सजा में छूट की मंजूरी - पीठासीन जज सीआरपीसी की धारा 432 (2) के तहत राय देते समय पर्याप्त कारण दें: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

16 Jan 2023 6:34 AM GMT

  • सजा में छूट की मंजूरी - पीठासीन जज सीआरपीसी की धारा 432 (2) के तहत राय देते समय पर्याप्त कारण दें: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की खंडपीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 432 (2) के तहत सजा में छूट देने के संबंध में राय देते वक्त पीठासीन जज को ‘लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत सरकार’ के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप विचार किये गये कारकों के संबंध में कारण बताने की आवश्यकता है।

    संक्षेप में आपराधिक रिट याचिका के तथ्य

    याचिकाकर्ता दोषी हैं और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के मद्देनजर आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। अन्य सह-अभियुक्तों के साथ, उन पर आईपीसी की धारा 147, 148, 302/149, 307/149 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(5) के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था। स्पेशल जज (एससी, एसटी), दुर्ग द्वारा विशेष मामला संख्या 16/2006 में उक्त अपराधों के लिए इन सभी पर मुकदमा चलाया गया था और दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उनके खिलाफ यह आरोप लगाया गया था कि सभी आठ आरोपी गैरकानूनी तौर पर इकट्ठा हुए थे और तलवार, कुल्हाड़ी, लाठी आदि घातक हथियारों का इस्तेमाल करके दो लोगों की हत्या कर दी थी।

    याचिकाकर्ताओं ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 का इस्तेमाल करके याचिकाकर्ताओं के मामले को नए सिरे से विचार करने के लिए सजा देने वाले कोर्ट में पेश करने के वास्ते प्रतिवादियों को उचित रिट, आदेश या निर्देश जारी करने की मांग की है।

    तर्कपूर्ण आदेशों के बिना अस्वीकृतियों का सिलसिला

    मौजूदा मामले में, छूट को लेकर याचिकाकर्ताओं के बाद के आवेदनों को संबंधित अधिकारियों द्वारा बिना किसी कारण के बार-बार खारिज कर दिया गया था। उन्होंने (बिना छूट के 21 साल) 16 साल की कैद काट ली थी और उन्होंने सीआरपीसी की धारा 432 (2) के तहत अपनी संबंधित अर्जी जेल अधीक्षक को दी थी, जिसमें उनकी समय से पहले रिहाई की मांग की गई थी। जेल अधीक्षक ने संबंधित सेशन कोर्ट से राय मांगी थी, जिसने याचिकाकर्ताओं को दोषी ठहराया था। संबंधित सेशन कोर्ट ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। विधि विभाग भी पीठासीन जज की बात से सहमत था। जेल और सुधार सेवाओं के महानिदेशक ने भी याचिकाकर्ता के आवेदनों को खारिज कर दिया था।

    इस बीच, सह-अभियुक्तों में से एक राम चंदर ने पहले सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका का निस्तारण कर दिया था, जिसमें स्पेशल जज को ‘लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत सरकार’ के मामले में निर्धारित प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद पर्याप्त तर्क के साथ नए सिरे से राय देने का निर्देश दिया था। इसलिए, स्पेशल जज ने उक्त मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों पर विचार करते हुए उनकी सजा को कम करने की सिफारिश की।

    निर्णय

    मौजूदा मामले में भी, पीठ ने वही आदेश पारित करने का निर्णय लिया जो राम चंदर की याचिका में दिया गया था।

    "चूंकि वर्तमान याचिकाकर्ताओं का मामला भी सह-आरोपी राम चंदर के मामले के समान है, क्योंकि दिनांक 02.07.2021, 10.08.2021 और 01.10.2021 के पत्रों में निहित पीठासीन अधिकारी की राय में ‘लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत सरकार (सुप्रा)’ मामले के अनुरूप विचार किये गये कारण मौजूद नहीं हैं, इसलिए हम उसी तरह का आदेश पारित करने का प्रस्ताव करते हैं जैसा सह-आरोपी राम चंदर के मामले में किया गया है।’’

    सीआरपीसी की धारा 432(2) के तहत राय देते वक्त पीठासीन जज द्वारा राय देते वक्त और सीआरपीसी की धारा 432 और 433-ए के तहत सजा को कम करने के मामले में उपयुक्त सरकार की शक्तियों पर विचार करते वक्त ‘लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत सरकार’ के मामले में निर्धारित कारकों पर चर्चा के बाद, कोर्ट ने कहा, "दिनांक 02.07.2021, 10.08.2021 और 01.10.2021 के पत्रों में निहित पीठासीन अधिकारी की राय में ‘लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत सरकार’ के मामले में निर्धारित मानकों के अनुसार विचार के कारकों का जिक्र नहीं है। ... तदनुसार, हम स्पेशल जज, दुर्ग को निर्देश देते हैं कि वे याचिकाकर्ताओं की अर्जियों पर ‘लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत सरकार’ मामले में निर्धारित छूट के प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखते हुए पर्याप्त तर्क के साथ नए सिरे से एक राय प्रदान करें।"

    महत्वपूर्ण रूप से, ‘लक्ष्मण नस्कर’ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि 432(2) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते समय पीठासीन अधिकारी द्वारा निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाना था: (i) क्या अपराध बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित करता है; (ii) क्या अपराध के दोहराए जाने की संभावना है; (iii) अपराधी की भविष्य में अपराध करने की क्षमता; (iv) यदि अपराधी को जेल में रखकर कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा किया जा रहा है; और (v) दोषी के परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति।

    केस टाइटल: जसवंत सिंह एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ सरकार एवं अन्य। रिट याचिका (सीआरएल.) सं. 323/ 2022

    टाइटल : 2023 लाइवलॉ (एससी) 33

    याचिकाकर्ता (ओं) के लिए एओआर श्री मो. इरशाद हनीफ, एडवोकेट श्री गुरमीत सिंह, एडवोकेट श्री दानिस शेर खान

    प्रतिवादियों के लिए एओआर श्री विशाल प्रसाद, एडवोकेट सुश्री ऋतिका सेठी

    दंड प्रक्रिया संहिता 1973-धारा 433(2)-छूट की मंजूरी- पीठासीन जज को सीआरपीसी की धारा 432(2) के तहत राय देते समय पर्याप्त कारण बताना चाहिए- सुप्रीम कोर्ट- लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत सरकार (2002) 2 एससीसी 595 का अनुसरण

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