सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
3 Aug 2025 12:00 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (28 जुलाई, 2025 से 01 अगस्त, 2025 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली समिति को पश्चिम बंगाल के 15 सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का स्वतंत्र रूप से चयन करने का निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल में कुलपतियों की नियुक्ति के संबंध में अपने पिछले निर्देशों में संशोधन करते हुए पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) यूयू ललित और उनकी अध्यक्षता वाली चयन समिति को 15 विश्वविद्यालयों में नियुक्ति के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवारों का स्वतंत्र रूप से चयन करने की ज़िम्मेदारी सौंपी।
न्यायालय ने कहा, "जस्टिस ललित और उनकी चयन समिति के सदस्य इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं, क्योंकि उन्होंने न केवल उम्मीदवारों से बातचीत की है, बल्कि उनकी उम्मीदवारी पर विचार करते समय उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों, अनुभव, योग्यता और अन्य प्रासंगिक कारकों की भी जाँच की है।"
Case Title – State of West Bengal v. Dr. Sanat Kumar Ghosh & Ors.
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सुप्रीम कोर्ट ने विद्युत मंत्रालय और नियामकों को विद्युत क्षेत्र में उत्सर्जन कम करने के लिए संयुक्त कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में (22 जुलाई) विद्युत मंत्रालय को केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) और केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) के साथ संयुक्त बैठक आयोजित करने का निर्देश दिया ताकि विद्युत उत्पादन क्षेत्र से कार्बन उत्सर्जन कम करने हेतु एक समन्वित कार्य योजना तैयार की जा सके। न्यायालय ने तीनों निकायों को चार सप्ताह के भीतर संयुक्त हलफनामा दायर करने का आदेश दिया, जिसमें लागू कानूनी ढाँचे और उत्सर्जन से निपटने के लिए प्रस्तावित कदमों का विवरण दिया गया हो।
केस टाइटल- रिधिमा पांडे बनाम भारत संघ एवं अन्य।
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MSME फ्रेमवर्क SARFAESI प्रोसीडिंग के खिलाफ ढाल नहीं, जब तक कि इसे सक्रिय रूप से लागू न किया जाए: सुप्रीम कोर्ट ने 'Pro Knits' फैसले को स्पष्ट किया
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि सुरक्षित ऋणदाता और बैंक MSME के खातों को गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) के रूप में वर्गीकृत करने से पहले उनके खातों में "प्रारंभिक तनाव" की पहचान करने के लिए बाध्य नहीं हैं, जब तक कि MSME उधारकर्ता ने पुनरुद्धार और पुनर्वास के लिए 2015 के RBI फ्रेमवर्क का स्पष्ट रूप से आह्वान न किया हो।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि MSME, चूक के बाद ऋणदाताओं द्वारा शुरू की गई SRFAESI कार्यवाही के दौरान फ्रेमवर्क पर देर से भरोसा नहीं कर सकते। इसके बजाय, यदि MSME को व्यावसायिक संकट का अनुमान है, तो पुनर्वास उपायों को सक्रिय रूप से शुरू करना MSME का दायित्व है।
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दिल्ली हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन नहीं पा सकें अन्य राज्यों के रिटायर जज, सुप्रीम कोर्ट ने नियम को चुनौती देने वाली याचिका की खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के नियम को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी, जिसमें अन्य राज्यों के रिटायर जजों को दिल्ली में सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन के लिए आवेदन करने से रोका गया था। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली विजय प्रताप सिंह द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज की, जिसमें संबंधित नियम बरकरार रखा गया था।
Case : VIJAI PRATAP SINGH Vs DELHI HIGH COURT THROUGH ITS REGISTRAR GENERAL | SLP(C) No. 15148/2025
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CrPC की धारा 156(3) के तहत हलफनामा न देना मजिस्ट्रेट के आदेश से पहले सुधारा जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 31 जुलाई को पुनः पुष्टि की कि प्रियंका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2015) मामले में निर्धारित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय CrPC की धारा 156(3) के तहत शिकायतों के लिए अनिवार्य हैं, जिसके तहत शिकायतकर्ता को शिकायत की सत्यता की पुष्टि करते हुए और पूर्व मुकदमेबाजी के इतिहास का खुलासा करते हुए हलफनामा प्रस्तुत करना आवश्यक है।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ उस मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता ने उनके खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार करने वाले हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। अपीलकर्ताओं द्वारा दी गई दलीलों में से एक यह थी कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ FIR दर्ज करने का मजिस्ट्रेट का निर्देश अवैध है, क्योंकि शिकायतकर्ता ने CrPC की धारा 156(3) के तहत FIR दर्ज करने के मजिस्ट्रेट के अधिकार का इस्तेमाल करने की मांग करते हुए शिकायत की सत्यता की पुष्टि करने वाला हलफनामा प्रस्तुत नहीं किया था।
Cause Title: S. N. VIJAYALAKSHMI & ORS. VERSUS STATE OF KARNATAKA & ANR.
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सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन को 2025-26 के लिए शिक्षा में 3% OBC आरक्षण प्रदान करने का निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन को शैक्षणिक वर्ष 2025-26 के लिए शैक्षणिक सीटों में 3% OBC आरक्षण प्रदान करने का निर्देश दिया। केंद्र सरकार द्वारा न्यायालय को यह सूचित किए जाने के बाद कि केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में OBC आरक्षण प्रदान करने के लिए अधिनियम एक सप्ताह के भीतर अधिसूचित किया जाएगा, यह आदेश दिया गया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन तथा जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज के MBBS में एडमिशन में OBC को आरक्षण प्रदान नहीं करने के कारण प्रवेश विवरणिका रद्द करने से इनकार करने के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
Case Details: DHRUVI YADAV v. UNION OF INDIA AND ORS.|SLP(C) No. 20072/2019
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'अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल अन्याय करने के लिए किया गया': सुप्रीम कोर्ट ने JSW की समाधान योजना खारिज करने वाला फैसला वापस लिया
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (31 जुलाई) को प्रथम दृष्टया टिप्पणी की कि भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (BPSL) के लिए JSW स्टील की समाधान योजना को खारिज करने और BPSL के परिसमापन का निर्देश देने वाले फैसले की समीक्षा की आवश्यकता है, क्योंकि यह विभिन्न उदाहरणों में निर्धारित कानून के विपरीत था। इसलिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने फैसला वापस ले लिया और मामले की नए सिरे से सुनवाई करने का फैसला किया। खंडपीठ ने सभी पक्षों की दलीलें नए सिरे से सुनवाई के लिए खुली रखीं।
Case Title – Punjab National Bank and Anr. v. Kalyani Transco and Ors.
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सिर्फ आरोपी के द्वारा दिए आश्वासन के आधार पर जमानत न दें : सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्ट व ट्रायल कोर्ट को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अभियुक्त द्वारा ₹25 लाख जमा करने के वचन के आधार पर ज़मानत देने का आदेश अस्वीकृत कर दिया। इस बात पर ज़ोर दिया कि ज़मानत मामले के गुण-दोष के आधार पर दी जानी चाहिए, न कि अभियुक्त द्वारा दिए गए आश्वासनों के आधार पर।
न्यायालय ने हाईकोर्ट और निचली अदालतों को सामान्य निर्देश दिया कि वे नियमित ज़मानत या अग्रिम ज़मानत की याचिका पर मामले के गुण-दोष के आधार पर ही निर्णय लें, न कि आवेदक या उसके परिवार के सदस्य द्वारा किसी विशेष राशि जमा करने के वचन के आधार पर ज़मानत देने के लिए अपने विवेक का प्रयोग करें।
Cause Title: GAJANAN DATTATRAY GORE VERSUS THE STATE OF MAHARASHTRA & ANR.
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सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना विधानसभा स्पीकर को कांग्रेस में शामिल हुए BRS MLA की अयोग्यता पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया
तेलंगाना में दस BRS MLA के कांग्रेस (Congress) में शामिल होने से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (31 जुलाई) को तेलंगाना विधानसभा स्पीकर को संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत विधायकों की अयोग्यता की मांग वाली याचिकाओं पर आज से तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने कहा कि वह विधानसभा के कार्यकाल के दौरान अयोग्यता याचिकाओं को लंबित रखकर "ऑपरेशन सफल रहा, लेकिन मरीज की मृत्यु हो गई" जैसी स्थिति की अनुमति नहीं दे सकता, जिससे दलबदलुओं को देरी का लाभ मिल सके।
Case Title: PADI KAUSHIK REDDY Versus THE STATE OF TELANGANA AND ORS., SLP(C) No. 2353-2354/2025 (and connected cases)
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सुरक्षित और वाहन-योग्य सड़कों का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा: सुप्रीम कोर्ट
यह देखते हुए कि सुरक्षित, सुव्यवस्थित और वाहन-योग्य सड़कों के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के एक हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है, सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाया कि सड़क निर्माण का ठेका किसी निजी कंपनी को देने के बजाय राज्य को सीधे अपने नियंत्रण में आने वाली सड़कों के विकास और रखरखाव की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।
अदालत ने कहा, “मध्य प्रदेश राजमार्ग अधिनियम, 2004... राज्य में सड़कों के विकास, निर्माण और रखरखाव में राज्य की भूमिका को दोहराता है। चूंकि देश के किसी भी हिस्से तक पहुंचने का अधिकार कुछ परिस्थितियों में कुछ अपवादों और प्रतिबंधों के साथ संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत गारंटीकृत एक मौलिक अधिकार है। सुरक्षित, सुव्यवस्थित और मोटर योग्य सड़कों के अधिकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के एक भाग के रूप में मान्यता प्राप्त है, इसलिए राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने सीधे नियंत्रण में आने वाली सड़कों का विकास और रखरखाव करे।”
Cause Title: UMRI POOPH PRATAPPUR (UPP) TOLLWAYS PVT. LTD. VERSUS M.P. ROAD DEVELOPMENT CORPORATION AND ANOTHER
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BNSS की धारा 35 के तहत पुलिस समन इलेक्ट्रॉनिक रूप से नहीं दिए जा सकते: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 35 के अनुसार पुलिस/जांच एजेंसी द्वारा किसी अभियुक्त को पेशी के लिए जारी किए गए समन इलेक्ट्रॉनिक रूप से नहीं दिए जा सकते। कोर्ट ने हरियाणा राज्य द्वारा जनवरी 2025 में जारी अपने पूर्व निर्देश में संशोधन के लिए दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि CrPC की धारा 41ए/BNSS की धारा 35 के तहत पेशी के लिए समन व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से नहीं दिए जा सकते।
Case : Satinder Kumar Antil v. Central Bureau of Investigation | IA NO. 63691 OF 2025 in SLP(Crl). 5191 OF 2021
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कार्यस्थल पर आवागमन के दौरान होने वाली घातक दुर्घटनाएं कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम के अंतर्गत आती हैं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में मंगलवार (29 जुलाई) को कहा कि किसी कर्मचारी के कार्यस्थल पर आवागमन के दौरान होने वाली घातक दुर्घटनाएं कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम, 1923 ("कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम") के तहत मुआवज़े के लिए पात्र हो सकती हैं।
जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने मृतक चौकीदार के पक्ष में फैसला सुनाया, जो आधी रात को अपने कार्यस्थल पर जा रहा था, जब कार्यस्थल से 5 किलोमीटर दूर एक दुर्घटना का शिकार हो गया। इससे उसकी मृत्यु हो गई। न्यायालय ने कहा कि यदि आवागमन और कार्य के बीच कोई संबंध है तो रोजगार संबंधी कर्तव्यों को उचित यात्रा परिस्थितियों तक बढ़ाया जा सकता है।
Cause Title: DAIVSHALA & ORS. VERSUS ORIENTAL INSURANCE COMPANY LTD. & ANR.
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भूमि मुआवजा तय करने में सबसे ऊंची सही बिक्री कीमत को आधार मानें: सुप्रीम कोर्ट
अधिग्रहण की कार्यवाही में भूमि मालिकों के अधिकार को मजबूत करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (28 जुलाई) को अनिवार्य रूप से अधिग्रहित कृषि भूमि के लिए भूमि अधिग्रहण मुआवजे को 82% तक बढ़ा दिया, यह कहते हुए कि निचली अदालतों ने पर्याप्त कारण के बिना उच्चतम वास्तविक बिक्री लेनदेन की अनदेखी करके गलती की। कोर्ट ने कहा, "इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि यह कानून की एक स्थापित स्थिति है कि जब समान भूमि के संदर्भ में कई उदाहरण हैं, तो आमतौर पर उच्चतम उदाहरण, जो एक वास्तविक लेनदेन है, पर विचार किया जाएगा।
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Bihar SIR : सुप्रीम कोर्ट ने वोटर लिस्ट के प्रकाशन पर रोक लगाने से किया इनकार, ECI से आधार और वोटर आईडी कार्ड पर विचार करने का किया आग्रह
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (28 जुलाई) को भारत के चुनाव आयोग (ECI) को विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के लिए अधिसूचित कार्यक्रम के अनुसार 1 अगस्त को बिहार के लिए मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित करने से रोकने से इनकार किया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने विस्तृत सुनवाई नहीं की, क्योंकि जस्टिस कांत को दोपहर में चीफ जस्टिस के साथ एक प्रशासनिक बैठक में भाग लेना था। याचिकाकर्ताओं को आश्वासन देते हुए कि मामले की जल्द से जल्द सुनवाई की जाएगी, जस्टिस कांत ने वकीलों से कल बहस के लिए आवश्यक अनुमानित समय बताने को कहा।
Case Title: ASSOCIATION FOR DEMOCRATIC REFORMS AND ORS. Versus ELECTION COMMISSION OF INDIA, W.P.(C) No. 640/2025 (and connected cases)
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S. 18 Limitation Act| आंशिक ऋण की स्वीकृति पूरे दावे की परिसीमा अवधि को नहीं बढ़ाती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आंशिक ऋण की स्वीकृति परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 18 के तहत पूरे ऋण की परिसीमा अवधि को नहीं बढ़ाती। जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस एस.सी. शर्मा की खंडपीठ ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का निर्णय बरकरार रखा, जिसमें अपीलकर्ता को धारा 18 (ऋण की स्वीकृति पर परिसीमा अवधि का विस्तार) का लाभ देने से इनकार कर दिया गया था। खंडपीठ ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता द्वारा देय ऋण का केवल एक भाग ही देनदार द्वारा स्वीकार किया गया था।
Cause Title: M/S. AIREN AND ASSOCIATES VERSUS M/S. SANMAR ENGINEERING SERVICES LIMITED

