सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ शेल कंपनियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग, खनन लाइसेंस प्राप्त करने के खिलाफ हाईकोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाई
Sharafat
17 Aug 2022 8:28 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगा दी, जिसमें शेल कंपनियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग और सत्ता में रहते हुए खनन पट्टा प्राप्त करने का आरोप लगाया गया था।
जस्टिस यूयू ललित, रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच झारखंड राज्य सरकार और सीएम सोरेन द्वारा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रही थी, जिसमें उनके खिलाफ जांच की मांग वाली जनहित याचिका को सुनवाई योग्य माना गया था। हाईकोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए पीठ ने मामले में अपना फैसला भी सुरक्षित रख लिया।
बेंच ने कहा,
" आदेश सुरक्षित। चूंकि अदालत ने मामले को ले लिया है, इसलिए हाईकोर्ट रिट याचिकाओं पर सुनवाई के लिए आगे नहीं बढ़ेगा।"
सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने प्रस्तुति दी , जिसमें मूल याचिकाकर्ता के संदिग्ध आचरण को प्रदर्शित करना शामिल था। उन्होंने प्रस्तुत किया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हाईकोर्ट ने मामले के गुणों को कैसे देखा। सोरेन के खिलाफ कोई सबूत नहीं होने के कारण प्रवर्तन निदेशालय ने सीलबंद लिफाफे में सामग्री पेश कैसे की।
सिब्बल ने प्रस्तुत किया कि मूल याचिकाकर्ता ने एफआईआर दर्ज नहीं की और सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने यह भी ध्यान दिलाया कि कैसे हाईकोर्ट शनिवार को भी एक जरूरी मामले में मामले की सुनवाई कर रहा था।
"एचसी ने सभी दस्तावेजों को उसके सामने रखे जाने से पहले ही याचिका की स्थिरता पर फैसला किया। जब हमें आपत्ति थी तो हमने हलफनामा दायर किया ….. मुझे खुली अदालत में यह कहना है, मुझे क्षमा करें। मामले में अवसर कहां है कि आप अदालत को राज्य के बाहर पकड़ रहे हैं और मामले की सुनवाई कर रहे हैं। इसकी क्या जरूरत है?"
सीएम सोरेन के लिए सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने प्रस्तुत किया कि कैसे अदालत की संतुष्टि के लिए कोई क्रेडेंशियल नहीं दिखाया गया, कैसे याचिकाकर्ता और उनके वकील ने उनके द्वारा दायर जनहित याचिकाओं को दबा दिया और कैसे इस मामले में हाईकोर्ट की प्रथम दृष्टया संतुष्टि नहीं थी।
कोर्ट ने तब कहा,
"हम केवल इससे चिंतित हैं। सीएम के पास पद संभालने से पहले ही 0.88 एकड़ जमीन थी। ऐसा नहीं है कि कार्यालय का दुरुपयोग धन इकट्ठा करने के लिए किया गया।"
प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने इन दलीलों का विरोध करते हुए तर्क दिया कि तकनीकी आधार पर आपराधिक याचिकाओं को खारिज नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "भ्रष्टाचार दिखाने वाली कोई भी याचिका तकनीकी कारणों से खारिज नहीं की जा सकती। तकनीकी पहलू आड़े नहीं आने चाहिए।"
दूसरा, जब कोई अपराध होता है तो याचिकाकर्ता की साख अप्रासंगिक हो जाती है। उन्होंने तर्क दिया कि वास्तविक सवाल यह होगा कि क्या प्रथम दृष्टया अपराध हुआ है या नहीं।
अदालत ने तब उन आधारों पर सवाल उठाया जिन पर ईडी ने मामले में कार्यवाही की।
"याचिका में ही एक आधार बनाया जाना है। आइए ईडी के सीलबंद लिफाफे में न जाएं। अन्यथा, यह दर्शाता है कि आप एक व्यक्ति के खिलाफ सिर्फ कोरे आरोप लगाते हैं और क्योंकि वह एक राजनीतिक पद धारण करने वाला व्यक्ति है ... तो अदालत को उससे शुरू करना चाहिए।"
मूल याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने याचिका की स्थिरता पर एएसजी राजू की दलीलों का समर्थन किया। उन्होंने याचिकाकर्ता और उसके परिवार की सुरक्षा की भी मांग की।
इस दलील के आधार पर अदालत ने सिब्बल से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा।
पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सोरेन से हाईकोर्ट के समक्ष दायर रिट याचिका की एक प्रति प्रस्तुत करने को कहा था, जिसमें उनके खिलाफ एक स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी।
केस टाइटल : झारखंड राज्य बनाम शिव शंकर शर्मा| एसएलपी (सी) 10622/2022 हेमंत सोरेन बनाम शिव शंकर शर्मा एसएलपी (सी) नंबर 11364-11365/2022