आपराधिक कानून की प्रक्रिया धन की वसूली के लिए नहीं; संबद्ध धन के भुगतान पर विचार किये बिना जमानत दी जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

20 Jan 2023 10:52 AM IST

  • आपराधिक कानून की प्रक्रिया धन की वसूली के लिए नहीं; संबद्ध धन के भुगतान पर विचार किये बिना जमानत दी जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पारित एक आदेश में कहा है कि आपराधिक कानून की प्रक्रिया का इस्तेमाल गलत तरीके से दबाव बनाने और पैसे की वसूली के लिए नहीं किया जा सकता है, विशेष रूप से जमानत की अर्जी का विरोध करते समय।

    जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा कि धन की वसूली अनिवार्य रूप से सिविल मुकदमे के दायरे में है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह का रास्ता अपनाने का कोई औचित्य नहीं है कि गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी से पहले जमानत की राहत के लिए भुगतान करना चाहिए।

    इस मामले में आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 406 और 420 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया था। पटना हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता को 75,000/- (पचहत्तर हजार) रुपये की राशि का भुगतान करने के आरोपियों में से एक के प्रस्ताव को रिकॉर्ड पर लेते हुए आरोपियों की अग्रिम जमानत अर्जी को स्वीकार कर लिया।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, शिकायतकर्ता ने दलील दी कि सीआरपीसी की धारा 82 के तहत प्रक्रिया जारी होने के बाद, गिरफ्तारी-पूर्व जमानत के लिए प्रार्थना नहीं की जानी चाहिए थी; और यह स्पष्ट रूप से पैसे की अवैध मांग और धोखाधड़ी का मामला था।

    बेंच ने इस आदेश में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए कहा कि ये आपराधिक कार्यवाही केवल धन वसूली की कार्यवाही के रूप में की जा रही है। बेंच ने 75,000/- रुपये के भुगतान की शर्त को भी रद्द कर दिया।

    इस संबंध में, बेंच ने निम्नलिखित टिप्पणियां कीं:

    आपराधिक कानून की प्रक्रिया का इस्तेमाल दबाव बनाने और पैसे की वसूली के लिए नहीं किया जा सकता है

    "हमने एक से अधिक मौकों पर संकेत दिया है कि आपराधिक कानून की प्रक्रिया, विशेष रूप से जमानत देने के मामलों में, धन वसूली की कार्यवाही के समान नहीं है, लेकिन मौजूदा मामले में जो देखा गया है, वह अपने आप में विचित्र है.. हम फिर दोहराएंगे कि आपराधिक कानून की प्रक्रिया का उपयोग बेवजह दबाव बनाने और पैसे की वसूली के लिए नहीं किया जा सकता है, विशेष रूप से जमानत अर्जी का विरोध करते समय। किसी मामले में गिरफ्तारी-पूर्व अर्थात अग्रिम जमानत या नियमित जमानत मंजूर किया जाना है या नहीं, इसकी पड़ताल आवश्यक है और रिकॉर्ड पर रखे गये तथ्यों और जमानत पर विचार को नियंत्रित करने वाले मापदंडों के संदर्भ में कोर्ट द्वारा विवेक का प्रयोग किया जाना आवश्यक है।"

    पैसे की वसूली अनिवार्य रूप से सिविल कार्यवाही के दायरे में है।

    "इसे दूसरे शब्दों में कहें तो, किसी मामले में, गिरफ्तारी-पूर्व जमानत या नियमित जमानत की राहत को अस्वीकार किया जा सकता है, भले ही अभियुक्त ने शामिल धन का भुगतान किया हो या भुगतान की पेशकश की हो; इसके विपरीत, किसी मामले में, किसी भी भुगतान या भुगतान के किसी भी प्रस्ताव के बावजूद गिरफ्तारी-पूर्व जमानत या नियमित जमानत की रियायत दी जा सकती है। हम आगे इस बात पर जोर देंगे कि आमतौर पर इस तरह का रास्ता अपनाने का कोई औचित्य नहीं है कि गिरफ्तारी-पूर्व जमानत की रियायत दिए जाने के उद्देश्य से गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को भुगतान करना चाहिए। पैसे की वसूली अनिवार्य रूप से सिविल कार्यवाही के दायरे में है।"

    केस का ब्योरा- बिमला तिवारी बनाम बिहार सरकार | 2023 लाइवलॉ (एससी) 47 | एसएलपी (सीआरएल) 834-835/2023 | 16 जनवरी 2023 | जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस हृषिकेश रॉय

    हेडनोट्स

    दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 437-439 - आपराधिक कानून की प्रक्रिया का उपयोग बेवजह दबाव बनाने और पैसे की वसूली के लिए नहीं किया जा सकता है, विशेष रूप से जमानत अर्जी का विरोध करते समय – किसी मामले में गिरफ्तारी-पूर्व अर्थात अग्रिम जमानत या नियमित जमानत मंजूर किया जाना है या नहीं, इसकी पड़ताल आवश्यक है और रिकॉर्ड पर रखे गये तथ्यों और जमानत पर विचार को नियंत्रित करने वाले मापदंडों के संदर्भ में कोर्ट द्वारा विवेक का प्रयोग किया जाना आवश्यक है। किसी मामले में, गिरफ्तारी-पूर्व जमानत या नियमित जमानत की राहत को अस्वीकार किया जा सकता है, भले ही अभियुक्त ने शामिल धन का भुगतान किया हो या भुगतान की पेशकश की हो; इसके विपरीत, किसी मामले में, किसी भी भुगतान या भुगतान के किसी भी प्रस्ताव के बावजूद गिरफ्तारी-पूर्व जमानत या नियमित जमानत की रियायत दी जा सकती है। (पैरा 10)

    दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 438 - आमतौर पर, इस तरह का रास्ता अपनाने का कोई औचित्य नहीं है कि गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी से पहले जमानत की राहत के लिए भुगतान करना चाहिए। (पैरा 11)

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