दिल्ली हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन नहीं पा सकें अन्य राज्यों के रिटायर जज, सुप्रीम कोर्ट ने नियम को चुनौती देने वाली याचिका की खारिज
Shahadat
1 Aug 2025 1:04 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के नियम को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी, जिसमें अन्य राज्यों के रिटायर जजों को दिल्ली में सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन के लिए आवेदन करने से रोका गया था।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली विजय प्रताप सिंह द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज की, जिसमें संबंधित नियम बरकरार रखा गया था।
यह चुनौती दिल्ली हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन के नियम, 2024 के नियम 9बी को लेकर थी। नियम के अनुसार, केवल दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा से रिटायर न्यायिक अधिकारी ही सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में आवेदन कर सकते हैं। याचिकाकर्ता उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा से रिटायर हुए थे।
सुप्रीम कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पक्षकार के रूप में उपस्थित याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि नियम 9बी में एक "संवैधानिक दुर्बलता" है, क्योंकि यह "वर्ग के भीतर वर्ग" का निर्माण करता है।
चीफ जस्टिस गवई ने याचिकाकर्ता से कहा,
"आप सुप्रीम कोर्ट में आवेदन क्यों नहीं करते? सुप्रीम कोर्ट में हर कोई आवेदन कर सकता है।"
मामले पर आगे विचार किए बिना खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी।
हाईकोर्ट ने कहा था कि दिल्ली कोर्ट के जजों से यह अपेक्षा करना संभव नहीं है कि वे अन्य राज्यों के रिटायर न्यायिक अधिकारियों को सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन प्रदान करें।
हाईकोर्ट ने कहा था,
“आखिरकार, नियमों के तहत किसी हाईकोर्ट द्वारा सीनियर एडवोकेट के रूप में डेजिग्नेशन केवल उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर ही नहीं, बल्कि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के उपरोक्त मानदंडों के आधार पर भी होता है। सीनियर एडवोकेट के रूप में डेजिग्नेशन ऐसे व्यक्ति को उस न्यायालय के जज के समकक्ष न सही, लेकिन उपयुक्त दर्जा अवश्य प्रदान करता है। इससे जुड़ी संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए सीनियर एडवोकेट के रूप में डेजिग्नेशन चाहने वाले किसी वकील या रिटायर न्यायिक अधिकारी के मूल्यांकन की गंभीरता और महत्व को कम नहीं आंका जा सकता।”
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि DHJS और अन्य राज्यों के रिटायर न्यायिक अधिकारियों के बीच किया गया भेद पूरी तरह से सुबोध अंतर पर आधारित है। यह स्पष्टतः, भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14 में निहित समानता का उल्लंघन नहीं है।
Case : VIJAI PRATAP SINGH Vs DELHI HIGH COURT THROUGH ITS REGISTRAR GENERAL | SLP(C) No. 15148/2025

