नियर-मेजॉरिटी आधारित रिश्तों के लिए अदालतें अपवाद नहीं बना सकतीं, POCSO में नाबालिग की सहमति अप्रासंगिक: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

20 Nov 2025 1:46 PM IST

  • नियर-मेजॉरिटी आधारित रिश्तों के लिए अदालतें अपवाद नहीं बना सकतीं, POCSO में नाबालिग की सहमति अप्रासंगिक: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ कहा कि अदालतें तथाकथित नियर-मे‍जॉरिटी सहमति आधारित रिश्तों के लिए कोई जज-निर्मित अपवाद नहीं बना सकतीं, क्योंकि POCSO कानून में 18 वर्ष से कम आयु वाले व्यक्ति की सहमति का कोई महत्व नहीं है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संसद ने 18 वर्ष की आयु तय करके यह तय कर दिया कि इससे कम उम्र का व्यक्ति यौन सहमति देने में सक्षम नहीं माना जाएगा।

    जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि POCSO ACT और उस समय लागू भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं के तहत 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के साथ किया गया कोई भी यौन कृत्य स्वयं में अपराध है और उसमें सहमति जैसे तत्व को शामिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि संवैधानिक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए अदालत इक्विटी के आधार पर कोई ऐसा अपवाद नहीं बना सकती जो कानून में है ही नहीं।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि नाबालिग के साथ बने रिश्ते में बाद में हुए घटनाक्रम जैसे साथ रहना, बच्चे का जन्म, या वयस्क हुई पीड़िता का कोई आपत्ति नहीं कहना अतीत में हुए उस कृत्य को वैध नहीं बना सकते, जिसे कानून ने उस समय अपराध माना था। अदालत ने कहा कि POCSO की मूल भावना बढ़ी हुई सुरक्षा है, न कि किशोरावस्था की यौन गतिविधियों के प्रति तटस्थता।

    कोर्ट ने पीड़िता के इस बयान को स्वीकार नहीं किया कि वह अब वयस्क है और स्वयं केस खत्म करना चाहती है। अदालत ने कहा कि यह वही प्रकार का मामला है, जिसमें कानून और वास्तविकता के बीच तीखा टकराव दिखता है, लेकिन कानून की मंशा स्पष्ट है नाबालिग के साथ किसी भी प्रकार का यौन संबंध अपराध ही है।

    मामला उस समय सामने आया, जब पुलिस ने पाया कि आरोपी युवक और लड़की जो उस समय 16 वर्ष 5 महीने की थी पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे थे। लड़की अब बालिग है और वह अपने शिशु के साथ अदालत में उपस्थित हुई। इसके बावजूद अदालत ने FIR और अभियोजन समाप्त करने से इनकार कर दिया।

    अदालत ने कहा कि पीड़िता की गर्भावस्था स्वयं इस बात का निर्विवाद प्रमाण है कि यौन संबंध हुआ और उस समय वह 18 वर्ष से कम थी, इसलिए मामला सीधे तौर पर POCSO के दायरे में आता है। अदालत ने यह भी कहा कि जब अभियोजन यह मूल तथ्य स्थापित कर देता है कि पीड़ित बच्चा था और कृत्य हुआ तो 'सहमति' को बचाव के रूप में पेश नहीं किया जा सकता।

    हाईकोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि शुरुआती चरण में ही अभियोजन समाप्त करना यह खतरनाक संदेश देगा कि नाबालिग से संबंध या बाल विवाह को बाद में शादी या साथ रहने से वैध बनाया जा सकता है। यह POCSO और बाल विवाह निषेध कानून दोनों की मंशा के ख़िलाफ होगा।

    अंत में जस्टिस नरूला ने कहा कि यह कठिन मामला है, जहां इक्विटी का आकर्षण मजबूत है लेकिन कानून की आज्ञा उससे भी अधिक सशक्त है।

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