सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

23 Oct 2022 12:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (17 अक्टूबर, 2022 से 21 अक्टूबर, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    शिकायत की प्रतीक्षा किए बिना हेट स्पीच क्राइम्स के खिलाफ स्वत: संज्ञान लें: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हेट स्पीच (Hate Speech) पर नियंत्रण के लिए दायर याचिका पर कहा कि जब तक विभिन्न धार्मिक समुदाय सद्भावना के साथ नहीं रहेंगे तब तक बंधुत्व नहीं हो सकता। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने दिल्ली, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के एनसीटी की सरकारों को निर्देश दिया कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में हुए हेट स्पीच क्राइम्स पर की गई कार्रवाई के बारे में अदालत के समक्ष रिपोर्ट दाखिल करें।

    केस टाइटल: शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 940/2022

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    हेट स्पीच देने वाले व्यक्ति के धर्म, जाति को देखे बिना कार्रवाई करें: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हेट स्पीच (Hate Speech) पर नियंत्रण के लिए दायर याचिका पर कहा कि हेट स्पीच देने वाले व्यक्ति के धर्म, जाति को देखे बिना कार्रवाई करें। कोर्ट ने आगे कहा कि जब तक विभिन्न धार्मिक समुदाय सद्भावना के साथ नहीं रहेंगे तब तक बंधुत्व नहीं हो सकता।

    जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने दिल्ली, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के एनसीटी की सरकारों को निर्देश दिया कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में हुए हेट स्पीच क्राइम्स पर की गई कार्रवाई के बारे में अदालत के समक्ष रिपोर्ट दाखिल करें।

    केस टाइटल : शाहीन अब्दुल्ला बनाम भार संघ और अन्य। डब्ल्यूपी (सी) नंबर 940/2022

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    भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, अगर विभिन्न समुदाय सद्भाव में नहीं रह सकते तो कोई भाईचारा नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट

    भारत के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को याद दिलाया कि जब तक विभिन्न धर्मों / जातियों के सदस्य सौहार्दपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में नहीं आते, तब तक बंधुत्व नहीं हो सकता। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की डिवीजन बेंच ने इस पर प्रकाश डालते हुए कहा, "भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में भारत की परिकल्पना करता है और व्यक्ति की गरिमा और देश की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाली बिरादरी प्रस्तावना में निहित मार्गदर्शक सिद्धांतों में से एक है। बंधुत्व तब तक नहीं हो सकता जब तक कि विभिन्न धर्मों के समुदाय के सदस्य या जातियां सद्भाव में रहने में सक्षम हैं।"

    केस टाइटल : शाहीन अब्दुल्ला बनाम भार संघ और अन्य। डब्ल्यूपी (सी) नंबर 940/2022

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    सभी मुस्लिम सार्वजनिक ट्रस्टों को एक ही ब्रश से रंग नहीं सकते और उन्हें वक्फ नहीं मान सकते: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि चूंकि वह 'वक्फ' की 2 श्रेणियों और एक मुस्लिम द्वारा बनाए गए सार्वजनिक ट्रस्ट के बीच विभाजन पर विचार करता है, इसलिए वह "सभी मुस्लिम सार्वजनिक ट्रस्टों को एक ही ब्रश से पेंट करते हुए उन्हें वक्फ के रूप में नहीं मान सकते।

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस मुद्दे पर अपना आदेश तय करना शुरू कर दिया था कि क्या इस्लाम को मानने वाले किसी व्यक्ति द्वारा स्थापित हर चेरिटेबल ट्रस्ट बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1950 और वक्फ एक्ट, 1995 के संदर्भ में अनिवार्य रूप से वक्फ है।

    केस टाइटल : महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड बनाम शेख यूसुफ भाई चावला और अन्य

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    एनडीपीएस धारा 15 : किसी दूसरे टेस्ट की जरूरत नहीं अगर साबित हुआ हो कि जब्त 'पोस्त का चूरा' में 'मॉर्फिन' और 'मेकोनिक एसिड' है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने आज दिए एक फैसले में कहा, एक बार जब एक रासायनिक परीक्षक यह स्थापित कर लेता है कि जब्त 'पोस्त का चूरा' 'मॉर्फिन' और 'मेकोनिक एसिड' की सामग्री के लिए एक पॉजिटिव टेस्टिंग का संकेत देता है, तो यह स्थापित करने के लिए पर्याप्त है कि यह नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस ( एनडीपीएस) एक्ट, 1985 की धारा 2 (xvii) (ए) द्वारा कवर किया गया है।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि जब्त सामग्री 'पैपावर सोम्निफरम एल' का हिस्सा है, यह स्थापित करने के लिए किसी और परीक्षण की आवश्यकता नहीं होगी।

    हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम निर्मल कौर @ निम्मो | 2022 लाइव लॉ (SC) 866 | सीआरए 956/ 2012 | 20 अक्टूबर 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार

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    मोटर दुर्घटना मुआवजे के दावों में मृतक की अनुमानित आय निर्धारित करने के लिए न्यूनतम मजदूरी अधिसूचना पर विचार किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मोटर दुर्घटना दावा मामलों में मृतक की अनुमानित आय निर्धारित करने के लिए 'न्यूनतम मजदूरी अधिसूचना' पर विचार किया जा सकता है। दावेदारों के अनुसार, मृतक एक मछली विक्रेता के साथ ही एक ड्राइवर था और कम से कम 25,000 प्रति माह रुपये कमा रहा था।

    मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने पाया कि मृतक एक ड्राइवर था और उसकी मासिक आय 14,000/- रुपये निर्धारित की। इसके अलावा, यह मानते हुए कि मृतक को किराए के रूप में कम से कम 3,500/- रुपये मिलते थे, ट्रिब्यूनल ने उसकी अंतिम अनुमानित आय 17,500/- रुपये मानी थी। अपील में हाईकोर्ट ने पाया कि अधिकतम मासिक आय 10,000 रुपये मानी जा सकती है, इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए मुआवजे 32,39,000 रुपये काफी हद तक कम करके 19,70,000 रुपये कर दिया।

    केस डिटेलः मानुषा श्रीकुमार बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड | 2022 लाइव लॉ (SC) 858 | CA 7593 Of 2022| 17 अक्टूबर 2022 | जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस

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    संबंधित/इच्छुक गवाहों की गवाही की अधिक सावधानी के साथ जांच की जानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक हत्या के मामले में आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि जब गवाह संबंधित/इच्छुक हों तो उनकी गवाही की अधिक सावधानी के साथ जांच की जानी चाहिए। जब्बार अली और अन्य को निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया था और गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी थी।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, अपीलकर्ताओं ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष वर्तमान मामले में किसी भी स्वतंत्र गवाह की जांच करने में विफल रहा और गवाह एक-दूसरे से संबंधित थे और सभी गवाहों ने विरोधाभासी बयान दिए हैं कि मृतक पर घातक हमला किसने किया।

    केस डिटेलः मोहम्मद जब्बार अली बनाम असम राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 856 | CrA 1105 OF 2010 | जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्न

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    केवल इसलिए कि सीपीसी की धारा 115 के तहत उपचार उपलब्ध है, संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत याचिका को खारिज न करें : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत किसी याचिका को खारिज कर दिया गया था, केवल इस आधार पर कि धारा 115 सीपीसी के तहत पुनरीक्षण के माध्यम से उपचार उपलब्ध है,इसलिए ये सुनवाई योग्य नहीं है।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने कहा कि सुनवाई करने और सुनवाई योग्य होने के बीच अंतर और भेद है। इस मामले में, वादी ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत एक 'रिट याचिका' दायर की, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा आदेश 6 नियम 17 सीपीसी के तहत आवेदन को खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने रिट याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि वादी के लिए धारा 115 सीपीसी के तहत पुनरीक्षण के माध्यम से उपचार उपलब्ध है।

    राज श्री अग्रवाल @ राम श्री अग्रवाल बनाम सुधीर मोहन | 2022 लाइव लॉ (SC) 864 | सीए 7266/ 2022 | 13 अक्टूबर 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्णा मुरारी

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    जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी धारक भी वादी की ओर से प्रतिनिधित्व कर सकता है भले ही वो वकील के तौर पर नामांकित हुआ हो, एडवोकेट्स एक्ट धारा 32 के तहत रोक नही : सुप्रीम कोर्ट

    जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 32 एक वादी की ओर से जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी धारक के लिए पेश होने के लिए सिर्फ इसलिए एक रोक नहीं लगाती है कि जीपीए को एक वकील के रूप में नामांकित किया गया था।

    विभाजन वाद में एक मुद्दा उस क्षमता से संबंधित था जिसमें वादी की पत्नी, जो जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी धारक है और एक नामांकित वकील भी है, उक्त दीवानी कार्यवाही में उसकी ओर से पेश हो सकती है और कार्य कर सकती है। प्रारंभ में, ट्रायल कोर्ट और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि केवल वादी की पत्नी के वकील होने के कारण, उसके लिए अपने पति की ओर से जीपीए धारक के रूप में कार्य करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

    एस रामचंद्र राव बनाम एस नागभूषण राव | 2022 लाइव लॉ (SC) 861 | सीए 7691 - 7694/ 2022 | 19 अक्टूबर 2022 | जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस

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    रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत न केवल बाद की अलग-अलग कार्यवाही में बल्कि उसी कार्यवाही के बाद के चरण में भी आकर्षित होता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत न केवल बाद की अलग-अलग कार्यवाही में बल्कि उसी कार्यवाही के बाद के चरण में भी आकर्षित होता है।

    जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि एक बाध्यकारी निर्णय को पर इनक्यूरियम के सिद्धांत पर भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह सिद्धांत मिसाल पर लागू होता है न कि रेस ज्यूडिकाटा पर।

    एस रामचंद्र राव बनाम एस नागभूषण राव | 2022 लाइव लॉ (SC) 861 | सीए 7691 - 7694/ 2022 | 19 अक्टूबर 2022 | जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस

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    हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी द्वारा भरोसा किए गए दस्तावेजों की अस्पष्ट या धुंधली प्रतियों की आपूर्ति हिरासती के संविधान के अनुच्छेद 22(5) के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी द्वारा भरोसा किए गए दस्तावेजों की अस्पष्ट या धुंधली प्रतियों की आपूर्ति संविधान के अनुच्छेद 22(5) का उल्लंघन है।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि हिरासत में रखने वाले प्राधिकारी द्वारा भरोसा किए गए दस्तावेजों की सुपाठ्य प्रतियों की आपूर्ति करने के लिए हिरासती हमेशा हकदार होता है और नज़रबंदी के आधार पर दी गई ऐसी जानकारी उसे प्रभावी प्रतिनिधित्व करने में सक्षम बनाती है।

    मणिपुर राज्य बनाम बुयामायुम अब्दुल हनान @ आनंद | 2022 लाइव लॉ (SC) 862 | एसएलपी (सीआरएल) 2420 / 2022| 19 अक्टूबर 2022 | जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार

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    वकील को बहस के दौरान न रोकें, प्रवाह बाधित नहीं होना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

    भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वकीलों को आगाह किया कि दूसरे पक्ष के वकीलों के तर्क देने के दौरान वे उन्हें बीच न रोकें। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने सेंट स्टीफन के मामले की सुनवाई पर विचार करते हुए कहा कि वकील अपने समकक्षों को सिर्फ इसलिए नहीं रोक सकते क्योंकि वे दी गई दलीलों से सहमत नहीं हैं।

    जस्टिस रस्तोगी ने कहा, "सिर्फ इसलिए कि आप तर्क से सहमत नहीं हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि आप बीच में उन्हें रोक सकते हैं। उन्हें (वकीलों को) दलीलें देने दें।"

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    मृतक कार्यभारित कर्मचारी का परिवार पारिवारिक पेंशन पाने का हकदार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    क्या अपीलकर्ता अभी भी पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने का हकदार है यदि मृतक हाउसिंग बोर्ड की स्थापना में उसके निधन की तारीख तक एक कार्यभारित कर्मचारी रहा है? सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फैसला सुनाया है।

    जस्टिस डॉ धनंजय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने कहा, "अगर मृतक हाउसिंग बोर्ड की स्थापना में उसके निधन की तारीख तक एक कार्यभारित कर्मचारी रहा है तो भी अपीलकर्ता (कर्मचारी का परिवार) पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने का हकदार नहीं है।"

    केस टाइटल: सुनीता बर्मन बनाम आयुक्त, एमपी हाउसिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड और अन्य)

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    बिजली अधिनियम| 'ट्रूइंग अप' एक्सरसाइज के दरमियान टैरिफ आदेश में संशोधन की अनुमति नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बिजली अधिनियम, 2003 की धारा 64 के तहत 'Truing Up' एक्सरसाइज के दरमियान किए गए टैरिफ ऑर्डर में संशोधन की अनुमति नहीं है।

    जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने बिजली के लिए अपीलीय न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड और बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड द्वारा दायर अपीलों का निस्तारण करते हुए यह फैसला सुनाया।

    केस डिटेलः बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड बनाम दिल्ली विद्युत नियामक आयोग | 2022 लाइव लॉ (SC) 857 | Ca 4324 Of 2015| 18 अक्टूबर 2022 | जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी

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    97वां संशोधन अधिनियम, भाग IX बी स्थानीय सहकारी समितियों पर लागू नहीं होगा, यह बहु-राज्य सहकारी समितियों और केंद्र शासित प्रदेशों के भीतर समितियों पर लागू होगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 द्वारा डाला गया भाग IX बी स्थानीय सहकारी समितियों पर लागू नहीं होगा और यह बहु-राज्य सहकारी समितियों और केंद्र शासित प्रदेशों के भीतर समितियों पर लागू होगा। 97वें संशोधन ने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया और संविधान में भाग IX बी सम्मिलित किया जिसमें सहकारी समितियों से संबंधित राज्य कानूनों के लिए कई शर्तें निर्दिष्ट की गईं।

    2021 में, सुप्रीम कोर्ट (भारत संघ बनाम राजेंद्र शाह और अन्य के मामले में) ने गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखा था, जिसने भाग IX बी को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि संशोधन राज्यों द्वारा अपेक्षित अनुसमर्थन के बिना पारित किया गया था। हालांकि, बेंच के बहुमत ने भाग IX बी को उस हद तक बचा लिया, जिस हद तक यह बहु-राज्य सहकारी समितियों पर लागू होता है।

    बंगाल सचिवालय कॉ- ऑपरेटिव लैंड मार्गेज बैंक और हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड बनाम आलोक कुमार | 2022 लाइव लॉ (SC) 849 | एसएलपी (सिविल) संख्या 506 2020 | 13 अक्टूबर 2022 | सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस जेबी पारदीवाला

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    उठाया गया कानून सवाल का पर्याप्त है, इसका उपयुक्त परीक्षण होगा कि ये देखा जाए कि क्या यह सीधे और पक्षकारों के अधिकारों को प्रभावित करता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने अपीलेट ट्रिब्यूनल फॉर इलेक्ट्रिसिटी के खिलाफ अपील में दिए गए एक फैसले में, यह निर्धारित करने के लिए परीक्षण की व्याख्या की कि क्या किसी मामले में कानून का पर्याप्त प्रश्न शामिल है।

    जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि यह निर्धारित करने के लिए कि क्या मामले में उठाया गया कानून का सवाल पर्याप्त है, उपयुक्त परीक्षण होगा कि ये देखा जाए कि क्या यह सीधे और पक्षकारों के अधिकारों को प्रभावित करता है।

    बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड बनाम दिल्ली विद्युत नियामक आयोग | 2022 लाइव लॉ (SC) 857 | सीए 4324 2015 | 18 अक्टूबर 2022 | जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी

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    पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेज में एडमिशन के कार्यक्रम का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दोहराया कि पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेज में एडमिशन के लिए कार्यक्रम का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज करते हुए कहा जिसमें पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय को कट-ऑफ तिथि के बाद कुछ उम्मीदवारों को एडमिशन देने का निर्देश दिया गया था।

    मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम डॉ प्रियंबदा शर्मा के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स | 2022 लाइव लॉ (एससी) 855 | एसएलपी (सी) 3507-3508 ऑफ 2020 | 17 अक्टूबर 2022 | जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार

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    राज्य की विधायी शक्तियों के प्रयोग के खिलाफ प्रॉमिसरी एस्टॉपेल का सिद्धांत लागू नहीं होगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य की विधायी शक्तियों के प्रयोग के खिलाफ प्रॉमिसरी एस्टॉपेल यानी वचन-बंधन का सिद्धांत लागू नहीं होगा। इस मामले में, दिल्ली हाईकोर्ट ने हीरो मोटोकॉर्प और सन फार्मा लेबोरेटरीज लिमिटेड द्वारा दायर रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिन्होंने पहले से मौजूद 100% एकमुश्त उत्पाद शुल्क छूट के बदले में वाणिज्यिक उत्पादन की शुरुआत से दस साल के लिए 100% बजटीय समर्थन का दावा किया था, जैसा कि उक्त कार्यालय ज्ञापन द्वारा प्रदान किया गया है जो 2003 के भारत सरकार द्वारा जारी किया गया।

    हीरो मोटोकॉर्प लिमिटेड बनाम भारत संघ | 2022 लाइव लॉ (SC) 852 | सीए 7405 2022 | 17 अक्टूबर 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना

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    न्यायालयों को एक अपीलीय प्राधिकारी के रूप में सहकारी समिति की जनरल बॉडी के व्यावसायिक विवेक पर नहीं बैठना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालयों को एक अपीलीय प्राधिकारी के रूप में सहकारी समिति की जनरल बॉडी के व्यावसायिक विवेक पर नहीं बैठना चाहिए। सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि सहकारी समिति को लोकतांत्रिक तरीके से और समाज के आंतरिक लोकतंत्र से कार्य करना है, जिसमें अधिनियम, नियमों और उप-नियमों के अनुसार पारित प्रस्ताव, कानूनों का सम्मान किया जाना चाहिए और उन्हें लागू किया जाना चाहिए।

    बंगाल सचिवालय कॉ- ऑपरेटिव लैंड मार्गेज बैंक और हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड बनाम आलोक कुमार | 2022 लाइव लॉ (SC) 849 | एसएलपी (सिविल) संख्या 506 2020 | 13 अक्टूबर 2022 | सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस जेबी पारदीवाला

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    जमानत आदेश संक्षिप्त और स्पष्ट होना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि जमानत के आदेश छोटे और स्पष्ट होने चाहिए और इसमें केवल दो से चार पृष्ठ होने चाहिए। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका की खंडपीठ ने आगे कहा कि जमानत के मामले में अन्य पहलुओं पर कष्टदायी विस्तार से जाने की जरूरत नहीं है।

    अदालत जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट द्वारा पीडीपी नेता वहीद उर रहमान पारा को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पारा पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया था।

    केस टाइटल : एसएलपी (सीआरएल) नंबर 9572/2022 II-सी केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर बनाम वहीद उर रहमान पारा

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