सीपीसी | एक ही पक्ष की ओर से और एक ही संपत्ति के लिए दायर दो वादों से उत्पन्न पहली और दूसरी अपील को क्लब नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

25 April 2023 9:22 AM GMT

  • सीपीसी | एक ही पक्ष की ओर से और एक ही संपत्ति के लिए दायर दो वादों से उत्पन्न पहली और दूसरी अपील को क्लब नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दो कार्यवाहियों से उत्पन्न हुई पहली और दूसरी अपीलो को एक साथ नहीं क्लब नहीं किया जा सकता है और उन्हें कॉमन फैसले के जर‌िए निस्तारित नहीं किया जा सकता, भले ही दो अपीलों की पार्टियां एक हों और विवादित संपत्ति भी एक ही हो।

    पीठ ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 96 के तहत पहली अपील और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 100 के तहत दूसरी अपील के मामलों में संभावित विचार पूरी तरह से अलग हैं। उदाहरण के लिए, साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन केवल प्रथम अपील का निर्णय करते समय उत्पन्न होगा न कि दूसरी अपील पर।

    जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने पहली अपील और दो वादों से पैदा हुई दूसरी अपील को मद्रास हाईकोर्ट, जिसने एक कॉमन फैसले से दोनों का निस्तारण किया ‌था, में वापस भेज दिया।

    वादियों ने एक खुद को एक संपत्ति का पूर्ण स्वामी बताया था, और इसी विवाद के मद्देनजर उन्होंने 1996 में घोषणा और निषेधाज्ञा के लिए एक मुकदमा दायर किया गया।

    1998 में पारित एक आदेश के जर‌िए मुकदमा को खारिज कर दिया गया। आदेश के खिलाफ एक नियमित पहली अपील दायर की गई थी, जिसे 1999 में नामंजूर कर दिया गया था। उसी के खिलाफ एक दूसरी अपील दायर की गई।

    2001 में एक अन्य मुकदमा दायर किया गया, जिसमें संपत्तियों के बंटवारे और अलग कब्जे की मांग की गई थी, जिसमें 1996 के मुकदमे में शामिल संपत्ति भी शामिल थी। बंटावारे के लिए वाद की अनुमति दी गई। इसके बाद नियमित प्रथम अपील दायर की गई।

    चूंकि दोनों कार्यवाही में पक्ष समान थे, मद्रास ‌हाईकोर्ट ने अपीलों को क्लब कर दिया और विचार किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक सामान्य परिस्थिति में हाईकोर्ट को विरोधाभासी डिक्री से बचने के लिए मामलों पर एक साथ विचार करना उचित होगा।

    हालांकि, वर्तमान मामले में एक नियमित प्रथम अपील थी, जबकि दूसरी द्वितीय अपील थी। इन दोनों अपीलों में किए जाने वाले विचार पूरी तरह से अलग हैं।

    आदेश में कहा गया,

    "मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच का 30 जुलाई 2012 को दिया गया निर्णय एक कॉमन निर्णय है, जिसके तहत एसए नंबर 994/1999 में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 100 के तहत उत्पन्न दूसरी अपील, और एएस नंबर 26/2004 में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 96 के तहत उत्पन्न नियमित प्रथम अपील,दोनों पर विचार किया गया है और 30 जुलाई 2012 के कॉमन जजमेंट के जरिए निस्तारित किया गया है।"

    सुप्रीम कोर्ट ने इस स्तर पर मेरिट के आधार पर मामले का फैसला करने से इनकार करते हुए कहा कि हाईकोर्ट को पहली अपील में उत्पन्न तथ्यों पर विचार करना चाहिए और उसी पर निर्णय लेना चाहिए, दूसरी अपील पर स्वतंत्र विचार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्‍ट किया कि हाईकोर्ट को भेजी जा रही दोनों अपीलों को अलग किया जाना चाहिए और स्वतंत्र रूप से विचार किया जाना चाहिए।

    मुकदमेबाजी की प्रकृति और मुकदमेबाजी में पहले ही खर्च हो चुके समय को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि वह पहले मामलों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करे। यदि प्रयास विफल होता है तो हाईकोर्ट और मामले को यथासंभव शीघ्रता से तय कर करने क लिए आगे बढ़ सकता है।

    केस टाइटलः सीतामल और अन्य बनाम नारायणसामी और अन्य। 2023 लाइवलॉ एससी | सिविल अपील नंबर 6300-6301/2016| 12 अप्रैल, 2023| जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली

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