यदि मामला मूल न्यायालय में वापस भेजा जाता है तो अपीलीय न्यायालय को कोर्ट फीस वापस करना होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

28 Dec 2024 11:19 AM IST

  • यदि मामला मूल न्यायालय में वापस भेजा जाता है तो अपीलीय न्यायालय को कोर्ट फीस वापस करना होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    कोर्ट फीस एक्ट की धारा 13 पर चर्चा करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक बार किसी अपील को किसी भी कारण से मूल न्यायालय में वापस भेज दिया जाता है तो अपीलीय न्यायालय को अपीलकर्ता को अपील ज्ञापन के साथ भुगतान की गई पूरी कोर्ट फीस वापस प्राप्त करने के लिए प्राधिकरण का प्रमाण पत्र प्रदान करना चाहिए।

    जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र ने कहा,

    “धारा 13 अपीलीय न्यायालय पर यह दायित्व डालती है कि वह अपीलकर्ता को एक प्रमाण पत्र प्रदान करे, जिसमें उसे अपील ज्ञापन पर भुगतान की गई फीस की पूरी राशि कलेक्टर से वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत किया गया हो। प्रावधान ऐसे अधिकार को मूल रूप से भुगतान की गई राशि की सीमा तक सीमित करता है।”

    अपीलकर्ताओं ने अपने वाद को इस आधार पर खारिज किए जाने को चुनौती देते हुए अपने अपीलीय क्षेत्राधिकार में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि वह कोर्ट फीस जमा करने में विफल रहा है। अपीलकर्ता-वादी ने दलील दी कि उन्होंने पहले ही पूरी कोर्ट फीस जमा कर दी। एक बार जब आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति दे दी गई और वाद को पुनर्जीवित कर दिया गया तो अपील के लिए कोर्ट फीस को मुकदमे में कोर्ट फीस के रूप में माना जाना चाहिए था।

    यह भी तर्क दिया गया कि एक बार मुकदमा वापस भेज दिया गया तो गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए। यह तर्क दिया गया कि अपीलीय न्यायालय को अपीलकर्ता को कोर्ट फीस एक्ट की धारा 13 के तहत एक प्रमाण पत्र प्रदान करना चाहिए।

    इसके विपरीत प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि धारा 13 के तहत प्रमाण पत्र केवल तभी दिया जा सकता है, जब ट्रायल कोर्ट के "गलत निर्णय" को अलग रखा जाता है। मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए वापस भेजा जाता है। यह तर्क दिया गया कि चूंकि हाईकोर्ट ने पिछली अपील में केवल मूल्यांकन/कोर्ट फीस के भुगतान से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लिया था। अपीलकर्ताओं को कोई राहत नहीं दी गई, इसलिए वे प्रमाण पत्र के हकदार नहीं थे।

    न्यायालय के समक्ष विधि का प्रश्न था,

    “क्या ऐसे मामले में जहां अपील में वाद को खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के निर्णय को उलट दिया जाता है, वादी को रिमांड के बाद ट्रायल कोर्ट के समक्ष फिर से कोर्ट फीस जमा करानी होगी?”

    कोर्ट फीस एक्ट की धारा 13 में अपील के ज्ञापन के साथ जमा की गई कोर्ट फीस को वापस करने का प्रावधान है, जब अन्य बातों के साथ-साथ अपील खारिज कर दी जाती है, या मुकदमा ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया जाता है। इसमें अपीलीय न्यायालय द्वारा प्रमाण पत्र जारी करने का प्रावधान है, जो अपीलकर्ता को कलेक्टर से भुगतान की गई पूरी कोर्ट फीस वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत करता है।

    न्यायालय ने देखा कि उत्तर प्रदेश राज्य बनाम चंद्र भूषण मिश्रा में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी भी आधार पर अपीलीय न्यायालय द्वारा मामले को रिमांड करने की स्थिति में अपीलकर्ता को अपील का ज्ञापन दाखिल करते समय भुगतान की गई कोर्ट फीस वापस पाने का अधिकार है। यह देखा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि रिमांड का कारण महत्वहीन था।

    सुरेश कुमार चौकसे बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य पर आगे भरोसा किया गया, जहां मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कोर्ट फीस एक्ट की धारा 13 के समरूप प्रावधान पर विचार करते हुए कहा,

    “जब अपीलीय न्यायालय ने मामले को फुल री-ट्रायल के लिए वापस भेजा तो अपीलीय न्यायालय का यह बाध्यकारी कर्तव्य था कि वह अपीलकर्ता को उक्त प्रमाणपत्र प्रदान करे, जिससे उसे कलेक्टर से अपील ज्ञापन पर भुगतान की गई कोर्ट फीस की पूरी राशि वापस प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हो। कोर्ट फीस एक्ट का यह प्रावधान इस दृष्टि से अधिनियमित किया गया कि जब अपीलीय न्यायालय द्वारा री-ट्रायल का आदेश दिया जाता है और मामले को फुल री-ट्रायल के लिए ट्रायल कोर्ट में वापस भेजा जाता है तो अपीलकर्ता द्वारा भुगतान की गई कोर्ट फीस को दंड के उपाय के रूप में नहीं रोका जाना चाहिए। इसका कारण यह है कि अब दूसरी बार यदि पक्षकार ट्रायल कोर्ट के निर्णय और डिक्री से व्यथित होता है तो उसे अपीलीय न्यायालय में फिर से अपील दायर करनी होगी। फिर उसे फिर से न्यायालय-शुल्क का भुगतान करना होगा।”

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे अपीलकर्ता के लिए दोहरा खतरा माना।

    तदनुसार, अपील को स्वीकार करते हुए जस्टिस शैलेंद्र ने माना कि अपीलकर्ता हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर करते समय जमा की गई पूरी कोर्ट फीस वापस पाने का हकदार है। उसे ट्रायल कोर्ट के समक्ष फिर से कोर्ट फीस का भुगतान नहीं करना है। न्यायालय ने निर्देश दिया कि अधिनियम की धारा 13 के अनुसार निर्णय को प्रमाण पत्र के रूप में माना जाए।

    केस टाइटल: चंद्र प्रकाश मिश्रा और 3 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 10 अन्य [प्रथम अपील संख्या - 1020/2023]

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