किराया नियंत्रण रिवीज़न- HC रिकॉर्ड पर मौजूद मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य की पुनः सराहना नहीं कर सकता, सुप्रीम कोर्ट का आदेश पढ़ें
LiveLaw News Network
2 Sept 2019 11:05 AM IST
"पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार (revisional jurisdiction) के अंतर्गत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय, सिर्फ इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या न्यायालय या प्राधिकरण द्वारा विचार गए तथ्य के निष्कर्ष, कानून के अनुसार थे और वो कानून की किसी भी त्रुटि से ग्रस्त तो नहीं थे।"
हरियाणा शहरी (किराया और निकासी नियंत्रण) अधिनियम, 1973 के संदर्भ में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह दोहराया है कि पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग करते हुए, उच्च न्यायालय रिकॉर्ड पर मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य की पुनः सराहना/मूल्यांकन नहीं कर सकता है।
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ एक रिवीज़न याचिका में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ एक अपील पर विचार कर रही थी, जिसने निचली न्यायालयों के समवर्ती आदेशों को ख़ारिज कर दिया था।
दया रानी बनाम शब्बीर अहमद के मामले में पीठ ने रुक्मिणी अम्मा सरदम्मा बनाम कलयानी सुलोचना में पहले के फैसले का उल्लेख किया जिसमें केरल किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 20 के तहत पुनरीक्षण शक्तियों का दायरा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जांचा गया था। उक्त निर्णय में, यह कहा गया कि अधिनियम की धारा 20 में "औचित्य" (propriety) शब्द की उपस्थिति होते हुए भी, इसका मतलब यह नहीं लगाया जा सकता है कि साक्ष्य की पुन: सराहना/मूल्यांकन किया जा सकता है। बेशक, पुनरीक्षण अदालत एक अलग निष्कर्ष पर आ सकती है लेकिन सबूतों की पुन: सराहना पर नहीं; बल्कि इसके विपरीत, खुद को वैधता (legality), नियमितता (regularity) और अपने सामने ले गए आदेश के औचित्य (propriety) के प्रश्नों तक सीमित करके, जैसा कि रुक्मिणी अम्मा सरदम्मा में आयोजित किया गया था। अदालत ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम दिलबहार सिंह के फैसले को भी संदर्भित किया। यह देखा गया:
"इस प्रकार यह कानून अच्छी तरह से तय हो गया है कि पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग करते समय, उच्च न्यायालय रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य, मौखिक एवं दस्तावेजी, दोनों की पुनः सराहना नहीं कर सकता है। पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार (revisional jurisdiction) के अंतर्गत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय, सिर्फ इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या न्यायालय या प्राधिकरण द्वारा विचार गए तथ्य के निष्कर्ष, कानून के अनुसार थे और वो कानून की किसी भी त्रुटि से ग्रस्त तो नहीं थे।"
पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को यह कहते हुए पलट दिया कि वह रेंट कंट्रोलर या अपीलीय प्राधिकारी द्वारा प्रदान किए गए निष्कर्षों में किसी भी प्रकार के दोष को उजागर नहीं करता है।