हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

16 Jan 2022 5:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (10 दिसंबर, 2022 से 14 दिसंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    फ्रांसिसी कोर्ट से तलाक की डिक्री ; भारतीय अदालत में भंग सामुदायिक संपत्ति का विभाजन का वाद सुनवाई योग्य : मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने कानूनों के संघर्ष पर प्रश्नों की विशेषता वाली तलाक की कार्यवाही में माना है कि भारतीय कानूनों के अनुसार भारत में संपत्ति के विभाजन और अलग कब्जे के लिए दायर एक वाद सुनवाई योग्य है और फ्रांसीसी नागरिक संहिता के अनुच्छेद 1444 के तहत परिसमापन के लिए फ्रांसीसी नोटरी से संपर्क नहीं करने के आधार पर इसे प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा।

    न्यायमूर्ति टी राजा और न्यायमूर्ति डी भरत चक्रवर्ती की पीठ फैमिली कोर्ट, पुदुकोट्टई के फैसले और डिक्री के खिलाफ सीपीसी के आदेश 41 आर 1 के तहत पठित सीपीसी की धारा 96 के तहत पति द्वारा दायर एक अपील का निपटारा कर रही थी।

    केस: वेंकटेश्वरने सिवादजी बनाम एलिस वियाला

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    विदेशी ट्रिब्यूनल का एक व्यक्ति को नागरिक घोषित करने का आदेश उसी व्यक्ति के खिलाफ बाद की कार्यवाही पर बाध्यकारी: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सोमवार को फॉरेनर्स ट्र‌िब्यूनल के एक आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें जोरगाह गांव, सोनितपुर के निवासी को विदेशी घोषित किया गया था। कोर्ट ने कहा कि संबंधित ट्रिब्यूनल ने पहले उसे भारतीय नागरिक घोषित किया था, लेकिन बाद में एक उसे विदेशी घोषित करने का एकपक्षीय आदेश पारित किया।

    ज‌स्टिस कोटेश्वर सिंह और जस्टिस मलाश्री नंदी की खंडपीठ ने एकपक्षीय आदेश को रद्द कर दिया और मामले को संबंधित फॉरेनर्स ट्र‌िब्यूनल को वापस भेज दिया। तदनुसार, ट्रिब्यूनल को पहले यह निर्धारित करने का निर्देश दिया गया था कि क्या याचिकाकर्ता वही व्यक्ति है जिसे पहले भारतीय नागरिक घोषित किया गया था।

    केस शीर्षक: मोहम्मद मयुनुल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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    पक्षकार ने अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष कोई आधार नहीं उठाया, इसलिए अपीलीय प्राधिकारी के आदेश को 'न बोलने वाला आदेश' नहीं कहा जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि यह तय करने के लिए कि कोई अपीलीय आदेश बोलने वाला आदेश है या न बोलने वाला, इसे अपील में उठाए गए आधारों के प्रकाश में देखा जाना चाहिए, न कि अलग से।

    न्यायमूर्ति अनुभा रावत चौधरी ने कहा कि जब अपील में संबंधित पक्ष कोई भौतिक आधार नहीं उठाता है, तो परिणामस्वरूप पारित आदेश को न-बोलने वाला आदेश नहीं कहा जा सकता है। मामला समाप्त करने के आदेश को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका और याचिकाकर्ता को सभी पिछले वेतन के साथ बहाल करने की मांग से उत्पन्न हुआ।

    केस का शीर्षक: कयूम अंसारी बनाम सेंट्रल कोल फील्ड लिमिटेड

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    राज्य प्राधिकरण कानून की उचित प्रक्रिया के अलावा किसी अन्य तरीके से संपत्ति के कब्जे से किसी व्यक्ति को बेदखल नहीं कर सकता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया है कि जब किसी व्यक्ति के पास संपत्ति पर कब्जा होता है और वह आनंद लेता है, तो उसे कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के अलावा बेदखल नहीं किया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति एम. सत्य नारायण मूर्ति ने कहा, "जब किसी व्यक्ति के पास संपत्ति पर कब्जा होता है और वह आनंद लेता है, तो उसे कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के अलावा बेदखल नहीं किया जा सकता है। इसलिए, प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे याचिकाकर्ता को संपत्ति से बेदखल न करें, सिवाय कानून की उचित प्रक्रिया के।"

    केस का शीर्षक: शेख गौस पीर बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    बैंकों में पैसा जमा करने वाले ईमानदार हैं; साइबर अपराधों के लिए बैंकों को जिम्मेदारी लेनी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के बैंक खाते से धोखाधड़ी से पैसे निकालने के चार आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि जो लोग बैंकों में पैसा जमा करते हैं वे ईमानदार हैं और यह बैंकों की जिम्मेदारी है कि वे किसी भी क़ीमत पर उनके पैसे को सुरक्षित रखें।

    न्यायमूर्ति शेखर यादव की खंडपीठ ने यह भी कहा कि जो लोग बैंक में करोड़ों रुपये जमा नहीं करते हैं और अपने घरों के तहखाने में छिपाते हैं, वे देश की आर्थिक समृद्धि को खोखला करने के लिए जिम्मेदार हैं।

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    कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण को पुनर्वास केंद्रों, अनाथालयों आदि में रहने वाले मानसिक रूप से बीमार लोगों को उचित चिकित्सा उपचार प्रदान करने के निर्देश दिए

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कर्नाटक राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण को पुनर्वास केंद्रों, वृद्ध घरों, निराश्रित केंद्रों, पागलखाना, अनाथालयों आदि में मानसिक रूप से बीमार लोगों को उचित चिकित्सा उपचार प्रदान करने के लिए उचित और आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।

    केस का शीर्षक: सदस्य सचिव बनाम मुख्य सचिव, कर्नाटक सरकार

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    विकलांग व्यक्ति स्वयं एक समरूप वर्ग बनाते हैं, वे एससी/एसटी समुदाय के समान नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को नीट-2021 में एससी/एसटी कम्यूनिटी पर विकलांगों के लिए उच्च आरक्षण का मार्ग प्रशस्त करने वाले एक खंड को बरकरार रखते हुए एक फैसले में कहा कि राज्य सरकार को विशिष्ट विशेषता-युक्त व्यक्तियों के वर्गों को मान्यता देने के लिए अधिकृत किया गया है और कानून के तहत उन्हें अलग मानें।

    एक याचिका को खारिज करते हुए ज‌‌स्टिस एन नागरेश ने कहा कि विकलांग व्यक्ति अपने आप में एक अलग समरूप वर्ग का गठन करते हैं और उनकी विकलांगता सामाजिक पिछड़ेपन से संबंधित होने के बजाय शारीरिक है।

    केस शीर्षक: सुमित वी कुमार और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    भरण-पोषण का दावा फैसले की तारीख से नहीं आवेदन दाखिल करने की तिथि से प्रभावी होगा: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि भरण-पोषण का दावा आवेदन दाखिल करने की तारीख से प्रभावी होगा न कि फैसले की तारीख से। जस्टिस अनुभा रावत चौधरी ने इस मामले में रजनीश बनाम नेहा और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। साथ ही आवेदन की तिथि से मासिक भत्ते के भुगतान का निर्देश देते हुए आक्षेपित आदेश में संशोधन किया।

    अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय के फैसले के खिलाफ एक पुनर्विचार आवेदन से यह मामला शुरू हुआ। इसमें न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता के आवेदन को स्वीकार कर लिया और विरोधी पक्ष को निर्णय पारित होने की तिथि से रुपये 1,500/- प्रति माह के मासिक भत्ते का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: रिंकी कुमारी @ अनीता कुमारी बनाम कुंदन कुमार @ कुंदन कुमार सिंह

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    फैमिली कोर्ट अपने प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के कारण किसी बच्चे को गोद देने के लिए सक्षम प्राधिकारी: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में यह निर्धारित किया कि संबंधित क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र वाले फैमिली कोर्ट को बच्चे को गोद देने का अधिकार है।

    जस्टिस एम.आर. अनीता ने किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत बनाए गए 2014 के नियमों और दत्तक ग्रहण विनियम, 2017 के प्रावधानों को देखने के बाद कहा: "उक्त परिस्थिति में जिला न्यायाधीश का यह निष्कर्ष कि अदालत इसके लिए उचित मंच नहीं है। उन्हें बाल कल्याण समिति से संपर्क करना पड़ेगा है, जो अवैध और विकृत है।"

    केस का शीर्षक: थॉमस पी और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य

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    सीआरपीसी की धारा 482: 'ऐसी याचिका सुनवाई योग्य होगी जिसमें दुष्प्रभाव के कारण कार्यवाही रद्द करने की मांग की गई हो': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत ऐसी याचिका सुनवाई योग्य होगी जिसमें सीआरपीसी (न्यायाधीशों और लोक सेवकों के अभियोजन) की धारा 197 के तहत आवश्यक मंजूरी के अभाव में दुष्प्रभाव के कारण कार्यवाही रद्द करने की मांग की गई हो।

    न्यायमूर्ति चंद्र कुमार राय की खंडपीठ ने न्यायिक मजिस्ट्रेट फर्रुखाबाद द्वारा एक लेखपाल (आवेदक संख्या 1) और एक कानूनगो (आवेदक संख्या 2), चकबंदी विभाग (दोनों लोक सेवकों) के खिलाफ आवश्यक मंजूरी प्राप्त किए बिना पारित एक समन आदेश को रद्द कर दिया जैसा कि सीआरपीसी की धारा 197 के तहत प्रदान किया गया है।

    केस का शीर्षक - महेंद्र पाल सिंह लेखपाल एंड अन्य बनाम यू.पी. राज्य एंड अन्य

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    सीआरपीसी की धारा 482- एफआईआर/आरोप पत्र रद्द की मांग वाली याचिका में साक्ष्य की सराहना नहीं की जा सकती : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने दोहराया कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर/आरोप पत्र रद्द करने के लिए याचिका की सुनवाई करने वाली अदालत साक्ष्य की सराहना नहीं कर सकती, क्योंकि यह ट्रायल कोर्ट के क्षेत्र में है।

    जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार ने कहा, "यह एक स्थापित सिद्धांत है कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका पर फैसला करते समय सबूतों की सराहना नहीं की जा सकती, क्योंकि यह ट्रायल कोर्ट के क्षेत्र में है।"

    केस शीर्षक: प्रदीप मोपार्थी बनाम कर्नाटक राज्य

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    अस्थायी निवास किसी केस को स्थानांतरित करने का वैध आधार नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक महिला द्वारा दायर स्थानांतरण याचिकाओं के एक समूह पर आदेश दिया कि किसी याचिका को इस आधार पर किसी अन्य जगह पर स्थानांतरित नहीं किया जा सकता, जहां पक्षकार अस्थायी रूप से रहने चले गए हैं। इस प्रकार अदालत ने देखा कि पक्षकारों के अस्थायी निवास के क्षेत्र अधिकार में लंबित मामलों को इस आधार पर स्थानांतरित करना विधिसम्मत नहीं होगा कि अब पक्षकार अस्थायी रूप से उस स्थान में रह रहा है।

    केस शीर्षक: मेरिया जोसेफ बनाम अनूप एस पोन्नट्टू

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    स्वतंत्र गवाहों के बयान दर्ज करने में जांच एजेंसी की विफलता को गंभीरता से लिया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि अभियोजन, नियमित रूप से, मुकदमे के दरमियान स्वतंत्र गवाहों को पेश करने पर जोर नहीं देता है, हाल ही में कहा कि जांच एजेंसी द्वारा जांच के दरमियान ऐसे गवाहों के बयान दर्ज करने में विफलता को अदालतों द्वारा गंभीरता से देखा जाना चाहिए।

    जस्टिस अताउरहमान मसूदी और जस्टिस मनीष कुमार ने हत्या के मामले में सजा के खिलाफ दायर एक आपराधिक अपील का निस्तारण करते हुए आगे राय दी कि वह समय दूर नहीं जब अदालतों को ऐसे गवाहों को स्‍वतः संज्ञान लेकर खुद सम्मन करना होगा, जिसके लिए गवाह संरक्षण कानून मौजूद होना चाहिए। मौजूदा मामले में किसी स्वतंत्र गवाह की जांच नहीं की गई थी, ना उन्हें पेश किया गया था।

    केस शीर्षक- अश्विनी कुमार बनाम यूपी राज्य, अतुल कुमार और 2 अन्य बनाम यूपी राज्य से जुड़ा हुआ।

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    उत्तर प्रदेश राज्य में आईपीसी की धारा 506 के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य में आईपीसी(IPC) की धारा 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध है।

    न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने यह निष्कर्ष निकालने के लिए यू.पी. गजट दिनांक 31 जुलाई 1989 में प्रकाशित एक अधिसूचना का उल्लेख किया। इसमें यूपी के तत्कालीन माननीय राज्यपाल द्वारा की गई घोषणा को अधिसूचित किया गया था कि उत्तर प्रदेश में आईपीसी की धारा 506 के तहत कोई भी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होगा।

    केस का शीर्षक - राकेश कुमार शुक्ल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एंड अन्य केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 6

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    पिता अपनी अविवाहित बेटियों की देखभाल की जिम्मेदारी को छोड़ नहीं सकते, उनकी शिक्षा और शादी का खर्च उठाने के लिए बाध्य: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पिता अपनी अविवाहित बेटियों की देखभाल करने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है और उनकी शिक्षा और शादी के खर्चों समेत उनकी देखभाल करना उसका कर्तव्य और दायित्व है।

    जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने कहा कि 'कन्या दान' एक हिंदू पिता का एक गंभीर और पवित्र दायित्व है, जिससे वह पीछे नहीं हट सकता। अदालत ने इस प्रकार पिता को उसकी दो बेटियों की शादी के खर्च के लिए 35 लाख और 50 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    केस शीर्षक: पूनम सेठी बनाम संजय सेठी

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    घरेलू हिंसा अधिनियम- कानूनी प्रतिनिधि मृतक महिला की ओर से मौद्रिक राहत की मांग नहीं कर सकतेः बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक पीड़ित या व्यथित व्यक्ति, (जैसा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम (डीवी एक्ट) के तहत परिभाषित किया गया है) ''याचिका दायर करने के समय जीवित होना चाहिए'' और उसके निधन के बाद कोई भी व्यक्ति अधिनियम के तहत मौद्रिक राहत के लिए आवेदन दायर नहीं कर सकता है।

    जस्टिस संदीप शिंदे ने पिछले सप्ताह एक फैसले में, एक नाबालिग लड़की (उसकी नानी के माध्यम से) द्वारा ''अपनी माँ की ओर से'' दायर उस आवेदन को खारिज कर दिया है, जिसमें उसके पिता और दादा-दादी के खिलाफ मौद्रिक राहत, स्त्रीधन वापस दिलाए जाने और मुआवजे की मांग की गई थी।

    केस का शीर्षक-कनक केदार सप्रे व अन्य बनाम केदार नरहर सप्रे

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    आदेश 41 नियम 17 (1), सीपीसी - अगर वकील बहस से इनकार करता है या कोर्ट को संबोधित करने में सक्षम न हो, अपील योग्यता के आधार पर खारिज नहीं हो सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि जब अपीलीय न्यायालय द्वारा अपील को इस तथ्य के आधार पर खारिज कर दिया जाता है कि अपीलकर्ता का वकील अदालत में शारीरिक तौर पर उपस्थित होने के बावजूद, किसी भी कारण से उस पर बहस करने से इनकार करता है तो सीपीसी के आदेश XLI नियम 17 के स्पष्टीकरण के मद्देनज़र योग्यता के आधार पर इसे खारिज नहीं किया जा सकता।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि आदेश XLI नियम 17 सीपीसी के स्पष्टीकरण में कहा गया है कि अपीलीय न्यायालय उन मामलों में गुण-दोष के आधार पर अपील को खारिज नहीं कर सकता है, जहां निर्धारित दिन पर, या किसी अन्य दिन जिस पर सुनवाई की जा सकती है, अपीलकर्ता अपील पर सुनवाई के लिए बुलाए जाने पर उपस्थित ना हों।

    केस - जानकी प्रसाद बनाम संजय कुमार और अन्य

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