डॉक्टरों की सेवा-निवृत्ति की आयु को लेकर महत्वपूर्ण संवैधानिक और कानूनी मुद्दों पर मुख्य विवाद

Himanshu Mishra

5 Dec 2024 5:32 PM IST

  • डॉक्टरों की सेवा-निवृत्ति की आयु को लेकर महत्वपूर्ण संवैधानिक और कानूनी मुद्दों पर मुख्य विवाद

    सुप्रीम कोर्ट ने North Delhi Municipal Corporation बनाम Dr. Ram Naresh Sharma & Others मामले में डॉक्टरों की सेवा-निवृत्ति (Retirement) की आयु को लेकर महत्वपूर्ण संवैधानिक और कानूनी मुद्दों पर विचार किया।

    इस मामले में मुख्य विवाद आयुर्वेद (Ayurveda) के डॉक्टरों और एलोपैथी (Allopathy) के डॉक्टरों के बीच भेदभाव को लेकर था। अदालत ने इस भेदभाव को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत चुनौतीपूर्ण माना।

    मुख्य मुद्दा: सेवा-निवृत्ति आयु में असमानता (Disparity in Retirement Age)

    मामले का मुख्य विषय यह था कि क्या AYUSH (Ayurveda, Yoga, Unani, Siddha, और Homeopathy) के अंतर्गत आने वाले डॉक्टरों को एलोपैथिक डॉक्टरों की तरह ही सेवा-निवृत्ति आयु में बढ़ोतरी का लाभ मिलना चाहिए।

    स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने 31 मई, 2016 को एलोपैथिक डॉक्टरों के लिए सेवा-निवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी थी। लेकिन यह लाभ शुरू में आयुर्वेदिक डॉक्टरों पर लागू नहीं किया गया, जिससे भेदभाव हुआ।

    उत्तरदाताओं (Respondents) का तर्क था कि दोनों श्रेणियों के डॉक्टर मरीजों की सेवा में समान रूप से योगदान करते हैं, इसलिए इस तरह का भेदभाव असंवैधानिक है। वहीं, याचिकाकर्ताओं (Petitioners) ने तर्क दिया कि यह प्रशासनिक आवश्यकता पर आधारित नीति थी।

    कानूनी सिद्धांत और न्यायिक दृष्टिकोण (Legal Principles and Judicial Reasoning)

    1. अनुच्छेद 14 के तहत समानता (Equality Under Article 14):

    अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी वर्गीकरण (Classification) को उचित ठहराने के लिए दो शर्तों को पूरा करना होता है:

    o एक तार्किक आधार होना चाहिए (Intelligible Differentiation)।

    o उसका कोई वैध उद्देश्य होना चाहिए।

    इस मामले में अदालत ने पाया कि एलोपैथिक और आयुष डॉक्टरों के बीच सेवा-निवृत्ति आयु में अंतर का कोई तार्किक आधार नहीं था। दोनों डॉक्टरों की जिम्मेदारी मरीजों का इलाज करना है, जो समान है।

    2. कार्य का सम्मान और वेतन का अधिकार (Dignity of Labor and Right to Remuneration):

    अदालत ने कहा कि सेवा प्रदान करने के बाद वेतन रोकना अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 23 (बलात श्रम का निषेध) का उल्लंघन है।

    3. भेदभाव समाप्त करने और नियमों को पूर्व-प्रभावी (Retrospective) बनाने का निर्णय (Non-Discrimination and Retrospective Application):

    AYUSH मंत्रालय ने 27 सितंबर, 2017 से आयुर्वेदिक डॉक्टरों के लिए सेवा-निवृत्ति आयु बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे 31 मई, 2016 से लागू करने का निर्देश दिया ताकि दोनों वर्गों के डॉक्टरों को समान लाभ मिल सके।

    4. 'Actus Curiae Neminem Gravabit' सिद्धांत का उपयोग (Principle of Actus Curiae Neminem Gravabit):

    यह सिद्धांत कहता है कि अदालत की गलती से किसी पक्ष को नुकसान नहीं होना चाहिए। अदालत ने कहा कि डॉक्टरों को अंतरिम आदेश (Interim Order) के तहत सेवा देने के बावजूद वेतन और भत्ते का लाभ मिलना चाहिए।

    संदर्भित महत्वपूर्ण मामले (Key Precedents Referred)

    • U.P. State Brassware Corporation Ltd. बनाम Uday Narain Pandey:

    इस मामले में यह कहा गया कि पिछली वेतन की भरपाई (Back Wages) का फैसला मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। लेकिन, यह सिद्धांत उन डॉक्टरों पर लागू नहीं होता जो लगातार काम करते रहे।

    • Kalabharati Advertising बनाम Hemant Vimalnath Narichania:

    अदालत ने कहा कि यदि अदालत के अंतरिम आदेश के कारण किसी पक्ष को नुकसान होता है, तो उसे ठीक किया जाना चाहिए।

    • Central Electricity Supply Utility of Odisha बनाम Dhobei Sahoo:

    अदालत ने कहा कि काम के बदले वेतन देना कानूनी और संवैधानिक अधिकार है।

    सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Supreme Court's Decision)

    अदालत ने माना कि आयुर्वेदिक और एलोपैथिक डॉक्टरों के बीच वर्गीकरण असंवैधानिक है। AYUSH मंत्रालय का आदेश 31 मई, 2016 से प्रभावी होगा और सभी प्रभावित डॉक्टरों को वेतन और भत्ते दिए जाएंगे।

    यह निर्णय संविधान में समानता और भेदभाव रहित व्यवहार की गारंटी को मजबूत करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि सभी डॉक्टर, चाहे वे किसी भी चिकित्सा पद्धति से हों, समान सम्मान और अधिकार प्राप्त करें। यह निर्णय प्रशासनिक नीतियों को संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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