सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2023-02-12 06:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (06 फरवरी, 2023 से 10 फरवरी, 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

जस्टिस विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति : सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज किया कि कॉलेजियम को तथ्यों की जानकारी नहीं थी, कहा उपयुक्तता पर न्यायिक समीक्षा नहीं

सुप्रीम ने शुक्रवार को मद्रास मद्रास की अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में जस्टिस लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने के कारणों की घोषणा करते हुए इस तर्क को खारिज कर दिया कि कॉलेजियम को तथ्यों की जानकारी नहीं थी जब उन्होंने उसके नाम की पदोन्नति की सिफारिश की थी।

सीनियर एडवोकेट राजू रामचंद्रन ने 7 फरवरी, 2023 को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया था कि सिफारिश 17 जनवरी, 2023 को की गई थी और धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित उम्मीदवार के विवादास्पद बयान 1 फरवरी, 2023 को प्रकाश में आए थे। इसके बाद कॉलेजियम के फैसले को वापस लेने की मांग करते हुए एक अभ्यावेदन भेजा गया था। उन्होंने अदालत से शपथ ग्रहण समारोह पर रोक लगाने की गुहार लगाई क्योंकि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद कहा था कि कॉलेजियम अभी भी इस मुद्दे को देख रहा है।

[केस का शीर्षक: अन्ना मैथ्यूज और अन्य।बनाम एससीआई और अन्य। डब्लूपी(सी) संख्या 148/2023]

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आदेश 21 नियम 84 सीपीसी: नीलामी क्रेता के लिए राशि का 25% जमा करना अनिवार्य; शेष राशि का भुगतान पंद्रह दिनों के भीतर करना होगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि आदेश 21 नियम 84 सीपीसी के तहत, नीलामी क्रेता की ओर से राशि का 25% जमा करना अनिवार्य है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा, खरीद की पूरी राशि का भुगतान बिक्री की तारीख से पंद्रह दिनों के भीतर किया जाना चाहिए।

मामले में विचाराधीन संपत्ति को 18.10.2011 को नीलामी के लिए रखा गया था। नीलामी क्रेता ने 03.11.2011 को राशि का 25% जमा किया। नीलामी क्रेता ने 04.11.2011 को बिक्री मूल्य का 75% जमा किया गया था। निष्पादन न्यायालय ने आपत्तियों को खारिज कर दिया और आदेश 21 नियम 90 सीपीसी के तहत आवेदन को खारिज कर दिया और बिक्री को रद्द करने से इनकार कर दिया। इस आदेश को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था।

केस टाइटलः गैस प्वाइंट पेट्रोलियम इंडिया लिमिटेड बनाम राजेंद्र मारोथी | 2023 लाइवलॉ (SC) 89 | सीए 619 ऑफ 2023 | 10 फरवरी 2023 | जस्टिस एमआर शाह और ज‌स्टिस सीटी रविकुमार

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NDPS Act- आप छोटे पैडलर्स, किसानों को पकड़ते हैं, ड्रग सिंडिकेट चलाने वाले असल गुनहगारों को पकड़िए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एनडीपीएस मामले में एक विचाराधीन कैदी को जमानत देते समय टिप्पणी की कि आप छोटे किसानों,ड्रग्स पैडलर को पकड़ते हैं। अंतराष्ट्रीय स्तर पर ड्रग्स सिंडिकेट चलाने वाले लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। असल गुनाहगारों को पकड़िए और लोगों को बचाइए।“

केस टाइटल : साबिर बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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फ्लैट ओनर्स अपार्टमेंट के कब्जे के बाद भी बिल्डर की ओर से वादा की गई सुविधाओं का दावा करने का अधिकार नहीं खोते: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्लैट ओनर्स, जिन्हें अक्सर परिस्थितियों के कारण अपार्टमेंट का कब्जा लेना पड़ता है, भले ही उन्हें बिल्डर ने वादा की गई सुविधाएं प्रदान ना की हों, वे बिल्डर से ऐसी सेवाओं का दावा करने के अपने अधिकार को नहीं खोते। जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने पीड़ित फ्लैट मालिकों की ओर से पेश मुआवजे के दावे को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा इस आधार पर खारिज करने के लिए कि उन्होंने कब्जा ले लिया है, की आलोचना की।

केस टाइटल: देबाशीष सिन्हा और अन्य बनाम मैसर्स आरएनआर एंटरप्राइज, कोलकाता मालिक/अध्यक्ष द्वारा प्रतिनिधित्व और अन्य

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'बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पास ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन आयोजित करने का अधिकार': सुप्रीम कोर्ट ने कानून की डिग्री पाने वालों को वकालत का लाइसेंस देने पहले होने वाले एग्जाम को सही ठहराया

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ ने कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पास ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन आयोजित करने का अधिकार है। ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन को पूर्व-नामांकन या नामांकन के बाद आयोजित किया जाना चाहिए, ये एक ऐसा मामला है जिसे बीसीआई तय कर सकता है।

संविधान पीठ ने वी सुदीर बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया, (1999) 3 एससीसी 176 के फैसले को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एडवोकेट एक्ट की धारा 24 में उल्लिखित शर्तों के अलावा कोई भी शर्त, लीगल प्रैक्टिस करने के इच्छुक व्यक्ति पर नहीं लगाई जा सकती है।

केस टाइटल- बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम बोनी फोई लॉ कॉलेज व अन्य। विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 22337 ऑफ 2008

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सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियुक्ति नहीं होने और कोई स्वीकृत पद नहीं होने पर नियमितीकरण का दावा नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि नियमितीकरण की मांग करने के लिए दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी को शुरू में एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियुक्त किया जाना चाहिए और एक स्वीकृत पद होना चाहिए जिस पर वह काम कर रहा हो। जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका से उत्पन्न एक सिविल अपील पर सुनवाई कर रही थी।

केस टाइटल: विभूति शंकर पांडे बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य। (Arising Out Of SLP (C ) No. 10519 of 2020)

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अनुसूचित अपराध का ट्रायल उसी विशेष अदालत में होना चाहिए, जिसने मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध का संज्ञान लिया है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित अपराध का मुकदमा उस विशेष न्यायालय में होना चाहिए, जिसने मनी-लॉन्ड्रिंग के अपराध का संज्ञान लिया है। अदालत ने यह भी कहा कि सीआरपीसी के प्रावधान पीएमएलए एक्ट के तहत विशेष न्यायालय के समक्ष कार्यवाही सहित सभी कार्यवाहियों पर लागू होते हैं, केवल उस सीमा को छोड़कर, जिनमें उन्हें विशेष रूप से बाहर रखा गया है। जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस जेबी पर्दीवाला की पीठ ने पत्रकार राणा अय्यूब की ओर से दायर रिट याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

मामला: राणा अय्यूब बनाम प्रवर्तन निदेशालय | 2023 लाइवलॉ (SC) 86 | डब्ल्यूपी(सीआरएल) 12/2023| 7 फरवरी 2023 | जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस जेबी पर्दीवाला

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मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों का पीएमएलए के तहत ट्रायल का क्षेत्राधिकार वहां तक सीमित नहीं जहां अपराध की कथित आय जमा की गई : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध का गठन विभिन्न गतिविधियों, अर्थात् छिपाना, कब्जा, अधिग्रहण, उपयोग, बेदाग संपत्ति के रूप में पेश करना, या बेदाग संपत्ति के रूप में दावा करने से होता है। इसलिए, इस अपराध का ट्रायल उन जगहों पर किया जा सकता है जहां इनमें से कोई भी कृत्य हुआ हो। अदालत ने पत्रकार राणा अय्यूब के इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध का ट्रायल केवल उस स्थान पर हो सकता है जहां अपराध की कथित आय जमा की गई है (नवी मुंबई)

केस- राणा अय्यूब बनाम प्रवर्तन निदेशालय | 2023 की रिट याचिका (आपराधिक) संख्या 12

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'देखना चाहते हैं कि क्या माफी वास्तव में दिल से मांगी गई है': सुप्रीम कोर्ट ने हड़ताल के दौरान तोड़फोड़ करने वाले ओडिशा वकीलों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही बंद करने से इनकार किया

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उड़ीसा हाईकोर्ट की नई पीठों के गठन की मांग को लेकर हड़ताल के दौरान कोर्ट परिसर में तोड़फोड़ करने वाले वकीलों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही बंद करने से इनकार कर दिया। सीनियर एडवोकेट विजय हंसारिया ने जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जिन वकीलों के खिलाफ शीर्ष अदालत ने अवमानना नोटिस जारी किया था, उन्होंने बिना शर्त माफी मांगी है। उसी के मद्देनजर, उन्होंने माफी स्वीकार करते हुए अवमानना कार्यवाही को बंद करने के लिए अदालत से आग्रह किया।

[केस टाइटल: पीएलआर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड और अन्य। डायरी संख्या 33859/2022]

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अगर परिस्थितियां चाहती हैं तो एक जज, जो गलत नियुक्त किया गया है, कार्रवाई से प्रतिरक्षित नहीं है : सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में कहा था

सुप्रीम कोर्ट मद्रास हाईकोर्ट की न्यायाधीश के रूप में एल विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के एक अन्य जज पर 2008 में भी एक फैसला दिया था। शांति भूषण और अन्य बनाम भारत संघ में जस्टिस अरिजीत पसायत और जस्टिस डॉ मुकुंदकम् शर्मा की बेंच के सामने याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि मद्रास हाईकोर्टके दिवंगत जस्टिस अशोक कुमार को 2 फरवरी, 2007 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्होंने 3 फरवरी, 2007 को तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से परामर्श किए बिना स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल थे।

जस्टिस अशोक कुमार का अक्टूबर 2009 में निधन हो गया। दूसरे और तीसरे न्यायाधीशों के मामलों में निर्धारित मानदंडों के अनुसार, सीजेआई से यह भी अपेक्षा की गई थी कि वे सुप्रीम कोर्ट के कुछ अन्य न्यायाधीशों से परामर्श करें, जो मद्रास हाईकोर्ट के मामलों से परिचित थे, लेकिन उन्होंने नहीं किया।

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विक्टोरिया गौरी केस: क्या सुप्रीम कोर्ट ने कभी शपथ ग्रहण से पहले हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति रद्द की है? हां, केवल एक बार

यह पता चलने के बाद कि अनुशंसित व्यक्ति अयोग्य था, सुप्रीम कोर्ट के पूरे इतिहास में हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति को रद्द करने का केवल एक ही उदाहरण है। वह असाधारण कार्रवाई कुमार पद्म प्रसाद बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य 1992 2 एससीसी 428 मामले में हुई ‌थी, जहां सुप्रीम कोर्ट ने केएन श्रीवास्तव की नियुक्ति गुवाहाटी हाईकोर्ट में जज के रूप में शपथ लेने के बाद भी रद्द कर दी ‌थी।

मद्रास हाईकोर्ट के जज के रूप में एडवोकेट एल विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को चुनौती देने के लिए 1992 की इस मिसाल का हवाला दिया गया है। सी‌नियर एडवोकेट राजू रामचंद्रन, उन याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, जिन्होंने गौरी की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी थी कि उन्होंने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण दिए हैं, उन्होंने चीफ ज‌‌स्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए याचिका का उल्लेख करते हुए कुमार पद्म प्रसाद मामले का उल्लेख किया।

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सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एडवोकेट लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिका खारिज की। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि ये नहीं माना जा सकता है कि कॉलेजियम गौरी की राजनीतिक पृष्ठभूमि या उनके आर्टिकल से अवगत नहीं था जो बाद में सार्वजनिक डोमेन में सामने आए। पीठ ने कहा कि उन्हें केवल एक अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा रहा है और ऐसे उदाहरण हैं जहां व्यक्तियों की पुष्टि नहीं की गई है।

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केंद्र ने मद्रास हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में एडवोकेट एल विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को अधिसूचित किया

केंद्र सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट के एडमिशनल जज के रूप में एडवोकेट एल विक्टोरिया गौरी (L Victoria Gowri) की नियुक्ति को अधिसूचित किया है। बीजेपी से उनके संबंध की खबरें और मुसलमानों और ईसाइयों के बारे में दिए गए कुछ बयानों पर व्यापक प्रतिक्रिया के बीच केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया।

वकीलों के एक समूह ने पहले राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को लिखा, “इस समय न्यायपालिका को कार्यपालिका से अभूतपूर्व और अनुचित आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि हम आशंकित हैं कि इस तरह की नियुक्तियां न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करने का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं। इस समय, संस्थान को अपनी प्रशासनिक कार्रवाई से कमजोर होने से बचाने के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है।"

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जमानत की शर्त के तौर पर अंतरिम पीड़ित मुआवजा नहीं लगाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतरिम पीड़ित मुआवजा जमानत के लिए एक शर्त के रूप में नहीं लगाया जा सकता है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की खंडपीठ ने कहा, "पीड़ित मुआवजा कथित अपराध के संबंध में लिए गए अंतिम दृष्टिकोण के साथ-साथ है, यानी, क्या यह ऐसा किया गया था या नहीं, और इस प्रकार, मामले के प्री-ट्रायल के किसी भी पूर्व-अनिवार्यता को लागू करने का कोई सवाल ही नहीं है।" खंडपीठ झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपील की अनुमति दे रही थी।

केस टाइटलः तलत सान्वी बनाम झारखंड राज्य | 2023 लाइवलॉ (SC) 82 | सीआरए 205/2023 | 24 जनवरी 2023 | जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका

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