मुआवजे के नियम और अदालत के फैसलों में किसे प्राथमिकता मिलेगी?
Himanshu Mishra
6 Dec 2024 7:42 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने New India Assurance Co. Ltd. बनाम Urmila Shukla & Ors. मामले में एक महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार किया: क्या मोटर दुर्घटना मुआवजा (Compensation) के लिए बने संवैधानिक नियम, "न्यायपूर्ण मुआवजा" (Just Compensation) तय करने के लिए, न्यायिक निर्णयों को बदल सकते हैं?
यह मामला उत्तर प्रदेश मोटर वाहन नियम, 1998 (Uttar Pradesh Motor Vehicles Rules, 1998) के नियम 220A(3)(iii) और National Insurance Co. Ltd. बनाम Pranay Sethi (2017) के निर्णय के बीच संगति (Compatibility) पर केंद्रित था।
मुआवजे पर कानूनी ढांचा (Legal Framework on Compensation)
मोटर दुर्घटना मुआवजे के मामलों में, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (Motor Vehicles Act, 1988) की धारा 168 (Section 168) एक "न्यायपूर्ण मुआवजा" (Just Compensation) प्रदान करने की बात करती है। इसका उद्देश्य यह है कि पीड़ित और उनके परिवारों के साथ उचित और व्यावहारिक संतुलन (Balance) बनाया जाए।
जैसे-जैसे समय बढ़ा Sarla Verma बनाम DTC (2009), Reshma Kumari बनाम Madan Mohan (2013) और Pranay Sethi जैसे निर्णयों ने मुआवजे की गणना के लिए मानकीकरण (Standardization) का तरीका विकसित किया।
इनमें यह स्पष्ट किया गया कि मुआवजा तय करते समय मृतक की आय में "भविष्य की संभावनाओं" (Future Prospects) को भी जोड़ा जाए।
Pranay Sethi में सुप्रीम कोर्ट ने भविष्य की संभावनाओं के लिए विशेष प्रतिशत तय किए:
• 40% जोड़ उन व्यक्तियों के लिए जिनकी उम्र 40 वर्ष से कम है।
• 25% जोड़ 40-50 वर्ष के बीच वालों के लिए।
• 15% जोड़ 50-60 वर्ष के बीच वालों के लिए।
स्व-रोजगार (Self-Employed) या निश्चित वेतन (Fixed Salary) वाले व्यक्तियों के लिए भी ये नियम साक्ष्यों के आधार पर लागू किए गए।
नियम 220A(3)(iii) पर विवाद (Contention with Rule 220A(3)(iii))
उत्तर प्रदेश मोटर वाहन नियमों के तहत नियम 220A(3) में भविष्य की संभावनाओं के लिए अलग प्रावधान था। इसमें 50 वर्ष से अधिक उम्र के मृतक के लिए 20% जोड़ने का प्रावधान किया गया था, जो Pranay Sethi के 15% सीमा से अलग था।
मामले में, अपीलकर्ता (Appellant) ने तर्क दिया कि यह प्रावधान न्यायिक निर्णयों से मेल नहीं खाता और इसे अस्वीकार किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण (Supreme Court's Analysis)
सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। उसने कहा कि जब तक कोई संवैधानिक नियम अमान्य घोषित न हो, तब तक उसका पालन करना अनिवार्य है। Pranay Sethi का उद्देश्य लाभकारी संवैधानिक प्रावधानों (Beneficial Statutory Provisions) को सीमित करना नहीं था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि Pranay Sethi में राज्य-विशिष्ट नियमों (State-Specific Rules) की वैधता पर विचार नहीं किया गया था। इसलिए, यदि नियम 220A(3)(iii) जैसे प्रावधान मुआवजे के लिए बेहतर लाभ प्रदान करते हैं, तो उन्हें लागू होने से नहीं रोका जा सकता।
संदर्भित महत्वपूर्ण निर्णय (Key Judgments Referenced)
1. Pranay Sethi: इस निर्णय ने मुआवजे में "मानकीकरण" (Standardization) के सिद्धांत को अपनाया और इसे न्यायिक प्रक्रिया का आधार बनाया।
2. Sarla Verma: यह निर्णय मुआवजे के लिए आय गुणक (Multiplier) का उपयोग करने का आधार बना।
3. Reshma Kumari: इसने Sarla Verma में स्थापित सिद्धांतों की पुष्टि की।
संवैधानिक और न्यायिक प्रावधानों में संतुलन (Balancing Statutory and Judicial Mandates)
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लाभ प्रदान करने वाले संवैधानिक नियमों को न्यायिक निर्णयों से बाधित नहीं किया जा सकता, जब तक कि ये नियम असंवैधानिक साबित न हों। यह निर्णय विधायी सर्वोच्चता (Legislative Supremacy) को सुनिश्चित करता है।
Urmila Shukla मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे पर संवैधानिक प्रावधानों की प्रमुखता को स्वीकार किया।
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि न्यायिक निर्णय मार्गदर्शक मानदंड (Guiding Benchmarks) होते हैं, लेकिन वे अधिक लाभ देने वाले संवैधानिक नियमों को प्रभावित नहीं कर सकते। यह निर्णय मुआवजे के कानून में न्याय और निष्पक्षता (Fairness and Equity) सुनिश्चित करता है।