'लास्ट सीन' परिस्थिति सजा का एकमात्र आधार नहीं हो सकती: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोपी को बरी किया

LiveLaw News Network

18 Jan 2023 11:26 AM IST

  • लास्ट सीन परिस्थिति सजा का एकमात्र आधार नहीं हो सकती: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोपी को बरी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोपी की समवर्ती सजा रद्द करते हुए कहा कि कोर्ट को केवल "आखिरी बार देखे जाने" (लास्ट सीन) की परिस्थिति के आधार पर किसी अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराना चाहिए।

    जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि "आखिरी बार देखे जाने" के सिद्धांत का सीमित उपयोग है, जहां मृतक को अभियुक्त के साथ अंतिम बार देखे जाने और हत्या के समय के बीच का अंतर बहुत कम होता है।

    10.10.1999 को नारायणपुर गांव में याकूब के गन्ने के खेत में दस वर्षीय लड़के हसीनम की लाश मिली थी. जाबिर और अन्य पर इस लड़के की हत्या करने का आरोप लगाया गया था और उन्हें ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था। इनकी अपील हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी।

    सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों के पुनर्मूल्यांकन करते हुए कहा कि दोषसिद्धि पूरी तरह से दो गवाहों की गवाही पर आधारित है, जिन्होंने कहा था कि उन्होंने मृतक को आरोपी के साथ 09.10.1999 की सुबह देखा था।

    कोर्ट ने कहा,

    "वर्तमान मामले में, "लास्ट सीन" के सिद्धांत को छोड़कर, कोई अन्य परिस्थिति या सबूत मौजूद नहीं है। महत्वपूर्ण रूप से, जब मृतक को 09-10-1999 को अभियुक्तों के साथ देखा गया था और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर उसकी मौत के संभावित समय के बीच का अंतराल कम नहीं है। पोस्टमार्टम दो दिन बाद किया गया था, लेकिन उसमें मृत्यु का संभावित समय नहीं दिया गया था, हालांकि रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया था कि मौत पोस्टमार्टम के कम से कम दो दिन पहले हुई थी। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, और गवाहों के बयानों में गंभीर विसंगतियों, तथा प्राथमिकी घटना के लगभग छह सप्ताह बाद दर्ज किये जाने की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए केवल "आखिरी बार देखे जाने" की स्थिति पर भरोसा (भले ही इसे साबित मान लिया गया हो) अभियुक्तों-अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराना उचित नहीं है।"

    बेंच ने इसलिए अपीलों को स्वीकार कर लिया और अभियुक्तों की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया।

    केस का ब्योरा- जाबिर बनाम उत्तराखंड राज्य | 2023 लाइवलॉ (एससी) 41 | सीआरए 972/2013 | 17 जनवरी 2023 | जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पी एस नरसिम्हा

    हेडनोट्स

    आपराधिक ट्रायल- लास्ट सीन सिद्धांत - "आखिरी बार देखा गया" सिद्धांत का सीमित अनुप्रयोग है, जहां मृतक को अभियुक्त के साथ आखिरी बार देखे जाने और हत्या के समय के बीच का समय अंतराल काफी कम हो; इसके अलावा, कोर्ट को किसी अभियुक्त को केवल "आखिरी बार देखे जाने" की परिस्थिति के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए – संदर्भ ‘‘जसवंत गिर बनाम पंजाब सरकार’’ 2005 (12) एससीसी 438’’ और ‘‘रामबख्श बनाम छत्तीसगढ़ सरकार 2016 (12) SCC 251’’ ( पैरा 23)

    आपराधिक ट्रायल - परिस्थितिजन्य साक्ष्य- अभियोजन पक्ष प्रत्येक परिस्थिति को, उचित संदेह से परे, साथ ही सभी परिस्थितियों के बीच की कड़ी को साबित करने के लिए बाध्य है; संचयी रूप से ऐसी परिस्थितियों की श्रृंखला इतनी पूर्ण होनी चाहिए कि इस निष्कर्ष तक पहुंचने से बचने का कोई रास्ता न बचे कि सभी मानवीय संभावना के भीतर, अपराध अभियुक्त द्वारा किया गया था और किसी और के द्वारा नहीं; इसके अतिरिक्त, इस प्रकार सिद्ध किए गए तथ्यों को त्रुटिरहित रूप से अभियुक्त के अपराध की ओर संकेत करना चाहिए। दोषसिद्धि को कायम रखने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य पूर्ण और अभियुक्त के अपराध के अलावा किसी अन्य परिकल्पना की व्याख्या की दृष्टि से अक्षम होना चाहिए, और ऐसा साक्ष्य न केवल अभियुक्त के अपराध के अनुरूप होना चाहिए, बल्कि उसकी मासूमियत के साथ असंगत होना चाहिए – ऐसा कह सकते हैं कि ये पंचशील अवधारणा अब मौलिक नियम हैं, जिन्हें बार-बार दोहराया जाता है, और न केवल पूर्ववर्ती आदेशों को सही ठहराने के लिए इस अवधारणा पर अमल की आवश्यकता होती है, बल्कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामलों में एकमात्र सुरक्षित आधार के तौर पर दोष सिद्ध हो सकता है – ‘‘शरद वृद्धि चंद सारदा बनाम महाराष्ट्र सरकार 1985 (1) एससीआर 88’’ का संदर्भ। (पैरा 21)

    भारतीय दंड संहिता, 1869; धारा 302 - एक हत्या के मामले में समवर्ती सजा के खिलाफ अपील - अनुमति - दोषसिद्धि रद्द – जब मृतक को 09-10-1999 को अभियुक्तों के साथ देखा गया था और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर उसकी मौत के संभावित समय के बीच का अंतराल कम नहीं है। पोस्टमार्टम दो दिन बाद किया गया था, लेकिन उसमें मृत्यु का संभावित समय नहीं दिया गया था, हालांकि रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया था कि मौत पोस्टमार्टम के कम से कम दो दिन पहले हुई थी। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, और गवाहों के बयानों में गंभीर विसंगतियों, तथा प्राथमिकी घटना के लगभग छह सप्ताह बाद दर्ज किये जाने की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए केवल "आखिरी बार देखे जाने" की स्थिति पर भरोसा (भले ही इसे साबित मान लिया गया हो) अभियुक्तों-अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराना उचित नहीं है।

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