ट्रांसजेंडर व्यक्ति विवाह के झूठे वादे के मामलों में BNS की धारा 69 का इस्तेमाल नहीं कर सकते: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Amir Ahmad

16 Sept 2024 12:39 PM IST

  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति विवाह के झूठे वादे के मामलों में BNS की धारा 69 का इस्तेमाल नहीं कर सकते: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 69 की सीमाओं को स्पष्ट करते हुए विशेष रूप से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से जुड़े मामलों में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई ट्रांसजेंडर धारा 69 का इस्तेमाल नहीं कर सकता, जो विवाह के झूठे वादे पर यौन संबंध बनाने को दंडित करती है।

    धारा 69 के वास्तविक अधिदेश की व्याख्या करते हुए और आरोपी की अंतरिम जमानत की पुष्टि करते हुए जस्टिस संदीप शर्मा ने कहा,

    “BNS के तहत महिला और ट्रांसजेंडर को अलग-अलग पहचान दी गई। धारा 2 के तहत उन्हें स्वतंत्र रूप से परिभाषित किया गया। साथ ही इस तथ्य के साथ कि पीड़ित अभियोक्ता और जमानत याचिकाकर्ता के बीच शारीरिक संबंध यदि कोई हो पीड़ित-अभियोक्ता की सर्जरी से पहले विकसित हुआ था, जिसके तहत उसने कथित तौर पर अपना जेंडर चेंज करवाया। जमानत याचिकाकर्ता के दावे में बल प्रतीत होता है कि उसे BNS की धारा 69 के तहत बुक नहीं किया जा सकता बल्कि उसके साथ अधिनियम की धारा 18 (डी) के तहत निपटा जाना चाहिए।”

    मामले की पृष्ठभूमि:

    यह मामला 18 जुलाई, 2024 को जिला सोलन के बद्दी में महिला पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर से उत्पन्न हुआ। पीड़िता ट्रांसजेंडर महिला ने आरोप लगाया कि वह फेसबुक के माध्यम से COVID-19 लॉकडाउन के दौरान आरोपी भूपेश ठाकुर से मिली थी।

    उसने कहा कि अपनी ट्रांसजेंडर स्थिति को शुरू में ही उजागर करने के बावजूद ठाकुर ने लगातार उससे शादी करने का वादा किया। लॉकडाउन हटने के बाद दोनों साथ-साथ यात्रा करने लगे। उसने उसके माथे पर सिंदूर (विवाह का प्रतीक) भी लगाया। बाद में ठाकुर ने उससे शादी करने से इनकार किया और उसके परिवार ने जोर देकर कहा कि वह जेंडर परितर्वन सर्जरी करवा ले।

    एम्स दिल्ली में सर्जरी के बाद पीड़िता को पता चला कि ठाकुर के परिवार ने उसकी शादी किसी और से तय की, जिसके बाद उसने शिकायत दर्ज कराई।

    इसके बाद याचिकाकर्ता ने BNS की धारा 69 और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 18 (डी) के तहत एफआईआर दर्ज होने के बाद जमानत मांगी। ठाकुर को पहले 14 अगस्त 2024 को अंतरिम जमानत दी गई, जिसकी अब पुष्टि होनी है।

    याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट अजय कोचर ने तर्क दिया कि BNS की धारा 69 के तहत मामला लागू नहीं था। उन्होंने तर्क दिया कि धारा 69 केवल उन मामलों पर लागू होती है, जहां महिला को शादी के झूठे वादे से धोखा दिया जाता है, जैसा कि अभियोक्ता ने अपने बयानों में ट्रांसजेंडर होने की बात स्वीकार की है, वह कानून के तहत महिला के रूप में योग्य नहीं है। कोचर ने आगे तर्क दिया कि इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई मेडिकल साक्ष्य नहीं था कि पीड़िता ने जेंडर परिवर्तन सर्जरी करवाई थी।

    एडिशनल एडवोकेट जनरल राजन कहोल द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए राज्य ने यह कहते हुए जवाब दिया कि यह सुझाव देने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि ठाकुर पीड़िता की ट्रांसजेंडर पहचान जानने के बावजूद उसका शोषण कर रहा था। उन्होंने तर्क दिया कि अपराध की गंभीरता और पीड़ित को हुई भावनात्मक और शारीरिक क्षति को देखते हुए याचिकाकर्ता को रियायत नहीं दी जानी चाहिए।

    न्यायालय की टिप्पणियां और कानूनी व्याख्या:

    जस्टिस शर्मा ने BNS की धारा 69 और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों की जांच की। उन्होंने कहा कि धारा 69 विशेष रूप से महिला से किए गए विवाह के धोखे भरे वादों को दंडित करती है, जिसे BNS की धारा 2(35) के तहत किसी भी उम्र की महिला मानव के रूप में परिभाषित किया गया।

    अभियोक्ता ने खुद को ट्रांसजेंडर के रूप में पहचाना था, इसलिए न्यायालय ने याचिकाकर्ता के तर्क में योग्यता पाई कि इस मामले में धारा को लागू नहीं किया जा सकता।

    न्यायालय ने BNS की धारा 2(10) का भी हवाला दिया, जो जेंडर को परिभाषित करते हुए पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शामिल करता है। इसने नोट किया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अलग श्रेणी के रूप में पहचाना जाता है न कि पुरुष या महिला के रूप में जिसने याचिकाकर्ता के तर्क को और पुष्ट किया।

    ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के आवेदन पर चर्चा करते हुए न्यायालय ने धारा 18(डी) की समीक्षा की, जो किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के जीवन सुरक्षा या कल्याण को नुकसान पहुंचाने या घायल करने वाले कार्यों को दंडित करती है। जबकि इस धारा में अधिकतम दो साल की सजा का प्रावधान है

    न्यायालय ने कहा,

    “इस न्यायालय को लगता है कि आज तक रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं पेश किया गया, जो इस तथ्य का संकेत दे कि याचिकाकर्ता द्वारा पीड़ित-अभियोक्ता के साथ शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास, यदि कोई हो, कथित सर्जरी के बाद कभी किया गया, जिसके द्वारा पीड़ित-अभियोक्ता ने अपना जेंडर बदल लिया था।”

    पीठ ने आगे टिप्पणी की,

    “मामले का निर्णय अभियोजन पक्ष द्वारा अभिलेख पर एकत्रित साक्ष्यों के आधार पर निचली अदालत द्वारा किया जाएगा लेकिन मामले के उपरोक्त स्पष्ट पहलू को ध्यान में रखते हुए इस अदालत द्वारा जमानत याचिकाकर्ता को न्यायिक हिरासत में भेजने का कोई औचित्य नहीं प्रतीत होता है। खासकर तब जब उससे बरामद करने के लिए कुछ भी शेष न हो।”

    इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि आम तौर पर प्री-ट्रायल चरण के दौरान जेल की तुलना में जमानत को प्राथमिकता दी जाती है बशर्ते कि आरोपी जांच में सहयोग करे और फरार होने का कोई जोखिम न हो। अदालत ने जांच में सहयोग और नियमित रूप से अदालत में उपस्थित होने सहित कई शर्तें लगाते हुए अंतरिम जमानत आदेश को निरपेक्ष बना दिया।

    केस टाइटल- भूपेश ठाकुर बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

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