1996 गाज़ियाबाद बस धमाका: पुलिस के बयान मान्य नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को 'भारी मन से' बरी किया

Praveen Mishra

18 Nov 2025 4:39 PM IST

  • 1996 गाज़ियाबाद बस धमाका: पुलिस के बयान मान्य नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को भारी मन से बरी किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1996 के मोदीनगर–गाज़ियाबाद बस बम धमाका मामले में दोषी ठहराए गए मोहम्मद इलियास को बरी कर दिया है। 51 पन्नों के विस्तृत फैसले में अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में पूरी तरह विफल रहा और पुलिस द्वारा रिकॉर्ड किया गया इलियास का कथित इक़बाल-ए-जुर्म भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के चलते कानूनी रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि पुलिस के समक्ष दिया गया कथित बयान एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा टेप पर रिकॉर्ड किया गया था, लेकिन चूँकि यह 1996 का मामला है और उस समय TADA कानून लागू नहीं था, इसलिए पुलिस के समक्ष किया कोई भी स्वीकारोक्ति अदालत में साक्ष्य के रूप में पेश नहीं की जा सकती। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि कथित बयान रिकॉर्ड करने वाला टेप-रिकॉर्डर ही पेश नहीं किया गया, और इस तरह बयान की सत्यता या वैधता की कोई पुष्टि अदालत के सामने नहीं हो सकी।

    अदालत ने रिकॉर्ड का निरीक्षण करते हुए पाया कि घटना से जुड़े यात्री और प्रत्यक्षदर्शी तो बस धमाके की पुष्टि करते हैं, परंतु कोई भी आरोपी की पहचान करने में सक्षम नहीं था। बम बस में दिल्ली ISBT पर ही पहले से रखा गया था, इसलिए किसी यात्री द्वारा आरोपी को देख पाना संभव ही नहीं था। जिन गवाहों को अभियोजन पक्ष ने “बाह्य-न्यायिक स्वीकारोक्ति” के आधार पर मुख्य गवाह बनाया, उन्होंने भी अदालत में अपने बयान से मुकरकर अभियोजन का आधार कमजोर कर दिया।

    अदालत ने यह भी कहा कि इलियास की जम्मू तवी की टिकटें, या उसकी डायरी में 'सलीम करी' नाम का होना, किसी भी रूप में उसे बम लगाने की साजिश से नहीं जोड़ता। अभियोजन द्वारा प्रस्तुत सबूत इतने कमजोर थे कि बिना पुलिस के इक़बाल-ए-जुर्म के मामले में इलियास के खिलाफ कुछ भी ठोस नहीं बचता था।

    फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि इतना गंभीर मामला होने के बावजूद, जिसमें 18 निर्दोष लोगों की जान गई थी, कानून के अनुसार दोष सिद्ध किए बिना किसी को सज़ा नहीं दी जा सकती। अदालत ने यह भी लिखा कि वह “भारी मन से” यह बरी करने का आदेश दे रही है, क्योंकि घटना समाज की अंतरात्मा को झकझोर देने वाली थी।

    अंत में हाईकोर्ट ने 2013 में ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई उम्रकैद और अन्य सजाएँ रद्द कर दीं और आदेश दिया कि यदि किसी अन्य मामले में आवश्यक न हो, तो इलियास को तुरंत रिहा कर दिया जाए। रिहा होने के बाद उसे धारा 437-A CrPC के तहत व्यक्तिगत बॉन्ड और दो जमानतदार देने होंगे।

    इस तरह लगभग तीन दशकों पुराने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष दोष सिद्ध करने में विफल रहा, और कानून के मुताबिक इलियास को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया गया।

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