हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

22 Nov 2025 9:00 PM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (17 नवंबर, 2025 से 21 नवंबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सिविल केस में ओरिजिनल रेंट एग्रीमेंट न पेश करने को सही ठहराने के लिए पार्टी गवाह की उम्र का हवाला नहीं दे सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि कोई पार्टी किसी व्यक्ति की उम्र का हवाला देकर यह नहीं कह सकती कि वह सिविल केस में गवाह पेश न कर पाए या कहे गए ओरिजिनल रेंट एग्रीमेंट को साबित न कर पाए। कोर्ट ने दोहराया कि जब कोई गवाह बूढ़ा होता है तो कानून कोर्ट द्वारा नियुक्त कमिश्नर के ज़रिए ऐसी गवाही रिकॉर्ड करने का साफ़ तरीका देता है।

    जस्टिस अजय मोहन गोयल ने कहा: "यह दलील कि रोशल लाल एक बूढ़ा व्यक्ति है, याचिकाकर्ता के बचाव में नहीं आ सकती, क्योंकि अगर ऐसा होता तो याचिकाकर्ता रोशन लाल का बयान कमिश्नर नियुक्त करके रिकॉर्ड करवाने के लिए एक सही एप्लीकेशन दे सकता था।"

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    शिकायत दर्ज करने में देरी सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत राहत देने से इनकार करने का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायत दर्ज करने में देरी सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत सीनियर सिटीजन को राहत देने से इनकार करने का आधार नहीं है। जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा कि अगर कोई सीनियर सिटीजन तय कानूनी तरीके से शिकायत दर्ज करने में जल्दबाजी नहीं करता या तुरंत कार्रवाई नहीं करता है तो यह उस सीनियर सिटीजन को उस कानून से मिलने वाले अधिकारों से वंचित करने का आधार नहीं है।

    कोर्ट ने कहा, "हो सकता है कि किसी खास मामले में कोई सीनियर सिटीजन अपने बच्चों के हाथों उत्पीड़न झेलता रहे और इस उम्मीद में कुछ समय बाद ही संबंधित अथॉरिटी से संपर्क करे कि बच्चे/कानूनी वारिस अपना व्यवहार सुधार लेंगे, और स्थिति अपने आप ठीक हो जाएगी।"

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    शिकायत दर्ज करने में देरी सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत राहत देने से इनकार करने का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायत दर्ज करने में देरी सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत सीनियर सिटीजन को राहत देने से इनकार करने का आधार नहीं है। जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा कि अगर कोई सीनियर सिटीजन तय कानूनी तरीके से शिकायत दर्ज करने में जल्दबाजी नहीं करता या तुरंत कार्रवाई नहीं करता है तो यह उस सीनियर सिटीजन को उस कानून से मिलने वाले अधिकारों से वंचित करने का आधार नहीं है।

    कोर्ट ने कहा, "हो सकता है कि किसी खास मामले में कोई सीनियर सिटीजन अपने बच्चों के हाथों उत्पीड़न झेलता रहे और इस उम्मीद में कुछ समय बाद ही संबंधित अथॉरिटी से संपर्क करे कि बच्चे/कानूनी वारिस अपना व्यवहार सुधार लेंगे, और स्थिति अपने आप ठीक हो जाएगी।"

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    AIIMS भारतीय जूनियर रेजिडेंट डॉक्टरों को स्टाइपेंड देने के लिए बाध्य है, विदेशी PG स्टूडेंट्स को नहीं: हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (AIIMS) भारतीय जूनियर रेजिडेंट्स को स्टाइपेंड देने के लिए बाध्य है, न कि विदेशी पोस्टग्रेजुएट मेडिकल ट्रेनी को। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने कहा कि AIIMS को ऐसे पेमेंट उन घरेलू स्टूडेंट्स को प्राथमिकता के आधार पर करने चाहिए, जो भारतीय टैक्सपेयर्स के फंड के लाभार्थी हैं और जिनसे राष्ट्रीय हेल्थकेयर सिस्टम में योगदान करने की उम्मीद है।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    पर्सनल लॉ के तहत चार शादी करना चाहता था मुस्लिम पति, हाईकोर्ट ने कहा- स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने के बाद ऐसा नहीं किया जा सकता

    झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब दोनों स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत शादी कर लेते हैं तो एक्ट की धारा 22 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली से जुड़े नियम पूरी तरह से लागू होते हैं, भले ही वे किसी भी पर्सनल लॉ को मानते हों।

    कोर्ट ने पति की इस दलील को खारिज कर दिया कि मुस्लिम होने के नाते वह चार महिलाओं से शादी करने का हकदार है, इसलिए उसकी पत्नी का ससुराल छोड़ना गलत था। जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की डिवीजन बेंच ने कहा कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली सिर्फ कानून का नतीजा नहीं है। ऐसा अधिकार शादी के इंस्टीट्यूशन में ही मौजूद है।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट | तीन साल तक की सज़ा वाले अपराध विशेष रूप से अधिकृत मजिस्ट्रेट ही सुनेंगे : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत ऐसे अपराध जिनकी अधिकतम सज़ा तीन वर्ष तक है, उनका ट्रायल सरकार द्वारा विशेष रूप से अधिकृत प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि भले ही ऐसा अपराध अध्याय IV के अंतर्गत आता हो, फिर भी यदि सज़ा तीन वर्ष से अधिक नहीं है तो मामला अधिकृत मजिस्ट्रेट के समक्ष ही सुनवाई योग्य होगा।

    मामला उस याचिका से जुड़ा था, जिसमें आरोपी दवा निर्माता कंपनी ने यह आपत्ति उठाई कि धारा 18(a)(i) और 27(d) के तहत दायर शिकायत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष सुनवाई योग्य नहीं है और ऐसे मामलों की सुनवाई सेशन कोर्ट को करनी चाहिए।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    नियर-मेजॉरिटी आधारित रिश्तों के लिए अदालतें अपवाद नहीं बना सकतीं, POCSO में नाबालिग की सहमति अप्रासंगिक: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ कहा कि अदालतें तथाकथित नियर-मे‍जॉरिटी सहमति आधारित रिश्तों के लिए कोई जज-निर्मित अपवाद नहीं बना सकतीं, क्योंकि POCSO कानून में 18 वर्ष से कम आयु वाले व्यक्ति की सहमति का कोई महत्व नहीं है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संसद ने 18 वर्ष की आयु तय करके यह तय कर दिया कि इससे कम उम्र का व्यक्ति यौन सहमति देने में सक्षम नहीं माना जाएगा।

    जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि POCSO ACT और उस समय लागू भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं के तहत 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के साथ किया गया कोई भी यौन कृत्य स्वयं में अपराध है और उसमें सहमति जैसे तत्व को शामिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि संवैधानिक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए अदालत इक्विटी के आधार पर कोई ऐसा अपवाद नहीं बना सकती जो कानून में है ही नहीं।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सामान्य श्रेणी के यात्रियों को प्रीमियम श्रेणी में यात्रा करने वालों के समान सुरक्षा मानकों का अधिकार: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने रेलवे से कहा

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रत्येक यात्री, चाहे वह किसी भी श्रेणी में यात्रा कर रहा हो, रेल प्रशासन से सुरक्षा, देखभाल और सतर्कता के समान मानकों का हकदार है। जस्टिस हिमांशु जोशी की पीठ ने एक यात्री के भीड़भाड़ वाली ट्रेन से गिरने के कारण अपने दोनों पैर गंवाने के बाद सुरक्षित यात्रा की स्थिति सुनिश्चित करने में विफल रहने के लिए रेलवे को उत्तरदायी ठहराया।

    पीठ ने कहा, "यह न्यायालय यह टिप्पणी करने के लिए बाध्य है कि रेल प्रशासन को सामान्य श्रेणी में यात्रा करने वाले यात्रियों के जीवन और सम्मान को उसी तरह मान्यता देनी चाहिए। उनकी रक्षा करनी चाहिए जैसे वह प्रीमियम ट्रेनों की उच्च श्रेणी में यात्रा करने वालों के लिए करता है। मानव जीवन का मूल्य खरीदे गए टिकट की श्रेणी के साथ नहीं बदलता है। प्रत्येक यात्री चाहे वह किसी भी श्रेणी का हो रेलवे से सुरक्षा देखभाल और सतर्कता के समान मानकों का हकदार है।"

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    1996 गाज़ियाबाद बस धमाका: पुलिस के बयान मान्य नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को 'भारी मन से' बरी किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1996 के मोदीनगर–गाज़ियाबाद बस बम धमाका मामले में दोषी ठहराए गए मोहम्मद इलियास को बरी कर दिया है। 51 पन्नों के विस्तृत फैसले में अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में पूरी तरह विफल रहा और पुलिस द्वारा रिकॉर्ड किया गया इलियास का कथित इक़बाल-ए-जुर्म भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के चलते कानूनी रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि पुलिस के समक्ष दिया गया कथित बयान एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा टेप पर रिकॉर्ड किया गया था, लेकिन चूँकि यह 1996 का मामला है और उस समय TADA कानून लागू नहीं था, इसलिए पुलिस के समक्ष किया कोई भी स्वीकारोक्ति अदालत में साक्ष्य के रूप में पेश नहीं की जा सकती। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि कथित बयान रिकॉर्ड करने वाला टेप-रिकॉर्डर ही पेश नहीं किया गया, और इस तरह बयान की सत्यता या वैधता की कोई पुष्टि अदालत के सामने नहीं हो सकी।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट: बिना किसी आपराधिक इरादे के जोर से खींचने पर महिलाओं का सिर ढकने वाला कपड़ा गिरना 'शरम-भंग' नहीं

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि किसी महिला का सिर ढकने वाला कपड़ा (हिजाब/दुपट्टा/ओढ़नी) महज़ जोर लगने के कारण गिर जाना तब तक 'शरम-भंग' (Section 354 IPC) के अपराध की श्रेणी में नहीं आता, जब तक आरोपी का स्पष्ट इरादा महिला की मर्यादा भंग करने का न हो। अदालत ने कहा कि महिला के साथ किसी भी प्रकार का बल प्रयोग या हमला तभी दंडनीय है, जब उसके पीछे महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने का उद्देश्य या ऐसी संभावना का ज्ञान मौजूद हो।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    DV Act मामलों में समन के बाद गैर-हाजिरी पर वारंट जारी नहीं कर सकते मजिस्ट्रेट: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 (DV Act) की धारा 12 के तहत चलने वाली कार्यवाही में मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी वारंट जैसे दंडात्मक आदेश जारी नहीं कर सकते, जब तक कि अधिनियम के तहत कोई विशिष्ट दंडनीय अपराध आरोपित न हो। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि प्रतिवादी को विधिवत समन भेजा जा चुका है और वह फिर भी उपस्थित नहीं होता तो मजिस्ट्रेट केवल एक्स-पार्टी कार्यवाही आगे बढ़ा सकते हैं।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    किशोर अभियुक्त CrPC की धारा 438 के तहत अग्रिम ज़मानत की मांग कर सकता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि CrPC की धारा 438 के तहत अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन तब भी स्वीकार्य है, जब वह कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर/बच्चे द्वारा दायर किया गया हो। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) अग्रिम ज़मानत प्रावधानों के प्रभाव को बाहर नहीं करता। इस तरह की पहुंच से इनकार करना बच्चे के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    विवाह जारी हो तो लिव-इन को सुरक्षा नहीं: जीवनसाथी के अधिकार पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता भारी नहीं — इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक कथित लिव-इन कपल की सुरक्षा याचिका खारिज करते हुए साफ़ कहा कि जब महिला अब भी कानूनन किसी और पुरुष की पत्नी है, तो वह लिव-इन संबंध के लिए अदालत से सुरक्षा नहीं मांग सकती। जस्टिस विवेक कुमार सिंह की बेंच के अनुसार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है, और किसी एक व्यक्ति की स्वतंत्रता वहीं समाप्त होती है जहाँ दूसरे व्यक्ति का वैधानिक अधिकार शुरू होता है। अदालत ने कहा कि पति/पत्नी को एक-दूसरे के साथ रहने का कानूनी अधिकार है और इसे किसी “लिव-इन संबंध” के नाम पर छीना नहीं जा सकता।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story