सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2023-03-12 06:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (6 मार्च, 2023 से 10 मार्च, 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

दुकान में व्यवसाय करने के लिए लाइसेंस का अधिकार पार्टी को नीलामी प्लेटफॉर्म के आवंटन के अधिकार के रूप में नहीं देता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी विशेष दुकान में बिजनेस करने के लिए लाइसेंस, ऑक्‍शन प्लेटफॉर्म के आवंटन के लिए एक पक्ष को अधिकार नहीं देता है, विशेष रूप से, उनकी दुकान के सामने और/या बगल में।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने कहा, "यहां तक कि हाईकोर्ट द्वारा उचित रूप से कहा गया है, दुकान में व्यवसाय करना और नीलामी मंच पर व्यवसाय करना, दोनों अलग और अलग हैं। केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति के पास लाइसेंस है और वह किसी विशेष दुकान में व्यवसाय कर रहा है, वह अधिकार के रूप में नीलामी मंच का हकदार नहीं है और वह भी अपनी दुकान के सामने और/या बगल में। इस तरह के दावे का समर्थन करने वाले किसी भी नियम और/या विनियमन और/या दिशानिर्देश को हाईकोर्ट या यहां तक कि इस न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाया गया है।”

केस टाइटल: गुरजीत सिंह (डी) बनाम केंद्र शासित प्रदेश, चंडीगढ़ व अन्य। | सिविल अपील संख्या 4826¬4828/2022

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'पत्नी की उम्र 15 साल से ज्यादा तो नहीं बनता रेप का केस': सुप्रीम कोर्ट ने पति को किया बरी

सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग पत्नी से संबंध बनाने के मामले में रेप के आरोप से पति को बरी कर दिया। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने कहा कि अगर पत्नी उम्र 15 साल से ज्यादा है तो ऐसे केस में रेप का आरोप नहीं बनता। इससे पहले पति को हाईकोर्ट ने रेप में दोषी करार दिया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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बाध्यकारी निर्णय को चुनौती देने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अदालत द्वारा पारित बाध्यकारी फैसले को चुनौती देने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की संविधान पीठ ने उस फैसले में भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार की धारा 24(2) की व्याख्या की।

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अतिरिक्त-न्यायिक स्वीकारोक्ति सबूत का एक कमजोर भाग है, इसकी स्वतंत्र पुष्टि की आवश्यकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अतिरिक्त-न्यायिक स्वीकारोक्ति (Extra-Judicial Confession) साक्ष्य का एक कमजोर भाग है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले पर सुनवाई के दौरान देखा कि अतिरिक्त-न्यायिक स्वीकारोक्ति की विश्वसनीयता तब कम हो जाती है जब आसपास की परिस्थितियां संदिग्ध होती हैं।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने कहा कि अदालतें आमतौर पर एक अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति पर कोई भरोसा करने से पहले एक स्वतंत्र विश्वसनीय पुष्टि की तलाश करेंगी।

केस टाइटल: निखिल चंद्र मंडल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य | क्रिमिनल अपील नंबर 2269/2010

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सीआरपीसी की धारा 319 का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब किसी व्यक्ति के खिलाफ मजबूत और ठोस सबूत हो: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग विवेकाधीन है। इसका प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब किसी व्यक्ति के खिलाफ मजबूत और ठोस सबूत हो। सीआरपीसी की धारा 319 के तहत एक आवेदन को खारिज करते हुए जस्टिस एएस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि अदालत को धारा 319 सीआरपीसी के तहत असाधारण शक्ति का प्रयोग एक आकस्मिक तरीके से नहीं करना चाहिए।

धारा 319 के तहत आवेदन एक अतिरिक्त अभियुक्त के रूप में अपीलकर्ता को बुलाने के लिए एक शिकायतकर्ता ने दायर किया था। ट्रायल कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी थी, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसके आदेश को रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से विचार के लिए वापस भेज दिया।

केस टाइटल- विकास राठी बनाम यूपी राज्य और अन्य| 2023 LiveLaw (SC) 172 | आपराधिक अपील संख्या 644 ऑफ 2023| 1 मार्च, 2023| जस्टिस ए.एस. ओका और जस्टिस राजेश बिंदल

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बेसिक डिग्री कोर्स किए बिना ओपन यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक उम्मीदवार, जिसने बुनियादी डिग्री पाठ्यक्रम से गुजरे बिना मुक्त विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की है, वह मान्य नहीं है।

जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने कहा कि क्या बुनियादी स्नातक पाठ्यक्रम से गुजरे बिना ओपन यूनिवर्सिटी से प्राप्त स्नातकोत्तर डिग्री स्वीकार्य है, इसका जवाब पहले ही एक अन्य फैसले - अन्नामलाई विश्वविद्यालय बनाम सरकार, सूचना और पर्यटन विभाग के सचिव में दिया गया था।

केस टाइटल: पी रमन बनाम तमिलनाडु सरकार और अन्य | विशेष अवकाश याचिका (सिविल) डायरी सं.3959/2021

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अपहरण के शिकार बच्चे को चुप कराने के लिए डराना-धमकाना जीवन के लिए खतरा साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह ए‌क फैसले में कहा, अपहृत बच्चे को मदद मांगने से रोकने के लिए डराना-धमकाना धमकी, जिसके कारण यह उचित आशंका है कि अपहरण किए गए व्यक्ति को चोटिल किया गया है या उसे मार दिया गया है, के तत्व को साबित नहीं करता है, जैसा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 364ए (फिरौती के लिए अपहरण, आदि) के तहत सजा को कायम रखने के लिए आवश्यक है।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने फिरौती के लिए ए‌क बच्‍चे के अपहरण के दोषी चार व्यक्तियों ‌की धारा 364ए के तहत दोषसिद्धि को धारा 363 (अपहरण की सजा) के तहत अपहरण के हल्के अपराध से प्रतिस्‍थापित कर दिया।

केस टाइटलः रवि ढींगरा बनाम राज्य हरियाणा | 2009 की आपराधिक अपील संख्या 987 और संबंधित मामले

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अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने के आदेश को रद्द किया जा सकता है अगर ये दंडात्मक हो और अनुशासनात्मक कार्यवाही को रोकने के लिए हो : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा एक राजपत्रित अधिकारी को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने के लिए राष्ट्रपति को संप्रेषित करने के वाले पारित आदेश को रद्द कर दिया, जिसकी आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल के सदस्य (लेखाकार) के रूप में नियुक्ति विचार किया जा रहा था।

जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ नेअनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को कानून की दृष्टि से टिकाऊ नहीं मानते हुए कहा कि आदेश प्रकृति में दंडात्मक था और संबंधित अधिकारी के खिलाफ लंबित अनुशासनात्मक कार्यवाही को रोकने के लिए पारित किया गया था, ताकि उसे तत्काल हटाया जा सके।

केस विवरण- कप्तान प्रमोद कुमार बजाज बनाम भारत संघ और अन्य।। 2023 लाइवलॉ (SC) 165 | 2022 की सिविल अपील नंबर 6161| 3 मार्च, 2023|

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शिवसेना विवाद । राज्यपाल के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के सवालों पर फिर से एक नज़र

शिवसेना में एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे समूहों के बीच विवाद के मामले में राज्यपाल की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट में लंबी बहस हुई। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ के समक्ष यह मामला विचाराधीन है।

सुनवाई के दौरान बेंच ने विश्वास मत हासिल करने और मुख्यमंत्री को शपथ दिलाने की राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित कई सवाल किए, खासकर उन मामलों में जहां अयोग्यता के मुद्दे लंबित हैं या जहां सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ सदस्यों की ढेर संख्या हैं। पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट ने अपनी दलीलें रखीं, पीठ ने उनकी स्थिति का परीक्षण करने के लिए कई काल्पनिक परिदृश्य प्रस्तुत किए।

केस : सुभाष देसाई बनाम प्रमुख सचिव, महाराष्ट्र के राज्यपाल और अन्य। डब्ल्यूपी(सी) संख्या 493/2022

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