SC/ST Act | कोई ठोस अपराध नहीं पाया जाता है तो अग्रिम ज़मानत देने पर कोई रोक नहीं: केरल हाईकोर्ट

Shahadat

20 Sept 2025 8:45 PM IST

  • SC/ST Act | कोई ठोस अपराध नहीं पाया जाता है तो अग्रिम ज़मानत देने पर कोई रोक नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उन मामलों में अग्रिम ज़मानत देने पर रोक लागू नहीं होगी, जहां अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम (SC/ST Act) की धारा 3(2)(v) के तहत अपराध का आरोप लगाया गया हो, बशर्ते कि प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष हो कि 10 वर्ष के कारावास से दंडनीय कोई ठोस अपराध नहीं किया गया।

    जस्टिस गोपीनाथ पी. ने कहा:

    "दूसरे शब्दों में, ऐसे मामलों में जहां आरोप यह है कि SC/ST Act की धारा 3(2)(v) के तहत कोई अपराध किया गया और जब यह न्यायालय प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकालता है कि 10 वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय कोई ठोस अपराध नहीं किया गया तो उक्त प्रथम दृष्टया निष्कर्ष यह मानने के लिए पर्याप्त है कि SC/ST Act की धारा 18 के तहत अग्रिम ज़मानत देने पर रोक लागू नहीं होगी।"

    अदालत SC/ST Act की धारा 14ए के अंतर्गत दायर दो आपराधिक अपीलों पर विचार कर रहा था। इन अपीलों में स्पेशल जज के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(एन) [बलात्कार] और 506 [आपराधिक धमकी] तथा SC/ST Act की धारा 3(2)(वी) के तहत कथित रूप से अपराध करने के लिए अग्रिम ज़मानत देने से इनकार कर दिया गया।

    प्रथम अभियुक्त के विरुद्ध आरोप यह है कि उसने वास्तविक शिकायतकर्ता को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया और उसे जारी रखा। इसके बाद वे साथ रहे, लेकिन बाद में उससे शादी करने के अपने वादे से मुकर गया। दूसरे अभियुक्त पर आरोप है कि उसने प्रथम अभियुक्त के साथ उसके संबंधों के कारण उसे धमकी दी थी।

    अदालत ने हिरण दास मुरली बनाम केरल राज्य, अनिल कुमार बनाम केरल राज्य और महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामलों पर विचार करते हुए पाया कि धारा 376 के अंतर्गत अपराध प्रथम दृष्टया टिक नहीं पाता। प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकाला गया कि चूंकि वास्तविक शिकायतकर्ता विवाहित महिला थी और प्रथम अभियुक्त के साथ उसका रिश्ता काफी लंबे समय तक, 2023 से जुलाई 2025 तक चला, इसलिए इस रिश्ते का अंत विवाह के झूठे वादे पर बलात्कार का आरोप लगाने का आधार नहीं हो सकता।

    अदालत ने पाया कि द्वितीय अभियुक्त द्वारा शिकायतकर्ता को कथित रूप से धमकाने के लिए किए गए फ़ोन कॉल्स की अवधि काफी लंबी थी और ये फ़ोन कॉल्स उस समय किए गए, जब प्रथम अभियुक्त और वह एक रिश्ते में थे। अदालत ने इस संभावना पर विचार किया कि प्रथम अभियुक्त अपने फ़ोन का इस्तेमाल द्वितीय अभियुक्त से बात करने के लिए कर रहा था और यह पाया कि धारा 506 के तहत अपराध होना संदिग्ध है।

    अदालत ने राजचंद्रशेखरन @ बाबू बनाम केरल राज्य के मामले पर भरोसा करते हुए कहा कि SC/ST Act की धारा 3(2)(v) एक मूल अपराध नहीं है और पाया कि वर्तमान मामले में यह अपराध भी लागू नहीं होगा।

    अदालत ने टिप्पणी की:

    “मैंने पहले ही यह माना है कि प्रथम दृष्टया, IPC की धारा 376(2)(एन) के तहत अपराध प्रथम अभियुक्त द्वारा किया गया नहीं माना जा सकता। धारा 506 के तहत अपराध के लिए अधिकतम सज़ा सात वर्ष है। इसलिए SC/ST Act की धारा 3(2)(वी) के प्रावधान लागू नहीं होते। हालांकि, SC/ST Act की धारा 3(2)(वीए) के प्रयोजनों के लिए IPC की धारा 506 के तहत एक अनुसूचित अपराध है, फिर भी उक्त प्रावधान लागू नहीं किया गया। किसी भी स्थिति में मैंने यह भी माना है कि प्रथम दृष्टया धारा 506 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।”

    इन निष्कर्षों के साथ अदालत ने अपील स्वीकार की और अपीलकर्ताओं को शर्तों के साथ अग्रिम ज़मानत प्रदान की।

    Case Title: Rahul M.R. v. State of Kerala and Anr. and connected case

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