सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी के साथ वैवाहिक जीवन फिर से शुरू करने की शर्त पर मिली अग्रिम जमानत को बताया गलत, हाईकोर्ट का आदेश किया रद्द
Amir Ahmad
2 Aug 2025 12:29 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में झारखंड हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत देते समय पति पर यह शर्त थोपने को अनुचित ठहराया कि वह अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध फिर से बहाल करे और उसे सम्मानपूर्वक और गरिमा के साथ रखे।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने कहा कि CrPC की धारा 438(2) के तहत इस तरह की शर्त का कोई आधार नहीं है।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
“पति-पत्नी के बीच पहले से ही दूरी है और वे कुछ समय से अलग रह रहे हैं। ऐसी स्थिति में ऐसी शर्त लगाना आगे चलकर और अधिक मुकदमेबाज़ी को जन्म दे सकता है।”
कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को केवल अग्रिम जमानत की याचिका के गुण-दोष के आधार पर फैसला करना चाहिए था, न कि इस तरह की शर्त जोड़नी चाहिए थी, जो कानून में कहीं नहीं मिलती।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता-पति पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (दहेज उत्पीड़न), 323, 313, 506, 307, 34, तथा दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के तहत मामला दर्ज था।
उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका लगाई, जो मंज़ूर कर ली गई, लेकिन इस शर्त के साथ कि वह पत्नी के साथ विवाहिता जीवन फिर से शुरू करें और गरिमापूर्ण व्यवहार करें।
इस शर्त से आहत होकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी शर्तें पालन न होने पर जमानत रद्द करने के लिए नए विवाद खड़े कर सकती हैं। साथ ही हाईकोर्ट ऐसी जटिल परिस्थितियों में खुद को “विवादित तथ्यों” के निर्धारण में असमर्थ पा सकता है।
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और अग्रिम जमानत याचिका फिर से विचार के लिए हाईकोर्ट को वापस भेज दिया।
टाइटल: अनिल कुमार बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य

