स्वतंत्र गवाहों के बयान दर्ज करने में जांच एजेंसी की विफलता को गंभीरता से लिया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
10 Jan 2022 3:02 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि अभियोजन, नियमित रूप से, मुकदमे के दरमियान स्वतंत्र गवाहों को पेश करने पर जोर नहीं देता है, हाल ही में कहा कि जांच एजेंसी द्वारा जांच के दरमियान ऐसे गवाहों के बयान दर्ज करने में विफलता को अदालतों द्वारा गंभीरता से देखा जाना चाहिए।
जस्टिस अताउरहमान मसूदी और जस्टिस मनीष कुमार ने हत्या के मामले में सजा के खिलाफ दायर एक आपराधिक अपील का निस्तारण करते हुए आगे राय दी कि वह समय दूर नहीं जब अदालतों को ऐसे गवाहों को स्वतः संज्ञान लेकर खुद सम्मन करना होगा, जिसके लिए गवाह संरक्षण कानून मौजूद होना चाहिए। मौजूदा मामले में किसी स्वतंत्र गवाह की जांच नहीं की गई थी, ना उन्हें पेश किया गया था।
मामला
अनिवार्य रूप से, पीठ चार अपीलकर्ताओं की ओर से दायर आपराधिक अपील का निस्तारण कर रही थी, जिन्होंने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 सहपठित धारा 34 के तहत अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटाखटाया था। उन्हें अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, उन्नाव द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। .
आरोपियों में से एक, अश्विनी कुमार को आईपीसी की धारा 404 और आर्म्स एक्ट की धारा 3 सहपठित धारा 25 के तहत दोषी ठहराया गया था। यह सजा 1999 के एक मामले के संबंध में थी, जिसमें राम नरेश गौर और उसके बेटे अनिल कुमार की अपीलकर्ताओं ने हत्या कर दी थी।
हत्या एक विवाद को लेकर की गई थी, जब अपीलकर्ता अपने ट्रैक्टर को मृतक के भूमि/बाग से ले गए, उस समय वे अपने खेत में आलू खोद रहे थे।
टिप्पणियां
शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि पीडब्लू-1 और पीडब्लू-2 के चाक्षुष साक्ष्य के बीच एक असंगतता थी, क्योंकि पीडब्लू-1 ने अपनी जिरह में स्पष्ट रूप से कहा था कि घटना की तारीख पर पहली गोली राम नरेश (मृतक) ने चलाई थी, जबकि पीडब्लू-2 ने बताया कि सबसे पहले गोली अश्विनी कुमार (आरोपी) ने मारी थी।
न्यायालय ने नोट किया कि दूसरा विरोधाभास प्रत्यक्षदर्शी पीडब्लू-2 और पीडब्लू-10 की मौखिक गवाही के बीच था। पीडब्ल्यू-2 ने कहा कि राम नरेश (मृतक) को थाने पहुंचने के बाद जीप द्वारा अस्पताल ले जाया गया, जबकि पीडब्लू-10 ने जिरह में बताया था राम नरेश (मृतक) को उसी ट्रैक्टर से अस्पताल ले जाया गया था, जिससे उसे थाने लाया गया।
उक्त विरोधाभासों के अलावा, अपीलकर्ताओं ने साइट प्लान में अस्पष्टता की ओर से भी इशारा किया।
इसके अलावा, अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समक्ष यह दलील दी कि मौजूदा मामला धारा 300 अपवाद IV आईपीसी के दायरे में सदोष मानव वध (culpable homicide) का मामला है, जिसके लिए आजीवन कारावास की सजा अधिकतम होने के कारण असंगत है।
[नोट: आईपीसी की धारा 300 के अपवाद IV में कहा गया है कि सदोष मानव वध हत्या नहीं है, अगर यह बिना सोचे-समझे, अचानक झगड़े में जुनून में अचानक लड़ाई होने पर और अपराधियों द्वारा अनुचित लाभ उठाए बिना या क्रूर या असामान्य तरीके से किया गया है।]
इस संबंध में यह देखते हुए कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर आईपीसी की धार 300 से जुड़े अपवाद पर आत्मरक्षा की दलील अपीलीय स्तर पर उठाए जाने के लिए खुला है, कोर्ट ने कहा,
"पीडब्लू-1 के चाक्षुष साक्ष्य के अनुसार, यह स्पष्ट है कि पहली गोली राम नरेश (मृतक) ने चलाई थी, जिसे किसी भी कल्पना के तहत अपीलकर्ताओं द्वारा जीवन के लिए खतरे से कम नहीं देखा जा सकता था, जिन्होंने जवाबी कार्रवाई में फायर आर्म्स सका उपयोग किया और उसे घातक चोट पहुंचाई। जीवन के लिए खतरा अपीलकर्ताओं के लिए समान रूप से मौजूद था, जब अनिल कुमार बंदूक लेने के लिए झुके जो चोट लगने पर राम नरेश के हाथ से गिर गई थी। अचानक लड़ाई और झगड़े को मृतक की ओर से उकसाया गया था, जिसने अभियुक्त की ओर बढ़ते हुए विरोध किया और पहली गोली चलाने से जुनून कई गुना बढ़ गया और यह स्थिति पीडब्लू -1 (आनंद मोहन) की गवाही के विवेकपूर्ण ढंग से पढ़ने पर अच्छी तरह से स्थापित है।"
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि उकसावे या आक्रामकता से परेशान अचानक लड़ाई या झगड़े की स्थिति में सामान्य इरादे के तत्व को आयात करना समझदारी नहीं होगी, जैसा कि मौजूदा मामले में है। इसलिए, कोर्ट ने माना कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत स्पष्ट रूप से मामले को धारा 300 आईपीसी से जुड़े अपवाद- IV के क्षेत्र में लाते हैं और इस प्रकार, धारा 304 भाग- I का लाभ लागू हो जाता है।
महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय का यह भी विचार था कि मौजूदा मामले में, जांच, साक्ष्य, या साइट प्लान में आलू से लदे ट्रैक्टर के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था, जिसे मृतक की जमीन से होकर ले जाने का प्रयास किया गया था।
कोर्ट ने कहा, "स्वतंत्र गवाहों को न तो पेश किया गया और न ही अपीलकर्ताओं के विपरीत साइट प्लान में उनकी स्थिति को दिखाया गया है।"
अंत में, कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता पहले ही 17 साल से अधिक समय तक सजा काट चुके हैं और अपीलकर्ता (परशुराम पासी) में से एक की मौत कैद के दौरान अपीलीय कार्यवाही के दौरान हुई है।
इसलिए, आईपीसी की धारा 302 के तहत अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि को धारा 304 भाग- I आईपीसी के तहत दोषसिद्धि के रूप में संशोधित किया गया और आजीवन कारावास की मूल सजा को उनके द्वारा पहले ही भुगत चुकी सजा की अवधि तक कम कर दिया गया।
केस शीर्षक- अश्विनी कुमार बनाम यूपी राज्य, अतुल कुमार और 2 अन्य बनाम यूपी राज्य से जुड़ा हुआ।
केस सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 8