मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल धोखाधड़ी या गलत बयानी के माध्यम से प्राप्त किए गए अपने आदेश पर पुनर्विचार कर सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट

Amir Ahmad

19 Sep 2024 7:57 AM GMT

  • मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल धोखाधड़ी या गलत बयानी के माध्यम से प्राप्त किए गए अपने आदेश पर पुनर्विचार कर सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि भले ही मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल के पास सीपीसी के तहत अपने स्वयं के आदेश पर पुनर्विचार करने का अधिकार नहीं है अगर उसे विश्वास है कि उसके द्वारा पारित आदेश धोखाधड़ी या गलत बयानी के माध्यम से प्राप्त किया गया था तो उसे उस आदेश पर पुनर्विचार के माध्यम से आदेश को वापस लेने का अधिकार है।

    जस्टिस रेखा बोराना की पीठ ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रिब्यूनल द्वारा उस आदेश को अलग रखते हुए और मामले की नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश देते हुए उसके आदेश पर पुनर्विचार आवेदन को अनुमति दी गई थी।

    ट्रिब्यूनल ने दावेदारों (यहां याचिकाकर्ताओं) के पक्ष में आदेश पारित किया, जिसे बीमा कंपनी (प्रतिवादियों) द्वारा दायर पुर्नविचार आवेदन में अलग रखा गया था।

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि यह कानून की स्थापित स्थिति है कि ट्रिब्यूनल के पास अपने आदेश पर पुनर्विचार करने का अधिकार नहीं है। इसलिए विवादित आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर है, जिसे रद्द किया जाना चाहिए।

    इसके विपरीत प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल द्वारा अनुकूल आदेश प्राप्त करने के लिए याचिकाकर्ता द्वारा जिस बीमा पॉलिसी पर भरोसा किया गया, वह जाली दस्तावेज था। इसलिए ट्रिब्यूनल पर धोखाधड़ी करके विचाराधीन अवार्ड प्राप्त किया गया था। इसलिए ट्रिब्यूनल ने पुनर्विचार आवेदन में अवार्ड को सही तरीके से रद्द कर दिया।

    न्यायालय याचिकाकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत तर्क से आंशिक रूप से सहमत था कि मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल के पास आम तौर पर सीपीसी के तहत पुर्नविचार आवेदन से निपटने का अधिकार क्षेत्र नहीं था। हालांकि न्यायालय ने देखा कि कानून की इस स्थिति के कुछ अपवाद थे।

    न्यायालय ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम राजेंद्र सिंह और अन्य के सुप्रीम कोर्ट के मामले के ट्रिब्यूनल के संदर्भ पर प्रकाश डाला, जिसमें यह माना गया कि कोई भी न्यायालय या न्यायाधिकरण अपने आदेश को वापस लेने में असमर्थ नहीं माना जा सकता, यदि उसे विश्वास हो कि आदेश धोखाधड़ी या गलत बयानी के माध्यम से प्राप्त किया गया था, क्योंकि धोखाधड़ी और न्याय एक साथ नहीं रह सकते।

    इसके अलावा ट्रिब्यूनल ने ए.वी. पपय्या शास्त्री और अन्य बनाम ए.पी. सरकार और अन्य के सुप्रीम कोर्ट के मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें यह फैसला सुनाया गया,

    “धोखाधड़ी करके या धोखाधड़ी करके प्राप्त किया गया आदेश कानूनी, वैध या कानून के अनुरूप नहीं माना जा सकता है। यह अस्तित्वहीन है, अवास्तविक है। इसे कायम रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने आगे कहा कि उक्त कानून का मौलिक सिद्धांत है। इसलिए यह माना जाता है कि धोखाधड़ी से प्राप्त निर्णय, डिक्री या आदेश को अमान्य माना जाना चाहिए, चाहे वह प्रथम दृष्टया न्यायालय द्वारा हो या अंतिम न्यायालय द्वारा।”

    न्यायाधिकरण द्वारा अपना आदेश रद्द करने के लिए अपनाए गए तर्क की पुष्टि करते हुए न्यायालय ने कहा कि यह कानून की स्थापित स्थिति है कि किसी भी स्तर पर डिक्री/अवार्ड को रद्द किया जा सकता है, यहां तक कि संपार्श्विक कार्यवाही में भी, यदि धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया पाया जाता है।

    तदनुसार, आरोपित आदेश में कोई हस्तक्षेप उचित नहीं माना गया और याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल–अभिलाष बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड

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