उत्तर प्रदेश राज्य में आईपीसी की धारा 506 के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

10 Jan 2022 12:47 PM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य में आईपीसी(IPC) की धारा 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध है।

    न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने यह निष्कर्ष निकालने के लिए यू.पी. गजट दिनांक 31 जुलाई 1989 में प्रकाशित एक अधिसूचना का उल्लेख किया। इसमें यूपी के तत्कालीन माननीय राज्यपाल द्वारा की गई घोषणा को अधिसूचित किया गया था कि उत्तर प्रदेश में आईपीसी की धारा 506 के तहत कोई भी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होगा।

    कोर्ट ने यह भी नोट किया कि उक्त अधिसूचना को मेटा सेवक उपाध्याय बनाम यूपी राज्य, 1995 सीजे (ऑल) 1158 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने बरकरार रखा था और इस निर्णय को एरेस रोड्रिग्स बनाम विश्वजीत पी. राणे (2017) 11 एससीसी 62 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी अनुमोदित किया गया था।

    पूरा मामला

    अनिवार्य रूप से वर्तमान मामले में पीड़ित ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दायर किया। इसमें आरोप लगाया गया कि आवेदक राकेश कुमार शुक्ला ने उसे मारने के इरादे से उस पर गोली चलाई थी और जब इलाके के कई लोग वहां जमा हो गए, तो उसने पीड़ित को जान से मारने की धमकी देकर चला गया।

    सीजेएम, बांदा के निर्देशों के अनुसार, एक प्राथमिकी दर्ज की गई और पुलिस द्वारा जांच की गई और 2007 में पुलिस द्वारा आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 504 और 506 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया, जो वर्तमान में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट, बांदा में लंबित है।

    इस आरोप पत्र को चुनौती देते हुए आवेदक (राकेश कुमार शुक्ला) ने सीआरपीसी की 482 आवेदन के साथ कोर्ट का रुख किया।

    मुख्य रूप से आवेदक के वकील द्वारा यह तर्क दिया गया कि मूल रूप से प्राथमिकी आईपीसी की धारा 307, 504, 506 के तहत दर्ज की गई थी, लेकिन जांच के दौरान आईपीसी की धारा 307 के तहत अपराध करने का आरोप झूठा पाया गया और केवल धारा 504 के तहत एक मामला पाया गया और आईपीसी की धारा 506 को आवेदक के खिलाफ बनाया गया पाया गया, जो दोनों गैर-संज्ञेय अपराध हैं।

    इसलिए, उनके द्वारा यह तर्क दिया गया कि आवेदक के खिलाफ मामला केवल शिकायत मामले के रूप में आगे बढ़ सकता है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि यह तर्क सीआरपीसी की धारा 2 (डी) के अनुरूप आवेदक द्वारा दिया गया था, जिसमें कहा गया है कि एक मामले में एक पुलिस अधिकारी द्वारा की गई एक रिपोर्ट जो खुलासा करती है, जांच के बाद एक गैर- संज्ञेय अपराध को शिकायत माना जाएगा।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    कोर्ट ने शुरुआत में नोट किया कि सीआरपीसी से जुड़ी पहली अनुसूची में धारा 506 को एक गैर-संज्ञेय अपराध के रूप में वर्णित किया गया है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने 31 जुलाई, 1989 की एक अधिसूचना के माध्यम से यू.पी. गजट ने धारा 506 आईपीसी को संज्ञेय और गैर-जमानती बना दिया।

    कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 155 (4) का उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि जहां एक मामला दो या दो से अधिक अपराधों से संबंधित है, जिनमें से कम से कम एक संज्ञेय है, मामले को संज्ञेय मामला माना जाएगा, भले ही अन्य अपराध असंज्ञेय हैं।

    कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 155 (4) के जनादेश को तथ्यों के तत्काल सेट पर लागू करते हुए निष्कर्ष निकाला कि आवेदक पर आईपीसी की धारा 504 और 506 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया है, जिनमें से एक, यानी धारा 506 के तहत अपराध है जो एक संज्ञेय अपराध (जैसा कि यूपी में लागू है), मामले को संज्ञेय माना जाना चाहिए और दोनों अपराधों के लिए संज्ञेय अपराधों के रूप में ट्रायल के लिए निर्धारित तरीके से विचार किया जाना चाहिए।

    इसके साथ ही आवेदन खारिज कर दिया गया।

    केस का शीर्षक - राकेश कुमार शुक्ल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एंड अन्य केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 6

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