जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट: बिना किसी आपराधिक इरादे के जोर से खींचने पर महिलाओं का सिर ढकने वाला कपड़ा गिरना 'शरम-भंग' नहीं
Amir Ahmad
18 Nov 2025 12:19 PM IST

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि किसी महिला का सिर ढकने वाला कपड़ा (हिजाब/दुपट्टा/ओढ़नी) महज़ जोर लगने के कारण गिर जाना तब तक 'शरम-भंग' (Section 354 IPC) के अपराध की श्रेणी में नहीं आता, जब तक आरोपी का स्पष्ट इरादा महिला की मर्यादा भंग करने का न हो। अदालत ने कहा कि महिला के साथ किसी भी प्रकार का बल प्रयोग या हमला तभी दंडनीय है, जब उसके पीछे महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने का उद्देश्य या ऐसी संभावना का ज्ञान मौजूद हो।
जस्टिस संजय धर एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 और 448 के तहत दर्ज FIR को चुनौती दी गई। शिकायतकर्ता याचिकाकर्ताओं की भाभी हैं। उनका आरोप था कि याचिकाकर्ता उसके घर में घुसे उसने और उसके पति पर हमला किया और संघर्ष के दौरान उसका सिर ढकने वाला कपड़ा गिर गया, जिसे उन्होंने उसकी शरम-भंग बताया। दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि मामला पूरी तरह संपत्ति विवाद से जुड़ा है और इसे झूठा आपराधिक रंग दिया गया।
अदालत ने कहा कि 'मोडेस्टी' का अर्थ महिला की शालीनता और गरिमा है और कोई भी कृत्य जो महिला की शुचिता को गंभीर रूप से आहत करे, वही धारा 354 के दायरे में आता है। कोर्ट ने दोहराया कि IPC की धारा 354 के तहत अपराध बनने के लिए इरादा अत्यंत आवश्यक तत्व है।
कोर्ट ने कहा,
“केवल हमला करना या बल का प्रयोग करना यदि उसके पीछे महिला की मर्यादा भंग करने का कोई इरादा न हो तो यह IPC धारा 354 का अपराध नहीं बनता। केवल बल प्रयोग, यदि वह आरोपी की मानसिक स्थिति से जुड़ा न हो जिसमें महिला की शर्मभंग करने का उद्देश्य झलकता हो, तो अपराध नहीं कहा जा सकता।”
अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता को घसीटे जाने से उसका सिर ढकने वाला कपड़ा जरूर गिरा परंतु रिकॉर्ड में कहीं भी यह नहीं है कि आरोपियों का उद्देश्य उसकी मर्यादा का उल्लंघन करना था। इसलिए धारा 354 का अपराध बनता ही नहीं।
IPC की धारा 448 (आपराधिक अतिक्रमण) के आरोप पर भी अदालत ने कहा कि यह तभी बनता है, जब जिस संपत्ति में प्रवेश हुआ हो वह शिकायतकर्ता के कब्जे में हो। यहां ऐसा कोई तथ्य मौजूद नहीं था।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि शिकायतकर्ता ने एक सिविल विवाद को आपराधिक रूप देकर FIR दर्ज कराई। इस तरह की कार्रवाई कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
इन सभी निष्कर्षों को देखते हुए अदालत ने कहा कि FIR दुर्भावनापूर्ण है और इसे जारी रखना न्याय के विरुद्ध होगा। अतः हाईकोर्ट ने FIR और उससे संबंधित समस्त कार्यवाही रद्द कर दी।

