सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

21 Aug 2022 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (16 अगस्त, 2022 से 19 अगस्त, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    अनुसूचित अपराध से बरी किए गए व्यक्ति के खिलाफ पीएमएलए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अनुसूचित अपराध से बरी किए गए व्यक्ति पर धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। इस मामले में लोकायुक्त पुलिस ने उप राजस्व अधिकारी रहे आरोपी के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(ई) के साथ पठित धारा 13(2) के तहत मामला दर्ज किया है।

    ट्रायल के लंबित रहने के दौरान, प्रवर्तन निदेशालय ने आरोपी, उसकी पत्नी और बेटे के खिलाफ मामला दर्ज किया और विशेष अदालत के समक्ष पीएमएलए अधिनियम की धारा 3 के तहत शिकायत दर्ज की। बाद में, विशेष न्यायाधीश (लोकायुक्त) ने उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत यह कहते हुए पूर्वोक्त अपराधों से बरी कर दिया कि अभियोजन द्वारा पेश किए गए सबूत उन्हें दोषी ठहराने के लिए अपर्याप्त थे।

    प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पार्वती कोल्लूर बनाम राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 688 | सीआरए 1254/ 2022 | 16 अगस्त 2022 | जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस कृष्ण मुरारी

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    रिकॉर्ड के चेहरे पर स्पष्ट त्रुटि पर पुनर्विचार क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया जा सकता है, उन गलतियों के लिए नहीं जिनका कारणों की प्रक्रिया द्वारा पता लगाया जाना है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी अदालत के गलत फैसले को पुनर्विचार क्षेत्राधिकार का प्रयोग करके ठीक नहीं किया जा सकता है, बल्कि केवल उच्च कोर्ट द्वारा ही इसे ठीक किया जा सकता है।

    सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस कृष्णा मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि एक त्रुटि जिसे कारणों की प्रक्रिया द्वारा पता लगाया जाना है, को न्यायालय द्वारा पुनर्विचार की अपनी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए रिकॉर्ड के चेहरे पर स्पष्ट त्रुटि के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है।

    एस मधुसूदन रेड्डी बनाम वी नारायण रेड्डी | 2022 लाइव लॉ (SC) 685 | सीए 5503-5505/ 2022 | 18 अगस्त 2022 | सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस कृष्णा मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली

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    अनुकंपा नियुक्ति योजना में वित्तीय मानदंडों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति योजना में दिए गए अनुकंपा नियुक्ति के वित्तीय मानदंडों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा, "अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए वित्तीय मानदंड प्रदान करने वाले नियम वैध और कानूनसम्‍मत नियम हैं, जिन्हें सख्ती से समझा जाना चाहिए, अन्यथा अनुकंपा नियुक्ति के लिए आरक्षित कोटा उन लोगों को छोड़कर भरा जाएगा, जो अधिक तीव्र वित्तीय संकट में हो सकते हैं।"

    केस ड‌िटेल: सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया बनाम नितिन | 2022 लाइव लॉ (एससी) 690 | CA 5111 Of 2022| 3 अगस्त 2022 | जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम

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    हाईकोर्ट आरोपी को नोटिस दिए बिना सजा नहीं बढ़ा सकते: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि हाईकोर्ट को सजा बढ़ाने से पहले आरोपी को नोटिस देना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट एक सजा बढ़ाने के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें राजस्थान हाईकोर्ट ने आरोपी को पूर्व सूचना दिए बिना आजीवन कारावास की सजा को मृत्यु तक आजीवन कारावास में बदल दिया और अपना बचाव करने के अवसर से वंचित कर दिया।

    कोर्ट ने कहा, "हाईकोर्ट के फैसले और आदेश के परिणामस्वरूप, अपीलकर्ताओं को दी गई सजा को अपीलकर्ताओं को अपने मामले का बचाव करने का अवसर दिए बिना बढ़ाया गया है कि सजा क्यों नहीं बढ़ाई जानी चाहिए।"

    [केस टाइटल: राधेश्याम एंड अन्य बनाम राजस्थान राज्य [ Crl. Appeal No. 1248 Of 2022]

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    304 बी आईपीसी को शामिल करने का विधायी इरादा दहेज हत्या के खतरे को दृढ़ता से रोकना था : सुप्रीम कोर्ट

    यह कहते हुए कि "आईपीसी की धारा 304 बी को शामिल करने का विधायी इरादा दहेज हत्या के खतरे को दृढ़ता से रोकना था" और "धारा 304 बी के तहत मामलों से निपटने में, इस तरह के विधायी इरादे को ध्यान में रखा जाना चाहिए", सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा है कि दहेज हत्या के अपराध के लिए सजा देने में, "समाज में एक मजबूत संदेश जाना चाहिए कि एक व्यक्ति जो दहेज हत्या और / या दहेज निषेध अधिनियम के तहत अपराध करता है, उसके खिलाफ लोहे के हाथों से कार्रवाई की जाएगी।"

    केस : अजोला देवी और अन्य बनाम झारखंड राज्य

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    दिव्यांग कर्मचारियों को लाभकारी सर्कुलर के तहत नियुक्ति स्थान चुनने के लिए वरिष्ठता छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शारीरिक रूप से दिव्यांग कर्मचारी की दुर्दशा पर ध्यान देते हुए कहा कि दिव्यांग कर्मचारियों को लाभकारी सर्कुलर के अनुसार नियुक्ति स्थान चुनने के लिए वरिष्ठता को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। विचाराधीन सर्कुलर राजस्थान सरकार के वित्त विभाग द्वारा जारी किया गया था। इसने नियुक्ति अधिकारियों को दिव्यांग व्यक्तियों की उस स्थान पर या उसके निकट नियुक्ति पर विचार करने का निर्देश दिया, जिसे वो नियुक्ति के समय चुनते हैं।

    केस : नेत राम यादव बनाम राजस्थान राज्य और अन्य

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    चेक अहार्ता द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 15 दिनों की समाप्ति से पहले दर्ज की गई चेक बाउंस शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चेक अहार्ता द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 15 दिनों की समाप्ति से पहले दर्ज की गई चेक बाउंस शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है। इस मामले में आरोपी को 8 नवंबर 2005 को नोटिस मिला था और 22 नवंबर 2005 को पंद्रह दिन की अवधि पूरी होने से पहले शिकायत दर्ज की गई थी। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया लेकिन हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता की अपील को मंजूर करते हुए आरोपी को दोषी करार दिया।

    गजानंद बुरांगे बनाम लक्ष्मी चंद गोयल | 2022 लाइव लॉ (SC) 682 |सीआरए 1229/ 2022 | 12 अगस्त 2022 | जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना

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    पीएचडी धारकों को एनईटी से छूट का यूजीसी नियम 2016 पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जाएगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि यूजीसी (इससे संबद्ध विश्वविद्यालयों और संस्थानों में शिक्षकों की नियुक्ति और करियर में उन्नति के लिए न्यूनतम योग्यता) विनियम, 2016 को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जाएगा।

    निर्णयों की एक श्रृंखला पर भरोसा करते हुए, जस्टिस यू यू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने दोहराया कि जब कोई संशोधन प्रकृति में केवल स्पष्टीकरण देने वाला होता है तो उसे पूर्वव्यापी आवेदन (केरल विश्वविद्यालय और अन्य बनाम मर्लिन जेएन और अन्य ) होना चाहिए।

    केस : केरल विश्वविद्यालय और अन्य आदि बनाम मर्लिन जे एन और आदि आदि।

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    अदालत स्वत: संज्ञान लेकर आदेश VII नियम 11 सीपीसी के तहत किसी वादपत्र को खारिज कर सकती है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक अदालत के पास सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश VII नियम 11 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए एक वादपत्र को खारिज करने की शक्ति है।

    जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की बेंच ने कहा कि कोर्ट को इस शक्ति को लागू करने से पहले वादी को सुनना होगा। पीठ ने पाया कि आदेश VII नियम 11 यह प्रदान नहीं करता है कि अदालत को केवल आवेदन पर वाद को खारिज करने के अपने कर्तव्य का निर्वहन करना है।

    पाटिल ऑटोमेशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम राखेजा इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड | 2022 लाइव लॉ ( SC) 678 | 17 अगस्त 2022 | एसएलपी (सी) 14697/ 2021 | जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय

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    वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम की धारा 12 ए के तहत ' पूर्व-संस्थागत मध्यस्थता 'अनिवार्य है, उल्लंघन कर दाखिल वाद खारिज किए जाने के उत्तरदायी : सुप्रीम कोर्ट

    वाणिज्यिक मुकदमेबाजी में दूरगामी प्रभाव वाले एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को घोषित किया कि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम की धारा 12 ए, जो पूर्व-संस्थागत मध्यस्थता को अनिवार्य करती है, अनिवार्य है और इस जनादेश का उल्लंघन करने वाले वाद सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VII नियम 11 के तहत खारिज किए जाने के लिए उत्तरदायी हैं। कोर्ट ने हालांकि इस घोषणा को 22 अगस्त, 2022 से प्रभावी कर दिया है।

    केस: मेसर्स पाटिल ऑटोमेशन प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम राखेजा इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड

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    सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ शेल कंपनियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग, खनन लाइसेंस प्राप्त करने के खिलाफ हाईकोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगा दी, जिसमें शेल कंपनियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग और सत्ता में रहते हुए खनन पट्टा प्राप्त करने का आरोप लगाया गया था।

    जस्टिस यूयू ललित, रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच झारखंड राज्य सरकार और सीएम सोरेन द्वारा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रही थी, जिसमें उनके खिलाफ जांच की मांग वाली जनहित याचिका को सुनवाई योग्य माना गया था। हाईकोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए पीठ ने मामले में अपना फैसला भी सुरक्षित रख लिया।

    केस टाइटल : झारखंड राज्य बनाम शिव शंकर शर्मा| एसएलपी (सी) 10622/2022 हेमंत सोरेन बनाम शिव शंकर शर्मा एसएलपी (सी) नंबर 11364-11365/2022

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    'मुफ्त में चीजें बांटने' का मुद्दा जटिल होते जा रहा है, क्या मुफ्त शिक्षा, मुफ्त पेयजल को 'फ्रीबी' माना जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भारत के चुनाव आयोग को चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों को मुफ्त की चीजें बांटने (Freebies) की अनुमति नहीं देने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर विचार करते हुए कहा कि इस मामले में उठाए गए मुद्दे तेजी से जटिल होते जा रहे हैं। यह मामला भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली के समक्ष लिस्ट किया गया है।

    केस: अश्विनी उपाध्याय बनाम भारत संघ| रिट याचिका (सिविल) 43/ 2022

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    महिला के पति के अपनी पहली शादी से दो बच्चे हैं, इस आधार पर सीसीएस नियमों के तहत मातृत्व अवकाश से इनकार नहीं किया जा सकताः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि एक महिला को उसके जैविक बच्चे के संबंध में केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश नियमों) 1972 के तहत मातृत्व अवकाश से इस आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता है कि उसके जीवनसाथी के पहले के विवाह से दो बच्चे हैं। नियम 43 के अनुसार, केवल दो से कम जीवित बच्चों वाली महिला कर्मचारी ही मातृत्व अवकाश ले सकती है।

    इस मामले में, महिला के पति के उसकी पहली शादी से दो बच्चे हैं और उसने पहले अपने अजैविक बच्चे के लिए चाइल्ड केयर लीव का लाभ उठाया था। जब इस शादी से उसका अपना एक बच्चा हुआ तो अधिकारियों ने नियम 43 के तहत बार का हवाला देते हुए उसको मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया।

    केस टाइटल-दीपिका सिंह बनाम सीएटी, एसएलपी (सी) संख्या 7772/2021

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    क्या मानवाधिकार पर चर्चाएं संगोष्ठियों, वेबिनार तक सीमित होनी चाहिए? जमीनी स्तर पर काम की आवश्यकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि मानवाधिकार (Human Rights) पर चर्चाएं वेबिनार और संगोष्ठियों में होती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उचित कार्यान्वयन नहीं दिखता है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने मौखिक रूप से सवाल किया, "मानवाधिकार और ये सभी बातें चर्चाओं और संगोष्ठियों में कही जाती हैं। क्या हमें इसे जमीनी स्तर पर करने की आवश्यकता नहीं है?"

    केस टाइटल: शिंदे मोहन कालू बनाम नागालैंड राज्य

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    जब मृत्यु से पहले दिए बयान एक से अधिक हों तो किसे माना जाए ? सुप्रीम कोर्ट ने ' मुश्किल सवाल' का जवाब दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने मृत्यु से पहले दिए परस्पर विरोधी बयानों के मामले में मृतक के स्वास्थ्य के संबंध में चिकित्सकीय परीक्षण (medical examination) के बाद दर्ज किए गए बयानों पर भरोसा किया।

    न्यायालय ने अपने सामने "कठिन प्रश्न" को इस प्रकार समझाया: "मौजूदा मामले में हम मृत्यु से पहले दिए दो बयानों (dying declarations) का सामना कर रहे हैं, जो पूरी तरह से असंगत और एक-दूसरे के विरोधाभासी हैं। दोनों न्यायिक मजिस्ट्रेटों द्वारा दर्ज किए गए हैं। एक कठिन प्रश्न जिसका हमें उत्तर देना है, वह यह है कि मृत्यु से पहले दिए बयानों में से किस पर विश्वास किया जाए। "

    केस टाइटल : माखन सिंह बनाम हरियाणा राज्य | आपराधिक अपील नंबर- 1290/ 2010

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    प्रथम दृष्टया तलाक-ए-हसन इतना भी अनुचित नहीं, महिलाओं के पास 'खुला' तलाक का विकल्प है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ प्रथा के माध्यम से तलाक की एक प्रथा तलाक-ए-हसन (Talaq-E-Hasan) प्रथम दृष्टया इतना भी अनुचित नहीं है। बता दें, तलाक-ए-हसन के तहत एक आदमी तीन महीने तक, हर महीने एक एक बार "तलाक" का उच्चारण करके अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं के पास 'खुला' तलाक के जरिए तलाक लेने का विकल्प है।

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    किसी तीसरे पक्ष/वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा हाईकोर्ट में दायर पुनरीक्षण याचिका सुनवाई योग्य है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी तीसरे पक्ष/वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष दायर की गई पुनरीक्षण याचिका सुनवाई योग्य है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा, चूंकि पुनरीक्षण की शक्ति का प्रयोग हाईकोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर भी किया जा सकता है, इसलिए किसी तीसरे पक्ष द्वारा पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार को लागू करने और हाईकोर्ट का ये ध्यान आकर्षित करने पर कोई रोक नहीं हो सकती है कि शक्ति का प्रयोग करने का अवसर उत्पन्न हो गया है।

    होन्नैया टी एच बनाम कर्नाटक राज्य | 2022 लाइव लॉ ( SC) 672 | सीआरए 1147/ 2022 | 4 अगस्त 2022 | जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला

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