राजनीति को अपराध मुक्त बनाने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट के प्रयास

Himanshu Mishra

7 Dec 2024 7:22 PM IST

  • राजनीति को अपराध मुक्त बनाने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट के प्रयास

    भारत के सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण (Criminalization) के मुद्दे पर बार-बार चिंता जताई है। कई महत्वपूर्ण फैसलों में कोर्ट ने उन खामियों को उजागर किया है, जिनकी वजह से गंभीर अपराधिक मामलों वाले व्यक्ति चुनाव लड़ सकते हैं।

    एक अवमानना याचिका (Contempt Petition) पर दिए गए फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीदवारों के अपराधिक रिकॉर्ड की अनिवार्य रूप से जानकारी देने के अपने पुराने निर्देशों को फिर से जोर दिया।

    यह फैसला लोकतांत्रिक (Democratic) प्रक्रियाओं को पारदर्शी (Transparent) और जिम्मेदार (Accountable) बनाने के उद्देश्य से किया गया। इस लेख में न्यायालय की व्याख्या, विधायी (Legislative) कमियां, और इस मुद्दे के मुख्य पहलुओं पर चर्चा की गई है।

    प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of People Act, 1951)

    इस चर्चा का केंद्र बिंदु है Representation of People Act, 1951। यह अधिनियम (Act) चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की योग्यता और अयोग्यता (Disqualifications) तय करता है।

    इसकी धारा 8 (Section 8) में स्पष्ट किया गया है कि कुछ अपराधों में दोषी ठहराए जाने पर व्यक्ति चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाएगा। उदाहरण के लिए, धार्मिक विद्वेष (Promoting Enmity), रिश्वतखोरी (Bribery), और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर मामलों में दोषसिद्धि (Conviction) होने पर अयोग्यता लागू होती है।

    हालांकि, यह अयोग्यता केवल दोषसिद्धि (Conviction) पर आधारित है, न कि मामले के लंबित (Pending) होने पर। यह एक बड़ी कमी है, क्योंकि भारत में न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) धीमी है, और गंभीर आरोपों का सामना कर रहे कई व्यक्ति वर्षों तक मुकदमे (Trial) लंबित रहने के कारण चुनाव लड़ते रहते हैं।

    कानून आयोग (Law Commission) ने अपनी 244वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि जिन अपराधों के लिए दो या अधिक वर्षों की सजा का प्रावधान है, उनके आरोप तय होने पर ही उम्मीदवार को अयोग्य घोषित किया जाए। लेकिन इस सिफारिश को लागू करने के लिए कोई विधायी कदम नहीं उठाया गया है, जिससे यह समस्या बनी हुई है।

    सुप्रीम कोर्ट की पारदर्शिता सुनिश्चित करने की भूमिका (Role of Supreme Court in Ensuring Transparency)

    सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्षों से, अदालत ने कई ऐसे फैसले दिए हैं, जिन्होंने मतदाताओं (Voters) को अपने प्रतिनिधियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के अधिकार (Right to Information) को बढ़ावा दिया।

    Union of India v. Association for Democratic Reforms (2002) मामले में कोर्ट ने यह माना कि जानकारी प्राप्त करने का अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) (Article 19(1)(a)) के तहत मुक्त अभिव्यक्ति (Freedom of Speech and Expression) का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

    इस फैसले ने उम्मीदवारों को उनके अपराधिक रिकॉर्ड, वित्तीय स्थिति (Financial Background), और शैक्षिक योग्यता (Educational Qualifications) की जानकारी नामांकन पत्र के साथ शपथपत्र (Affidavit) के रूप में प्रस्तुत करने के लिए बाध्य किया।

    इसके बाद Public Interest Foundation v. Union of India (2019) में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश दिए कि राजनीतिक दल (Political Parties) अपने उम्मीदवारों के अपराधिक रिकॉर्ड को न केवल अपनी वेबसाइट पर, बल्कि समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी प्रकाशित करें। इससे यह सुनिश्चित हुआ कि मतदाता अपने उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि (Background) के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर सकें।

    हालांकि, इन निर्देशों के बावजूद अनुपालन (Compliance) में गंभीर कमी देखी गई। Rambabu Singh Thakur v. Sunil Arora (2020) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि राजनीतिक दल यह स्पष्ट नहीं कर रहे हैं कि उन्होंने अपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों को क्यों चुना।

    कोर्ट ने यह अतिरिक्त निर्देश दिया कि राजनीतिक दल न केवल अपने उम्मीदवारों की उपलब्धियों (Achievements) और योग्यताओं (Qualifications) का विवरण दें, बल्कि यह भी स्पष्ट करें कि साफ-सुथरे रिकॉर्ड वाले अन्य व्यक्तियों को क्यों नहीं चुना गया।

    न्यायालय द्वारा संबोधित मुख्य मुद्दे (Fundamental Issues Addressed by the Court)

    सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि राजनीति के अपराधीकरण से भारत के लोकतंत्र (Democracy) को गंभीर खतरा है।

    पहला और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, मतदाता के जानकारी के अधिकार (Right to Information) का महत्व। कोर्ट ने इसे लोकतंत्र की बुनियाद (Foundation) के रूप में मान्यता दी। कोर्ट का तर्क था कि जब तक मतदाताओं को अपने उम्मीदवारों के अपराधिक रिकॉर्ड के बारे में जानकारी नहीं मिलेगी, तब तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (Free and Fair Elections) संभव नहीं है।

    दूसरा मुख्य मुद्दा राजनीतिक दलों की जवाबदेही (Accountability) है। कोर्ट ने निर्देश दिए कि दलों को अपने अपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों के चयन का औचित्य (Justification) देना होगा। यह पारदर्शिता बढ़ाने और राजनीतिक दलों को नैतिकता (Ethics) की ओर प्रेरित करने के लिए जरूरी है।

    अंततः, न्यायालय ने संसद (Parliament) से अपील की कि वह ऐसे व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कठोर कानून बनाए, जो गंभीर अपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। यह सुनिश्चित करना न केवल कानून का उद्देश्य होना चाहिए, बल्कि लोकतंत्र में जनता का विश्वास बनाए रखना भी जरूरी है।

    चुनाव आयोग की भूमिका (Role of the Election Commission of India)

    निर्वाचन आयोग (ECI) को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को लागू करने की जिम्मेदारी दी गई है। इसके तहत, आयोग ने C-7 और C-8 जैसे फॉर्म पेश किए, जिनमें राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों के अपराधिक रिकॉर्ड का पूरा विवरण देना होता है।

    आयोग ने यह सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए कि यह जानकारी व्यापक रूप से प्रकाशित की जाए। राजनीतिक दलों को यह जानकारी समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कम से कम तीन बार प्रकाशित करनी होती है। लेकिन कोर्ट ने देखा कि आयोग के निर्देशों का पालन करने में कमी रही है।

    सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को यह भी निर्देश दिया कि वह Election Symbols Order, 1968 के तहत गैर-अनुपालन (Non-Compliance) पर राजनीतिक दलों को दंडित करे।

    राजनीतिक अधिकार और चुनावी अखंडता का संतुलन (Balancing Political Rights and Electoral Integrity)

    यह फैसला यह दिखाता है कि न्यायालय ने व्यक्तियों के राजनीतिक अधिकारों (Political Rights) की सुरक्षा और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता (Integrity) सुनिश्चित करने के बीच संतुलन स्थापित करने की कोशिश की। कोर्ट ने यह भी माना कि झूठे आरोपों (False Allegations) के जरिए किसी उम्मीदवार को अयोग्य ठहराना एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल हो सकता है।

    इसके बावजूद, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मतदाता के जानकारी के अधिकार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। जानकारी की आवश्यकता का उद्देश्य उम्मीदवारों या राजनीतिक दलों के अधिकारों का हनन (Violation) करना नहीं है, बल्कि मतदाताओं को सशक्त (Empower) करना है ताकि वे सूचित निर्णय (Informed Decisions) ले सकें।

    प्रणालीगत सुधार की आवश्यकता (Need for Systemic Reforms)

    सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने राजनीति के अपराधीकरण की समस्या को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन इस समस्या का स्थायी समाधान केवल विधायिका (Legislature) और जनता (Electorate) के सामूहिक प्रयासों से ही संभव है।

    कोर्ट ने बार-बार यह उम्मीद जताई है कि संसद ऐसे कठोर कानून बनाएगी जो गंभीर अपराधिक मामलों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकें। लेकिन विधायी कार्रवाई (Legislative Action) की कमी के कारण न्यायालय ने अपने निर्देशों के माध्यम से इस कमी को पूरा करने की कोशिश की है।

    सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इस बात पर जोर दिया कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पारदर्शी और जिम्मेदार बनाने के लिए अपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी देना आवश्यक है। मतदाता के जानकारी के अधिकार को लोकतंत्र की बुनियाद मानते हुए, न्यायालय ने मतदाताओं को सशक्त बनाने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने का प्रयास किया है।

    हालांकि, राजनीति के अपराधीकरण की समस्या का समाधान न्यायालय के प्रयासों से परे है। विधायिका, चुनाव आयोग और मतदाताओं के सामूहिक प्रयासों से ही एक साफ-सुथरी और पारदर्शी राजनीतिक व्यवस्था संभव है। न्यायालय ने जिन सिद्धांतों को स्थापित किया है, वे भविष्य में सुधारों के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।

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