मृतक कार्यभारित कर्मचारी का परिवार पारिवारिक पेंशन पाने का हकदार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Brij Nandan

19 Oct 2022 11:55 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    क्या अपीलकर्ता अभी भी पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने का हकदार है यदि मृतक हाउसिंग बोर्ड की स्थापना में उसके निधन की तारीख तक एक कार्यभारित कर्मचारी रहा है? सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फैसला सुनाया है।

    जस्टिस डॉ धनंजय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने कहा,

    "अगर मृतक हाउसिंग बोर्ड की स्थापना में उसके निधन की तारीख तक एक कार्यभारित कर्मचारी रहा है तो भी अपीलकर्ता (कर्मचारी का परिवार) पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने का हकदार नहीं है।"

    क्या है पूरा मामला

    28 अप्रैल, 1977 को, अपीलकर्ता के पति मुन्ना लाल बर्मन को प्रतिवादी क्रमांक 1 हाउसिंग बोर्ड द्वारा दैनिक मजदूरी पर मस्टर रोल कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया था।

    प्रतिष्ठान में काम करते हुए मुन्ना लाल बर्मन की मृत्यु 26 अप्रैल, 2016 को हो गई। 01 अगस्त, 2016 और 09 सितंबर, 2016 को अपीलकर्ता ने प्रतिवादी क्रमांक 1 को पारिवारिक पेंशन प्रदान करने के लिए आवेदन किया, जिसे खारिज कर दिया गया।

    हाउसिंग बोर्ड ने तर्क दिया कि कार्य प्रभारित प्रतिष्ठान में कार्यरत कर्मचारियों को पेंशन/पारिवारिक पेंशन प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है।

    उक्त निर्णय से व्यथित होकर अपीलार्थी ने दिनांक 2017 की रिट याचिका संख्या 95 के रूप में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर की प्रधान सीट के समक्ष अन्य बातों के साथ-साथ पारिवारिक पेंशन, सेवानिवृत देय, उपदान आदि प्रदान करने की प्रार्थना करते हुए एक रिट याचिका दायर की।

    याचिका को एकल न्यायाधीश द्वारा दिनांक 06 सितंबर, 2018 के निर्णय द्वारा स्वीकार किया गया और प्रतिवादी क्रमांक 1 को सेवानिवृत्ति देय राशि निर्धारित करने और ब्याज सहित पारिवारिक पेंशन का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।

    एकल न्यायाधीश के फैसले से व्यथित होकर प्रतिवादी संख्या 1 ने अपील दायर की जिसे डिवीजन बेंच द्वारा 23 जनवरी, 2020 के फैसले के तहत अनुमति दी गई थी और यह माना गया था कि अपीलकर्ता का मृत पति कार्य आरोपित प्रतिष्ठान का सदस्य नहीं था और वह पेंशन का हकदार नहीं है क्योंकि उसे प्रतिवादी संख्या 1 के नियमित कर्मचारियों के समान नहीं माना जा सकता है।

    अपीलकर्ता की दलीलें

    अपीलकर्ता की ओर से पेश वकील एस.के.गंगेले ने प्रतिवादी संख्या 1 हाउसिंग बोर्ड द्वारा जारी कार्यालय आदेश दिनांक 29 अक्टूबर, 1997 पर भरोसा करते हुए प्रस्तुत किया, जो मस्टर रोल कर्मचारियों को उनकी वरिष्ठता के अनुसार नियमित करने के लिए लिए गए निर्णय को संदर्भित करता है कि अपीलकर्ता का नाम उस कार्यालय आदेश के एक भाग के रूप में सारणीबद्ध विवरण के क्रमांक 5 में पति को चित्रित किया गया, जिससे पता चलता है कि वह हाउसिंग बोर्ड का नियमित कर्मचारी बन गया था। एमपी कार्य प्रभारित एवं आकस्मिक भुगतान कर्मचारी भर्ती एवं सेवा नियम, 1977 के प्रावधानों के तहत कवर किया गया था। ऐसे कर्मचारी/उसके परिवार को म.प्र. गृह निर्माण मंडल विनियम, 1998। के विनियम 5(डी) के तहत पारिवारिक पेंशन देय है।

    अंत में, यह तर्क दिया गया कि आक्षेपित निर्णय प्रेम सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य में निर्धारित कानून के सिद्धांतों के विपरीत है।

    प्रतिवादियों की दलीलें

    प्रतिवादी की ओर से पेश वकील आर.सी मिश्रा ने प्रस्तुत किया कि अपीलकर्ता के पति को उसकी मृत्यु की तारीख तक नियमित नहीं किया गया था और वह एक कार्यभारित कर्मचारी था।

    वह 02 जुलाई, 2015 के आदेश के अनुसार राष्ट्रीय पेंशन योजना 3 का विकल्प चुन सकता था, जो उसने नहीं किया था।

    आगे कहा गया था कि अपीलकर्ता पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने का हकदार नहीं है और प्रेम सिंह (सुप्रा) के मामले में निर्णय तत्काल मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होता है।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि एक वैधानिक और एक स्वायत्त निकाय होने के नाते, हाउसिंग बोर्ड अपने स्वयं के नियम और नीतियां बनाता है जो अपने कर्मचारियों की सेवा शर्तों को नियंत्रित करते हैं। राज्य सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों के लिए निर्धारित नियम आवास बोर्ड के कर्मचारियों पर स्वतः लागू नहीं होते जब तक कि विशेष रूप से बोर्ड द्वारा अपनाए नहीं जाते।

    कोर्ट ने आगे देखा कि मध्य प्रदेश (कार्य प्रभारित एवं आकस्मिक भुगतान वाले कर्मचारी) पेंशन नियम, 1979 को प्रतिवादी क्रमांक 1 और म.प्र. सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1976 द्वारा नहीं अपनाया गया था। हाउसिंग बोर्ड के कार्य प्रभारित प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमिकों को शामिल नहीं किया गया।

    बेंच ने देखा कि एम.पी. हाउसिंग बोर्ड के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के लिए दैनिक वेतन कर्मचारी (नियम की शर्त), नियम 2013 को अपनाया गया था, जिससे उन्हें एनपीएस के दायरे में लाया गया था, उसी योजना को कार्यभारित कर्मचारियों के लिए भी विस्तारित करने का निर्णय लिया गया था। अपीलकर्ता का मृत पति प्रतिवादी क्रमांक 1 का नियमित कर्मचारी नहीं था। वह अपने निधन की तारीख तक हाउसिंग बोर्ड की स्थापना में कार्यभारित कर्मचारी था। उक्त क्षमता में सेवा करते हुए भी, अपीलकर्ता का मृत पति एनपीएस के तहत पेंशन का विकल्प चुन सकता था जो कि प्रतिवादी संख्या 1 के कार्यभारित कर्मचारियों को दिनांक 02 जुलाई, 2015 के आदेश के अनुसार उपलब्ध कराया गया था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इसलिए अपीलकर्ता पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने का हकदार नहीं है।

    कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।

    मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड की ओर से सीनियर एडवोकेट आर सी मिश्रा पेश हुए थे और उनको एडवोकेट ईलिन सारस्वत ने असिस्ट किया था। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट एस.के.गंगेले पेश हुए थे।

    केस टाइटल: सुनीता बर्मन बनाम आयुक्त, एमपी हाउसिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड और अन्य)

    केस साइटेशन: सिविल अपील नंबर. 7068 ऑफ 2022

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