यदि आरोप पत्र दोषपूर्ण पाया जाता है और दोषों को दूर करने के लिए वैधानिक अवधि के बाद लौटाया जाता है तो क्या अभियुक्त डिफ़ॉल्ट बेल का हकदार है? केरल हाईकोर्ट ने जवाब दिया
Avanish Pathak
2 March 2023 3:37 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में विचार किया कि उन मामलों में, जहां जांच की वैधानिक समय सीमा के भीतर अंतिम रिपोर्ट दायर की गई हो, लेकिन आरोप-पत्र दोषपूर्ण पाया गया हो और वैधानिक समय सीमा समाप्त होने के बाद दोष को ठीक करने के लिए वापस भेजा गया हो, सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत जमानत के लिए आरोपी व्यक्ति की पात्रता बनी रहेगी?
जस्टिस वीजी अरुण ने कहा,
"जब लोक अभियोजक की ओर से विस्तार की मांग की गई हो, या आरोपी ने वैधानिक जमानत की मांग की हो, तब अदालत को विचार करना चाहिए कि क्या जांच पूरी करने के बाद अंतिम रिपोर्ट दायर की गई है।
यदि यह पाया जाता है कि अंतिम रिपोर्ट सभी मामलों में जांच पूरी करने के बाद दायर की गई है, तब रिपोर्ट में मामूली दोष पाए जाने पर भी अभियुक्त डिफ़ॉल्ट बेल का हकदार नहीं होगा।
दूसरी ओर, यदि अंतिम रिपोर्ट जांच पूरी किए बिना, धारा 167 (2) के तहत जनादेश की अवहेलना करने के लिए दायर की जाती है और बाद में जांच पूरी करने के लिए जांच अधिकारी को लौटा दिया गया हो, और अगर अंतिम रिपोर्ट, जांच पूरी करने और दोषों को ठीक करने के बाद 180वें दिन से पहले अदालत में फिर से पेश नहीं की गई हो तो यह निश्चित रूप से अभियुक्त को यह मांग करने का अधिकार देगा कि उसे डिफ़ॉल्ट बेल पर रिहा कर दिया जाए। "
मामले में याचिकाकर्ताओं पर एनडीपीएस एक्ट की धारा 20(बी)(ii)सी, 27ए और 29 के तहत दंडनीय अपराधों का आरोप लगाया गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने आंध्र प्रदेश से कूरियर के माध्यम से मादक पदार्थ भेजकर 30.200 किलोग्राम गांजा हासिल किया था।
पहले और दूसरे आरोपियों को कूरियर रिसीव करते समय पकड़ा गया था। उनके बयानों के आधार पर 6वें और 7वें आरोपियों को पकड़ा गया है। दोनों मौजूदा याचिकाकर्ता हैं। चूंकि जांच 180 दिनों की वैधानिक समय सीमा के भीतर पूरी नहीं हुई थी, इसलिए याचिकाकर्ताओं ने धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत जमानत के लिए आवेदन दिया था।
हालांकि, आवेदन के लंबित रहने के दरमियान ही जांच पूरी हो गई थी और अंतिम रिपोर्ट 179वें दिन दायर की गई। जिसके बाद याचिकाकर्ताओं की जमानत अर्जी खारिज कर दी गई। इसी के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
याचिकाकर्ता के वकीलों ने यह तर्क दिया गया था कि दायर की गई अंतिम रिपोर्ट दोषपूर्ण थी और 9 नवंबर, 2022 तक सत्यापन के लिए विशेष अदालत में लंबित रखी गई थी।
इससे पहले, याचिकाकर्ताओं ने चार नवंबर, 2022 को अंतिम रिपोर्ट की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने के लिए एक आवेदन दायर किया था, जिसे 15 नवंबर, 2022 को इस आधार पर वापस कर दिया गया था कि यह न्यायालय के पास उपलब्ध नहीं थी।
अधिवक्ताओं की ओर से यह कहा गया कि 180वें दिन केवल एक दोषपूर्ण अंतिम रिपोर्ट रिकॉर्ड में थी, जो 181वें दिन जमानत पर रिहा होने के याचिकाकर्ताओं के अधिकार को समाप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि जब तक जांच पूरी करने के बाद अदालत में एक उचित अंतिम रिपोर्ट दायर नहीं की जाती, तब तक धारा 167 (2) की आवश्यकता पूरी नहीं होगी।
अधिवक्ताओं ने राज्य पुलिस प्रमुख के अनुलग्नक III परिपत्र पर भी भरोसा किया, जिसमें अभियुक्तों को डिफ़ॉल्ट जमानत देने से रोकने के लिए समयबद्ध और दोष मुक्त अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने की प्रासंगिकता बताई गई थी।
दूसरी ओर, लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ताओं की हिरासत के 180 दिनों से पहले अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी, इसलिए उनका डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार समाप्त हो गया है।
यह तर्क दिया गया कि "वैधानिक समय सीमा के भीतर अंतिम रिपोर्ट के सत्यापन में देरी के परिणामस्वरूप आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत नहीं दी जा सकती है।"
अदालत ने धारा 167 सीआरपीसी का अवलोकन किया और कहाकि प्रावधान जल्द से जल्द जांच पूरी करने पर जोर देता है।
यह नोट किया गया कि धारा 167(2) स्पष्ट रूप से निर्धारित करती है कि हिरासत की अवधि, भले ही समय-समय पर बढ़ाई गई हो, 60 दिन या 90 दिनों से अधिक नहीं हो सकती है, जैसा भी मामला हो, और 60 दिनों/90 दिनों की उक्त अवधि की समाप्ति पर यदि जांच पूरी नहीं की गई और अंतिम रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई तो आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
"हालांकि, अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने से जांच पूरी होने का संकेत मिलता है, धारा 167 (2) का जोर जांच पूरी होने पर है। यह इस कारण से भी है कि संहिता की योजना के अनुसार, एक बार चार्जशीट दाखिल होने के बाद अदालत अगले चरण की ओर बढ़ती है।"
न्यायालय ने कहा कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 36ए(सी) के अनुसार, विशेष अदालत उसी शक्ति का प्रयोग कर सकती है, जिसका उपयोग किसी मामले की सुनवाई करने वाले मजिस्ट्रेट संहिता की धारा 167 के तहत कर सकते हैं।
न्यायालय ने आगे कहा कि अधिनियम की धारा 36ए (4) के आधार पर, धारा 19, 24, या 27ए के तहत दंडनीय अपराधों के आरोपी व्यक्तियों के संबंध में, या वाणिज्यिक मात्रा से जुड़े अपराधों के संबंध में, धारा 167(2) में संदर्भ 180 दिनों के रूप में माना जाएगा।
अदालत ने कहा, "इस प्रकार, अधिनियम की धारा 36ए(4) में उल्लिखित अपराधों के लिए एक अभियुक्त की डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार तभी पैदा होगा जब जांच पूरी नहीं होती है और 180 दिनों के भीतर अंतिम रिपोर्ट दायर की जाती है।"
यह देखा गया कि वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता की हिरासत के 180 दिन पूरे होने से पहले 12 सितंबर, 2020 को अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी।
"निर्विवाद रूप से, जांच पूरी करने के बाद अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी। सच है, दोषों को ठीक करने के लिए नौ नवंबर 2022 को अंतिम रिपोर्ट वापस कर दी गई थी और 18 नवंबर 2022 को फिर से प्रस्तुत की गई थी...."।
न्यायालय ने इस प्रकार इस तर्क को खारिज कर दिया कि 180वें दिन तक अदालत में एक उचित अंतिम रिपोर्ट उपलब्ध नहीं थी, और तदनुसार, याचिका को खारिज कर दिया।
केस टाइटल: विमल के मोहनन और अन्य वी केरल राज्य और अन्य।
साइटेशनः 2023 लाइवलॉ (केरल) 110