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कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम २०१३ [भाग २]- क्या है लोकल कंप्लेंट कमिटी और इंटरनल कंप्लेंट कमिटी ?
कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम २०१३ [भाग २]- क्या है लोकल कंप्लेंट कमिटी और इंटरनल कंप्लेंट कमिटी ?

पिछले लेख (कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम २०१३ भाग-१) में हमने लैंगिक उत्पीड़न का महिलाओं के मूल अधिकारों पर प्रभाव, लैंगिक उत्पीड़न क्या है- ये जाना. आज के लेख में हम असंगठित क्षेत्र और लैंगिक उत्पीड़न के लिए २०१३ एक्ट में दी गयी मशीनरी के बारे में जानेंगे. जैसा कि हमने पिछले भाग में भी देखा था कि २०१३ का अधिनियम संगठित और असंगठित दोनों के क्षेत्रों में यौन शोषण के विरुद्ध कार्यवाही हेतु कानूनी मशीनरी उपलब्ध करवाता है. असंगठित क्षेत्र में यौन शोषण की शिकायतें मुख्यत: लोकल कंप्लेंट कमिटी...

IPC की धारा 80, 82 एवं 83 के अंतर्गत क्षम्य कृत्य क्या हैं?: दुर्घटनावश हुए कृत्य एवं इन्फैन्सी का प्रतिवाद विशेष [साधारण अपवाद श्रृंखला 2]
IPC की धारा 80, 82 एवं 83 के अंतर्गत क्षम्य कृत्य क्या हैं?: दुर्घटनावश हुए कृत्य एवं इन्फैन्सी का प्रतिवाद विशेष ['साधारण अपवाद श्रृंखला' 2]

पिछले लेख में हमने समझा कि भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत 'साधारण अपवाद' (General Exceptions) क्या हैं और हमने यह भी समझा कि कैसे यह अध्याय ऐसे कुछ अपवाद प्रदान करता है, जहाँ किसी व्यक्ति का आपराधिक दायित्व खत्म हो जाता है। इस लेख में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया कि इन बचाव का आधार यह है कि यद्यपि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है, परन्तु उसे उसके लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।इसी क्रम में हमने जाना कि कैसे यह बचाव आम तौर पर 2 भागों के अंतर्गत वर्गीकृत किये जाते हैं- तर्कसंगत...

समझिये IPC के अंतर्गत क्षम्य एवं तर्कसंगत कृत्य : धारा 76 एवं 79 में तथ्य की भूल विशेष [साधारण अपवाद श्रृंखला 1]
समझिये IPC के अंतर्गत क्षम्य एवं तर्कसंगत कृत्य : धारा 76 एवं 79 में 'तथ्य की भूल' विशेष ['साधारण अपवाद श्रृंखला' 1]

भारतीय दंड संहिता का चैप्टर IV (4th), 'साधारण अपवाद' (General exception) की बात करता है। जैसा कि नाम से जाहिर है, यह अध्याय उन परिस्थितियों की बात करता है जहाँ किसी अपराध के घटित हो जाने के बावजूद भी उसके लिए किसी प्रकार की सजा नहीं दी जाती है।यह अध्याय ऐसे कुछ अपवाद प्रदान करता है, जहाँ किसी व्यक्ति का आपराधिक दायित्व खत्म हो जाता है। इन बचाव का आधार यह है कि यद्यपि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है, परन्तु उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अपराध के समय, या तो मौजूदा हालात...