सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (24 अप्रैल, 2023 से 28 अप्रैल, 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
यूपी इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट | डीआईओएस की मंजूरी के बिना शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यूपी इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट, 1921 के तहत शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया को जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) की अनिवार्य स्वीकृति प्राप्त किए बिना समाप्त नहीं किया गया। केवल चयन प्रक्रिया पूरी हो जाने के कारण उम्मीदवार को नियुक्त किए जाने का कोई निहित अधिकार नहीं है। उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट, 1921 की धारा 16-चच(3) के तहत नियुक्ति के लिए जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) द्वारा अनुमोदन अनिवार्य है।
केस टाइटल: उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य बनाम रचना हिल्स व अन्य।
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सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को धर्म से इतर नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हेट स्पीच के मामलो में स्वतः संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज करने को कहा, हेट स्पीच मामला किसी भी धर्म का हो। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अक्टूबर 2022 के आदेश (जिसके तहत दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पुलिस को हेट स्पीच के मामलों के खिलाफ स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया था) के आवेदन को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक बढ़ा दिया।
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सेल डीड के लिए स्टाम्प ड्यूटी की गणना करते समय स्थायी रूप से जमीन से जुडे़ प्लांट और मशीनरी का मूल्य भी पता लगाया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 27 के प्रावधान, जैसा कि आंध्र प्रदेश संशोधन अधिनियम, 1988 द्वारा सम्मिलित किया गया है, के तहत पंजीकरण अधिकारियों को संपत्ति का निरीक्षण करने के लिए अधिकृत किया गया है जो कि साधन की विषय वस्तु है। इसके तहत अधिकारी आवश्यक जांच करें और खुद को संतुष्ट करें कि धारा 27 के प्रावधान, जिसके लिए आवश्यक है कि स्टाम्प शुल्क को प्रभावित करने वाले सभी तथ्यों को पूरी तरह से और सही मायने में साधन में रखा गया है, का पालन किया गया है।
केस : सब-रजिस्ट्रार अमुदालावालासा और अन्य बनाम मैसर्स दानकुनी स्टील्स लिमिटेड और अन्य।
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विवाह समानता याचिकाएं - भारतीय संस्कृति असाधारण रूप से समावेशी, ब्रिटिश विक्टोरियन नैतिकता संहिता हम पर थोपी गई : सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने विवाह समानता याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि भारतीय संस्कृति "असाधारण रूप से समावेशी" रही और यह ब्रिटिश विक्टोरियन नैतिकता के प्रभाव के कारण था कि भारतीयों को अपने सांस्कृतिक लोकाचार को त्यागना पड़ा। मुख्य न्यायाधीश के साथ जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की एक संविधान पीठ भारत में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई कर रही थी।
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क्या समलैंगिक जोड़े को विवाह के रूप में कानूनी मान्यता के बिना कुछ अधिकार दिए जा सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा
सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज के मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर गुरुवार को भी सुनवाई जारी रखी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आज की सुनवाई के दरमियान मौखिक रूप से पूछा कि क्या वह समलैंगिक जोड़ों को सामाजिक कल्याण लाभ देने के लिए तैयार है, ऐसे रिश्तों को कानूनी मान्यता दिए बिना।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने बताया कि कानून ने विषमलैंगिक जोड़ों को, जो लंबे समय से एक साथ रह रहे हैं, उन्हें कुछ अधिकार दिए हैं, भले ही उन्होंने औपचारिक रूप से विवाह न किया हो।
केस टाइटल: सुप्रियो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया| Writ Petition (Civil) No. 1011 of 2022
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NDPS एक्ट के तहत गांजे के ‘बीज’ प्रतिबंधित नहीं: सुप्रीम कोर्ट
NDPS यानी नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट। इससे जुड़े के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी व्यक्ति को जमानत दे दी। जमानत इस आधार पर दी कि NDPS एक्ट, 1985 के तहत "गांजा" की परिभाषा में गांजे के बीज शामिल नहीं हैं। यानी इस कानून के तहत गांजे के बीज प्रतिबंधित नहीं हैं। गांजे के बीज की आपूर्ति करने के मामले में याचिकाकर्ता पर केस हुआ था। पुलिस गिरफ्तार की थी।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस मनोज मिश्रा की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई की। बेंच ने कहा, सबूतों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता ने खेती के लिए गांजे के बीज की आपूर्ति की थी। NDPS एक्ट में गांजा की परिभाषा के तहत गांजे के बीज प्रतिबंधित नहीं है। ऐसा कोई भी आरोप नहीं कि याचिकाकर्ता ने खेती के बाद उगाए गए गांजे को वापस पाने के इरादे से बीज की आपूर्ति की थी।
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अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुके विवाह को 'क्रूरता' के आधार पर भंग किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (ia) के तहत विवाह की ऐसी टूट कि सुधार संभव ना हो, (अपूरणीय टूट या irretrievable breakdown) को विवाह को विघटित करने के लिए "क्रूरता" के आधार के रूप में समझा जा सकता है।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जेबी पर्दीवाला की पीठ ने यह टिप्पणी एक ऐसे मामले को निस्तारित करते हुए की, जिसमें एक जोड़ा 25 साल से अलग रह रहा था। दंपति बमुश्किल चार साल तक पति-पत्नी के रूप में साथ रहे थे, उसके बाद वे अलग हो गए। उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ कई मामले दर्ज कराए थे।
केस टाइटल: श्री राकेश रमन बनाम श्रीमती कविता
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ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड के अभाव में दोषसिद्धि को बरकरार नहीं रखा जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत व्यक्ति की दोषसिद्धि को इस आधार पर बरकरार रखा गया कि हाईकोर्ट निचली अदालत से मामले के रिकॉर्ड मांगे बिना किसी अपील पर फैसला नहीं करेगा।
जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने कहा: "सीआरपीसी की धारा 385 की भाषा से पता चलता है कि अपील में बैठे न्यायालय को संबंधित न्यायालय से मामले के रिकॉर्ड के लिए कॉल करने की आवश्यकता होती है। यह दायित्व है, शक्ति कर्तव्य के साथ जुड़ी हुई है और इस तरह के अभिलेखों के अवलोकन के बाद ही अपील पर निर्णय लिया जाएगा।”
केस टाइटल: जितेंद्र कुमार रोडे बनाम भारत संघ
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सेम सेक्स मैरिज: सॉलिसिटर जनरल ने कहा- सेक्सुअल अटोनॉमी तर्क अनाचार की रक्षा के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, सीजेआई ने कहा- 'अतार्किक'
सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलीलें पेश कर रहे हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि नॉन बायनरी, नॉन हैक्ट्रोसेक्सुअल या या ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बीच विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए पसंद के अधिकार और सेक्सुअल अटोनॉमी के तर्कों को अनाचार संबंधों की रक्षा के लिए कल उठाया जा सकता है।
केस टाइटल: सुप्रियो बनाम भारत संघ | रिट याचिका (सिविल) संख्या 1011 ऑफ 2022
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एलोपैथी डॉक्टर और आयुर्वेद डॉक्टर समान काम नहीं करते, समान वेतन के हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि एलोपैथी डॉक्टरों और आयुर्वेद डॉक्टरों को समान वेतन के हकदार होने के लिए समान कार्य करने वाला नहीं कहा जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि एलोपैथी डॉक्टर आपातकालीन ड्यूटी करने में सक्षम हैं और जो ट्रॉमा देखभाल करने में सक्षम हैं, लेकिन आयुर्वेद डॉक्टर ऐसा नहीं कर सकते।
केस टाइटल- गुजरात राज्य और अन्य आदि बनाम डॉ. पीए भट्ट व अन्य। आदि। 2023
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सायरा बानो फैसले को प्रभाव देने के लिए राज्य कार्रवाई की जरूरत थी ' : तीन तलाक कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया
केंद्र ने मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दायर अपने हलफनामे में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले के बावजूद, रिपोर्टें बताती हैं कि तलाक की यह प्रथा मौजूद है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है चूंकि शायरा बानो मामले में फैसले से तीन तलाक की घटनाओं में कमी नहीं आई है, ऐसे तलाक के पीड़ितों की मदद के लिए राज्य के हस्तक्षेप की आवश्यकता थी।
केस : अमीर रशदी मदनी बनाम भारत संघ | 2019 की रिट याचिका (सिविल) संख्या 993
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डीआरआई अधिकारियों द्वारा तस्करी के सामान की जब्ती आयकर अधिनियम के तहत ' व्यवसाय हानि' के तौर पर दावा नहीं की जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 37(1) के तहत सीमा शुल्क विभाग द्वारा चांदी की छड़ों को जब्त करने के कारण निर्धारिती द्वारा दावा किए गए नुकसान की अनुमति देने के राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है । पीठ में जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस एम एम सुंदरेश शामिल थे । जस्टिस एम आर शाह ने माना कि निर्धारिती चांदी में व्यापार करने का एक वैध व्यवसाय कर रहा था और अधिक लाभ कमाने के प्रयास में, वह चांदी की तस्करी में शामिल था।
केस : आयकर आयुक्त, जयपुर बनाम प्रकाश चंद लुनिया (डी) एलआरएस के माध्यम से और अन्य।
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जांच पूरी किए बिना अधूरी चार्जशीट दाखिल करने से आरोपी का डिफाल्ट जमानत पाने का अधिकार खत्म नहीं हो जाएगा: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 के तहत एक आरोपी को डिफॉल्ट जमानत के अधिकार से वंचित करने के लिए एक जांच एजेंसी किसी मामले की जांच पूरी किए बिना चार्जशीट या अभियोजन शिकायत दर्ज नहीं कर सकती है। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने रेडियस ग्रुप की रितु छाबरिया की ओर से दायर रिट याचिका पर विचार करते हुए यह आदेश दिया। खंडपीठ ने रितु की अंतरिम जमानत के आदेश को संपूर्ण करार दिया।
[केस टाइटल : रितु छाबरिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य। डब्ल्यूपी(सीआरएल) नंबर 60/2023]
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जमानत की शर्त | जमानत देने के लिए बैंक गारंटी के प्री-डिपॉजिट की मांग मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देते समय बैंक गारंटी देने की पूर्व शर्त लगाई थी। खंडपीठ ने इस तरह की प्रथा को अस्थिर और बुरा माना है। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने मखीजानी पुष्पक हरीश बनाम गुजरात राज्य में दायर अपील का फैसला सुनाते हुए कहा कि जमानत देते समय डिपॉजिट नहीं लगाया जा सकता। इस मामले में भी कोर्ट ने अपने पिछले समान मामलों में लिए गए अपने रुख से हटने से इनकार कर दिया है, जिसमें न्यायालय ने पूर्व-स्थिति की स्थिति रखी है।
केस टाइटल: माखीजानी पुष्पक हरीश बनाम गुजरात राज्य
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डॉक्टर की लापरवाही | पॉलिसी के तहत अपनी देनदारी की सीमा तक शिकायतकर्ता को मुआवजे की प्रतिपूर्ति के लिए बीमाकर्ता उत्तरदायी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डॉक्टर की लापरवाही के मामले में, डॉक्टर को कवर कर रही बीमा कंपनी को पॉलिसी के तहत उसकी देयता की सीमा तक शिकायतकर्ता को मुआवजे की प्रतिपूर्ति करनी होगी।
जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता ने नागरमल मोदी सेवा सदन बनाम प्रेम प्रकाश राजगरिया व अन्य में दायर अपील पर फैसला सुनाते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के इस निष्कर्ष में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया कि अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर लापरवाह थे। यह पाया गया कि एनसीडीआरसी ने सबूतों का अध्ययन करने और एम्स अस्पताल से प्राप्त रिपोर्ट पर विचार करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। इसलिए, लापरवाही के संबंध में निष्कर्ष में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
केस टाइटल: नागरमल मोदी सेवा सदन बनाम प्रेम प्रकाश राजगरिया व अन्य।
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सीपीसी | एक ही पक्ष की ओर से और एक ही संपत्ति के लिए दायर दो वादों से उत्पन्न पहली और दूसरी अपील को क्लब नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दो कार्यवाहियों से उत्पन्न हुई पहली और दूसरी अपीलो को एक साथ नहीं क्लब नहीं किया जा सकता है और उन्हें कॉमन फैसले के जरिए निस्तारित नहीं किया जा सकता, भले ही दो अपीलों की पार्टियां एक हों और विवादित संपत्ति भी एक ही हो।
पीठ ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 96 के तहत पहली अपील और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 100 के तहत दूसरी अपील के मामलों में संभावित विचार पूरी तरह से अलग हैं। उदाहरण के लिए, साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन केवल प्रथम अपील का निर्णय करते समय उत्पन्न होगा न कि दूसरी अपील पर।
केस टाइटलः सीतामल और अन्य बनाम नारायणसामी और अन्य। 2023 लाइवलॉ एससी | सिविल अपील नंबर 6300-6301/2016| 12 अप्रैल, 2023| जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली
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धारा 17 पंजीकरण अधिनियम : हाईकोर्ट किसी पंजीकृत लीज डीड को परिवर्तित या संशोधित करने के लिए क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि जब पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17 के तहत अनिवार्य पंजीकरण के बाद एक लीज डीड निष्पादित की जाती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट द्वारा भी अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए परिवर्तित या संशोधित करने के लिए खुला नहीं है।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा: "...लेन-देन समाप्त होने के बाद और कानून के तहत पंजीकृत होने के उपकरण के बाद, यह किसी भी पक्ष के लिए कम से कम संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट के रिट अधिकार क्षेत्र में और हाईकोर्ट द्वारा जारी परमादेश पर सवाल उठाने के लिए खुला नहीं है। बिना किसी प्रतिफल के शेष क्षेत्र के लिए लीज डीड निष्पादित करना कानून के स्थापित सिद्धांतों के पूरी तरह से विपरीत है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।"
केस: ग्वालियर विकास प्राधिकरण व अन्य। बना भानु प्रताप सिंह
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शादी के सात साल के भीतर वैवाहिक घर में पत्नी की अप्राकृतिक मौत अपने आप में पति को दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी के सात साल के भीतर ससुराल में अप्राकृतिक परिस्थितियों में पत्नी की मौत पति को दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने कहा, "शादी के सात साल के भीतर ससुराल में मृतक की अस्वाभाविक मौत होना ही आरोपी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304बी और 498ए के तहत दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।"
केस टाइटल- चरण सिंह @ चरणजीत सिंह बनाम उत्तराखंड राज्य| लाइवलॉ एससी, 2023 | सिविल अपील नंबर 447/2012 | 20 अप्रैल, 2023| जस्टिस एएस ओक और जस्टिस राजेश बिंदल
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साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत बयान केवल इसलिए खारिज नहीं होगा कि यह अनुवादक के माध्यम से आरोपी की समझ वाली भाषा में नहीं था : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक इकबालिया बयान, जो अन्यथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अनुसार साक्ष्य में स्वीकार्य है, केवल इसलिए खारिज किया जाएगा क्योंकि यह अभियुक्त की मातृभाषा में दर्ज नहीं किया गया। अदालत एक मलयाली आरोपी द्वारा कर्नाटक पुलिस को दिए गए इकबालिया बयान पर सुनवाई कर रही थी।
पुलिस ने आरोपी से सवाल पूछने और उससे जवाब हासिल करने के लिए एक तीसरे पक्ष (जो मलयालम जानता था लेकिन उसे पढ़ना या लिखना नहीं जानता था) की मदद ली थी। तीसरे पक्ष ने आरोपी द्वारा दिए गए उत्तर तमिल भाषा में लिखे, जिसे पुलिस ने कन्नड़ भाषा में रिकॉर्ड किया। पुलिस ने दावा किया कि अभियुक्त के इकबालिया बयान से शव की खोज हुई और इसलिए तर्क दिया कि यह धारा 27 के अनुसार उस हद तक साक्ष्य में स्वीकार्य था।
केस : सिजू कुरियन बनाम कर्नाटक राज्य