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नाराज़ी याचिका (Protest Petition) प्रस्तुत होने पर क्या कार्यवाही करें मजिस्ट्रेट: सुप्रीम कोर्ट ने समझाया [निर्णय पढ़े]
नाराज़ी याचिका (Protest Petition) प्रस्तुत होने पर क्या कार्यवाही करें मजिस्ट्रेट: सुप्रीम कोर्ट ने समझाया [निर्णय पढ़े]

"मजिस्ट्रेट को नाराज़ी याचिका (protest petition) को 'परिवाद' (complaint) मानते हुए संज्ञान लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है." सुप्रीम कोर्ट ने विष्णु कुमार तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में नाराज़ी याचिका दायर होने पर मजिस्ट्रेट को क्या प्रक्रिया अपनानी चाहिए, यह समझाया है. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के. एम. जोसफ ने यह कहा कि यदि नाराज़ी याचिका 'परिवाद' की शर्तों को पूर्ण करती है तो उसे परिवाद की तरह मानकर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा २०० और २०२ के तहत मजिस्ट्रेट...

संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा (Private Defence) का अधिकार आखिर किन मामलों में किसी हमलावर की मृत्यु कारित करने की अनुमति देता है?: प्रमुख निर्णयों के साथ समझें
संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा (Private Defence) का अधिकार आखिर किन मामलों में किसी हमलावर की मृत्यु कारित करने की अनुमति देता है?: प्रमुख निर्णयों के साथ समझें

हमने इस श्रृंखला के पिछले लेख में मृत्यु कारित करने तक के शरीर के निजी प्रतिरक्षा अधिकार के बारे में बात की और उसे कई प्रसिद्ध वादों के दृष्टिकोण से समझा। मौजूदा लेख में हम संपत्ति के सापेक्ष निजी प्रतिरक्षा के अधिकार को समझेंगे और यह जानेंगे कि आखिर किन परिस्थितियों में इस अधिकार का प्रयोग किस सीमा तक किया जा सकता है।जैसा कि हम भली भाँती जान चुके हैं कि आपराधिक मामलों में प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार एक अहम् एवं जरुरी अधिकार है। यह अधिकार व्यक्ति विशेष को शरीर के या किसी संपत्ति के...

शरीर के निजी प्रतिरक्षा (Private Defence) के अभ्यास में हमलावर की मृत्यु कब कारित की जा सकती है?: प्रमुख निर्णयों के साथ समझें
शरीर के निजी प्रतिरक्षा (Private Defence) के अभ्यास में हमलावर की मृत्यु कब कारित की जा सकती है?: प्रमुख निर्णयों के साथ समझें

आपराधिक मामलों में प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार एक अहम् एवं जरुरी अधिकार है। यह अधिकार व्यक्ति विशेष को स्वयं को या अपनी किसी संपत्ति के विरुद्ध हो रहे या हो सकने वाले अपराध को रोकने में मदद करता है। यह अधिकार, स्व संरक्षण (self-preservation) के सिद्धांत पर आधारित है। हम इस श्रृंखला में यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि यह अधिकार किन परिस्थितियों में अस्तित्व में आता है, यह कहाँ से शुरू एवं कहाँ खत्म होता है एवं इसकी सीमाएं क्या हैं।जहाँ पिछले लेख में हमने धारा 96, 97, 98 एवं 99 के बीच के आपसी...

बहरी और गूंगी रेप पीड़िता के बयान कैसे दर्ज हो ,बॉम्बे हाईकोर्ट ने बताया [आर्डर पढ़े]
बहरी और गूंगी रेप पीड़िता के बयान कैसे दर्ज हो ,बॉम्बे हाईकोर्ट ने बताया [आर्डर पढ़े]

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक मामले को इस आधार पर ट्रायल कोर्ट के पास वापस भेज दिया क्योंकि साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के प्रावधानों पर विचार किए बिना ही बहरी और गूंगी पीड़िता के बयान दर्ज किए गए थे।साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के अनुसार जब गवाह मौखिक रूप से संवाद करने में असमर्थ होता है तो अदालत ऐसे व्यक्ति का बयान दर्ज करने में एक दुभाषिए या विशेष शिक्षक की सहायता लेगी और इस तरह के बयान की वीडियोग्राफी की जाएगी। राजस्थान राज्य बनाम दर्शन सिंह @ दर्शन लाल के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने...

प्राइवेट (निजी) प्रतिरक्षा का अधिकार क्या है एवं यह किन मामलों में उपलब्ध है?: सम्बंधित प्रावधान एवं प्रमुख वाद (भाग 1)
प्राइवेट (निजी) प्रतिरक्षा का अधिकार क्या है एवं यह किन मामलों में उपलब्ध है?: सम्बंधित प्रावधान एवं प्रमुख वाद (भाग 1)

आपराधिक मामलों में प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार एक अहम् एवं जरुरी अधिकार है। यह अधिकार व्यक्ति विशेष को स्वयं को या अपनी किसी संपत्ति के विरुद्ध हो रहे या हो सकने वाले अपराध को रोकने में मदद करता है। यह अधिकार, स्व संरक्षण (self-preservation) के सिद्धांत पर आधारित है। प्राइवेट प्रतिरक्षा के कानून की आवश्यकता यह नहीं है कि जब व्यक्ति पर हमला किया जाए या वह हमले की आशंका का सामना करे, तो वो भाग खड़ा हो। यह अधिकार उसे अपना बचाव करने के लिए प्रेरित करता है और यह प्रावधान उसे आवश्यक बल का उपयोग करके...

समझिये कैसे IPC की धारा 77 एवं 78 के अंतर्गत न्यायिकतः एवं न्यायिक आदेश एवं निर्णय के अनुसरण में किये गए कार्य को साधारण अपवाद का लाभ मिलता हैं? [साधारण अपवाद श्रृंखला 5]
समझिये कैसे IPC की धारा 77 एवं 78 के अंतर्गत न्यायिकतः एवं न्यायिक आदेश एवं निर्णय के अनुसरण में किये गए कार्य को साधारण अपवाद का लाभ मिलता हैं? ['साधारण अपवाद श्रृंखला' 5]

पिछले लेख में हमने विस्तार से समझा कि आखिर क्षम्य (Excusable) कृत्य के अंतर्गत किन परिस्थितियों में मत्तता (Intoxication) के दौरान किये गए कृत्य (धारा 85-86) किसी भी अपराध के लिए कब अपवाद बन सकते हैं। जहाँ धारा 85, मत्तता के दौरान किये गए कार्य के लिए, अपराध से पूर्ण बचाव प्रदान करती है, वहीँ धारा 86 के अंतर्गत स्वैच्छिक मत्तता की स्थिति कारित करने में व्यक्ति द्वारा किये गए अपराध के लिए ज्ञान के पक्ष में उपधारणा (presumption) का निर्माण किया जाता है।इस श्रृंखला के भाग 1 में हमने भारतीय दंड...

समझिये IPC की धारा 85 एवं 86 के अंतर्गत Intoxication (मत्तता) का बचाव क्या है और किन परिस्थितियों में मिलता है इसका लाभ? [साधारण अपवाद श्रृंखला 4]
समझिये IPC की धारा 85 एवं 86 के अंतर्गत Intoxication (मत्तता) का बचाव क्या है और किन परिस्थितियों में मिलता है इसका लाभ? ['साधारण अपवाद श्रृंखला' 4]

पिछले लेख में हमने समझा कि क्षम्य (Excusable) कृत्य के अंतर्गत किन परिस्थितियों में विकृत-चित्त व्यक्ति का कार्य (धारा 84), किसी भी अपराध के लिए कब अपवाद बन सकता है। इस धारा के अंतर्गत हमने विभिन्न वादों की मदद से यह समझा कि अभियुक्त के इरादे और इच्छाशक्ति की अनुपस्थिति उसे आपराधिक दायित्व से छूट देती है। लेकिन यह अनुपस्थिति महज़ मानसिक विकार, या सामान्य आचरण से विचलन, या किसी भी प्रकार का विचलन नहीं है, जो आपराधिक दायित्व से प्रतिरक्षा को प्रभावित करता है।इस श्रृंखला के भाग 1 में...

IPC की धारा 84 के अंतर्गत Unsoundness of Mind (चित्त-विकृति) क्या है और किन परिस्थितियों में मिलता है इसका लाभ? [साधारण अपवाद श्रृंखला 3]
IPC की धारा 84 के अंतर्गत Unsoundness of Mind (चित्त-विकृति) क्या है और किन परिस्थितियों में मिलता है इसका लाभ? ['साधारण अपवाद श्रृंखला' 3]

पिछले लेख में हमने समझा कि क्षम्य (Excusable) कृत्य के अंतर्गत किन परिस्थितियों में दुर्घटना (धारा 80) या इन्फैन्सी (धारा 82,83) किसी भीअपराध के लिए कब अपवाद बन सकती है। जहाँ दुर्घटना या दुर्भाग्य के अंतर्गत, कार्य का विधिपूर्ण होना जरुरी है (और भी तमाम शर्तों के साथ), वहीँ 7 से 12 वर्ष की आयु के शिशु में अपने कार्य के परिणाम और उसकीप्रकृति को न समझ पाना आवश्यक है (धारा 83)।इस श्रृंखला के भाग 1में हमने भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत 'साधारण अपवाद' (General Exceptions) क्या हैं, यह समझा...