हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-09-22 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (16 सितंबर, 2024 से 20 सितंबर, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

[Divorce Law] नौकरी के लिए अलग-अलग रहने वाले पक्षकारों से परित्याग साबित नहीं होता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि नौकरी के लिए अलग-अलग रहने वाले पक्षकारों से परित्याग साबित नहीं होता। पक्षकारों की शादी 1999 में हुई थी और 2000 में उनका एक बच्चा हुआ। पति झांसी में तैनात था जबकि पत्नी औरैया में तैनात थी। पक्षकार अलग-अलग रह रहे थे, इसलिए अपीलकर्ता-पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए मुकदमा दायर किया जिसे 2004 में एकतरफा फैसला सुनाया गया। बाद में जब 2006 में प्रतिवादी-पत्नी के कहने पर एकतरफा आदेश वापस ले लिया गया।

केस टाइटल- अरविंद सिंह सेंगर बनाम श्रीमती प्रभा सिंह

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

नागरिकों को 'स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार', यह सुनिश्चित करना राज्य का दायित्व नहीं कि वे केवल सत्य जानें: IT Amendment Rules पर बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट के 'टाई-ब्रेकर' जज जस्टिस अतुल चंदुरकर ने सूचना एवं प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में किए गए संशोधनों को 'असंवैधानिक' बताते हुए कहा कि नागरिकों को केवल 'स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार' है, लेकिन 'सत्य का अधिकार' नहीं है। इस प्रकार राज्य यह दावा नहीं कर सकता कि नागरिकों को केवल 'सत्य' पता हो, न कि 'नकली या झूठी जानकारी'।

जस्टिस चंदुरकर ने कॉमेडियन कुणाल कामरा की अगुवाई वाली कई याचिकाओं पर अपनी राय दी, जिसमें IT Rules, 2021, विशेष रूप से नियम 3(1)(बी)(वी) में संशोधन को चुनौती दी गई, जिसके आधार पर केंद्र सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने व्यवसाय के बारे में "नकली और भ्रामक" जानकारी की पहचान करने के लिए 'फैक्ट चेक यूनिट' (FCU) स्थापित कर सकती है।

केस टाइटल: कुणाल कामरा बनाम भारत संघ (WP(L)9792 of 2023)

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

फैक्ट चेक यूनिट बनाने के लिए IT Rules 2023 संशोधन 'असंवैधानिक': बॉम्बे हाईकोर्ट के 'टाई-ब्रेकर' जज

बॉम्बे हाईकोर्ट के 'टाई-ब्रेकर' जज ने शुक्रवार को IT Rules में 2023 का संशोधन खारिज किया, जो केंद्र सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने व्यवसाय के बारे में "फर्जी और भ्रामक" सूचनाओं की पहचान करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट (FCU) स्थापित करने का अधिकार देता है।

जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस डॉ नीला गोखले की खंडपीठ द्वारा जनवरी 2024 में विभाजित फैसला सुनाए जाने के बाद इस मुद्दे पर अपनी 'राय' सुनाते हुए सिंगल-जज जस्टिस अतुल चंदुरकर ने कहा, "मेरा मानना ​​है कि ये संशोधन भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करते हैं।"

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लोन न चुका पाना धोखाधड़ी या आपराधिक विश्वासघात नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया

राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि लोन राशि न चुका पाने वाले व्यक्ति के विरुद्ध विश्वासघात (धारा 405, आईपीसी) या धोखाधड़ी (धारा 415, आईपीसी) का कोई आपराधिक मामला नहीं बनता। बशर्ते कि अपराध के लिए कोई अन्य तथ्य न हो।

जस्टिस राजेंद्र प्रकाश सोनी की पीठ धारा 405 और 415, IPC के तहत आरोपी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो शिकायत के आधार पर दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार है कि आरोपी ने शिकायतकर्ता से ब्याज पर लोन लिया और उसे चुकाने में विफल रहा।

केस टाइटल- मदनलाल पारीक बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

बिना नंबर प्लेट के वाहन चलाना आईपीसी की धारा 420 के तहत 'धोखाधड़ी' नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक दोपहिया वाहन चालक के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी के मामले को खारिज करते हुए कहा कि बिना नंबर प्लेट के वाहन चलाने का आरोप आईपीसी की धारा 420 के तहत नहीं आता है।

जस्टिस के. सुजाना की एकल पीठ ने कहा कि आरोपी के खिलाफ एकमात्र आरोप - बिना नंबर प्लेट के वाहन चलाने का - आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना) के दायरे में नहीं आता है। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 80 (ए) के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान वाहनों के लिए आवेदन करने और परमिट देने की प्रक्रिया से संबंधित है और विशेष रूप से बिना नंबर प्लेट के वाहन चलाने के अपराध को संबोधित नहीं करता है।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल धोखाधड़ी या गलत बयानी के माध्यम से प्राप्त किए गए अपने आदेश पर पुनर्विचार कर सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि भले ही मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल के पास सीपीसी के तहत अपने स्वयं के आदेश पर पुनर्विचार करने का अधिकार नहीं है अगर उसे विश्वास है कि उसके द्वारा पारित आदेश धोखाधड़ी या गलत बयानी के माध्यम से प्राप्त किया गया था तो उसे उस आदेश पर पुनर्विचार के माध्यम से आदेश को वापस लेने का अधिकार है।

जस्टिस रेखा बोराना की पीठ ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रिब्यूनल द्वारा उस आदेश को अलग रखते हुए और मामले की नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश देते हुए उसके आदेश पर पुनर्विचार आवेदन को अनुमति दी गई थी।

केस टाइटल–अभिलाष बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड

यहां पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सोशल मीडिया पर अपमानजनक पोस्ट IPC की धारा 499 के तहत साइबर मानहानि के बराबर: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना कि फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बयानों या पोस्ट के माध्यम से मानहानि साइबर मानहानि के अंतर्गत आती है। इस प्रकार आईपीसी की धारा 499 के लागू होने को उचित ठहराया गया, जो मानहानि से संबंधित है।

मामले के तथ्यों में न्यायालय ने कहा कि फेसबुक पोस्ट को छोड़कर भी याचिकाकर्ता आईपीसी की धारा 509 और केपी अधिनियम की धारा 120 (O) के तहत वास्तविक शिकायतकर्ता के पिता को दो अपमानजनक पोस्टकार्ड भेजने के लिए उत्तरदायी है।

केस टाइटल- सतीशकुमार बी.आर. बनाम केरल राज्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

दिल्ली प्रवासियों की है, किसी भी वर्ग को आरक्षण का लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि राष्ट्रीय राजधानी केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते प्रवासियों की है। ऐसे में किसी भी विशेष वर्ग को आरक्षण का लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस गिरीश कठपालिया की खंडपीठ ने कहा, "इसमें कोई विवाद नहीं है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र प्रशासन चलाने के अलावा सभी उद्देश्यों के लिए केंद्र शासित प्रदेश है। इसलिए किसी भी वर्ग को आरक्षण का लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता।"

केस टाइटल- दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड एवं अन्य बनाम विष्णु कुमार बडेटिया

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मनी लॉन्ड्रिंग में अपराध की आय से संबंधित हर गतिविधि शामिल, जो अर्थव्यवस्था में धन को एकीकृत करने के अंतिम कार्य तक सीमित नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की धारा 3 की व्यापक पहुंच है और मनी लॉन्ड्रिंग में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपराध की आय से निपटने की कोई भी गतिविधि या प्रक्रिया शामिल होगी। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अपराध अर्थव्यवस्था में दागी धन को एकीकृत करने के अंतिम कार्य तक सीमित नहीं था।

जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी शिवागनानम ने कहा कि धारा 3 के शब्दों को केवल इसलिए नहीं पढ़ा जाना चाहिए क्योंकि परिभाषा में 'और' शब्द का उपयोग किया गया है। अदालत ने कहा कि यदि इस तरह की व्याख्या को स्वीकार कर लिया जाता है, तो पूरी धारा कम प्रभावी हो जाएगी क्योंकि एक व्यक्ति के पास अपराध की आय होगी और दूसरा इसे दागी धन के रूप में पेश करेगा ताकि कोई भी अधिनियम के तहत शामिल न हो। अदालत ने इस प्रकार कहा कि PMLA को ऐसे व्यक्ति के खिलाफ लागू किया जा सकता है, जो अब अपराध की आय के कब्जे और आनंद में नहीं है।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

PMLA के आरोपी को न्यायिक हिरासत से गिरफ्तार किए जाने पर 24 घंटे के भीतर विशेष अदालत के समक्ष पेश करने की आवश्यकता नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में द्रमुक के पूर्व पदाधिकारी जाफर सादिक की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उन्होंने PMLA मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती दी थी।

जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी शिवागनानम की खंडपीठ ने कहा कि अधिनियम के तहत आवश्यकताओं को तब पूरा किया गया था जब सादिक, जो पहले से ही न्यायिक हिरासत में था, को औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया गया था। इस प्रकार, अदालत ने कहा कि याचिका योग्यता से रहित थी और इसे खारिज कर दिया।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Land Acquisition Act| एक बार भूमि का बाजार मूल्य साक्ष्य के आधार पर निर्धारित हो जाता है तो संदर्भ न्यायालय द्वारा मुआवजा कम करना अनुचित: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि संदर्भ न्यायालय केवल पक्ष के दावे के आधार पर भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजा कम नहीं कर सकता, जबकि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1898 के तहत साक्ष्य के आधार पर बाजार मूल्य पहले ही तय किया जा चुका है।

जस्टिस राजबीर सहरावत ने कहा, "एक बार फाइल पर प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर बाजार मूल्य निर्धारित हो जाने के बाद संदर्भ न्यायालय द्वारा भूमि मालिकों को देय मुआवजे की राशि को केवल इसलिए कम करना न्यायोचित नहीं है, क्योंकि भूमि मालिकों ने फाइल पर प्रस्तुत साक्ष्य के बिना बाजार मूल्य के बारे में दावा किया। अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो न्यायालय को केवल संदर्भ न्यायालय के समक्ष पक्ष द्वारा किए गए दावे के आधार पर बाजार मूल्य कम करने का अधिकार दे सके।"

केस टाइटल- यशपाल एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सार्वजनिक ट्रस्टों के सदस्यों और प्रबंधन से संबंधित विवाद मध्यस्थता योग्य नहीं, धारा 92 सीपीसी के तहत मुकदमा दायर करना होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 के अंतर्गत सूचीबद्ध सार्वजनिक ट्रस्टों से संबंधित विवाद मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के अंतर्गत मध्यस्थता योग्य नहीं हैं। चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस विकास बधवार की पीठ ने आगे कहा कि सीपीसी की धारा 89 जो न्यायालय के बाहर विवादों के निपटारे का प्रावधान करती है, धारा 92 को ओवरराइड नहीं करती है क्योंकि धारा 92 ट्रस्टों से संबंधित विवादों से निपटने के लिए एक विशिष्ट प्रावधान है।

केस टाइटल: संजीत सिंह सलवान और 4 अन्य बनाम सरदार इंद्रजीत सिंह सलवान और 2 अन्य [मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 की धारा 37 के तहत अपील संख्या - 356/2024]

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

फैमिली कोर्ट तलाक की कार्यवाही के दौरान बाद में वापस ली गई सहमति के आधार पर तलाक नहीं दे सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट तलाक की याचिका दायर करने के समय दी गई सहमति के आधार पर तलाक नहीं दे सकता, यदि तलाक की कार्यवाही के बाद के चरण में सहमति वापस ले ली गई हो।

दोनों पक्षों की शादी 2006 में हुई थी। अपीलकर्ता द्वारा अपने पति को तलाक दिए जाने के बाद उसने अपीलकर्ता-पत्नी के कारण बांझपन के आधार पर तलाक की कार्यवाही शुरू की। अपने लिखित बयान में अपीलकर्ता ने इस तथ्य पर विवाद किया और मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा गया जो विफल रही।

केस टाइटल- पिंकी बनाम पुष्पेंद्र कुमार

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

ट्रांसजेंडर व्यक्ति विवाह के झूठे वादे के मामलों में BNS की धारा 69 का इस्तेमाल नहीं कर सकते: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 69 की सीमाओं को स्पष्ट करते हुए विशेष रूप से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से जुड़े मामलों में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई ट्रांसजेंडर धारा 69 का इस्तेमाल नहीं कर सकता, जो विवाह के झूठे वादे पर यौन संबंध बनाने को दंडित करती है।

धारा 69 के वास्तविक अधिदेश की व्याख्या करते हुए और आरोपी की अंतरिम जमानत की पुष्टि करते हुए जस्टिस संदीप शर्मा ने कहा, “BNS के तहत महिला और ट्रांसजेंडर को अलग-अलग पहचान दी गई। धारा 2 के तहत उन्हें स्वतंत्र रूप से परिभाषित किया गया। साथ ही इस तथ्य के साथ कि पीड़ित अभियोक्ता और जमानत याचिकाकर्ता के बीच शारीरिक संबंध यदि कोई हो पीड़ित-अभियोक्ता की सर्जरी से पहले विकसित हुआ था, जिसके तहत उसने कथित तौर पर अपना जेंडर चेंज करवाया। जमानत याचिकाकर्ता के दावे में बल प्रतीत होता है कि उसे BNS की धारा 69 के तहत बुक नहीं किया जा सकता बल्कि उसके साथ अधिनियम की धारा 18 (डी) के तहत निपटा जाना चाहिए।”

केस टाइटल- भूपेश ठाकुर बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

न्यायिक पृथक्करण के अनुमोदन के पश्चात एक वर्ष तक पक्षकारों के बीच कोई सहवास नहीं होने पर तलाक का निर्णय बरकरार रखा जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 10 के तहत यदि वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना के निर्णय अथवा न्यायिक पृथक्करण के निर्णय के पश्चात एक वर्ष तक पक्षकारों के बीच कोई सहवास नहीं होता है तो पृथक्करण का निर्णय बरकरार रखा जाएगा।

पक्षकारों ने 08.12.2001 को विवाह किया। प्रतिवादी-पति ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता-पत्नी ने 2002 में उसे छोड़ दिया। अपीलकर्ता ने पक्षों के बीच वैवाहिक संबंध को पुनर्जीवित नहीं किया, इसलिए उसने अपने वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की मांग करते हुए कार्यवाही शुरू की।

केस टाइटल- पूनम बनाम विनय कुमार सिंह @ पंकज

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News