सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2025-11-09 03:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (03 नवंबर, 2025 से 07 नवंबर, 2025 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत अधिग्रहित भूमि के बदले नौकरी का अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने लगभग तीन दशक पहले अधिग्रहित भूमि के बदले रोजगार की मांग करने वाली याचिका खारिज की। कोर्ट ने कहा है कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 में ऐसा कोई अधिकार प्रदान नहीं किया गया और मुआवजे का भुगतान राज्य के दायित्व को पूरी तरह से पूरा करता है।

जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ एक व्यक्ति द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसकी पारिवारिक भूमि 1998 में भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत अधिग्रहित की गई। याचिकाकर्ता, जिसका अधिग्रहण के समय जन्म भी नहीं हुआ था, उसने 2025 में अनुकंपा के आधार पर सरकारी सेवा में नियुक्ति की मांग की थी और दावा किया कि यह अधिग्रहण से प्राप्त अधिकार है।

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RTE Act के तहत निर्धारित समय-सीमा के भीतर TET उत्तीर्ण करने वाले शिक्षकों को नियुक्ति के समय योग्यता न होने के कारण बर्खास्त नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन शिक्षकों ने बच्चों के निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act) के तहत निर्धारित समय-सीमा के भीतर शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) उत्तीर्ण की है, उन्हें केवल इसलिए बर्खास्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनकी प्रारंभिक नियुक्ति के समय उनके पास यह योग्यता नहीं थी।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने दो सहायक अध्यापकों, उमा कांत और एक अन्य की अपील स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया। इन सहायक अध्यापकों को 2012 में नियुक्ति के समय TET सर्टिफिकेट न होने के कारण जुलाई 2018 में बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए), कानपुर नगर द्वारा बर्खास्त कर दिया गया था।

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बिना रजिस्ट्री वाला पारिवारिक समझौता बंटवारा साबित करने के लिए मान्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (6 नवंबर) को यह स्पष्ट किया कि संयुक्त परिवार की संपत्ति में किसी सहभाजनकर्ता (coparcener) द्वारा किए गए पंजीकृत परित्याग विलेख (registered relinquishment deed), जिसके तहत वह अपना हिस्सा छोड़ देता है, तुरंत प्रभाव से लागू होता है, भले ही उसे आगे लागू करने की कोई प्रक्रिया न की गई हो।

अदालत ने कहा, “यदि किसी सहभाजनकर्ता ने किसी प्रतिफल (consideration) के बदले में अपने अधिकारों का परित्याग किया है, तो वह विलेख तुरंत प्रभाव से उसके अधिकार समाप्त कर देता है। इसकी वैधता किसी आगे की कार्रवाई पर निर्भर नहीं करती।”

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सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावों में 'विभाजन गुणक' के इस्तेमाल पर रोक लगाई, मृत्यु के समय की आय को ध्यान में रखना अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावों के मामलों में मुआवज़े की गणना पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि 'विभाजन गुणक' पद्धति लागू नहीं की जानी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुआवज़े की गणना केवल मृतक की मृत्यु के समय की आय के आधार पर की जानी चाहिए।

कोर्ट ने कहा, "हमारा मानना है कि मुआवज़े की गणना के लिए मृत्यु की तिथि तक की आय को आधार बनाया जाना चाहिए... दूसरे शब्दों में, विभाजन गुणक मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के लिए एक विदेशी अवधारणा है। इसका उपयोग न्यायाधिकरण और/या न्यायालयों द्वारा मुआवज़े की गणना में नहीं किया जाना चाहिए।"

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देशभर की सड़कों से हटाए जाए आवारा जानवर: सुप्रीम कोर्ट ने आश्रयों में भेजने का दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने आज राष्ट्रीय और राज्य प्राधिकरणों को आदेश दिया कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी राजमार्गों और एक्सप्रेसवे से तुरंत आवारा जानवरों, जिनमें मवेशी भी शामिल हैं, को हटाएं। न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे उन राजमार्गों और सार्वजनिक स्थानों की पहचान करें जहां आवारा जानवर अक्सर दिखाई देते हैं और उन्हें कानून के अनुसार निर्दिष्ट आश्रयों में स्थानांतरित करें। साथ ही, कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि राजमार्गों और समान स्थलों पर नियमित अंतराल पर हेल्पलाइन नंबर प्रदर्शित किए जाएं ताकि यात्री आवारा जानवरों की उपस्थिति या उनसे जुड़े हादसों की तुरंत सूचना दे सकें।

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'कुत्तों के काटने के मामलों में खतरनाक वृद्धि': सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों, अस्पतालों, बस अड्डों आदि के परिसरों से आवारा कुत्तों को हटाने का आदेश दिया

"कुत्तों के काटने की घटनाओं में खतरनाक वृद्धि" को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आदेश दिया कि हर शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल, सार्वजनिक खेल परिसरों, बस अड्डों और डिपो, रेलवे स्टेशनों आदि में आवारा कुत्तों के प्रवेश को रोकने के लिए उचित बाड़ लगाई जाए।

संबंधित स्थानीय स्व-सरकारी संस्थानों की ज़िम्मेदारी होगी कि वे ऐसे संस्थानों/क्षेत्रों से आवारा कुत्तों को उठाएं और पशु जन्म नियंत्रण नियमों के अनुसार टीकाकरण और नसबंदी के बाद उन्हें निर्दिष्ट कुत्ता आश्रयों में पहुंचाएं। कोर्ट ने आगे आदेश दिया कि इन क्षेत्रों से उठाए गए आवारा कुत्तों को उसी स्थान पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए, जहां से उन्हें उठाया गया था।

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MV Act की धारा 166(3) को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित कर मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों और हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वे किसी भी मोटर दुर्घटना मुआवज़ा याचिका को समय-सीमा समाप्त होने के कारण खारिज न करें। कोर्ट ने यह आदेश मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166(3) को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिसमें दावा याचिका दायर करने के लिए दुर्घटना की तारीख से 6 महीने की समय-सीमा निर्धारित की गई। यह प्रावधान 2019 के संशोधन द्वारा जोड़ा गया।

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कानूनी उत्तराधिकारी का नाम रिकॉर्ड में दर्ज न किए जाने पर सुनवाई से पहले मृत पक्षकार के पक्ष में पारित निर्णय अमान्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (6 नवंबर) को कहा कि किसी ऐसे पक्षकार के पक्ष में दिया गया निर्णय, जिसकी सुनवाई से पहले ही मृत्यु हो गई हो, कानूनी रूप से लागू नहीं होता और कानून में उसका कोई प्रभाव नहीं होता। दूसरे शब्दों में, यदि अपीलकर्ता की अपील की सुनवाई से पहले ही मृत्यु हो जाती है तो अपील रद्द हो जाती है।

जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर की खंडपीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जिसमें दो प्रतिवादियों ने वादी के पक्ष में पारित ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए प्रथम अपील दायर की थी। हालांकि, अपील पर सुनवाई शुरू होने से पहले ही दोनों प्रतिवादियों की मृत्यु हो गई। उनके कानूनी उत्तराधिकारियों के प्रतिस्थापन के अभाव के बावजूद, प्रथम अपीलीय न्यायालय ने मृत प्रतिवादियों के पक्ष में निर्णय सुनाया और बाद में हाईकोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की।

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गिरफ्तारी के लिखित आधार गिरफ्तार व्यक्ति की समझ में आने वाली भाषा में प्रस्तुत न किए जाने पर गिरफ्तारी और रिमांड अवैध: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी समझ में आने वाली भाषा में गिरफ्तारी के लिखित आधार उपलब्ध न कराने पर गिरफ्तारी और उसके बाद रिमांड अवैध हो जाती है। कोर्ट ने कहा, "गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा न समझी जाने वाली भाषा में आधारों का केवल संप्रेषण ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत संवैधानिक आदेश को पूरा नहीं करता। गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा समझी जाने वाली भाषा में ऐसे आधार प्रदान न करने से संवैधानिक सुरक्षा उपाय भ्रामक हो जाते हैं और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत प्रदत्त व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है। संवैधानिक आदेश का उद्देश्य व्यक्ति को उसके विरुद्ध लगाए गए आरोपों के आधार को समझने की स्थिति में लाना है और यह तभी संभव है जब आधार व्यक्ति द्वारा समझी जाने वाली भाषा में प्रस्तुत किए जाएं, जिससे वह अपने अधिकारों का प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सके।"

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अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने के दो घंटे के अंदर लिखित आधार प्रस्तुत किए जाए, अन्यथा रिमांड होगी अवैध: सुप्रीम कोर्ट

एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (6 नवंबर) को गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में देने की आवश्यकता को IPC/BNS के तहत सभी अपराधों पर लागू करने का निर्णय लिया, न कि केवल PMLA या UAPA जैसे विशेष कानूनों के तहत उत्पन्न होने वाले मामलों पर। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी समझ में आने वाली भाषा में गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में न देने पर गिरफ्तारी और उसके बाद की रिमांड अवैध हो जाएगी।

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मृत्यु की धारणा के लिए निर्धारित 7 वर्ष की अवधि से पहले रिटायर हुए लापता कर्मचारी को अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं: सुप्रीम कोर्ट

यह देखते हुए कि किसी व्यक्ति के लापता होने की तिथि से सात वर्ष बाद ही मृत्यु की धारणा बनती है, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें नगर निगम को लापता कर्मचारी के पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति देने का निर्देश दिया गया था, जो नागरिक मृत्यु की धारणा के लिए आवश्यक सात वर्ष की अवधि पूरी होने से पहले ही रिटायर हो गया था। कोर्ट ने कहा कि चूंकि कर्मचारी का परिवार पहले ही रिटायरमेंट और पेंशन संबंधी लाभ स्वीकार कर चुका है, इसलिए वे बाद में अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकते।

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S. 156(3) CrPC | शिकायत में संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर मजिस्ट्रेट पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश दे सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (4 नवंबर) को कहा कि जब शिकायत में आरोपित तथ्य किसी अपराध के घटित होने का खुलासा करते हैं तो मजिस्ट्रेट पुलिस को CrPC की धारा 156(3) (अब BNSS की धारा 175(3)) के तहत FIR दर्ज करने का निर्देश देने के लिए अधिकृत हैं।

जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें मजिस्ट्रेट के निर्देश पर CrPC की धारा 156(3) के तहत दर्ज की गई FIR रद्द कर दी गई थी। चूंकि मजिस्ट्रेट को दी गई शिकायत में आरोपित तथ्य एक संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करते हैं, इसलिए कोर्ट ने पुलिस जांच के निर्देश देने के मजिस्ट्रेट के आदेश को यह कहते हुए उचित ठहराया कि संज्ञान-पूर्व चरण में मजिस्ट्रेट को केवल यह आकलन करने की आवश्यकता है कि क्या शिकायत एक संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है, न कि यह कि आरोप सत्य हैं या प्रमाणित।

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MV Act | निजी बस संचालक अधिसूचित राज्य परिवहन मार्गों से ओवरलैप करने वाले अंतर-राज्यीय मार्गों पर बस नहीं चला सकते: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी संचालकों को पारस्परिक परिवहन समझौतों के तहत अंतर-राज्यीय मार्गों पर स्टेज-कैरिज परमिट नहीं दिए जा सकते, यदि उन मार्गों का कोई भी भाग मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अध्याय VI के तहत राज्य परिवहन उपक्रमों के लिए आरक्षित अधिसूचित अंतर-राज्यीय मार्ग से ओवरलैप करता है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के परिवहन विभागों के बीच अंतर-राज्यीय पारस्परिक परिवहन (आईएस-आरटी) समझौते के तहत मध्य प्रदेश के निजी बस संचालकों को दिए गए परमिटों को उन मार्गों के लिए मान्यता देने का निर्देश दिया गया था, जो विशेष रूप से उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा संचालित मार्गों से ओवरलैप करते हैं।

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Delhi Municipal Regulations | कन्वर्जन चार्ज चुकाने के बाद ही ऊपरी मंजिल को व्यावसायिक उपयोग के लिए परिवर्तित किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (31 अक्टूबर) को दिल्ली के न्यू राजिंदर नगर मार्केट में आवासीय उद्देश्यों के लिए ऊपरी मंजिलों के अनधिकृत उपयोग के लिए व्यावसायिक प्रतिष्ठान की सीलिंग को बरकरार रखा। साथ ही स्पष्ट किया कि दिल्ली नगर निगम (MCD) को निर्धारित कन्वर्जन चार्ज का भुगतान करने पर ऐसे परिसर को व्यावसायिक उपयोग के लिए परिवर्तित किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि चूंकि न्यू राजिंदर नगर मार्केट एक "नामित एलएससी" (दुकान-सह-आवास) है, न कि "नियोजित एलएससी" (पूर्णतः व्यावसायिक), जिसका अर्थ है कि ऊपरी मंजिलें मूल रूप से आवासीय उपयोग के लिए हैं और कन्वर्जन चार्ज चुकाने के बाद ही उनका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।

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