COVID के दौरान सीमा अवधि बढ़ाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश PMLA के तहत कुर्की की कार्यवाही पर भी लागू: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
26 Sept 2025 10:48 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि COVID-19 महामारी के मद्देनजर सीमा अवधि बढ़ाने के सुप्रीम कोर्ट के स्वतःसंज्ञान से दिए गए निर्देश PMLA की धारा 8 के तहत न्यायिक प्रक्रिया और संपत्तियों की कुर्की की पुष्टि पर भी लागू होते हैं।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा:
“यह स्पष्ट है कि सीमा अवधि विस्तार के लिए संज्ञान (सुप्रा) के संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उद्देश्य न्यायिक और अर्ध-न्यायिक कार्यवाहियों के संबंध में सभी सामान्य और विशेष कानूनों के तहत निर्धारित सीमा अवधि को बढ़ाना है, चाहे ऐसी सीमा अवधि क्षमा योग्य हो या नहीं। परिणामस्वरूप, किसी स्पष्ट अपवर्जन के अभाव में ये निर्देश PMLA के तहत कार्यवाहियों पर पूरी तरह लागू होंगे, जिसमें न्यायनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा धारा 8 के तहत न्यायिक निर्णय के लिए निर्धारित सीमा अवधि भी शामिल है, जो निर्विवाद रूप से अर्ध-न्यायिक कार्य करता है।”
अदालत ने कहा कि महामारी हाल के मानव इतिहास में अभूतपूर्व घटना है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई छूट का उपयोग प्राधिकारियों द्वारा सामान्य परिस्थितियों में अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए नहीं किया जा सकता।
खंडपीठ ने कहा कि PMLA की धारा 8 के तहत न्यायनिर्णायक प्राधिकरण अर्ध-न्यायिक कार्य करता है, क्योंकि यह संपत्ति में मूल्यवान अधिकारों को प्रभावित करने वाले प्रश्नों का निर्धारण करता है।
अदालत ने कहा कि प्राधिकरण नोटिस, सुनवाई, साक्ष्यों के मूल्यांकन और तर्कसंगत निर्णय लेने को सुनिश्चित करके न्यायिक रूप से कार्य करने के लिए बाध्य है। साथ ही उसने यह भी कहा कि उसकी भूमिका प्रशासनिक या कार्यकारी नहीं, बल्कि अर्ध-न्यायिक प्रकृति की है।
अदागल सिंगल जज के आदेश के विरुद्ध प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर एलपीए और एक संस्था द्वारा अनंतिम कुर्की आदेश के विरुद्ध दायर रिट याचिका पर विचार कर रहा था।
अदालत के समक्ष सुनवाई योग्य प्रश्न यह है कि क्या COVID-19 महामारी के आलोक में सुप्रीम कोर्ट द्वारा "सीमा विस्तार हेतु संज्ञान" मामले में पारित आदेश, जिसमें सीमा अवधि बढ़ाने का प्रावधान है, PMLA की धारा 5 के तहत कार्यवाही पर भी लागू होंगे, जिसके अनुसार PMLA की धारा 8(3) के तहत न्यायनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा किसी अनंतिम कुर्की की अधिकतम 180 दिनों की अवधि के भीतर पुष्टि की जानी आवश्यक है?
याचिकाओं का निपटारा करते हुए खंडपीठ ने कहा कि सीमा अवधि बढ़ाने के सुप्रीम कोर्ट के स्वप्रेरणा निर्देशों के पीछे का उद्देश्य सरकार सहित वादियों के अधिकारों की रक्षा करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सामान्य कानून के साथ-साथ विशेष कानूनों के तहत निर्धारित सीमा अवधि महामारी के कारण प्रतिकूल रूप से प्रभावित न हो।
PMLA के वैधानिक प्रावधानों का विश्लेषण करते हुए अदालत ने कहा कि अनंतिम कुर्की का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी व्यक्ति के पास मौजूद अपराध की किसी भी आय के साथ किसी भी तरह से ऐसा व्यवहार न किया जाए, जिससे अपराध की ऐसी आय की जब्ती से संबंधित किसी भी कार्यवाही में बाधा उत्पन्न हो।
अदालत ने कहा,
"इस प्रकार, अनंतिम कुर्की धारा 8 के तहत न्यायनिर्णयन के लिए सक्षमकर्ता है, क्योंकि हमने कुर्की की कार्यवाही (अनंतिम और पुष्टिकरण) के संबंध में द्वि-चरणीय प्रक्रिया को पहला कदम माना है।"
अदालत ने आगे कहा,
"इस प्रकार, धारा 5(1) के तहत अनंतिम कुर्की की घटना और धारा 5(5) के तहत प्रक्रियात्मक शिकायत प्राप्त होने पर धारा 8 के प्रावधान लगभग तुरंत लागू हो जाते हैं; धारा 8 के प्रावधान लागू हो जाते हैं और अनंतिम कुर्की के बाद तत्काल संपर्क बिंदु बन जाते हैं।"
इसके अलावा, खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि PMLA के तहत न्यायनिर्णायक प्राधिकरण, प्रवर्तन निदेशालय (ED) के कामकाज का मात्र विस्तार नहीं है, बल्कि स्वतंत्र, विशेषज्ञ, वैधानिक मंच है, जिसे एजेंसी की कार्रवाई की जांच करने की गंभीर ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
अदालत ने ED के इस तर्क को उचित पाया कि एक बार जब एजेंसी PMLA की धारा 5(5) के तहत 30 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर न्यायनिर्णायक प्राधिकरण के समक्ष शिकायत दर्ज करा देती है तो आगे की कार्यवाही की ज़िम्मेदारी सीधे प्राधिकरण पर आ जाती है, जिसे वैधानिक रूप से 180 दिनों के भीतर मामले का निपटारा करना अनिवार्य है।
अदालत ने कहा,
"यदि COVID-19 महामारी जैसी असाधारण परिस्थितियों के कारण न्यायनिर्णायक प्राधिकारी निर्धारित अवधि के भीतर निर्णय पूरा करने में असमर्थ है तो ED, जो उन कार्यवाहियों में केवल एक पक्षकार है, को उसके नियंत्रण से परे देरी के लिए प्रतिकूल परिणाम भुगतने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। ऐसी परिस्थितियों में "एक्टस क्यूरी नेमिनम ग्रेवबिट" का सुस्थापित सिद्धांत, कि किसी भी व्यक्ति को अदालत के किसी कार्य से पूर्वाग्रहित नहीं होना चाहिए, पूरी ताकत से लागू होता है।"
यहां अदालत ने ED की याचिका स्वीकार की और सिंगल जज का आदेश रद्द कर दिया, वहीं याचिकाकर्ता संस्था द्वारा दायर अन्य संयुक्त याचिका खारिज कर दिया।
Title: DIRECTORATE OF ENFORCEMENT & ANR v. M/S VIKAS WSP LTD & ORS & other connected matter

