी हिंदू विवाह के संपन्न होने के बाद पति और पत्नी जहां तक संभव हो सके विवाह को सफल बनाएं तथा साथ-साथ साहचर्य का पालन करें। इस विचार को...
हिन्दू विधि भाग 4 : जानिए दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन (Restitution of Conjugal Rights) क्या होती है
हिंदू विधि के अधीन विवाह एक संविदा तथा संस्कार दोनों का मिश्रित रूप है। यदि हिंदू लॉ के अधीन विवाह को संस्कार माना भी जाए तो वर्तमान हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (The Hindu Marriage Act, 1955) के अधीन यह एक पारिवारिक संविदा मालूम होता है। जब दो पक्षकार आपस में विवाह संपन्न करते हैं तो ऐसे विवाह के संपन्न होने के पश्चात उन दोनों के भीतर कुछ सामाजिक अधिकार तथा दायित्वों का जन्म होता है।विवाह के उपरांत विवाह के पक्षकार पति तथा पत्नी एक साथ रहते हैं तथा एक दूसरे के प्रति दोनों को साहचर्य का अधिकार होता...
हिन्दू विधि भाग- 3 : जानिए हिन्दू मैरिज एक्ट के अंतर्गत हिन्दू विवाह की शर्तें
हिंदू शास्त्रीय विवाह के अधीन विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। इस संस्कार को पूरा करने के लिए प्राचीन विधि में भी शर्ते अधिरोपित की गई थी। वर्तमान हिंदू विवाह अधिनियम 1955 ( The Hindu Marriage Act, 1955) आधुनिक हिंदू विधि है, जिसे प्राचीन शास्त्रीय विधि तथा आधुनिक परिक्षेप को ध्यान में रखते हुए भारत की संसद द्वारा बनाया गया है।इस अधिनियम के अंतर्गत हिंदू विवाह किए जाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तों का समावेश किया गया है। हिंदू विवाह के अधीन इन शर्तों की पूर्ति की जाना अति आवश्यक है। अधिनियम की...
हिन्दू विधि भाग 2 : जानिए हिंदू विवाह अधिनियम का विस्तार, यह अधिनियम कहां तक लागू होता है
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (The Hindu Marriage Act, 1955) के प्रारंभ होते ही सबसे पहले प्रश्न यह आते हैं कि इस अधिनियम का विस्तार कहां तक होगा अर्थात यह अधिनियम कहां तक लागू होगा और कौन से लोगों पर यह लागू होगा और इस अधिनियम के अंतर्गत दी गई विशेष परिभाषाओं का क्या अर्थ है?इस लेख के माध्यम से हिंदू विवाह अधिनियम का विस्तार उसकी परिभाषाएं तथा अधिनियम किन लोगों पर लागू होगा इस संबंध में सारगर्भित चर्चा की जा रही है।हिंदू विवाह अधिनियम का विस्तारहिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 1 इस अधिनियम के नाम और...
हिन्दू विधि भाग 1 : जानिए हिन्दू विधि (Hindu Law) और हिंदू विवाह (Hindu Marriage) से संबंधित आधारभूत बातें
भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अंतर्गत भारत के समस्त नागरिकों को उनके धार्मिक तथा जातिगत रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार अपने व्यक्तिगत मामलों (विवाह, तलाक, भरण पोषण,उत्तराधिकार, दत्तक ग्रहण) से संबंधित मामले अधिनियमित किए गए।भारत के सभी नागरिकों को अपनी धार्मिक तथा जातिगत परंपराओं और रिवाजों को अपने व्यक्तिगत मामलों में कानून का दर्जा दिया गया है। इन परंपराओं और रीति-रिवाजों को अधिनियम के माध्यम से समय-समय पर बल दिया गया है तथा इन प्रथाओं को सहिंताबद्ध किया गया है।भारत के मुसलमानों को...
महिला आरक्षण और हमारी संविधान निर्माता माताएं : संविधान सभा में यूं हुई बहस
केंद्र द्वारा संविधान ( 128वां संशोधन) विधेयक, 2023 की शुरुआत, जिसे महिला आरक्षण विधेयक के रूप में भी जाना जाता है, ने लोकसभा, राज्य विधानमंडल, और दिल्ली विधान सभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव करके सभी क्षेत्रों में हलचल पैदा कर दी है।यह विधेयक, जिससे कानून के लागू होने के बाद महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ने की उम्मीद है, नए संसद भवन में स्थानांतरित होने के बाद सरकार द्वारा नई संसद इमारत को एक ठोस प्रयास में लैंगिक न्याय के अग्रदूत के रूप में चित्रित करने...
जानिए महिला आरक्षण बिल पर एक माह पहले सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था
संसद के विशेष सत्र के उद्घाटन दिवस (18 सितंबर) को, केंद्रीय कैबिनेट ने कथित तौर पर महिला आरक्षण विधेयक को पेश करने को मंजूरी दे दी। लेकिन कम लोग जानते हैं कि एक महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने महिला आरक्षण के मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट ना करने के लिए केंद्र सरकार से सवाल किया था।कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि उसने विधायिका में महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग को लेकर 2021 में दायर जनहित याचिका पर अपना जवाब क्यों नहीं दाखिल किया।जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने 11 अगस्त को हुई...
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 4: आदेश 1 नियम 10 के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) के आदेश 1 नियम 10 के प्रावधान सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों ही दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। एक प्रकार से देखे तो आदेश 1 के प्रावधानों में नियम 10 के प्रावधान सार्वाधिक व्यवहार में आतें हैं क्योंकि जब भी अदालत को किसी वाद में नए पक्षकार जोड़ने या काटने होते हैं तब इस ही नियम की सहायता से पक्षकारों को जोड़ा या काटा जाता है। किसी पक्षकार को वाद में जोड़ने हेतु भी वाद के पुराने पक्षकारों द्वारा नियम 10 का आवेदन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 3: आदेश 1 नियम 9 के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 1 अत्यंत विस्तृत है और इस आदेश के सभी नियम भी अधिक विस्तृत है। यह आदेश किसी भी वाद के पक्षकारों के संबंध में व्यवस्थित प्रावधान करता है। वाद के पक्षकारों के विषय में यह आदेश के सभी लगभग सारे प्रावधान पूर्ण कर देते हैं। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 1 के नियम 9 पर विस्तृत टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है जिससे पाठकगण आदेश 1 के नियम 9 को संपूर्ण रूप से समझ पाए।नियम 9 के संहिता में दिए शब्द इस प्रकार हैंनियम 9-कुसंयोजन और असंयोजनकोई भी वाद...
स्पेस लॉ क्या है जानिए प्रावधान
पृथ्वी के रहवासियों की पहुंच अब पूरी तरह स्पेस में भी हो चुकी है और ऐसी पहुंच आज नहीं अपितु पचास वर्ष से अधिक समय पहले हो चुकी थी। अब यह ज़रूरी है कि जहां पृथ्वी के इंसानों की पहुंच हो जाए उस जगह पर कानून भी होना चाहिए क्योंकि सभी स्पेस एजेंसीज और अनुसंधान केंद्रों को विनियमित किया जाना भी ज़रूरी है जिससे कोई भी अनियमितता सामने नहीं आए। आमतौर पर स्पेस से संबंधित खोज और पृथ्वी की सतह से ऊपर जाना किसी साधारण संस्था के लिए संभव नहीं है। अधिकांश अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र देशों के नाम से ही चल रहे हैं...
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 2: नियम 4 से 8क तक के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) के आदेश 1 के अंतर्गत नियम 4 से लेकर 8क तक के प्रावधानों पर चर्चा इस आलेख के अंतर्गत प्रस्तुत की जा रही है। नियम 4 से 7 में पक्षकारों के बारे में कुछ सामान्य बातें बताई गई हैं, जो संहिता में दी गई प्रक्रिया को लागू होती हैं। नियम 8 एवं नियम 8क में समान हित की रक्षा करने के लिए नियम तथा नियम 8-क प्रतिनिधिवाद की व्यवस्था करता है। संहिता का यह महत्वपूर्ण नियम है। यह इस सामान्य सिद्धान्त का एक अपवाद है कि सभी व्यक्ति जो किसी वाद में हितबद्ध है,...