जानिए हमारा कानून
नाराज़ी याचिका (Protest Petition) प्रस्तुत होने पर क्या कार्यवाही करें मजिस्ट्रेट: सुप्रीम कोर्ट ने समझाया [निर्णय पढ़े]
"मजिस्ट्रेट को नाराज़ी याचिका (protest petition) को 'परिवाद' (complaint) मानते हुए संज्ञान लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है." सुप्रीम कोर्ट ने विष्णु कुमार तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में नाराज़ी याचिका दायर होने पर मजिस्ट्रेट को क्या प्रक्रिया अपनानी चाहिए, यह समझाया है. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के. एम. जोसफ ने यह कहा कि यदि नाराज़ी याचिका 'परिवाद' की शर्तों को पूर्ण करती है तो उसे परिवाद की तरह मानकर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा २०० और २०२ के तहत मजिस्ट्रेट...
संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा (Private Defence) का अधिकार आखिर किन मामलों में किसी हमलावर की मृत्यु कारित करने की अनुमति देता है?: प्रमुख निर्णयों के साथ समझें
हमने इस श्रृंखला के पिछले लेख में मृत्यु कारित करने तक के शरीर के निजी प्रतिरक्षा अधिकार के बारे में बात की और उसे कई प्रसिद्ध वादों के दृष्टिकोण से समझा। मौजूदा लेख में हम संपत्ति के सापेक्ष निजी प्रतिरक्षा के अधिकार को समझेंगे और यह जानेंगे कि आखिर किन परिस्थितियों में इस अधिकार का प्रयोग किस सीमा तक किया जा सकता है।जैसा कि हम भली भाँती जान चुके हैं कि आपराधिक मामलों में प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार एक अहम् एवं जरुरी अधिकार है। यह अधिकार व्यक्ति विशेष को शरीर के या किसी संपत्ति के...
अगर पुलिस प्रथम दृष्टया रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने से मना करें, तो क्या करें?
भारतीय दंड संहिता की धारा १५४ प्रथम दृष्टया रिपोर्ट (FIR) दर्ज़ करने से सम्बन्ध रखती है, हालाँकि यह धारा 'प्रथम दृष्टया रिपोर्ट' शब्द का प्रयोग नहीं करती है. धारा १५४(१) के अनुसार संज्ञेय अपराध किये जाने से सम्बंधित प्रत्येक सूचना, थानाधिकारी को अगर मौखिक दी गयी है तो उसे वह स्वयं या अपने निर्देशन में लेखबद्ध करवाएगा और यह सूचना, सूचना देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और उस पर उस व्यक्ति के हस्ताक्षर लिए जाएंगे एवं इस सूचना का सार राज्य सरकार के नियमों के अनुसार एक पुस्तक में प्रविष्ट...
शरीर के निजी प्रतिरक्षा (Private Defence) के अभ्यास में हमलावर की मृत्यु कब कारित की जा सकती है?: प्रमुख निर्णयों के साथ समझें
आपराधिक मामलों में प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार एक अहम् एवं जरुरी अधिकार है। यह अधिकार व्यक्ति विशेष को स्वयं को या अपनी किसी संपत्ति के विरुद्ध हो रहे या हो सकने वाले अपराध को रोकने में मदद करता है। यह अधिकार, स्व संरक्षण (self-preservation) के सिद्धांत पर आधारित है। हम इस श्रृंखला में यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि यह अधिकार किन परिस्थितियों में अस्तित्व में आता है, यह कहाँ से शुरू एवं कहाँ खत्म होता है एवं इसकी सीमाएं क्या हैं।जहाँ पिछले लेख में हमने धारा 96, 97, 98 एवं 99 के बीच के आपसी...
फतवों और धार्मिक फरमानों की कानूनी वैधता
धर्म कई लोगों के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. धर्म के नाम पर कही गयी हर बात फिर चाहे वह तर्क-शून्य और कभी-कभी गैर-कानूनी ही क्यों न हो, उसे स्वीकार्यता प्राप्त है. वे व्यक्ति और संस्थाएँ जो इन मामलों में रसूख रखते है वे धार्मिक जनता की इन्हीं प्रवृत्तियों का फायदा उठाकर मज़हबी फरमान जारी करते हैं. हालाँकि कुछ फरमान सीधे-सीधे व्यक्ति के धार्मिक मामलों से जुड़े होते है, पर कुछ व्यक्तियों के मानव और मूलभूत अधिकारों जैसे जीवन जीने का अधिकार, निजता का अधिकार, आज़ादी का...
चेक का डिसऑनर: सुप्रीम कोर्ट के हालिया 14 निर्णय
एनआई अधिनियम की धारा 148 का प्रभाव है भूतलक्षी (Retrospective)[सुरिंदर सिंह देशवाल @ कर्नल एस. एस. देसवाल बनाम वीरेंद्र गांधी]इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की संशोधित धारा 148, एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध के लिए सजा और सजा के आदेश के खिलाफ अपील के संबंध में लागू होगी। यहां तक कि यह ऐसे मामले में भी यह लागू होगी जहां धारा 138 के तहत अपराध की शिकायत वर्ष 2018 के संशोधन अधिनियम से पहले यानी 01.09.2018 से पहले दायर की गयी थी।NI अधिनियम की धारा 148, जिसे...
अन्तर्जातीय और अंतरधार्मिक विवाह: कैसे करवाएँ रजिस्ट्रेशन?
एनसीएईआर (National Council of Applied Economic Research) द्वारा २०१४ में प्रकाशित शोध के अनुसार भारत में मात्र ५% विवाह अन्तर्जातीय विवाह है, लगभग ९५% भारतीय अपनी ही जाति/ समुदाय में विवाह करते है.[i] शिक्षा के प्रसार के बावजूद भारतीय समाज में शादियाँ बेहद कम संख्या में हो रही है. पर अन्तर्जातीय और अंतर धार्मिक विवाह एक बराबरी आधारित समावेशी समाज बनाने के लिए आवश्यक है. अम्बेडकर अन्तर्जातीय विवाहों को जाति जैसे भेदभावपूर्ण सामाजिक ढांचे को गिराने के लिए महत्वपूर्ण मानते थे. यह कहना...
बहरी और गूंगी रेप पीड़िता के बयान कैसे दर्ज हो ,बॉम्बे हाईकोर्ट ने बताया [आर्डर पढ़े]
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक मामले को इस आधार पर ट्रायल कोर्ट के पास वापस भेज दिया क्योंकि साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के प्रावधानों पर विचार किए बिना ही बहरी और गूंगी पीड़िता के बयान दर्ज किए गए थे।साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के अनुसार जब गवाह मौखिक रूप से संवाद करने में असमर्थ होता है तो अदालत ऐसे व्यक्ति का बयान दर्ज करने में एक दुभाषिए या विशेष शिक्षक की सहायता लेगी और इस तरह के बयान की वीडियोग्राफी की जाएगी। राजस्थान राज्य बनाम दर्शन सिंह @ दर्शन लाल के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने...
प्राइवेट (निजी) प्रतिरक्षा का अधिकार क्या है एवं यह किन मामलों में उपलब्ध है?: सम्बंधित प्रावधान एवं प्रमुख वाद (भाग 1)
आपराधिक मामलों में प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार एक अहम् एवं जरुरी अधिकार है। यह अधिकार व्यक्ति विशेष को स्वयं को या अपनी किसी संपत्ति के विरुद्ध हो रहे या हो सकने वाले अपराध को रोकने में मदद करता है। यह अधिकार, स्व संरक्षण (self-preservation) के सिद्धांत पर आधारित है। प्राइवेट प्रतिरक्षा के कानून की आवश्यकता यह नहीं है कि जब व्यक्ति पर हमला किया जाए या वह हमले की आशंका का सामना करे, तो वो भाग खड़ा हो। यह अधिकार उसे अपना बचाव करने के लिए प्रेरित करता है और यह प्रावधान उसे आवश्यक बल का उपयोग करके...
आदेश II नियम 2: आखिर कब दावे (Claim) का लोप करना या उसे त्याग देना, दूसरे वाद (Second Suit) को रोक देता है?
आदेश II नियम 2 (Order II Rule 2) के अंतर्गत आने वाले मामलों में सही परीक्षण है, "क्या नए वाद (suit) में किया गया दावा (claim), वास्तव में उस वादहेतुक (cause of action) पर आधारित है, जो पूर्व वाद (former suit) के वादहेतुक (cause of action) से भिन्न है।" किसी भी व्यक्ति को एक ही वादहेतुक (cause of action) के लिए, एक से अधिक बार परेशान नहीं किया जाना चाहिए - यह नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश II नियम 2 (Order II Rule 2) का अंतर्निहित सिद्धांत है। सामान्य नियम यह है कि एक वाद (suit) में...
क्या मात्र पीड़ित महिला की गवाही के आधार पर बलात्कार का आरोप सिद्ध किया जा सकता है?
भारतीय कानून का यह स्थापित नियम है कि भारतीय दंड संहिता की धारा ३७६ के तहत बलात्कार का अपराध, पीड़ित महिला की एकमात्र गवाही (sole testimony) के आधार पर साबित किया जा सकता है जब तक कि सम्पुष्टि (corroborative evidence) के लिए प्रभावशाली कारण न उपलब्ध हो. एक गवाह जिसे घटित घटना की वजह से क्षति पहुंची है, उसे एक मुनासिब गवाह माना जाता है, (बशर्ते वह क्षति उसने स्वयं ना पहुंचायी हो) क्योंकि ऐसा गवाह असली अपराधी को बचाएगा, ऐसी संभावना बहुत कम है. ठीक इसी तरह बलात्कार के अपराध की पीड़ित की गवाही...
धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC): सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले
FIR रद्द करने की याचिका पर विचार किया जा सकता है, भले ही याचिका के लंबित रहते चार्ज शीट दायर करदी गई होआनंद कुमार मोहता बनाम राज्य (दिल्ली सरकार) में सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि उच्च न्यायालय, धारा 482 CrPC के तहत दायर याचिका, जिसमे FIR को रद्द करने की मांग की गयी है, पर विचार कर सकता है भले ही उस याचिका के लंबित रहते चार्ज शीट दायर करदी गई हो।"इस धारा के शब्दों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो न्यायालय की शक्ति के प्रयोग को, न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग या मिसकैरेज ऑफ़ जस्टिस को केवल FIR के चरण तक...
समझिये कैसे IPC की धारा 77 एवं 78 के अंतर्गत न्यायिकतः एवं न्यायिक आदेश एवं निर्णय के अनुसरण में किये गए कार्य को साधारण अपवाद का लाभ मिलता हैं? ['साधारण अपवाद श्रृंखला' 5]
पिछले लेख में हमने विस्तार से समझा कि आखिर क्षम्य (Excusable) कृत्य के अंतर्गत किन परिस्थितियों में मत्तता (Intoxication) के दौरान किये गए कृत्य (धारा 85-86) किसी भी अपराध के लिए कब अपवाद बन सकते हैं। जहाँ धारा 85, मत्तता के दौरान किये गए कार्य के लिए, अपराध से पूर्ण बचाव प्रदान करती है, वहीँ धारा 86 के अंतर्गत स्वैच्छिक मत्तता की स्थिति कारित करने में व्यक्ति द्वारा किये गए अपराध के लिए ज्ञान के पक्ष में उपधारणा (presumption) का निर्माण किया जाता है।इस श्रृंखला के भाग 1 में हमने भारतीय दंड...
विश्वविद्यालयों में यौन शोषण: क्या कहते है २०१५ के नियम
पिछले लेखों में हमने कार्यस्थल पर यौन शोषण के विषय में कानून को समझने का प्रयास किया। उसी कड़ी में आज के लेख में हम विश्वविद्यालयों में यौन शोषण और सम्बंधित नियमों पर बात करेंगे।यूँ तो २०१३ का अधिनियम विश्वविद्यालयों पर भी समान रूप से लागू होता है, पर फिर भी विश्वविद्यालयों में यौन शोषण पर अलग से बात करना जरुरी है. #MeToo आंदोलन के दौरान शिक्षा क्षेत्र में होने वाले लैंगिक शोषण के कई मुद्दे सामने आये थे. राया शंकर नामक एक छात्रा ने एक पूरी लिस्ट सार्वजनिक की थी जिसमें उन प्रोफेसरों और अध्यापकों...
समझिये IPC की धारा 85 एवं 86 के अंतर्गत Intoxication (मत्तता) का बचाव क्या है और किन परिस्थितियों में मिलता है इसका लाभ? ['साधारण अपवाद श्रृंखला' 4]
पिछले लेख में हमने समझा कि क्षम्य (Excusable) कृत्य के अंतर्गत किन परिस्थितियों में विकृत-चित्त व्यक्ति का कार्य (धारा 84), किसी भी अपराध के लिए कब अपवाद बन सकता है। इस धारा के अंतर्गत हमने विभिन्न वादों की मदद से यह समझा कि अभियुक्त के इरादे और इच्छाशक्ति की अनुपस्थिति उसे आपराधिक दायित्व से छूट देती है। लेकिन यह अनुपस्थिति महज़ मानसिक विकार, या सामान्य आचरण से विचलन, या किसी भी प्रकार का विचलन नहीं है, जो आपराधिक दायित्व से प्रतिरक्षा को प्रभावित करता है।इस श्रृंखला के भाग 1 में...
धारा 498 ए भारतीय दंड संहिता: सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले
धारा 498A भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत शिकायतें एक ऐसी जगह पर दायर की जा सकती हैं, जहां एक महिला, जो अपने वैवाहिक घर से बाहर निकाली गयी है, आश्रय लेती है [रूपाली देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य]इस मामले में, CJI रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की 3 न्यायाधीशों की पीठ ने निम्नलिखित प्रश्न पर विचार किया: "क्या उस मामले में जहां पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के साथ उसके वैवाहिक घर (matrimonial home) में क्रूरता की गई थी, और जहाँ वह महिला उस वैवाहिक...
क्या आवासीय परिसरों को अधिवक्ताओं के कार्यालय के लिए उपयोग किया जा सकता है?
अधिवक्ताओं के कार्यालय को एक आवासीय स्थान से संचालित किया जा सकता है, क्योंकि इसे व्यावसायिक गतिविधि के रूप में नहीं माना जाता है। हालांकि, यह स्थानीय कानूनों द्वारा लगाए गए क्षेत्र प्रतिबंधों के अधीन है।कानूनी पेशा कोई व्यावसायिक गतिविधि (commercial activity) नहीं है। बल्कि, यह एक पेशेवर गतिविधि (professional activity) के रूप में माना जाता है, जो व्यवसाय, व्यापार या वाणिज्य से अलग है।सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कई निर्णय हैं, जो इस अंतर को स्पष्ट करते हैं। चूंकि एक वकील की सेवा...
IPC की धारा 84 के अंतर्गत Unsoundness of Mind (चित्त-विकृति) क्या है और किन परिस्थितियों में मिलता है इसका लाभ? ['साधारण अपवाद श्रृंखला' 3]
पिछले लेख में हमने समझा कि क्षम्य (Excusable) कृत्य के अंतर्गत किन परिस्थितियों में दुर्घटना (धारा 80) या इन्फैन्सी (धारा 82,83) किसी भीअपराध के लिए कब अपवाद बन सकती है। जहाँ दुर्घटना या दुर्भाग्य के अंतर्गत, कार्य का विधिपूर्ण होना जरुरी है (और भी तमाम शर्तों के साथ), वहीँ 7 से 12 वर्ष की आयु के शिशु में अपने कार्य के परिणाम और उसकीप्रकृति को न समझ पाना आवश्यक है (धारा 83)।इस श्रृंखला के भाग 1में हमने भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत 'साधारण अपवाद' (General Exceptions) क्या हैं, यह समझा...

![नाराज़ी याचिका (Protest Petition) प्रस्तुत होने पर क्या कार्यवाही करें मजिस्ट्रेट: सुप्रीम कोर्ट ने समझाया [निर्णय पढ़े] नाराज़ी याचिका (Protest Petition) प्रस्तुत होने पर क्या कार्यवाही करें मजिस्ट्रेट: सुप्रीम कोर्ट ने समझाया [निर्णय पढ़े]](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2019/07/27/500x300_362592-362069-justice-sk-kaul-and-justice-km-joseph.jpg)





![बहरी और गूंगी रेप पीड़िता के बयान कैसे दर्ज हो ,बॉम्बे हाईकोर्ट ने बताया [आर्डर पढ़े] बहरी और गूंगी रेप पीड़िता के बयान कैसे दर्ज हो ,बॉम्बे हाईकोर्ट ने बताया [आर्डर पढ़े]](https://hindi.livelaw.in//356000-bombay-hc-6.jpg)







