हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

27 Sept 2025 11:45 PM IST

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    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (22 सितंबर, 2025 से 26 सितंबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने बांग्लादेशी बताकर निर्वासित किए गए लोगों को 4 सप्ताह के भीतर वापस लाने का आदेश दिया

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल के उन निवासियों को वापस लाने का निर्देश दिया, जिन्हें दिल्ली पुलिस ने बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में बांग्लादेश निर्वासित कर दिया था।

    जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस रीतोब्रतो कुमार मित्रा ने चार सप्ताह के भीतर नागरिकों की वापसी का निर्देश दिया और कहा: "लोगों की जीवनशैली कानून की रूपरेखा तय करती है, न कि इसके विपरीत। कानून को संदर्भ से अलग नहीं किया जा सकता। मौलिक अधिकारों को नीरस, बेजान शब्दों की तरह नहीं पढ़ा जा सकता। यदि कोई अनियंत्रित या दिशाहीन शक्ति बिना किसी उचित और उचित मानकों या सीमाओं के प्रदान की जाती है, जो ऐसी शक्ति के प्रयोग के मार्गदर्शन और नियंत्रण के लिए अधिनियम में निर्धारित की गई हों तो उस अधिनियम को 'कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया' नहीं माना जा सकता। कार्यपालिका को कोई भी निर्बाध विवेकाधिकार नहीं दिया जा सकता। यदि अधिकारी अपने सार्वजनिक अधिकार का मनमाने ढंग से प्रयोग करते हैं तो वह ऐसे कार्य को समता खंड के निषेध के दायरे में लाएगा।"

    Case: Bhodu Sekh Vs. Union of India & Ors

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    केवल व्यभिचार के आरोप के आधार पर पत्नी को पति की फैमिली पेंशन में अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में शुक्रवार को कहा कि किसी महिला पर केवल "व्यभिचार" का आरोप लगाने मात्र से उसे महाराष्ट्र सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1982 (MCSR) के तहत अपने मृत पति की फैमिली पेंशन में अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इसलिए जस्टिस मनीष पिताले और जस्टिस यशवराज खोबरागड़े की खंडपीठ ने एक मृत व्यक्ति के भाई और माँ को कोई राहत देने से इनकार किया, जो अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाने के बाद उससे अलग रह रहा था।

    Case Title: VVB vs State of Maharashtra (Writ Petition 11613 of 2019)

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    Punjab Police Rules| राज्य पुलिस अधिकारी को एक महीने से ज़्यादा सश्रम कारावास की सज़ा सुनाए जाने पर बर्खास्तगी के अलावा कोई और सज़ा नहीं दे सकता: पंजाब- हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब पुलिस नियम (हरियाणा में लागू) (PPR) की विस्तृत व्याख्या करते हुए एक फैसले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार उन मामलों में सेवा से बर्खास्तगी के अलावा कोई और सज़ा नहीं दे सकती, जहां किसी पुलिस अधिकारी को एक महीने से ज़्यादा सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गई हो। अदालत ने ज़ोर देकर कहा कि नियम ऐसी परिस्थितियों में अनुशासनात्मक प्राधिकारी को कोई विवेकाधिकार नहीं देते।

    Title: KRISHAN KUMAR @ KRISHAN LAL v. STATE OF HARYANA AND ORS.

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    पति और बच्चे पत्नी/माँ का रखरखाव करने के कानूनी और नैतिक जिम्मेदार: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में मदुरै की फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें पति और बेटों को पत्नी/मां को ₹21,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। जस्टिस शमीम अहमद ने कहा कि किसी पुरुष का अपनी पत्नी और मां का जीवनभर भरण-पोषण करना उसका कानूनी और नैतिक कर्तव्य है। यह दायित्व इसलिए है ताकि मां और पत्नी वृद्धावस्था में सम्मान और देखभाल के साथ जीवन जी सकें।

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    शादी के 6 महीने के भीतर आपसी सहमति से तलाक़ नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक दंपति की उस अपील को खारिज किया, जिसमें उन्होंने शादी के महज़ छह महीने के भीतर ही आपसी सहमति से तलाक़ मांगा था। अदालत ने साफ़ कहा कि जब तक विवाह में अत्यधिक कठिनाई या घोर दुराचार साबित न हो तब तक छह महीने से पहले तलाक़ की अनुमति नहीं दी जा सकती।

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    BE/B.Tech डिग्री और NIELIT का CCC प्रमाणपत्र सरकारी भर्ती में RS-CIT के बराबर: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि बीई/बीटेक (BE/B.Tech) की डिग्री और राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (NIELIT) द्वारा जारी CCC प्रमाणपत्र, राजस्थान स्टेट सर्टिफिकेट इन इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (RS-CIT) के समकक्ष और पर्याप्त माने जाएंगे। जस्टिस आनंद शर्मा की सिंगल बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। इसमें प्रश्न यह था कि क्या जूनियर अकाउंटेंट और तहसीलदार राजस्व लेखा जैसी भर्तियों के लिए बीटेक डिग्री को RS-CIT प्रमाणपत्र के समान माना जा सकता है।

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    परंजय गुहा ठाकुरता पर अडानी ग्रुप की रिपोर्टिंग रोकने वाला गैग ऑर्डर लागू नहीं होगा: दिल्ली कोर्ट

    दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने गुरुवार (25 सितम्बर) को कहा कि सीनियर जर्नालिस्ट परंजय गुहा ठाकुरता पर अडानी एंटरप्राइजेज से जुड़ी रिपोर्टिंग को रोकने वाला एकपक्षीय गैग ऑर्डर तब तक लागू नहीं होगा, जब तक सीनियर सिविल जज इस मामले में नए आदेश पारित नहीं कर देते।

    डिस्ट्रिक्ट जज सुनील चौधरी ने स्पष्ट किया, "ठाकुरता फिलहाल इस आदेश का पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं। उन्हें भी अन्य पत्रकारों के साथ 26 सितम्बर को दोपहर 2 बजे सीनियर सिविल जज के समक्ष सुनवाई में शामिल किया जाएगा। अदालत ने कहा कि सीनियर सिविल जज जब अडानी ग्रुप की याचिका पर अंतरिम निषेधाज्ञा संबंधी आवेदन पर नया आदेश देंगे, तब कानून में स्थापित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए फैसला करेंगे।

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    अलग-अलग तलाक याचिकाओं को आपसी सहमति से तलाक में नहीं बदला जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम फैसले में कहा कि पति और पत्नी द्वारा स्वतंत्र रूप से दायर की गई तलाक की याचिकाओं को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13B के तहत आपसी सहमति से तलाक की याचिका नहीं माना जा सकता।

    जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि धारा 13B की बुनियादी शर्त है कि विवाह विच्छेद के लिए दोनों पक्षों के बीच पहले से एक स्पष्ट और साझा सहमति होनी चाहिए। यदि ऐसा पूर्व सहमति का आधार मौजूद न हो तो बाद में दायर समानांतर याचिकाओं को आपसी सहमति की याचिका के रूप में पुनर्परिभाषित नहीं किया जा सकता।

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    COVID के दौरान सीमा अवधि बढ़ाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश PMLA के तहत कुर्की की कार्यवाही पर भी लागू: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि COVID-19 महामारी के मद्देनजर सीमा अवधि बढ़ाने के सुप्रीम कोर्ट के स्वतःसंज्ञान से दिए गए निर्देश PMLA की धारा 8 के तहत न्यायिक प्रक्रिया और संपत्तियों की कुर्की की पुष्टि पर भी लागू होते हैं।

    जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा: “यह स्पष्ट है कि सीमा अवधि विस्तार के लिए संज्ञान (सुप्रा) के संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उद्देश्य न्यायिक और अर्ध-न्यायिक कार्यवाहियों के संबंध में सभी सामान्य और विशेष कानूनों के तहत निर्धारित सीमा अवधि को बढ़ाना है, चाहे ऐसी सीमा अवधि क्षमा योग्य हो या नहीं। परिणामस्वरूप, किसी स्पष्ट अपवर्जन के अभाव में ये निर्देश PMLA के तहत कार्यवाहियों पर पूरी तरह लागू होंगे, जिसमें न्यायनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा धारा 8 के तहत न्यायिक निर्णय के लिए निर्धारित सीमा अवधि भी शामिल है, जो निर्विवाद रूप से अर्ध-न्यायिक कार्य करता है।”

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    Sec.138 NI Act| मुआवज़ा जमा न करने मात्र से अपीलीय अदालत ज़मानत नहीं रोक सकती: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 138 एनआई एक्ट (चेक बाउंस केस) में दोषी व्यक्ति को केवल इस आधार पर जमानत से वंचित नहीं किया जा सकता कि उसने अपीलीय अदालत के आदेश अनुसार 20% मुआवजा राशि जमा नहीं की है। अदालत ने कहा— धारा 148 एनआई एक्ट अपीलीय अदालत को यह अधिकार देता है कि अपील लंबित रहते समय दोषी से कम से कम 20% जुर्माना/मुआवजा जमा कराने का निर्देश दे।

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    लाइलाज बीमारी छिपाने पर पति को तलाक का अधिकार : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक विवाह को रद्द करते हुए कहा कि यदि कोई जीवनसाथी विवाह से पहले यह तथ्य छिपाता है कि वह “सिरिब्रल पाल्सी” जैसी असाध्य बीमारी से पीड़ित है, तो यह दूसरे जीवनसाथी के लिए हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक लेने का आधार हो सकता है।

    जस्टिस नितिन सुर्यवंशी और जस्टिस संदीपकुमार मोरे की खंडपीठ ने उस पति की अपील पर फैसला सुनाया, जिसकी तलाक याचिका को फैमिली कोर्ट ने 17 अगस्त 2023 को खारिज कर दिया था। पति ने आरोप लगाया था कि पत्नी जन्म से सिरिब्रल पाल्सी से पीड़ित है, जिसके कारण वह अक्सर असामान्य व्यवहार करती है और सामान्य घरेलू कार्य नहीं कर पाती।

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    किसी व्यक्ति को जंगली जानवर समझकर गलती से गोली मारना लापरवाही है, हत्या नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को जंगली जानवर समझकर गलती से गोली मारना भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 106 के तहत लापरवाही से हुई मौत है, न कि BNS की धारा 103 के तहत हत्या का अपराध।

    जस्टिस राकेश कैंथला ने टिप्पणी की: "...उनका सोम दत्त की मृत्यु का इरादा नहीं था और उन्हें प्रथम दृष्टया BNS की धारा 103 के तहत दंडनीय अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि, वह BNS की धारा 106 के तहत दंडनीय अपराध के लिए उत्तरदायी होंगे, जो प्रकृति में जमानती है।"

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    पहली पत्नी की मृत्यु के बाद सरकारी कर्मचारी के पेंशन रिकॉर्ड में दूसरी पत्नी शामिल होगी: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि रिटायरमेंट सरकारी कर्मचारी की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उसकी दूसरी पत्नी को पेंशन देने से इनकार नहीं किया जा सकता, भले ही हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 के तहत विवाह तकनीकी रूप से अमान्य हो। अदालत ने श्रीरामबाई बनाम कैप्टन रिकॉर्ड ऑफिसर, 2023 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि "यदि एक पुरुष और एक महिला लंबे समय तक लगातार साथ रहते हैं तो विवाह के वैध होने का अनुमान लगाया जा सकता है"।

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    कोडीन-आधारित कफ सिरप का अनधिकृत कब्ज़ा NDPS Act के अंतर्गत आता है: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने दोहराया कि NDPS Act के तहत ज़मानत एक कठोर अपवाद है, खासकर कोडीन-आधारित कफ सिरप की व्यावसायिक मात्रा से जुड़े मामलों में। जस्टिस जितेंद्र कुमार ने कहा, "ज़मानत का अस्वीकार करना एक नियम है और इसे देना एक अपवाद है।"

    उन्होंने दोहराया कि कोडीन-आधारित कफ सिरप का अनधिकृत कब्ज़ा, चाहे उसकी सांद्रता 2.5% से कम क्यों न हो, व्यावसायिक मात्रा में होने पर NDPS Act के दायरे में आता है और NDPS Act की धारा 37 के तहत ज़मानत नियम के बजाय एक अपवाद है।

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    अभियुक्त के विरुद्ध फरारी उद्घोषणा जारी होने पर भी अग्रिम ज़मानत याचिका स्वीकार्य: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने माना कि दंड प्रक्रिया संहिता (BNSS) की धारा 82 (फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा) और 83 (फरार व्यक्ति की संपत्ति की कुर्की) के तहत कार्यवाही अग्रिम ज़मानत याचिका दायर करने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती।

    बता दें, BNSS की धारा 82 में कहा गया कि यदि किसी अदालत को यह विश्वास करने का कारण है (चाहे साक्ष्य लेने के बाद हो या नहीं) कि कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध उसके द्वारा वारंट जारी किया गया, फरार हो गया या खुद को छिपा रहा है ताकि ऐसे वारंट को निष्पादित न किया जा सके तो ऐसा अदालत लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है, जिसमें उसे निर्दिष्ट स्थान पर और एक निर्दिष्ट समय पर उपस्थित होने के लिए कहा गया हो, जो ऐसी उद्घोषणा प्रकाशित होने की तिथि से कम से कम तीस दिन की अवधि का हो।

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    विवाह में प्रेमी/प्रेमिका के दखल पर पति/पत्नी केस कर सकते हैं : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि किसी जीवनसाथी का प्रेमी/प्रेमिका जानबूझकर और गलत तरीके से विवाह में हस्तक्षेप करता है, तो दूसरा जीवनसाथी उसके खिलाफ हर्जाने का सिविल मुकदमा दायर कर सकता है। कोर्ट ने “Alienation of Affection” की अवधारणा पर चर्चा करते हुए कहा कि ऐसा दावा सिविल कोर्ट में किया जा सकता है, न कि फैमिली कोर्ट में।

    कोर्ट ने माना कि सिविल कार्रवाई तभी टिकाऊ होगी जब वादी साबित करे कि (i) प्रतिवादी का आचरण जानबूझकर और गलत था तथा उसने वैवाहिक रिश्ते में हस्तक्षेप किया, (ii) इस आचरण से वैधानिक चोट का स्पष्ट कारण बना, और (iii) हुआ नुकसान तार्किक रूप से आंका जा सकता है।

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    SC/ST Act | कोई ठोस अपराध नहीं पाया जाता है तो अग्रिम ज़मानत देने पर कोई रोक नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उन मामलों में अग्रिम ज़मानत देने पर रोक लागू नहीं होगी, जहां अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम (SC/ST Act) की धारा 3(2)(v) के तहत अपराध का आरोप लगाया गया हो, बशर्ते कि प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष हो कि 10 वर्ष के कारावास से दंडनीय कोई ठोस अपराध नहीं किया गया।

    जस्टिस गोपीनाथ पी. ने कहा: "दूसरे शब्दों में, ऐसे मामलों में जहां आरोप यह है कि SC/ST Act की धारा 3(2)(v) के तहत कोई अपराध किया गया और जब यह न्यायालय प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकालता है कि 10 वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय कोई ठोस अपराध नहीं किया गया तो उक्त प्रथम दृष्टया निष्कर्ष यह मानने के लिए पर्याप्त है कि SC/ST Act की धारा 18 के तहत अग्रिम ज़मानत देने पर रोक लागू नहीं होगी।"

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