आजीवन कारावास की सज़ा कितने साल की होती है? जानिए कानून क्या कहता है
Sharafat Khan
27 Aug 2019 9:05 AM IST
आजीवन कारावास याने उम्रकैद (life imprisonment) की सज़ा गंभीर अपराधों के लिए दी जाती है। भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 में अपराधों के दंड के विषय में विस्तार से बताया गया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 53 में बताया गया है कि दंड कितने प्रकार के होते हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 53 में दंड के प्रकार बताए गए हैं। भारतीय दंड संहिता कुल पांच तरह के दंड का प्रावधान करती है।
1. मृत्यु दंड
2. आजीवन कारावास
3. कारावास : यह कारावास दो प्रकार का है, पहला सश्रम कारावास और दूसरा सादा कारावास (किसी श्रम के बिना)
4. संपत्ति का समपहरण
5. जुर्माना
आजीवन कारावास की अवधि :
यह देखा गया है कि आजीवन कारावास की अवधि के संबंध में कुछ भ्रांतियां हैं जैसे कि आजीवन कारावास 14 साल का होता है या 20 साल का? लेकिन यह सब गलतफहमी है, क्योंकि आजीवन कारावास का अर्थ है कि सज़ा पाने वाला व्यक्ति अपने बचे हुए जीवनकाल तक जेल में रहेगा।
जब कोई अदालत किसी अपराध के लिए किसी को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाती है तो विधि के समक्ष इस सज़ा की अवधि का अर्थ सज़ा पाने वाले व्यक्ति की अंतिम सांस तक होता है। अर्थात वह व्यक्ति अपने शेष जीवन के लिए जेल में रहेगा। यही आजीवन कारावास का अर्थ है जिसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसलों में की है।
सरकार को सज़ा कम करने का अधिकार :
कई बार यह देखने में आया है कि आजीवन कारावास पाए गए व्यक्ति को 14 साल या 20 साल की सज़ा काटने के बाद रिहा कर दिया जाता है। हालांकि उसे आजीवन कारावास के रूप में अपना पूरा जीवन कारावास में बिताने की सज़ा मिली थी, लेकिन समुचित सरकार निश्चित मापदंडों पर किसी व्यक्ति की सज़ा कम करने की शक्ति रखती है।
यही कारण है कि हम सुनते हैं कि आजीवन कारावास की सज़ा काट रहा व्यक्ति 14 साल या 20 साल बाद रिहा हुआ। भारतीय दंड संहिता की धारा 55 और 57 में सरकारों को दंडादेश में कमी करने का अधिकार दिया गया है।
इस अधिनियम की धारा 55 कहती है, "हर मामले में, जिसमें आजीवन का दंडादेश दिया गया हो, अपराधी की सम्मति के बिना भी समुचित सरकार उस दंड को ऐसी अवधि के लिए, जो चौदह वर्ष से अधिक न हो, दोनों में से किसी भांति के कारावास में लघुकॄत कर सकेगी।"
यहां समुचित सरकार से तात्पर्य ऐसी सरकार से है जिसके अंतर्गत मामला आता है। जैसे केंद्र सरकार या राज्य सरकार।
इसी प्रकार भारतीय दंड संहिता की धारा 57 किसी प्रयोजन हेतु आजीवन कारावास की गणना के संबंध में है। धारा 57 कहती है, दंडाविधियों की भिन्नों की गणना करने में, आजीवन कारावास को बीस वर्ष के कारावास के तुल्य गिना जाएगा।
इसका अर्थ है कि जब कभी किसी प्रयोजन हेतु आजीवन कारावास की गणना करने की आवश्यकता होगी तो उसे 20 वर्ष के समान माना जाएगा। इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि आजीवन कारावास 20 साल का होता है, बल्कि यदि कोई गणना करनी हो तो आजीवन कारावास को 20 साल के बराबर माना जाएगा। गणना करने की आवश्यकता उस स्थिति में होती है जबकि किसी को दोहरी सज़ा हुई हो या किसी को जुर्माना न भरने की स्थिति में अतिरिक्त समय के लिए कारावास में रखा जाता है।
सरकार कर सकती है सज़ा में कमी, यह है प्रावधान :
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (Crpc) की धारा 433 में समुचित सरकार द्वारा दंडादेश के लघुकरण का प्रावधान किया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (Crpc) की धारा 433 कहती है, "दंडादेश के लघुकरण की शक्ति —समुचित सरकार दंडादिष्ट व्यक्ति की सम्मित के बिना
(क) मृत्युदंडादेश का भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) द्वारा उपबिन्धत किसी अन्य दंड के रूप में लघुकरण कर सकती है।
(ख) आजीवन कारावास के दंडादेश का, चौदह वर्ष से अनिधक अविध के कारावास में या जुमाने के रूप में लघुकरण कर सकती है।
(ग) कठिन कारावास के दंडादेश का किसी ऐसी अवधि के सादा कारावास में जिसके लिए वह व्यक्ति दंडादिष्ट किया जा सकता है, या जुर्माने के रूप में लघुकरण कर सकती है।
(घ) सादा कारावास के दंडादेश का जुर्माने के रूप में लघुकरण कर सकती है।
उक्त प्रावधान के तहत सरकार को सज़ा का लघुकरण करने की शक्ति प्राप्त है। अच्छे आचरण के आधार पर आजीवन कारावास की सज़ा पाने वाले कई ऐसे लोगों को कई साल की सज़ा के बाद सरकार उनकी सज़ा का लघुकरण करते हुए उन्हें रिहा करती है।