कानूनी उत्तराधिकारी का नाम रिकॉर्ड में दर्ज न किए जाने पर सुनवाई से पहले मृत पक्षकार के पक्ष में पारित निर्णय अमान्य: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
7 Nov 2025 10:42 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (6 नवंबर) को कहा कि किसी ऐसे पक्षकार के पक्ष में दिया गया निर्णय, जिसकी सुनवाई से पहले ही मृत्यु हो गई हो, कानूनी रूप से लागू नहीं होता और कानून में उसका कोई प्रभाव नहीं होता।
दूसरे शब्दों में, यदि अपीलकर्ता की अपील की सुनवाई से पहले ही मृत्यु हो जाती है तो अपील रद्द हो जाती है।
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर की खंडपीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जिसमें दो प्रतिवादियों ने वादी के पक्ष में पारित ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए प्रथम अपील दायर की थी। हालांकि, अपील पर सुनवाई शुरू होने से पहले ही दोनों प्रतिवादियों की मृत्यु हो गई। उनके कानूनी उत्तराधिकारियों के प्रतिस्थापन के अभाव के बावजूद, प्रथम अपीलीय न्यायालय ने मृत प्रतिवादियों के पक्ष में निर्णय सुनाया और बाद में हाईकोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की।
मृतक प्रतिवादियों के कानूनी उत्तराधिकारी, अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपीलीय कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए याचिका दायर की। वादीगण ने फैसला अमान्य बताते हुए इस पर आपत्ति जताई। हालांकि, उनकी आपत्तियां खारिज कर दी गईं।
इस परिणाम से व्यथित होकर वादीगण ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि प्रथम अपीलीय कोर्ट का फैसला अमान्य है, क्योंकि यह उन पक्षकारों के नाम पर दिया गया, जो अपील की सुनवाई के समय जीवित नहीं है।
हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए जस्टिस चंदुरकर द्वारा लिखित फैसले में कहा गया:
“तथ्य यह है कि अपील की सुनवाई और उसके बाद निर्णय से पहले उक्त अपील दायर करने वाले दोनों अपीलकर्ता जीवित नहीं थे। इस प्रकार, 20.10.2010 को प्रथम अपील में सुनाया गया फैसला उन पक्षकारों के पक्ष में था जो अब जीवित नहीं थे। इसलिए उक्त निर्णय अमान्य था और इसमें कानूनी बल नहीं था।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यद्यपि आदेश XXII नियम 6 सीपीसी किसी निर्णय को वैध मानता है यदि सुनवाई के बाद लेकिन निर्णय सुनाए जाने से पहले किसी पक्ष की मृत्यु हो जाती है, लेकिन यह प्रावधान तब लागू नहीं होगा, जब अपील की सुनवाई से पहले पक्ष की मृत्यु हो जाती है, जिससे पूरी अपील प्रक्रिया अमान्य हो जाती है।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
“उस अपील के लंबित रहने के दौरान, प्रतिवादी नंबर 4 की मृत्यु 27.10.2006 को हो गई, जबकि प्रतिवादी नंबर 5 की मृत्यु 20.09.2010 को हुई। अभिलेख दर्शाते हैं कि अपील की सुनवाई 28.09.2010 को हुई थी। संहिता के आदेश XXII नियम 6 के प्रावधानों के अनुसार, यदि किसी पक्ष की मृत्यु सुनवाई समाप्त होने और निर्णय सुनाए जाने के बीच हो जाती है तो इससे ऐसी कार्यवाही समाप्त नहीं होती और निर्णय सुनाए जाने पर उसका वही बल और प्रभाव होगा, मानो वह उस पक्ष की मृत्यु से पहले सुनाया गया हो। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि प्रतिवादी नंबर 4 और 5 की मृत्यु 28.09.2010 को अपील की सुनवाई से पहले हो गई, यह स्पष्ट है कि उक्त अपील की कार्यवाही संहिता के आदेश XXII नियम 6 के प्रावधानों द्वारा सुरक्षित नहीं है। वास्तव में अपील दायर करने वाले दोनों अपीलकर्ताओं की मृत्यु के बावजूद अपील का निर्णय किया गया।”
चूंकि पक्षकारों की मृत्यु के बाद उनके कानूनी उत्तराधिकारियों का नाम अभिलेख में दर्ज नहीं किया गया, इसलिए अपीलीय निर्णय अमान्य है। अतः केवल ट्रायल कोर्ट के आदेश पर ही अमल किया जा सकता है।
कोर्ट ने आगे कहा,
"इस मामले में मृतक अपीलकर्ताओं के पक्ष में दिया गया निर्णय, कानूनी उत्तराधिकारियों के नाम अभिलेख में दर्ज न होने की स्थिति में अमान्य होगा और ट्रायल कोर्ट का निर्णय ही पक्षकारों के अधिकारों को नियंत्रित करेगा। अतः ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को अमल में लाया जा सकेगा।"
राजेंद्र प्रसाद एवं अन्य बनाम खिरोधर महतो एवं अन्य, सिविल अपील संख्या 2275/1994, अंबा बाई एवं अन्य बनाम गोपाल एवं अन्य, 2001, आईएनएससी 263, बीबी रहमानी खातून एवं अन्य बनाम हरकू गोप एवं अन्य, 1981, आईएनएससी 100 के निर्णयों का संदर्भ दिया गया।
तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई।
Cause Title: VIKRAM BHALCHANDRA GHONGADE VERSUS THE STATE OF MAHARASHTRA & ORS.

