सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

22 Jan 2023 12:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (16 जनवरी, 2023 से 20 जनवरी, 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 - अभियुक्त का बयान दर्ज ना हो तो वसूली पर भरोसा नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी के बयान के रिकॉर्ड के अभाव में साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत रिकवरी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने एक हत्या के आरोपी को बरी कर दिया, जिसे निचली अदालत और हाईकोर्ट ने समवर्ती रूप से दोषी ठहराया था। बॉबी को अन्य आरोपियों के साथ आईपीसी की धारा 395, 365, 364, 201, 380, 302 और 302 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।

    केस डिटेलः बॉबी बनाम केरल राज्य | 2023 लाइवलॉ (SC) 50 | CrA 1439 Of 2009 | 12 जनवरी 2023 | जस्टिस बी आर गवई और एम एम सुंदरेश

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    अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा दी गई सजा में तभी हस्तक्षेप किया जा सकता है, जब यह 'स्पष्ट रूप से अनुपातहीन' हो: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि न्यायिक समीक्षा की शक्ति के प्रयोग में अनुशासनात्मक कार्यवाही में दी गई सजा में केवल तभी हस्तक्षेप किया जा सकता है, जब यह 'स्पष्ट रूप से अनुपातहीन' हो।

    जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रविकुमार ने कहा कि यहां तक कि ऐसे मामले में जहां दंड को किए गए कदाचार के लिए असंगत पाया जाता है और यह साबित हो जाता है कि मामले को अनुशासनात्मक प्राधिकरण को उचित दंड / जुर्माना लगाने के लिए भेजा जाना है, जो कि अनुशासनात्मक प्राधिकरण का विशेषाधिकार है।

    केस टाइटल- भारत सरकार बनाम सिपाही सुनील कुमार | 2023 लाइव लॉ (SC) 49 | सीए 219 ऑफ 2023 | 19 जनवरी 2023 | जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रविकुमार

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    चार्जशीट 'पब्लिक डॉक्यूमेंट' नहीं, जांच एजेंसियों को उन्हें वेबसाइटों पर अपलोड करने का निर्देश नहीं दे सकते: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पुलिस और सीबीआई, ईडी जैसी जांच एजेंसियों को किसी मामले की चार्जशीट को पब्‍लिक प्लेटफॉर्म पर अपलोड करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है, ताकि आम लोग उसे आसानी से ना पाने लगें। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने आरटीआई कार्यकर्ता और खोजी पत्रकार सौरव दास की ओर से दायर एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया।

    केस टाइटल: सौरव दास बनाम यूनियन ऑफ इंडिया |W.P.(C) No. 1126/2022

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    आपराधिक कानून की प्रक्रिया धन की वसूली के लिए नहीं; संबद्ध धन के भुगतान पर विचार किये बिना जमानत दी जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पारित एक आदेश में कहा है कि आपराधिक कानून की प्रक्रिया का इस्तेमाल गलत तरीके से दबाव बनाने और पैसे की वसूली के लिए नहीं किया जा सकता है, विशेष रूप से जमानत की अर्जी का विरोध करते समय।

    जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा कि धन की वसूली अनिवार्य रूप से सिविल मुकदमे के दायरे में है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह का रास्ता अपनाने का कोई औचित्य नहीं है कि गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी से पहले जमानत की राहत के लिए भुगतान करना चाहिए।

    केस का ब्योरा- बिमला तिवारी बनाम बिहार सरकार | 2023 लाइवलॉ (एससी) 47 | एसएलपी (सीआरएल) 834-835/2023 | 16 जनवरी 2023 | जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस हृषिकेश रॉय

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    लखीमपुर खीरी मामले में पीड़ित पक्ष ने कहा- जघंन्य अपराध के मामले में आरोपियों को जमानत नहीं देनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट ने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने लखीमपुर खीरी में पांच लोगों की हत्या के मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। लगभग दो घंटे तक चली सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने मिश्रा को एक साल से अधिक की हिरासत अवधि को देखते हुए जमानत देने की इच्छा व्यक्त की। पीठ ने यह भी संकेत दिया कि वह मामले की सुनवाई में प्रगति की निगरानी कर सकती है।

    केस टाइटल: आशीष मिश्रा उर्फ मोनू बनाम यूपी राज्य एसएलपी (सीआरएल) संख्या 7857/2022

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    धारा 139 एनआई एक्ट : आरोपी ने शिकायतकर्ता का इनकम टैक्स रिटर्न पर भरोसा किया कि शिकायतकर्ता की उधार देने की क्षमता नहीं थी, सुप्रीम कोर्ट ने बरी करने का आदेश बरकरार रखा

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 139 के तहत अनुमान के खंडन के लिए प्रमाण का मानक संभावनाओं की प्रधानता है। चेक बाउंस की शिकायत से उपजे इस मामले में आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया था । हाईकोर्ट ने बरी किए गए फैसले को पलट दिया और आरोपी को दोषी ठहराया।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपील में कहा कि अभियुक्त ने आयकर अधिकारी की जांच की, जिसने यह दिखाने के लिए प्रासंगिक वित्तीय वर्ष की शिकायतकर्ता के आयकर रिटर्न की प्रमाणित प्रतियां पेश कीं कि शिकायतकर्ता ने यह घोषित नहीं किया था कि उसने आरोपी को 3 लाख रुपये उधार दिए और यह कि शिकायतकर्ता (ओं) के पास धन उधार देने की वित्तीय क्षमता नहीं थी, जैसा कि आरोप लगाया गया है।

    केस विवरण- राजाराम श्रीरामुलु नायडू (डी) बनाम मारुथचलम (डी) | 2023 लाइवलॉ (SC) 46 | सीआरए 2013/ 1978 | 18 जनवरी 2023 | जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस एम एम सुंदरेश

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    'लास्ट सीन' परिस्थिति सजा का एकमात्र आधार नहीं हो सकती: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोपी को बरी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोपी की समवर्ती सजा रद्द करते हुए कहा कि कोर्ट को केवल "आखिरी बार देखे जाने" (लास्ट सीन) की परिस्थिति के आधार पर किसी अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराना चाहिए। जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि "आखिरी बार देखे जाने" के सिद्धांत का सीमित उपयोग है, जहां मृतक को अभियुक्त के साथ अंतिम बार देखे जाने और हत्या के समय के बीच का अंतर बहुत कम होता है।

    केस का ब्योरा- जाबिर बनाम उत्तराखंड राज्य | 2023 लाइवलॉ (एससी) 41 | सीआरए 972/2013 | 17 जनवरी 2023 | जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पी एस नरसिम्हा

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    पहला बर्खास्तगी आदेश लागू होता है तो व्यक्ति को सेवा में बने रहना नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने माना है कि जब सेवा में किसी व्यक्ति के खिलाफ पहला बर्खास्तगी आदेश लागू होता है, तब सभी लंबित मुकदमों या उसकी सेवानिवृत्ति की उम्र के बावजूद, उसे सेवा में बने रहना नहीं माना जा सकता।

    केस : भारतीय स्टेट बैंक और अन्य बनाम कमल किशोर प्रसाद, सिविल अपील सं. 175/ 2023 (एसएलपी (सी) संख्या 9819/ 2018 से उत्पन्न)

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    सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद विधवा द्वारा गोद लिए गए बच्चे पारिवारिक पेंशन के हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मृत सरकारी कर्मचारी की विधवा द्वारा सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद गोद लिए गए बेटे या बेटी को परिवार पेंशन का दावा करने के लिए केंद्रीय सिविल सेवा अधिनियम (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 54(14)(बी) के तहत 'परिवार' की परिभाषा में शामिल नहीं किया जा सकता है। जस्टिस के एम जोसेफ जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा, 'परिवार' शब्द की परिभाषा को उन व्यक्तियों को शामिल करने के लिए विस्तारित नहीं किया जा सकता है, जो सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के समय उसके आश्रित भी नहीं थे।

    केस विवरण- श्री राम श्रीधर चिमुरकर बनाम भारत संघ | 2023 लाइवलॉ (SC) 40 | एसएलपी (सी) 21876/ 2017 | 17 जनवरी 2023 | जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस बी वी नागरत्ना

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    ये विचार कि डिफ़ॉल्ट जमानत को मैरिट पर रद्द नहीं किया जा सकता, सुस्त जांच को रिवॉर्ड देना होगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि जब चार्जशीट से विशेष कारण बनते हैं और चार्जशीट गैर-जमानती अपराध का खुलासा करती है तो सीआरपीसी की धारा 167 (2) के प्रावधान के तहत आरोपी को दी गई डिफ़ॉल्ट जमानत रद्द की जा सकती है। इस मामले में सवाल उठा कि क्या चार्जशीट पेश करने के बाद डिफॉल्ट जमानत को रद्द किया जा सकता है, जब सीआरपीसी के अनुसार 90 दिनों के भीतर इसे दाखिल न करने करने पर जमानत को अनुमति दी गई थी।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने तेलंगाना हाईकोर्ट को वाईएस विवेकानंद रेड्डी हत्याकांड में एरा गंगी रेड्डी की जमानत रद्द करने की सीबीआई की याचिका पर गुण-दोष पर फैसला करने का निर्देश देते हुए कहा, इस बात पर कोई पूर्ण रोक नहीं है कि एक बार किसी व्यक्ति को डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा कर दिया जाता है, तो उसे गुण-दोष और जांच में सहयोग नहीं करने जैसे आधारों पर रद्द नहीं किया जा सकता है।

    केस विवरण- सीबीआई बनाम टी गंगी रेड्डी @ येर्रा गनागी रेड्डी| 2023 लाइवलॉ (SC) 37 | एसएलपी (सीआरएल) संख्या 9573/2022 | जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रवि कुमार

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    शैक्षणिक योग्यता के आधार पर वेतनमान अलग अलग हो सकता है , भले ही काम की प्रकृति एक जैसी हो : सुप्रीम कोर्ट

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रवि कुमार की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने माना है कि अलग-अलग कर्मचारियों के लिए अलग-अलग वेतनमान के लिए शैक्षणिक योग्यता एक वैध मानदंड है, भले ही उनके द्वारा किए गए काम की प्रकृति कमोबेश एक जैसी हो। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुद्दा था, "क्या ऐसे मामले में जहां नर्सिंग सहायक और स्टाफ नर्स के पद के लिए शैक्षणिक योग्यता अलग-अलग है, फिर भी नर्सिंग सहायक स्टाफ नर्सों के बराबर नर्सिंग भत्ते के हकदार होंगे?"

    केस : भारत संघ और अन्य बनाम राजीव खान व अन्य। सिविल अपील सं. 172/ 2023 (विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 8083 / 2022 )

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    भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी ने आनंद तेलतुंबडे के जमानत आदेश को आधार बनाकर जमानत मांगी; सुप्रीम कोर्ट 30 जनवरी को सुनवाई करेगा

    गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत भीमा कोरेगांव में आरोपी वर्नोन गोंजाल्विस की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट रेबेका जॉन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, "हम अभी 2023 में हैं और अभी भी आरोप तय नहीं किए गए हैं।"

    जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ गोंजाल्विस और एक सह-आरोपी अरुण फरेरा की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें 2018 की जाति-आधारित हिंसा के कथित लिंक के लिए गिरफ्तार किया गया था। जो पुणे के भीमा कोरेगांव में, साथ ही अति-वामपंथी उग्रवादियों के साथ शुरू हुआ।

    केस टाइटल- 1. वर्नोन बनाम महाराष्ट्र राज्य | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 5432 ऑफ 2022 और 2. अरुण बनाम महाराष्ट्र राज्य | डायरी संख्या 24825 ऑफ 2022

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    सुप्रीम कोर्ट ने बीमाकर्ता को आग से जले माल पर ‌डेप्रिस‌िएटेड वैल्यू के बजाय रीइन्‍स्टेटमेंट वैल्यू का भुगतान करने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, पंजाब के एक आदेश को बरकरार रखा है, जिसने एक बीमाकर्ता को 29,17,500 रुपये दिए थे, जबकि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने आदेश को संशोधित कर 12,60,000 रुपये कर दिया था। ब्याज दर को भी 9% से 7% तक संशोधित किया गया था।

    बीमा पॉलिसी का अवलोकन करने के बाद जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार ने फैसले में कहा कि बीमाधारक रीइन्‍स्टेटमेंट वैल्यू (पुनर्स्थापना मूल्य) का हकदार था न कि डेप्रिसिएटेड वैल्यू (मूल्यह्रास मूल्य) का। यह माना गया कि बीमाधारक 2014 में राज्य आयोग के आदेश की तारीख से वास्तविक भुगतान तक 7% ब्याज के साथ 29,17,500 रुपये/ब्याज के साथ रीइन्‍स्टेटमेंट वैल्यू का हकदार था।

    केस ‌डिटेलः मैसर्स ओसवाल प्लास्टिक इंडस्ट्रीज बनाम मैनेजर, लीगल डिपार्टमेंट, NAICO Ltd| 2023 लाइवलॉ (SC) 34 | सीए 83 ऑफ 2023 | 13 जनवरी 2023 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रवि कुमार

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    सजा में छूट की मंजूरी - पीठासीन जज सीआरपीसी की धारा 432 (2) के तहत राय देते समय पर्याप्त कारण दें: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की खंडपीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 432 (2) के तहत सजा में छूट देने के संबंध में राय देते वक्त पीठासीन जज को ‘लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत सरकार’ के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप विचार किये गये कारकों के संबंध में कारण बताने की आवश्यकता है।

    केस टाइटल: जसवंत सिंह एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ सरकार एवं अन्य। रिट याचिका (सीआरएल.) सं. 323/ 2022

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    चार्जशीट पेश करने के बाद मेरिट के आधार पर डिफॉल्ट जमानत रद्द की जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि चार्जशीट पेश करने के बाद मेरिट के आधार पर डिफॉल्ट जमानत रद्द की जा सकती है। इस मामले में सवाल उठा कि क्या चार्जशीट पेश करने के बाद डिफॉल्ट जमानत को रद्द किया जा सकता है, जब सीआरपीसी के अनुसार 90 दिनों के भीतर इसे दाखिल नहीं करने की अनुमति दी गई थी।

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    प्रशासनिक कानून | अगर सामग्री की जानकारी प्रभावित पक्ष को नहीं दी गई तो निर्णय खराब हो जाएगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक न्यायिक निकाय किसी भी सामग्री पर अपना निर्णय तब तक आधारित नहीं कर सकता जब तक कि जिस व्यक्ति के खिलाफ इसका उपयोग करने की मांग की जा रही है, उसे इसके बारे में अवगत कराया गया हो और इसका जवाब देने का अवसर दिया गया हो।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और ज‌स्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने बॉम्‍बे हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट के फैसले में एक सहकारी समिति के सदस्यों की अयोग्यता के आदेश को बरकरार रखा गया था।

    केस डिटेलः दीपल आनंद पाटिल बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य। | 2023 लाइवलॉ (एससी) | सीए 88-89 ऑफ 2023| 4 जनवरी 2023 | चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिंह

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    ताजा खबरें सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस से कथित घृणा अपराध से संबंधित एक मामले के रिकॉर्ड पेश करने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हेट स्पीच पर रोक लगाने के लिए दायर की गईं याचिकाओं पर सुनवाई की। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई लगभग दो घंटे चली।

    केस टाइटलः कजीम अहमद शेरवानी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य डब्लूपी (क्रिमिनल) नंबर 391/2021

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