पिता अपनी अविवाहित बेटियों की देखभाल की जिम्मेदारी को छोड़ नहीं सकते, उनकी शिक्षा और शादी का खर्च उठाने के लिए बाध्य: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

10 Jan 2022 4:00 AM GMT

  • पिता अपनी अविवाहित बेटियों की देखभाल की जिम्मेदारी को छोड़ नहीं सकते, उनकी शिक्षा और शादी का खर्च उठाने के लिए बाध्य: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पिता अपनी अविवाहित बेटियों की देखभाल करने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है और उनकी शिक्षा और शादी के खर्चों समेत उनकी देखभाल करना उसका कर्तव्य और दायित्व है।

    जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने कहा कि 'कन्या दान' एक हिंदू पिता का एक गंभीर और पवित्र दायित्व है, जिससे वह पीछे नहीं हट सकता। अदालत ने इस प्रकार पिता को उसकी दो बेटियों की शादी के खर्च के लिए 35 लाख और 50 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर एक अपील की अनुमति दी, जिसके तहत क्रूरता के आधार पर पत्नी को तलाक दे दिया गया था, हालांकि, उसे और उसकी दो वयस्‍क बेटियों के लिए भरण-पोषण से इनकार कर दिया गया था।

    प्रतिवादी पिता की ओर से यह तर्क दिया गया कि सभी बच्चे बड़े थे, और वर्तमान मामले के तथ्यों ने वह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24, 25 और 26 को आकर्षित नहीं किया गया था।

    यह प्रस्तुत किया गया कि केवल वैधानिक प्रावधान जो आकर्षित किया जा सकता था, वह हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 थी, जो केवल बेरोजगार और आश्रित बेटियों को समान सीमा तक भरण-पोषण को सीमित करती है।

    कोर्ट ने कहा,

    "सबसे पहले, हमें ध्यान देना चाहिए कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20 के तहत, भरण-पोषण का भुगतान केवल बच्चों या कमजोर माता-पिता को किया जाएगा, अगर वे खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं। ऐसा कोई सेक्‍शन नहीं है जो बताता है कि खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थता (बच्चों और माता-पिता दोनों के संबंध में) आय अर्जित नहीं करने के बराबर है। हमें दो श्रेणियों के बीच अंतर करना चाहिए। एक व्यक्ति आय अर्जित कर सकता है, लेकिन फिर भी जरूरी नहीं कि वह खुद का भरण-पोषण करने में में सक्षम हो।"

    फैमिली कोर्ट के निष्कर्षों से सहमत नहीं होते हुए, जिसमें कहा गया था कि चूंकि बेटियां आवेदन दाखिल करने की तारीख तक बालिग थीं, इसलिए वे किसी भी भरण-पोषण की हकदार नहीं थीं, कोर्ट ने कहा कि बेटियां बड़ी उम्र की हो सकती हैं, लेकिन पिता उसके साथ रिश्ते और साथ में जुडे कानूनी और नैतिक दायित्व यह बताने के लिए पीछे नहीं हट सकते कि वह उनकी देखभाल नहीं करेंगे।

    अदालत ने कहा, "अपनी अविवाहित बेटियों का भरण-पोषण करना पिता का कर्तव्य है, जिसमें उनकी शादी कर्तव्य भी शामिल है, जिसे कानून द्वारा स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त है।"

    न्यायालय ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं,

    - एक अविवाहित बेटी, भले ही नौकरी पर हो और कमाई कर रही हो, यह नहीं माना जा सकता है कि उसके पास अपने वैवाहिक खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं।

    - भारतीय संदर्भ में, माता-पिता की वित्तीय और सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, बेटे या बेटी की शादी होगी, ऐसी उम्मीद की जाएगी।

    - शादी करने वाले बेटे/बेटी के माता-पिता के लिए यह प्रथागत है कि वे अपनी वित्तीय क्षमता के अनुसार शादी के लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल करें। बेटी की शादी करते समय यह विशेष रूप से सच है, क्योंकि माता-पिता यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि जब वह अपना नया जीवन शुरू करेगी तो उसे वैवाहिक घर में सभी चीजें प्रदान की जाएंगी।

    - भारतीय समाज में बच्चे के जन्म से ही बेटी की शादी को सबसे अहम माना जाता है। माता-पिता शुरू से ही अपनी बेटियों की शादी के लिए गहने और पैसे बचाना शुरू कर देते हैं।

    तदनुसार, कोर्ट ने कहा कि दोनों बेटियां, जिन्होंने वयस्कता प्राप्त कर ली थी, वे भी अपनी शादी के खर्च के लिए भरण-पोषण राशि की हकदार थीं।

    पिता की वित्तीय स्थिति को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि अविवाहित बेटियों की शादी के खर्च का भुगतान करने से इनकार करना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है और स्वीकार्य नहीं है।

    पीठ ने कहा,

    "हम इस तथ्य से अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते हैं कि दोनों बेटियां, वास्तव में, विवाह योग्य उम्र की हैं। छोटी बेटी की शादी तय है, और बड़ी बेटी को भी उसकी शादी के लिए धन की आवश्यकता होगी। प्रतिवादी 3 बच्‍चों का पिता है और उनके प्रति उसकी जिम्मेदारी है। केवल यह कहना कि बेटियां बड़ी हैं और आय अर्जित कर रही हैं, बिना यह बताए कि कैसे, और कितना, अतार्किक है।"

    कोर्ट ने कहा कि नैतिक और कानूनी रूप से, माता-पिता दोनों का दायित्व है कि वे अपने बच्चों को भरण-पोषण के रूप में अपने जीवन की स्थिति के अनुसार सुविधाएं प्रदान करें।

    इसलिए न्यायालय ने यह आशा व्यक्त करते हुए निष्कर्ष निकाला कि भले ही माता-पिता अलग हो गए हों लेकिन पिता और बेटियां अपने रिश्ते को बहाल करने के लिए जरूरी कोशिशें करेंगे। कोर्ट ने कहा कि पिता को यह महसूस करना चाहिए कि वह एकमात्र व्यक्ति है, जिसे उसकी बेटियां अपने पिता के रूप में देख सकती हैं।

    केस शीर्षक: पूनम सेठी बनाम संजय सेठी

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 13

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