पब्लिक स्पॉट से अपहरण, मारपीट और धमकी देकर खुद को दोषी ठहराने वाले शब्दों के साथ झूठा वीडियो बनाना जघन्य अपराध: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
Shahadat
16 April 2025 4:59 AM

पक्षकारों के बीच समझौते के बाद FIR रद्द करने से इनकार करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक स्थान (पब्लिक प्लेस) से अपहरण, पिस्तौल के बट से हमला करना और धमकी देकर खुद को दोषी ठहराने वाले झूठा वीडियो बनाना जघन्य अपराध के दायरे में आएगा।
जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने अपने आदेश में कहा,
"सार्वजनिक स्थान से अपहरण करना और फिर पिस्तौल के बट से हमला करना और उसके बाद शिकायतकर्ता द्वारा खुद को दोषी ठहराने वाले कुछ बयानों वाला झूठा वीडियो तैयार करना ऐसा अपराध नहीं कहा जा सकता, जो जघन्य न हो या समाज के खिलाफ न हो।"
अदालत भारतीय न्याय संहिता (BNS) धारा 308(5) (जबरन वसूली), 127(2) (गलत तरीके से बंधक बनाना), 115(2) (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 296 (अश्लील कृत्य और गाने) और 3(5) (सामान्य इरादे से किया गया कृत्य) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए FIR रद्द करने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, शिकायतकर्ता अपने दोस्तों के साथ खड़ा था, तभी एक कार आई और कार में बैठे लोगों ने उसे यह कहते हुए कार में बैठा लिया कि वे बात करना चाहते हैं। जब शिकायतकर्ता ने यह कहकर मना कर दिया कि वह नहीं जानता कि वे किसकी बात कर रहे हैं, तो कार चला रहा व्यक्ति उसे ले गया और आरोपियों ने धमकाते हुए 5,00,000 रुपये मांगे। जब शिकायतकर्ता ने कहा कि उसके पास पैसे नहीं हैं, तो दूसरे सह-आरोपी ने उसे गोली मारने के लिए उकसाया।
इसके बाद सह-आरोपी में से एक ने शिकायतकर्ता की आंख के पास पिस्तौल का बट मारा और उसे धमकाते हुए 5,00,000 रुपये छीन लिए। गूगल पे के माध्यम से 16,000 रुपये जमा किए गए। इसके बाद शिकायतकर्ता को पिस्तौल पकड़ा दी गई और उसे यह कहने के लिए मजबूर करके एक वीडियो बनाया गया कि वह दीपेंद्र कंसाना को मारने आया था और 16,000 रुपये की राशि उसने स्वेच्छा से दी है।
इसके बाद आरोपियों ने शिकायतकर्ता को धमकी देते हुए 4,84,000 रुपये की और राशि मांगी कि वे वीडियो को वायरल कर देंगे और अगर उसने किसी को घटना के बारे में बताया तो उसे फंसा दिया जाएगा।
मामले में समझौता के आधार पर FIR रद्द करने की मांग करते हुए आवेदन दायर किया गया। न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या FIR में लगाए गए आरोप सरल प्रकृति के थे या जघन्य और समाज के खिलाफ थे। FIR की सामग्री को देखते हुए न्यायालय ने पाया कि न केवल शिकायतकर्ता का अपहरण किया गया, बल्कि पिस्तौल के बट से हमला भी किया गया। इसके अलावा, शिकायतकर्ता को धमकाया भी गया और आत्म-दोषी स्वीकारोक्ति वाला झूठा वीडियो बनाया गया। इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि उपरोक्त अपराध जघन्य प्रकृति के हैं तथा समाज के विरुद्ध हैं।
ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य (2012) तथा नरिंदर सिंह एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (2014) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि आरोपों की प्रकृति के कारण समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द करने की आवश्यकता नहीं है।
अतः न्यायालय ने FIR रद्द करने से इनकार कर दिया तथा आवेदन खारिज कर दिया।
केस टाइटल: सौरव गुर्जर एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य, विविध आपराधिक प्रकरण संख्या 14536 दिनांक 2025