हाथरस केस : सामूहिक बलात्कार का कोई मेडिकल साक्ष्य नहीं, पीड़िता को संभवतः सिखाया गया था, यह नहीं कह सकते कि मुख्य आरोपी की मंशा उसे मारने की थी: यूपी कोर्ट

Sharafat

3 March 2023 1:18 PM GMT

  • हाथरस केस :  सामूहिक बलात्कार का कोई मेडिकल साक्ष्य नहीं, पीड़िता को संभवतः सिखाया गया था, यह नहीं कह सकते कि मुख्य आरोपी की मंशा उसे मारने की थी: यूपी कोर्ट

    हाथरस के कथित सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में एक व्यक्ति को दोषी ठहराते हुए उत्तर प्रदेश की अदालत ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि पूरे मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया, इसलिए संभव है कि पीड़िता ने चार आरोपियों के खिलाफ सामूहिक बलात्कार के आरोप लगाए हों। उसके परिवार के सदस्यों और उससे मिलने आने वाले अन्य लोगों ने उसे ये सिखाया हो।

    विशेष न्यायाधीश त्रिलोक पाल सिंह का भी विचार था कि यह नहीं कहा जा सकता कि मुख्य आरोपी संदीप का इरादा उसे मारने का था क्योंकि पीड़िता घटना के 8 दिन बाद भी बात करती रही और इसलिए, वह आईपीसी की धारा 304 के तहत दंडित किया जाएगा न कि धारा 302 (हत्या) के तहत।

    गौरतलब हो कि हाथरस कोर्ट ने सितंबर 2020 के कथित गैंगरेप और मर्डर केस (19 वर्षीय दलित लड़की से संबंधित) के एकमात्र दोषी (संदीप सिसोदिया) को 2 मार्च को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और साथ ही 50000 रुपए का जुर्माना भी लगाया (जिसमें से 40,000 रुपये पीड़िता की मां को दिए जाएंगे)।

    स्पेशल जज त्रिलोक पाल सिंह की अदालत, हाथरस (SC/ST, Pev. of Atroci Act) ने संदीप सिसोदिया को भारतीय दंड संहिता (धारा 304) के तहत गैर इरादतन हत्या के अपराधों और भारतीय दंड संहिता (धारा 304) के तहत अपराधों के लिए दोषी मानते हुए सज़ा सुनाई।

    अन्य तीन आरोपी - रवि (35), लव कुश (23), और रामू (26) -को आरोपों से बरी कर दिया गया है। हालांकि, चार आरोपियों में से किसी को भी विशेष अदालत ने गैंगरेप, या हत्या के अपराध का दोषी नहीं पाया है।

    उल्लेखनीय है कि मामले में पीड़िता को 14 सितंबर, 2020 को यूपी के हाथरस जिले में चार लोगों द्वारा कथित रूप से अगवा कर लिया गया था और उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी हड्डियों को तोड़कर और उसकी जीभ काटकर क्रूर यातना दी गई थी। 29 सितंबर 2020 को पीड़िता का निधन हो गया और उनके परिवार की सहमति के बिना आधी रात को पुलिस अधिकारियों (कथित तौर पर हाथरस डीएम के निर्देश पर) द्वारा उसका अंतिम संस्कार किया गया।

    हड़बड़ी में किए गए दाह संस्कार को "बेहद संवेदनशील" मामला बताते हुए नागरिकों के बुनियादी मानवीय/मौलिक अधिकारों को छूते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2020 में पूरे प्रकरण का स्वत: संज्ञान लिया था।

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