भ्रष्टाचार के मामलों में क्या बिना सबूत दिए शिकायतकर्ता की मौत अभियोजन पक्ष के लिए घातक हो सकती है? पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर

LiveLaw News Network

31 Aug 2019 7:45 AM GMT

  • भ्रष्टाचार के मामलों में क्या बिना सबूत दिए शिकायतकर्ता की मौत अभियोजन पक्ष के लिए घातक हो सकती है? पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर

    सुप्रीम कोर्ट की 3 न्यायाधीशों की खंडपीठ ने एक बड़ी पीठ को इस सवाल का हवाला दिया है कि क्या शिकायतकर्ता के सबूतों के अभाव में/अवैध परितोषण की मांग के प्रत्यक्ष या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में अभियोजन पक्ष की ओर से दिए गए अन्य सबूतों के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 एवं धारा 13(1)(d),जिसे धारा 13 (2) के साथ पढ़ा जाए, के तहत लोक सेवक के दोषी होने के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकालने की अनुमति नहीं है?

    दरअसल इस मामले में न्यायमूर्ति एन. वी. रमना, न्यायमूर्ति मोहन एम. शांतनगौदर और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ, 2 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा किए गए एक संदर्भ पर विचार कर रही थी, जब पीठ ने देखा कि इस संबंध में 3 न्यायाधीशों की पीठ के परस्पर विरोधी विचार हैं। यह कहा गया:

    "हमने ध्यान दिया कि इस न्यायालय के 2 तीन-न्यायाधीशों की पीठ के निर्णय, बी. जयराज बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, (2014) 13 एससीसी 55; और पी. सत्यनारायण मूर्ति बनाम जिला पुलिस निरीक्षक, आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य (2015) 10 एससीसी 152, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 एवं धारा 13(1)(d), जिसे धारा 13 (2) के साथ पढ़ा जाए, के तहत शिकायतकर्ता के प्राथमिक सबूतों की अनुपलब्धता में, अपराध को बनाए रखने के लिए आवश्यक सबूत की प्रकृति और गुणवत्ता को लेकर, इस अदालत के पहले के 3-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले, एम. नरसिंह राव बनाम आंध्रप्रदेश राज्य, (2001) 1 SCC 691, के विरोध में हैं।"

    सत्यनारायण मूर्ति के फैसले में, यह कहा गया था कि शिकायतकर्ता की मृत्यु के कारण अवैध परितोषण की मांग को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष की विफलता, अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक होगी और अभियुक्त से राशि की वसूली उसकी दोषिता को आकर्षित नहीं करेगी।

    अपने संदर्भ आदेश [नीरज दत्ता बनाम राज्य] में, 2 न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि मांग (अवैध परितोषण) को साबित करने के लिए प्रत्यक्ष प्रमाण या प्राथमिक साक्ष्य पर जोर, कई निर्णयों में हुए विचार, कि जहां शिकायतकर्ता के प्राथमिक साक्ष्य के अभाव के बावजूद, शीर्ष अदालत ने अन्य सबूतों पर भरोसा करके, क़ानून के तहत एक अनुमान लगाकर आरोपियों की सजा को बरकरार रखा था, के साथ संगत नहीं है।



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