हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

5 March 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (27 फरवरी, 2023 से 3 मार्च, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    उम्मीद है कि केंद्र सरकार गोहत्या पर प्रतिबंध लगाएगी, इसे संरक्षित राष्ट्रीय पशु घोषित करेगी': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू धर्म में गायों के महत्व पर जोर देते हुए और उन्हें मारने की प्रथा को रोकने की आवश्यकता पर जोर देते हुए हाल ही में आशा व्यक्त की कि केंद्र सरकार देश में गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने और इसे 'संरक्षित राष्ट्रीय' पशु घोषित करने के लिए उचित निर्णय लेगी। जस्टिस शमीम अहमद की पीठ ने यह भी कहा कि चूंकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां हमें सभी धर्मों और हिंदू धर्म का सम्मान करना चाहिए, यह विश्वास है कि गाय दैवीय और प्राकृतिक भलाई का प्रतिनिधि है, इसलिए इसकी रक्षा की जानी चाहिए।

    केस टाइटल- मो. अब्दुल खालिक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और दूसरा [आवेदन धारा 482 नंबर - 1743/2021]

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    हाथरस केस : सामूहिक बलात्कार का कोई मेडिकल साक्ष्य नहीं, पीड़िता को संभवतः सिखाया गया था, यह नहीं कह सकते कि मुख्य आरोपी की मंशा उसे मारने की थी: यूपी कोर्ट

    हाथरस के कथित सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में एक व्यक्ति को दोषी ठहराते हुए उत्तर प्रदेश की अदालत ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि पूरे मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया, इसलिए संभव है कि पीड़िता ने चार आरोपियों के खिलाफ सामूहिक बलात्कार के आरोप लगाए हों। उसके परिवार के सदस्यों और उससे मिलने आने वाले अन्य लोगों ने उसे ये सिखाया हो।

    विशेष न्यायाधीश त्रिलोक पाल सिंह का भी विचार था कि यह नहीं कहा जा सकता कि मुख्य आरोपी संदीप का इरादा उसे मारने का था क्योंकि पीड़िता घटना के 8 दिन बाद भी बात करती रही और इसलिए, वह आईपीसी की धारा 304 के तहत दंडित किया जाएगा न कि धारा 302 (हत्या) के तहत।

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    EWS/DG कैटेगरी स्थापित होने पर बच्चा डीओई-आवंटित स्कूल में एडमिशन पाने का हकदार: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यह साबित हो जाने के बाद कि बच्चा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) से संबंधित है या वंचित समूह (DG) कैटेगरी है तो वह आरटीई अधिनियम के तहत आरक्षित सीटों पर शिक्षा निदेशालय (डीओई) द्वारा आवंटित स्कूल में एडमिशन पाने का हकदार है।

    जस्टिस मिनी पुष्करणा ने कहा कि डीओई द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत स्कूल आवंटन के बाद DG या EWS कैटेगरी के तहत किसी भी बच्चे को एडमिशन देने से इनकार करना, बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 का उल्लंघन होगा, जो 6 से 14 वर्ष के बीच के प्रत्येक बच्चे को अनिवार्य रूप से मुफ्त में शिक्षा प्रदान करता है।

    केस टाइटल: समर देवल बनाम शिक्षा निदेशालय और अन्य।

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    राज्य केवल इसलिए पशु डॉक्टरों को मेडिकल डॉक्टरों की बराबरी में रखने से इनकार नहीं कर सकता, क्योंकि वे पशुओं की देखभाल करते हैंः हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि पशु चिकित्सा डॉक्टर मेडिकल डॉक्टरों के बराबर हैं, गुरुवार को फैसला सुनाया कि राज्य पशु चिकित्सा अधिकारियों को 4-स्तरीय वेतनमान देने से इसलिए इनकार नहीं कर सकता है कि वे जानवरों की देखभाल कर रहे हैं, और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के साथ काम कर रहे डॉक्टर इंसानों का इलाज कर रहे हैं। पशु चिकित्सा अधिकारियों को 4 स्तरीय वेतनमान नहीं देने के कैबिनेट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: पंकज कुमार लखनपाल व अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश व अन्य।

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    अनुशासनात्मक प्राधिकरण सरकारी अधिकारी को उसकी गलती पर लोकयुक्त की ओर से सिफारिश किए गए दंड से कम दंड दे सकता हैः कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि लोकायुक्त ने किसी अधिकारी पर उचित जांच के बाद विशेष दंड लगाने की सिफारिश की हो, इसके बावजूद उसी अधिकारी पर कम जुर्माना लगाने की अनुशासनात्मक प्राधिकारी की शक्ति समाप्त नहीं हो जाती है। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने कर्नाटक लोकायुक्त की ओर से छह सितंबर, 2021 को परित एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसके जरिए दूसरे प्रतिवादी (चंद्रशेखर) पर जुर्माना लगाया गया था, जो विशेष दंड लगाने के लिए उसकी ओर से की गई सिफारिश से कम था।

    केस टाइटल: कर्नाटक लोकायुक्त और कर्नाटक राज्य और अन्य।

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    धारा 33(5) पोक्सो एक्‍ट का अर्थ यह नहीं कि अभियुक्त को पीड़िता से क्रॉस एक्जामिनेशन का अवसर नहीं दिया जाएगा: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने विशेष अदालत के एक आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एक अभियुक्त की ओर से, जिस पर पोक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाया जा रहा था, अभियोजन पक्ष (पीड़ित) को क्रॉस एग्जामिनेश के लिए बुलाने के लिए किए गए आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

    जस्टिस के नटराजन की सिंगल जज बेंच ने कहा, "बेशक, पोक्सो एक्ट की धारा 33 के अनुसार, अभियोजन पक्ष/पीड़ित को जिरह के लिए बार-बार अदालत में नहीं बुलाया जाना चाहिए। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि अभियोजन पक्ष के गवाह से जिरह के लिए अभियुक्त को कोई अवसर नहीं दिया जाएगा।"

    केस टाइटल: जयन्ना बी @ जयराम और कर्नाटक राज्य

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    पूंजीगत संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण पर धारा 50सी लागू नहीं की जा सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि कैपिटल एसेट (भूमि या बिल्डिंग, या दोनों) के अनिवार्य अधिग्रहण के मामलों में, आयकर अधिनियम की धारा 50सी के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि हस्तांतरण को प्रभावित करने के लिए स्टांप ड्यूटी के पेमेंट का प्रश्न पैदा नहीं होता।

    जस्टिस टीएस शिवगणनम और जस्टिस हिरण्मय भट्टाचार्य ने देखा कि संपत्ति को राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956 के प्रावधानों के तहत अधिग्रहित किया गया था। उक्त कानून के संचालन से संपत्ति निहित होती है, और संपत्ति के निहित होने पर स्टांप शुल्क के भुगतान की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

    केस टाइटल: पीसीआईटी बनाम दुर्गापुर प्रोजेक्ट्स लिमिटेड

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    यदि आरोप पत्र दोषपूर्ण पाया जाता है और दोषों को दूर करने के लिए वैधानिक अवधि के बाद लौटाया जाता है तो क्या अभियुक्त डिफ़ॉल्ट बेल का हकदार है? केरल हाईकोर्ट ने जवाब दिया

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में विचार किया कि उन मामलों में, जहां जांच की वैधानिक समय सीमा के भीतर अंतिम रिपोर्ट दायर की गई हो, लेकिन आरोप-पत्र दोषपूर्ण पाया गया हो और वैधानिक समय सीमा समाप्त होने के बाद दोष को ठीक करने के लिए वापस भेजा गया हो, सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत जमानत के लिए आरोपी व्यक्ति की पात्रता बनी रहेगी?

    जस्टिस वीजी अरुण ने कहा, "जब लोक अभियोजक की ओर से विस्तार की मांग की गई हो, या आरोपी ने वैधानिक जमानत की मांग की हो, तब अदालत को विचार करना चाहिए कि क्या जांच पूरी करने के बाद अंतिम रिपोर्ट दायर की गई है।

    केस टाइटल: विमल के मोहनन और अन्य वी केरल राज्य और अन्य।

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    वादी ने तारीखों का उचित ब्योरा दिए बिना विलंब की माफी के लिए "रहस्यमयी" आवेदन किया हो तो उसका बचाव नहीं कर सकतेः जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में तारीखों का उचित ब्योरा नहीं देने के कारण एक 'रहस्यमयी' विलंब क्षमा आवेदन को खारिज कर दिया। जस्टिस एमए चौधरी की पीठ ने कहा, "जहां क्षमा के लिए दिया गया आवेदन पर्याप्त कारण और याचिकाकर्ताओं के दृष्टिकोण को स्पष्ट नहीं करता है, अदालतें इस प्रकार के आवेदन को लापरवाही से और रहस्यमयी ढंग से करने के कारण वादियों की सहायता और बचाव के लिए आगे नहीं आ सकती"।

    केस टाइटलः पूजा देवी व अन्य बनाम तरसीम लाल व अन्य।

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    विध्वंस के लिए याचिका पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता जब तक कि यह अतिक्रमण के विशेष क्षेत्र को निर्दिष्ट न करे: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह कथित रूप से अतिक्रमण के अधीन क्षेत्र विशेष का वर्णन किए बिना केवल विध्वंस की याचिका पर निर्देश जारी नहीं कर सकता। जस्टिस निर्जर एस. देसाई की एकल पीठ ने अहमदाबाद के चंदखेला इलाके में गुजरात हाउसिंग बोर्ड में कथित अवैध अतिक्रमण को गिराने की मांग वाली रिट याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा, "जब तक याचिका विशेष अवैध अतिक्रमण को निर्दिष्ट नहीं करती है, तब तक न्यायालय गुजरात हाउसिंग बोर्ड या अहमदाबाद नगर निगम को कोई निर्देश जारी करने की स्थिति में नहीं होगा।"

    केस टाइटल: राजवीर प्रवीणचंद्र उपाध्याय और 4 अन्य बनाम गुजरात राज्य और 3 अन्य।

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    केवल इसलिए कि पीड़िता एसटी समुदाय से संबंधित है, यह नहीं माना जा सकत कि आरोपी ने उसका यौन शोषण करने के लिए उसकी इच्छा पर हावी होने की कोशिश की: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना कि केवल इसलिए कि पीड़िता अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय से संबंधित है, यह नहीं माना जा सकत कि आरोपी ने उसका यौन शोषण करने के लिए उसकी इच्छा पर हावी होने की कोशिश की, जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम ['अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम'] के 2016 की धारा 3(1)(xii) के तहत दंडनीय है।

    केस टाइटल: सुरेश राम विश्वकर्मा बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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    केवल इसलिए रिश्ते में "धार्मिक कोण" नहीं माना जा सकता, क्योंकि लड़का और लड़की अलग-अलग धर्मों से हैं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने हाल ही में आयोजित किया गया कि केवल इसलिए किसी रिश्ते में 'धार्मिक कोण' नहीं देखा जा सकता, क्योंकि रिश्ते में लड़का और लड़की अलग-अलग धर्मों से हैं।

    जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस अभय वाघवासे की खंडपीठ ने मुस्लिम महिला और उसके परिवार को हिंदू पुरुष को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने के आरोप में अग्रिम जमानत देते हुए कहा, “ऐसा लगता है कि अब लव-जिहाद का रंग देने की कोशिश की गई है, लेकिन जब लव को स्वीकार कर लिया जाता है तो व्यक्ति को दूसरे के धर्म में परिवर्तित करने के लिए फंसाए जाने की संभावना कम होती है। मामले के तथ्य यानी एफआईआर की सामग्री से पता चलता है कि सूचना देने वाले के पास आरोपी नंबर 1 के साथ संबंध तोड़ने के कई अवसर थे, लेकिन उसने वह कदम नहीं उठाया। केवल इसलिए कि लड़का और लड़की अलग-अलग धर्म से हैं, इसमें धर्म का कोण नहीं हो सकता। यह एक-दूसरे के लिए शुद्ध प्रेम का मामला हो सकता है।"

    केस टाइटल- शेख सना फरहीन शाहमीर व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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    कलेक्टर अन्य दावेदारों की अनुपस्थिति में भी अधिग्रहण के तहत भूमि में हिस्से की सीमा तक मुआवजा दे सकते हैं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अधिग्रहण के तहत संपत्ति में हिस्सेदार व्यक्तियों के पक्ष में कलेक्टर उनके हिस्से की सीमा तक मुआवजा अवॉर्ड पारित कर सकता है, भले ही हिस्से के दावेदार अन्य इच्छुक व्यक्ति कलेक्टर के सामने पेश ना हों।

    जस्टिस आरडी धानुका और जस्टिस एमएम साथाये की खंडपीठ ने उचित मुआवजा अधिनियम के तहत बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए कुछ भूमि के अधिग्रहण के मुआवजे के फैसले को बरकरार रखा। अवॉर्ड को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह याचिकाकर्ताओं की सहमति के बिना पारित किया गया था।

    केस टाइटल- दिलीप बाबूभाई शाह व अन्य बनाम अतिरिक्त निवासी डिप्टी कलेक्टर और अन्य।

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    आदेश पांच, नियम 15 सीपीसी का सहारा लेने से पहले अपीलकर्ता को यह दिखाना होगा कि वह निवास पर नहीं था और किसी निश्‍चित अवधि में उसके पाए जाने की संभावना भी नहीं थी: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सीपीसी के आदेश पांच नियम 15 (सम्मन जारी करना) में निहित प्रावधानों का उपयोग करने से पहले यह दिखाना होगा कि जब सम्मन दिया जा रहा था तब प्रतिवादी अपने निवास पर नहीं थी और एक उचित अवधि के भीतर उसके आवास पर पाए जाने की कोई संभावना भी नहीं थी। जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा, यह भी दिखाया जाना चाहिए कि प्रतिवादी के पास कोई ऐसा एजेंट नहीं था, जिसे उसकी ओर से सम्‍मन को स्वीकार करने के लिए अधिकृत किया गया था।

    केस टाइटल: डॉ किरण बाला बनाम डॉ अश्विनी कुमार सिंह जसरोटिया।

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    जमानती अपराधों के मामले में जमानत पर रिहा आरोपी गैर-जमानती अपराधों को जोड़ने पर अग्रिम जमानत मांग सकता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने अभियुक्त को ऐसे अपराध के लिए जमानत दिए जाने की प्रक्रिया पर विचार करते हुए, जिसमें शुरू में केवल जमानती अपराध शामिल है, यह माना कि अभियुक्त दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत गैर-जमानती अपराध को जोड़ने के बाद अग्रिम जमानत की मांग कर सकता है।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन की एकल पीठ अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई कर रही थी, जहां शुरू में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज अपराध जमानती थे, लेकिन बाद में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 (हत्या का प्रयास) जोड़ी गई।

    केस टाइटल: प्रदीप और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य

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    वकील की अनुपस्थिति के कारण जमानत याचिका खारिज करने की अनुमति नहीं, अदालत आरोपी और मामले की सुनवाई के लिए एमिक्स नियुक्त कर सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि वकील की अनुपस्थिति के कारण मुकदमा न चलाने के लिए जमानत याचिकाओं को खारिज करना अस्वीकार्य है। न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में आवेदक/कैदी का प्रतिनिधित्व करने के लिए एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया जाना चाहिए और मामले की गुण-दोष के आधार पर सुनवाई की जानी चाहिए। जस्टिस अजय भनोट की पीठ ने यह भी कहा कि जमानत की सुनवाई में वकील की अनुपस्थिति कैदी-आवेदक को कार्यवाही के परिणाम को प्रभावित करने की सभी क्षमता से वंचित करती है, जहां उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता दांव पर होती है।

    केस टाइटल- मनीष पाठक बनाम यूपी राज्य [आपराधिक विविध जमानत आवेदन नंबर - 18536/2020]

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    डॉक्टरों पर हमले के मामलों में अग्रिम जमानत देने से 'खतरनाक स्थिति' पैदा होगी: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ऐसे व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया, जिसने अपनी पत्नी की जांच करने वाले डॉक्टर पर यह आरोप लगाते हुए हमला किया कि डॉक्टर ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन की एकल न्यायाधीश पीठ का विचार था कि ऐसे मामले में अग्रिम जमानत देने से 'खतरनाक स्थिति' पैदा होगी, जिससे डॉक्टर, जो इलाज के लिए आए मरीजों का इलाज करने के लिए बाध्य हैं, उन्हें सुरक्षा नहीं मिलेगी। साथ ही बड़े पैमाने पर जनता के स्वास्थ्य का उचित रखरखाव भी संकट में होगा।

    केस टाइटल: जमशेद पी.वी. बनाम केरल राज्य

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    अग्निपथ योजना के केंद्र में राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने का प्रशंसनीय उद्देश्य, सीमा पर झड़पों से निपटने के लिए चुस्त बल की आवश्यकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    सशस्त्र बलों के लिए केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को बरकरार रखते हुए, दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह निर्णायक रूप से कह सकता है कि यह योजना राष्ट्रीय हित में यह सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी कि सशस्त्र बल बेहतर सुसज्जित हों।

    चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने सीमाओं पर होने वाली झड़पों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस तरह की घटनाओं के मद्देनजर अधिक फिट सशस्त्र बल की आवश्यकता बढ़ जाती है जो सशस्त्र सैनिकों की सेवा में शामिल मानसिक और शारीरिक संकट से निपटने में सक्षम हो।

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    ट्रायल कोर्ट वकील की प्रस्तुति के एक मात्र आधार पर सीआरपीसी की धारा 329 के तहत अभियुक्त की मानसिक स्थिति की जांच के लिए बाध्य नहीं : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि केवल अभियुक्त के वकील द्वारा प्रस्तुत किए जाने के आधार पर निचली अदालत इस बात की विस्तृत जांच करने के लिए बाध्य नहीं कि क्या अभियुक्त मानसिक रूप से अस्वस्थ है।

    जस्टिस के बाबू की एकल पीठ ने कहा, "यदि अभियुक्त के आचरण में या मामले के तथ्यों में कुछ ऐसा है, जो न्यायालय के मन में संदेह पैदा करता है कि अभियुक्त मानसिक रूप से अस्वस्थ है। परिणामस्वरूप अपना बचाव करने में असमर्थ है, तो यह न्यायालय के लिए अनिवार्य है कि वह आरोप में ट्रायल के साथ आगे बढ़ने से पहले उक्त तथ्य की जांच का प्रयास करें।

    याचिकाकर्ता के वकील: एडवोकेट शरण शाहीर और एडवोकेट राखी बेबी

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    ज्वाइंट लॉकर नॉमिनी किसी अन्य नॉमिनी की मृत्यु पर लॉकर संचालित करने के लिए उस नॉमिनी को लेटर की ज़रूरत नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि लॉकर का जॉइंट नॉमिनी अन्य नॉमिनी से अलगह होकर लॉकर को संचालित करने का अधिकार रखता है। इस प्रकार, प्रशासक-सामान्य अधिनियम, 1963 की धारा 29 के तहत अन्य नॉमिनी की मृत्यु की स्थिति में नॉमिनी के किसी भी लेटर की आवश्यकता नहीं होगी।

    केस टाइटल: ललितांबिका व अन्य बनाम शिकायत निवारण समिति और अन्य।

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    वक्फ ट्रिब्यूनल नोटिस जारी करने के लिए जुर्माना जमा करने पर जोर नहीं दे सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि गुजरात राज्य वक्फ ट्रिब्यूनल (प्रक्रिया) नियम, 1998 के तहत ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है जिसके द्वारा गुजरात राज्य वक्फ ट्रिब्यूनल अपने समक्ष दायर याचिका पर नोटिस जारी करने के लिए जुर्माना जमा करने पर जोर दे सके। याचिकाकर्ता का मामला यह है कि याचिकाकर्ता के पूर्वजों ने तीर्थयात्रियों को आवास देने के लिए 'मुसाफिर खाना' के निर्माण के लिए भूमि प्रतिवादी नंबर 2 को दान की थी। हालांकि, राज्य सरकार (प्रतिवादी नंबर 1) ने गेस्ट हाउस का निर्माण किया और उसका उपयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किया।

    केस टाइटल: अशोकभाई नरसिंह ठाकोर/पढ़ियार बनाम गुजरात राज्य वक्फ ट्रिब्यूनल (अध्यक्ष के माध्यम से)

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कीं

    दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कीं। कोर्ट ने कहा कि उसे इस योजना में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है। अदालत ने कहा, "अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली सभी याचिकाएं खारिज की जाती हैं।" चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की डिविजनल बेंच फैसला सुनाया। फैसला पिछले साल 15 दिसंबर को सुरक्षित रखा गया था।

    केस टाइटल: हर्ष अजय सिंह बनाम भारत संघ और अन्य संबंधित मामले

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