हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

30 Oct 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (24 अक्टूबर, 2022 से 28 अक्टूबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    नियुक्ति आदेश में टर्मिनेशन की शर्त अनुबंध के प्रारंभिक वर्षों में उपयोग न होने पर अपना महत्व खो देती है: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि इस शर्त के साथ नियुक्ति का आदेश कि किसी भी पक्ष के एक महीने के नोटिस से सेवाओं को समाप्त किया जा सकता है, जब अनुबंध की प्रारंभिक अवधि में इसका सहारा नहीं लिया जाता है तो इसका महत्व कम हो जाता है।

    ज‌स्टिस संजीव कुमार ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ताओं ने अदालत के असाधारण अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए प्रतिवादियों को उनकी सेवाओं को उन पदों के खिलाफ नियमित करने का निर्देश देने की मांग की, जिन्हें उन्हें उनकी दो साल की सफल संविदात्मक सेवा पूरा होने की तारीख से नियुक्त किया गया है।

    केस टाइटल: रहीला नजीर बनाम जम्मू-कश्मीर ईडीआई

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    मध्यस्थता अवार्ड- यदि तथ्य का प्रश्न शामिल न हो तो किसी भी दावे की अनुमति देने के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी जा सकती है : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि दावेदार अपने दावों का समर्थन इस आधार पर नहीं कर सकता कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण के समक्ष आग्रह नहीं किया गया। हालांकि, कोर्ट ने माना कि यदि किसी दावे को प्रदान करने के लिए मध्यस्थ न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र के संबंध में कोई प्रश्न उठाया जाता है, जिसमें तथ्य के किसी भी प्रश्न का निर्णय शामिल नहीं होता है तो मध्यस्थ निर्णय को चुनौती देने वाली पार्टी को ऐसे आधारों को उठाने से प्रतिबंधित नहीं किया जाता है, जो मध्यस्थ न्यायाधिकरण के समक्ष नहीं उठाए गए।

    केस टाइटल: मेसर्स. मनराज इंटरप्राइजेज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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    अगर किशोर पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जा रहा है तो जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 12 के तहत जमानत देने पर कोई रोक नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने एक दोषी को जमानत देते हुए कहा कि एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने के बावजूद कानून के उल्लंघन में एक किशोर जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) एक्ट, 2015 की धारा 12 के तहत जमानत के लिए विशेष मापदंडों का हकदार होगा।

    धारा 12 में जमानत के साथ या बिना जमानत के सीआरपीसी के प्रावधानों के बावजूद कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे की जमानत या रिहाई अनिवार्य है, जब तक कि उसकी रिहाई से उस व्यक्ति को किसी ज्ञात अपराधी के साथ जोड़ने या उक्त व्यक्ति को नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक रूप से उजागर करने की संभावना नहीं है।

    केस टाइटल: शुभम @ बबलू मिलिंद सूर्यवंशी बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    15 वर्ष से अधिक उम्र की नाबालिग मुस्लिम लड़की अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के लिए स्वतंत्र है, बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत विवाह शून्य नहीं होगा : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोहराया है कि 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की मुस्लिम महिला अपनी मर्जी और सहमति से अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर सकती है और ऐसा विवाह बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 की धारा 12 के तहत शून्य या अमान्य नहीं होगा।

    अदालत ने 26 साल के जावेद द्वारा अपनी 16 साल की पत्नी को बाल गृह में कस्टडी में रखने के खिलाफ दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने माना कि उनकी शादी मुस्लिम कानून के अनुसार वैध है और कस्टडी में लिए गए व्यक्ति को कानूनी रूप से याचिकाकर्ता के पास होनी चाहिए।

    केस टाइटल: जावेद बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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    झूठे दस्तावेज़ों के आधार पर रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड से प्रभावित निजी पक्ष धोखाधड़ी और जालसाजी के लिए केस दर्ज करा सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि झूठे दस्तावेज़ों के आधार पर रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड से प्रभावित निजी पक्ष आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 419, 420, 468 और 471 के तहत धोखाधड़ी और जालसाजी के लिए केस दर्ज करा सकता है। जस्टिस सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 195 के साथ आईपीसी की धारा 177 के तहत प्रतिबंध (प्रभावित) निजी व्यक्तियों को आकर्षित नहीं किया जाएगा।

    केस टाइटल: वाई.एन. श्रीनिवास एंड अन्य बनाम कर्नाटक राज्य

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    पॉक्सो एक्ट के तहत आपराधिक अभियोजन का सामना कर रहे शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई जारी रखने पर रोक नहीं : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि उन शिक्षकों के खिलाफ शैक्षिक अधिकारियों द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी रखने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, जो बाल उत्पीड़न के अपराध या यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत आपराधिक अभियोजन के अधीन हैं।

    कोर्ट ने कहा कि जैसे ही एक शिक्षक को किसी अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है, उन्हें उनकी सेवा से निलंबित कर दिया जाता है। हालांकि, अधिकांश मामलों में शैक्षिक अधिकारी अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं को गलत धारणा के तहत पूरा नहीं करते हैं कि वे शिक्षक के खिलाफ तब तक आगे नहीं बढ़ सकते जब तक कि आपराधिक न्यायालय ने लंबित मामले में निर्णय नहीं दिया है।

    केस टाइटल: जोलीम्मा वी. थॉमस बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    केएफआरआई वैज्ञानिक चयन 2015 | 2012 में आवेदन करने वाले उम्मीदवार के लिए आयु में कोई छूट नहींः केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जिस उम्मीदवार ने 2012 में केरल वन अनुसंधान संस्थान (केएफआरआई) में वैज्ञानिक ई-1 के पद के लिए आवेदन किया, लेकिन 2015 में उसी पद के लिए तीसरी अधिसूचना जारी होने के बाद फिर से आवेदन नहीं किया, उसे नए सिरे से आवेदन करने से छूट का लाभ नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह केवल उन उम्मीदवारों के लिए है जिन्होंने 2013 में दूसरी अधिसूचना के जवाब में आवेदन जमा किए।

    केस टाइटल: डॉ निकी के जेवियर बनाम केरल राज्य और अन्य और डॉ. निकी के. जेवियर बनाम डॉ. पी. बालकृष्णन और अन्य

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    सीआरपीसी के तहत समन के जरिए बैंक खाते को फ्रीज नहीं किया जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने माना कि सीआरपीसी की धारा 91 के तहत समन जारी करते समय बैंक खातों को फ्रीज करने का पुलिस का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। ऐसे सम्मन जारी करते समय जांच अधिकारी किसी व्यक्ति को दस्तावेज या अन्य चीजें पेश करने के लिए ही बुला सकता है।

    जस्टिस जीके इलांथिरैयन ने निम्नानुसार कहा: इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि पहले प्रतिवादी (पुलिस निरीक्षक, साइबर अपराध) का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। सीआरपीसी की धारा 91 के तहत जारी समन में जांच अधिकारी व्यक्ति को दस्तावेज या अन्य चीजें पेश करने के लिए समन करता है। सीआरपीसी की धारा 91 के तहत जारी समन पर खाते को फ्रीज नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: साहिल राज बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य

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    पोक्सो एक्ट SC/ST एक्ट पर प्रभावी; दोनों के तहत आरोपित व्यक्ति धारा 439 सीआरपीसी के तहत सीधे हाईकोर्ट के समक्ष अपील का हकदार: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो अधिनियम), अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी अधिनियम) से अधिक प्रभावी है। इस प्रकार, जब दोनों अधिनियमों के तहत अपराध का आरोप लगाया गया है तो आरोपी जमानत के लिए पहले के तहत विचार की गई प्रक्रिया का लाभ उठाने का हकदार होगा।

    कोर्ट ने पाया कि पोक्सो अधिनियम की धारा 31 के आधार पर, जो दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों को लागू करता है, आरोपी व्यक्ति सीआरपीसी की धारा 439 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।

    केस टाइटल: रेनोज आरएस बनाम केरल राज्य और अन्‍य।

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    लड़ाई के बाद सोते हुए व्यक्ति पर जानलेवा हमला गैर इरादतन हत्या नहीं बल्कि हत्या: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ट्रक क्लीनर की हत्या की सजा को खारिज करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि लड़ाई के बाद नींद में एक व्यक्ति की हत्या आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय हत्या का मामला होगा, न कि सदोष मानव हत्या का मामला।

    जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने 2013 में एक सत्र अदालत द्वारा मिट्टू परेडा को दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। परेडा ने अपने परिचित पर नींद में लकड़ी के एक टुकड़े से मार डाला था। हत्या के कुछ घंटों पहले मृतक ने उसके साथ लड़ाई की थी और उस पर उसका फोन चुराने का आरोप लगाया था।

    केस शीर्षक: मिट्टू @ मिठू भोली परेडा बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    [सीआरपीसी की धारा 197] अदालत पूरी कार्यवाही रद्द करने के बजाय प्राधिकरण को मंजूरी लेने और फिर आगे बढ़ने का निर्देश दे सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि प्रारंभिक चरण में कार्यवाही को बंद करने की सराहना नहीं की गई, कहा कि अगर यह पाया जाता है कि सीआरपीसी की धारा 197 के तहत मंजूरी के अभाव में कार्यवाही खराब हो गई तो अदालत प्राधिकरण को मंजूरी लेने का निर्देश दे सकती है। फिर पूरी कार्यवाही को पूरी तरह से रद्द करने के बजाय आगे बढ़ें। अदालत ने कहा, "फर्टिको मार्केटिंग एंड इनवेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड बनाम सीबीआई (2021) में भी यही विचार है।"

    केस टाइटल: विनोद कुमार अस्थाना बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो

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    चाइल्ड कस्टडी मामलों में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई की जा सकती है, जब माता या पिता द्वारा बच्चे को कस्टडी में लेना अवैध साबित हो: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग बच्चे की मां द्वारा दायर याचिका पर विचार करते हुए हाल ही में कहा कि बच्चे की कस्टडी के मामलों में भी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus Petition) सुनवाई योग्य है, बशर्ते कि जब माता या पिता द्वारा बच्चे को कस्टडी में लेना अवैध साबित हो जाए। अदालत ने तेजस्विनी गौड़ और अन्य बनाम शेखर जगदीश प्रसाद तिवारी और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर भरोसा करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: मान्याता अविनाश डोलानी बनाम गुजरात राज्य और अन्य

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    यदि बीमा धारक व्यक्ति पहले से मौजूद बीमारी का खुलासा करने में विफल रहा तो बीमा कंपनी मेडिक्लेम को अस्वीकार कर सकती है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि मेडिक्लेम पॉलिसी अत्यंत सद्भाव का बीमा अनुबंध है, जिसमें पहले से मौजूद बीमारी का खुलासा करना बीमाधारक का कर्तव्य है। ऐसा नहीं करने के बाद बीमा कंपनी द्वारा दावे को अस्वीकार किया जा सकता है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने बीमा लोकपाल के याचिकाकर्ताओं के बीमा दावे को स्वीकार करने से इनकार करने के आदेश के खिलाफ दंपति द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए कहा। याचिकाकर्ताओं ने दूसरी प्रतिवादी/बीमा कंपनी द्वारा जारी किए गए अस्वीकृति पत्र को रद्द करने और याचिकाकर्ताओं के बीमा दावे के रूप में 28,43,684 रुपये की राशि जारी करने का निर्देश देने की मांग की।

    केस टाइटल: एमआरएस. जया एलिजाबेथ मैथ्यू और अन्य बनाम कर्नाटक और अन्य राज्य के लिए बीमा लोकपाल

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    धारा 138 एनआई एक्ट| शिकायत का संज्ञान लेने के समय मूल मुख्तारनामा प्रस्तुत करना आवश्यक नहीं है: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक फैसले में कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत का संज्ञान लेने के समय मूल पावर ऑफ अटॉर्नी का पेश होना आवश्यक नहीं है।

    जस्टिस संजय धर ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी बैंक द्वारा उनके खिलाफ परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138/142 के तहत दायर एक शिकायत को चुनौती दी थी, जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पुलवामा के न्यायालय के समक्ष लंबित थी।

    केस टाइटल: रशीद भट बनाम एचडीएफसी बैंक।

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    विदेशी न्यायालय एक बार विवाह को वैध रूप से भंग कर चुका हो तो घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि एक बार एक सक्षम विदेशी अदालत द्वारा विवाह को वैध रूप से भंग कर दिए जाने के बाद पक्षों के बीच पति और पत्नी के रूप में "घरेलू संबंध", जो घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए आवश्यक है, भी समाप्त हो जाता है।

    जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने दिसंबर 2017 में घरेलू हिंसा से जम्मू-कश्मीर महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम की धारा 12(1) के तहत दायर एक शिकायत को खारिज करने की मांग वाली याचिका पर एक फैसले में यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: एस रवैल सिंह बनाम गुरिंदर जीत कौर।

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    धारा 138 एनआई एक्ट| लगाया गया जुर्माना चेक राशि के दोगुने से अधिक नहीं होना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत लगाए गए जुर्माने की अधिकतम राशि, ब्याज सहित, चेक की राशि के दोगुने से अधिक नहीं होनी चाहिए।

    ज‌स्टिस ए बधरुद्दीन ने कहा कि एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध करने के लिए प्रदान की गई सजा एक अवधि के लिए कारावास है, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना, जो चेक की राशि से दोगुना हो सकता है, या दोनों हो सकता है।

    केस टाइटल: एम शबीर बनाम अनीता बाजी और अन्य।

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    रिट कोर्ट यह निर्धारण नहीं कर सकता कि मामला पीएमएलए की धारा 8 (4) के तहत विचारणीय या नहीं; यह अपीलीय प्राधिकारी का विषय: जेएंडकेएंड एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यह सवाल कि धन शोधन निवारण अधिनियम की धारा 8(4) के तहत कार्रवाई के लिए अपेक्ष‌ित कोई विशेष मामला असाधारण प्रकृति का है या नहीं, का निर्धारण केवल अपीलीय प्राधिकारी ही अपील के गुण-दोष पर विचार करते हुए कर सकता, कोई कोर्ट अपने रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए यह‌ निर्धारण नहीं कर सकती है।

    चीफ जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और जस्टिस संजय धर की पीठ ने पीएमएलए के तहत जांच के अधीन एक कथित हथियार लाइसेंस मामले में सैयद अकील शाह और सैयद आदिल शाह की याचिकाओं को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: सैयद अकील शाह बनाम प्रवर्तन निदेशालय।

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    अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता अनुच्छेद 21 का एक आंतरिक हिस्सा: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आस्था के सवालों का जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ता है। आगे कहा कि जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता अनुच्छेद 21 का एक आंतरिक हिस्सा है।

    जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां जोड़ों का कानूनी रूप से अपनी मर्जी और इच्छा से विवाह किया जाता है, पुलिस से कानून के अनुसार तेजी से और संवेदनशीलता के साथ कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। अदालत ने कहा कि पुलिस को ऐसे जोड़ों की सुरक्षा के लिए आवश्यक उपाय करने चाहिए, अगर वे अपने परिवार के सदस्यों सहित दूसरों से शत्रुता और अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित हैं।

    केस टाइटल: नैना राणा बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) और अन्य जुड़े मामले

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    हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13बी(2) | छह महीने की कूलिंग पीयरेड निदेशिका, अनिवार्य नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने हाल ही में कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी (2) के तहत अर्जी दाखिल करने और अनुमति देने के बीच छह महीने की कूलिंग अवधि की आवश्यकता निदेशिका (डायरेक्ट्री) है, न कि अनिवार्यता।

    कोर्ट उस याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें पक्ष फैमिली कोर्ट द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दे रहे थे, जिसमें कूलिंग अवधि को समाप्त करने की उनकी प्रार्थना को खारिज कर दिया गया था।

    केस : श्रीमती वंदना गोयल बनाम प्रशांत गोयल

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