हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

20 April 2025 4:30 AM

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (14 अप्रैल, 2025 से 18 अप्रैल, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    UP Revenue Code | सह-भूमिधर संयुक्त स्वामित्व के कानूनी बंटवारे के बाद ही अपने हिस्से के लिए भूमि उपयोग परिवर्तन की मांग कर सकते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 80(1) या 80(2) के तहत गैर-कृषि भूमि उपयोग घोषणा का यह अर्थ नहीं है कि भूमि का सह-भूमिधरों के बीच बंटवारा हो चुका है।

    अधिनियम की धारा 80 (4) की व्याख्या करते हुए जस्टिस डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव और जस्टिस शेखर बी. सराफ की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि अगर सह-भूमिधरों में से कोई एक संयुक्त स्वामित्व वाली भूमि के गैर-कृषि उपयोग के लिए आवेदन करना चाहता है तो या तो सभी सह-भूमिधरों को एक साथ आवेदन करना होगा, या अगर सह-भूमिधरों में से कोई एक ही अपने हिस्से के लिए आवेदन कर रहा है, तो संबंधित भूमि का बंटवारा संहिता, 2006 की धारा 116 और संबंधित नियमों के प्रावधानों के अनुसार पहले ही हो चुका होगा।

    केस टाइटल- ईशान चौधरी और अन्य बनाम भारत संघ और 4 अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 136

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    GST अधिकारी सीमा के आधार पर प्री-डिपॉजिट के रिफंड से इनकार नहीं कर सकते, अनुच्छेद 265 का उल्लंघन: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल के एक फैसले में कहा है कि जीएसटी अधिनियम की धारा 107 (6) (b) के तहत किए गए वैधानिक पूर्व-जमा के लिए रिफंड दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया गया है कि दावा धारा 54 (1) के तहत 2 साल की सीमा के बाद दायर किया गया था, कानूनी रूप से अस्थिर है।

    जस्टिस रामचंद्र राव और जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने कहा, "इस आशय का कोई विवाद नहीं है कि एक बार रिफंड वैधानिक अभ्यास के माध्यम से होता है, तो इसे न तो राज्य द्वारा और न ही केंद्र द्वारा रखा जा सकता है, वह भी एक प्रावधान की सहायता लेकर, जो कि यह निर्देशिका है, धारा 54 में उल्लिखित भाषा यह है कि वह संगत तारीख से 2 वर्ष की समाप्ति से पहले आवेदन कर सकती है।

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    घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत सास भी दर्ज करा सकती है मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में फ़ैसले सुनाया कि सास भी घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत केस दर्ज करा सकती है। यह मामला ट्रायल कोर्ट उस निर्णय से संबंधित है, जिसमें कोर्ट ने बहू और उनके परिवार के सदस्यों को सास की दायर शिकायत पर समन जारी किया था। बहू के घर वालों ने बाद में ट्रायल कोर्ट के इस समन के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।

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    जांच के दौरान गिरफ्तारी नहीं की गई तो ED के पास संज्ञान लेने के बाद PMLA की धारा 19 के तहत गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने माना कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) विशेष न्यायालय द्वारा संज्ञान लिए जाने के बाद किसी आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) की धारा 19 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकता है, यदि जांच के दौरान आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया हो।

    मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस सत्यव्रत वर्मा ने कहा, "प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश विद्वान वकील याचिकाकर्ता की ओर से पेश विद्वान वकील की इस दलील का खंडन करने की स्थिति में नहीं हैं कि जांच के दौरान ईडी ने याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने की कभी जरूरत महसूस नहीं की और पीएमएलए की धारा 44(1)(बी) के तहत शिकायत के आधार पर पीएमएलए की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराध का संज्ञान लिए जाने के बाद, ईडी और उसके अधिकारी शिकायत में आरोपी के रूप में दिखाए गए व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए पीएमएलए की धारा 19 के तहत शक्ति का प्रयोग करने में असमर्थ हैं।"

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    उम्मीदवार किसी पद को अवैध बताकर उसी पद पर नियुक्ति का अधिकार नहीं मांग सकता : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट जज जस्टिस सत्येन वैद्य की पीठ ने कहा कि कोई उम्मीदवार किसी अतिरिक्त पद पर नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता, खासकर तब जब उम्मीदवार द्वारा ऐसे पद को अवैध बताकर चुनौती दी गई हो।

    केस टाइटल: दीपक पठानिया बनाम हिमाचल प्रदेश सेंट्रल यूनिवर्सिटी और अन्य

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    आर्य समाज मंदिरों में वैदिक या अन्य हिंदू रीति-रिवाजों के साथ संपन्न विवाह Hindu Marriage Act के तहत वैध : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में माना कि आर्य समाज मंदिरों में दो हिंदुओं (पुरुष और महिला) के बीच किए गए विवाह भी हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act), 1955 की धारा 7 के तहत वैध हैं, यदि वे वैदिक या अन्य प्रासंगिक हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार संपन्न किए गए हों और विवाह स्थल, चाहे वह मंदिर हो, घर हो या खुली जगह हो, ऐसे उद्देश्य के लिए अप्रासंगिक है।

    जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि आर्य समाज मंदिर में विवाह वैदिक प्रक्रिया के अनुसार किए जाते हैं, जिसमें कन्यादान, पाणिग्रहण, सप्तपदी और सिंदूर लगाते समय मंत्रोच्चार जैसे हिंदू रीति-रिवाज और संस्कार शामिल हैं और ये समारोह 1955 अधिनियम की धारा 7 की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

    केस टाइटल- महाराज सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 133

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    Arbitration Act | समय के भीतर धारा 34 के तहत अपील दायर करने पर अवार्ड पर कोई स्वतः रोक नहीं लगती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड बनाम कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य तथा हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया है कि मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 2016 की धारा 34 के अंतर्गत अपील दायर करने मात्र से मध्यस्थता पुरस्कार के संचालन पर स्वतः रोक नहीं लग जाती है।

    मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 2016 की धारा 36, जिसे 2015 के संशोधन अधिनियम के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है, पुरस्कारों के प्रवर्तन का प्रावधान करती है। अधिनियम की धारा 36(2) में प्रावधान है कि जहां धारा 34 के अंतर्गत आवेदन समय के भीतर दायर किया गया है, वहां आवेदन के लंबित रहने के दौरान निर्णय ऋणी द्वारा पुरस्कार पर रोक लगाने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है। धारा 36(3) न्यायालय को उचित समझे तो अंतरिम रोक लगाने का अधिकार देती है।

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने मेधा पाटकर की मानहानि याचिका में ट्रायल कोर्ट को सुनवाई टालने का निर्देश दिया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और सोशल एक्टिविस्ट मेधा पाटकर द्वारा दिल्ली के उपराज्यपाल (Delhi LG) वी.के. सक्सेना के खिलाफ दायर मानहानि मामले में ट्रायल कोर्ट को सुनवाई स्थगित करने का निर्देश दिया।

    जस्टिस शालिंदर कौर ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि वह इस मामले की अगली सुनवाई 20 मई के बाद तय करे। हाईकोर्ट में पाटकर ने याचिका दायर कर ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उनके द्वारा अतिरिक्त गवाह को पेश करने की अनुमति संबंधी अर्जी को खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल: Medha Patkar v. LG Saxena

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    पब्लिक स्पॉट से अपहरण, मारपीट और धमकी देकर खुद को दोषी ठहराने वाले शब्दों के साथ झूठा वीडियो बनाना जघन्य अपराध: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    पक्षकारों के बीच समझौते के बाद FIR रद्द करने से इनकार करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक स्थान (पब्लिक प्लेस) से अपहरण, पिस्तौल के बट से हमला करना और धमकी देकर खुद को दोषी ठहराने वाले झूठा वीडियो बनाना जघन्य अपराध के दायरे में आएगा।

    जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने अपने आदेश में कहा, "सार्वजनिक स्थान से अपहरण करना और फिर पिस्तौल के बट से हमला करना और उसके बाद शिकायतकर्ता द्वारा खुद को दोषी ठहराने वाले कुछ बयानों वाला झूठा वीडियो तैयार करना ऐसा अपराध नहीं कहा जा सकता, जो जघन्य न हो या समाज के खिलाफ न हो।"

    केस टाइटल: सौरव गुर्जर एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य, विविध आपराधिक प्रकरण संख्या 14536 दिनांक 2025

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    आवेदक लॉटरी में असफल रूप से भाग लेने के बाद आवास योजना के तहत आवंटन को चुनौती नहीं दे सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    हुडा शहरी संपदा और नगर एवं ग्राम नियोजन कर्मचारी कल्याण संगठन की देखरेख में एक योजना में फ्लैटों के आवंटन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि आवास योजना के तहत लॉटरी में असफल प्रतिभागी प्रक्रिया में भाग लेने के बाद घरों के आवंटन को चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि उसे ऐसा करने से रोक दिया जाएगा।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने कहा, "इसके अलावा, जब वर्तमान याचिकाकर्ता ने लॉटरी में असफल रूप से भाग लिया तो उसे यह तर्क देने से रोक दिया गया कि बैठक में मिनटों को पारित करने में कोई अवैधता थी...जिससे सदस्यता वापस लेने/वापस लेने के संबंध में...इस प्रकार अन्य पात्र व्यक्ति को इसे आवंटित करने का उचित निर्णय लिया गया।"

    केस टाइटल: दिनेश कुमार बनाम हरियाणा राज्य

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    'गिरफ्तारी के आधार' न बताना अनुच्छेद 22(1), CrPC की धारा 50 का उल्लंघन: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में जालसाजी और धोखाधड़ी के मामले में व्यक्ति की गिरफ्तारी रद्द की। इसने नोट किया कि गिरफ्तारी के समय न तो उसकी गिरफ्तारी के कारण और न ही आधार लिखित रूप में बताए गए, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत उसके संवैधानिक सुरक्षा उपायों और CrPC की धारा 50 के तहत वैधानिक आदेश का उल्लंघन है।

    पिछले सप्ताह पारित अपने आदेश में जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप से सूचित किए जाने का अधिकार और गिरफ्तार व्यक्ति को ऐसे लिखित आधार प्रस्तुत करना कानून की अनिवार्य आवश्यकता है।

    केस टाइटल- मंजीत सिंह @ इंदर @ मंजीत सिंह चाना बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 126

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    IPC की धारा 57 या जेल नियम 320 उम्रकैद की अवधि सीमित नहीं करते, उम्रकैद का मतलब आजीवन कैद: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि आजीवन कारावास की सजा का अर्थ होगा कि कैदी को उसके शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कैद किया जाएगा और आईपीसी की धारा 57 और आंध्र प्रदेश जेल नियम, 1979 ("नियम") के नियम 320 (a) दोषी के आजीवन कारावास की सजा को कम नहीं करते हैं और न ही कैदी के प्राकृतिक जीवन के अंत से पहले रिहा होने का अधिकार बनाते हैं।

    जस्टिस आर रघुनंदन राव और जस्टिस महेश्वर राव कुंचियम की एक खंडपीठ ने एक कैदी की रिहाई की मांग करने वाली एक रिट याचिका का निपटारा करते हुए, जिसे शुरू में मौत की सजा सुनाई गई थी और बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था, और 30 साल की सजा काट ली थी।

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