मृत्यु की धारणा के लिए निर्धारित 7 वर्ष की अवधि से पहले रिटायर हुए लापता कर्मचारी को अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
6 Nov 2025 2:58 PM IST

यह देखते हुए कि किसी व्यक्ति के लापता होने की तिथि से सात वर्ष बाद ही मृत्यु की धारणा बनती है, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें नगर निगम को लापता कर्मचारी के पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति देने का निर्देश दिया गया था, जो नागरिक मृत्यु की धारणा के लिए आवश्यक सात वर्ष की अवधि पूरी होने से पहले ही रिटायर हो गया था।
कोर्ट ने कहा कि चूंकि कर्मचारी का परिवार पहले ही रिटायरमेंट और पेंशन संबंधी लाभ स्वीकार कर चुका है, इसलिए वे बाद में अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकते।
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की। यह मामला नागपुर नगर निगम के कर्मचारी गुलाब महागु बावनकुले से जुड़ा है, जो 1 सितंबर, 2012 को लापता हो गया था, लेकिन 31 जनवरी, 2015 को उसकी रिटायरमेंट तक उसे सेवा में माना गया। उसके परिवार को रिटायरमेंट लाभ के रूप में ₹6.49 लाख और ₹12,000 मासिक पेंशन मिलती थी। 2022 में एक दीवानी अदालत ने बिना तारीख बताए उसे मृत घोषित कर दिया। उसके बेटे ने तब अनुकंपा नियुक्ति की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया और उसके पिता को लापता होने की तारीख (2012) से मृत मान लिया।
हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दीवानी निकाय ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
दीवानी निकाय की अपील स्वीकार करते हुए जस्टिस मित्तल द्वारा लिखित फैसले में कहा गया कि अनुकंपा नियुक्ति किसी कर्मचारी के आश्रितों का अंतर्निहित अधिकार नहीं है, बल्कि यह किसी कर्मचारी की सेवा के दौरान मृत्यु होने पर परिवार के अचानक वित्तीय संकट को कम करने का एक उपाय है। चूंकि प्रतिवादी नंबर 2 के पिता, यानी लापता कर्मचारी सात वर्ष की अवधि समाप्त होने से पहले ही रिटायर हो गए थे, इसलिए उन्हें अपनी सामान्य रिटायरमेंट तिथि, यानी 31 जनवरी, 2015 तक सेवारत माना जाएगा।
अदालत ने कहा,
अतः, रिटायरमेंट देय राशि और पेंशन स्वीकार करके परिवार ने स्वयं स्वीकार किया कि कर्मचारी रिटायर हो गया था। अब वे सेवाकाल में मृत्यु के लिए बनाई गई योजना का लाभ नहीं ले सकते।
अदालत ने आगे कहा,
"यह ध्यान देने योग्य है कि लापता होने के बावजूद, उन्हें निरंतर सेवा में माना गया और वे 31.01.2015 को विधिवत रिटायर हो गए। परिवार के सदस्यों को सभी रिटायरमेंट देय राशि का भुगतान कर दिया गया और वे मासिक पेंशन भी प्राप्त कर रहे थे। इन परिस्थितियों में जब प्रतिवादी नंबर 2 ने स्वीकार कर लिया कि उनके पिता रिटायरमेंट हो गए तो वे अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकते।"
तदनुसार, न्यायालय ने प्रतिवादी नंबर 2 को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने वाले विवादित निर्णय को रद्द कर दिया तथापि, "अपीलकर्ताओं (नगर निगम) को अपने अधिकार क्षेत्र में किसी भी उपयुक्त पद पर नियुक्ति के लिए प्रतिवादी नंबर 2 के मामले पर विचार करने का अधिकार दिया, जो अनुकंपा नियुक्ति के दावे से स्वतंत्र है, यदि आवश्यक हो तो आयु में छूट प्रदान करके, बशर्ते कि कानून में अन्यथा इसकी अनुमति हो।"
अपील स्वीकार कर ली गई।
Cause Title: THE COMMISSIONER, NAGPUR MUNICIPAL CORPORATION & ORS. VERSUS LALITA & ORS.

